हुआ यूं कि शादी के कुछ दिन तक तो गाय भैंस बिल्ली सब पलती रही, दोनों जमकर जिंदगी की ब्लागिंग करते रहे, बडे हंसी खुशी में दिन कटते रहे. पर खाली खूबसूरती के दम पर कब तक गॄहस्थ की गाडी चलनी थी? गॄहस्थी चलाने के लिये काम धंधा, रूपया पैसा चाहिये. ताऊ के पास काम धंधे के नाम पर बाबा गिरी थी, अब शादी कर ली तो बाबा गिरी से आने वाला चढावा भी बंद हो गया. थक हार कर ताऊ ने छोटी मोटी चोरी लूट...डकैतियां डालना शुरू कर दिया. इन धंधो का जब ताई को पता चला तो उसने सुबह शाम मेड-इन-जर्मन से ताऊ की आरती उतारनी शुरू कर दी. ताऊ पर डबल मार पड रही थी. चोरी डकैती में पकडा जाये तो पुलिस का डंडा पडता और पुलिस से किसी तरह बच भी जाये तो ताई का लठ्ठ पडता. यानि इधर कुआं उधर खाई.... आखिर कितने दिन बेचारा ताऊ ये जुल्म सहन करता?
आखिर ताऊ मूल रूप से तपस्वी बाबा तो था ही, उसने मन ही मन ताई को सबक सिखाने का फ़ैसला कर लिया और तपस्या करने के लिये घोडाकूदनी आश्रम चला गया. वहां ताऊ महाराज ने जमकर तपस्या शुरू कर दी. जल्द ही देवता प्रसन्न हो गया और ताऊ के सामने, हाथ में हुक्का लिये हुये प्रकट हो गया. देवता ने ताऊ को वरदान मांगने के लिये कहा.
ताऊ ने एक आंख खोलकर देखा कि देवता के हाथ में हुक्का है तो उसकी इच्छा भी हुक्का पीने की हो गई. ताऊ ने देवता से कहा कि मुझे तो वरदान में आप ये हुक्का ही दे दिजिये.
देवता बोला - ए ताऊ, तू इस हुक्के का क्या करेगा? ये कोई साधारण हुक्का नही है. तू इसे छोड और कोई दूसरा वरदान मांगले.
पर ताऊ तो ताऊ ठहरा, अड गया कि देना हो तो ये हुक्का ही दे दो वर्ना फ़िर से तपस्या शुरू करता हूं...हुक्का तो ले कर ही रहुंगा, तुम देवता हो, तुमको हुक्के का क्या काम? ये हम जैसे ताऊओं के काम की चीज है.
देवता ने ताऊ को समझाते हुये कहा - भक्त ये कोई साधारण हुक्का नही है. तुम खाम्ख्वाह इससे परेशानी में पड जाओगे. पर ताऊ नही माना. थक हार कर देवता ने वो हुक्का ताऊ को दे दिया.
ताऊ ने फ़टाफ़ट हुक्के में तंबाकू डालकर अंगारे डाले और पहला कश ही खींच कर धुंआ बाहर छोडा था कि उस धुंआ से एक बडा सा विशालकाय जिन्न पैदा होगया और हाथ जोड कर बोला - ए मेरे मालिक ताऊ, हुक्म करिये...खादिम को किस लिये याद किया है? मैं आपके तीन हुक्म बजा लाने के लिये आपकी सेवा में हाजिर हुं.... पर ये बात ध्यान में रखियेगा कि आप जो भी मांगेगे उतना ही आपकी पत्नि को स्वत: ही मिल जायगा. अब मुझे जल्दी आदेश दिजिये...एक बार मैं प्रकट हुआ तो बिना काम पुरा किये नही जाऊंगा और आपने मुझे काम नही दिया तो आपकी खैर नही...जल्दी मेरे आका...जल्दी...अब मेरे हाथ में खुजली शुरू हो गई है.....और जिन्न ने ताऊ के हाथ से लठ्ठ ले लिया.
जिन्न का ये रूप देखकर ताऊ को तो मन चाही मुराद मिल गई. उसने सोचा कि ताई अपनी सुंदरता पर बहुत इतराती है, अब देखता हूं कैसे इतरायेगी? ताऊ ने तुरंत कहा कि - ए मेरे हुक्के तू फ़टाफ़ट मेरा चेहरा बिगाड कर काले बंदर के जैसा कर दे. देखते देखते ताऊ वर्तमान बंदर के चेहरे वाला होगया. और उधर ताई का चेहरा भी काली बंदरिया जैसा होगया.
इसके बाद ताऊ ने सोचा कि ताई अपनी आंखों पर भी बहुत घमंड करती है...आज उनका भी काम तमाम कर देता हुं...ताऊ तुरंत बोला - ए मेरे हुक्के, तू मेरी दोनों आंखें फ़ोड दे....ताऊ के इतना कहते ही जिन्न ने ताऊ की दोनों आंखे फ़ोड डाली और हमेशा के लिये ताऊ को महाराज धॄतराष्ट्र बना डाला. उधर ताई भी अंधी हो गई.
ताऊ को इतने से भी संतोष नही हुआ. क्योंकि ताई के मारे हुये लठ्ठों से उसकी पीठ के अलावा आत्मा भी घायल हो चुकी थी. तुरंत फ़िर बोला - ए मेरे हुक्के, जल्दी से मेरे दोनों कान भी फ़ोड डाल...मुझे बहरा भी कर दे. इतना कहते ही जिन्न ने तुरंत ताऊ को बहरा बना डाला.
और यही राज है कि महाराज ताऊ हमेशा के लिये अंधे और बहरे होकर निष्पक्ष हस्तिनापुर का राज्य संभाल रहे हैं, उन्हे कुछ अन्याय दिखाइ ही नही देता. और हस्तिनापुर की प्रजा का दुर्भाग्य देखिये कि किस तरह निजी लडाई के चलते उनको अंधे और बहरों के शासन में रहना पड रहा है. यानि करनी धरणी ताऊ और ताई की...नतीजा भोग रही है प्रजा...कोई रोकने वाला नही ..कोई टोकने वाला नही.
जब शासनाध्यक्ष अंधा हो जाये तब उसकी अर्धांगिनी की ये जिम्मेदारी हो जाती है कि राज्य शासन की बागडोर संभालने में महाराज की सहायता करे. पर विधि का विधान देखिये कि ताऊ के हुक्के वाले जिन्न ने अपने वचनानुसार ताई को भी अंधी और बहरी बना डाला था....... ताई इसी शर्म के बारे कि लोग क्या कहेंगे कि हस्तिनापुर की महारानी अंधी और बहरी है? उसने हमेशा के लिये आंखों पर पट्टी बांध ली. और नतीजा यह हुआ कि राज दरबारियों को जो थोडा बहुत भ्रम था वह भी दूर होगया कि अब उन्हें कौन देखेगा? और अंधे बहरों को अंधे बहरे ही पैदा होने की संभावना होती है सो हस्तिनापुर का दुर्भाग्य देखिये कि राजकुमार दुर्योधन जन्म से ही अंधे और बहरे पैदा हुये.....हाय विधाता...बडा निर्दयी है तू तो...
अब कौन रोकने टोकने वाला है? धीरे धीरे महाराज और महारानी के अंधे बहरे होने की बात हस्तिनापुर के राज दरबारियों और मंत्रियों को लग गई...उन्होने देख लिया कि जब महाराज और महारानी ही अंधे और बहरे हैं तो हमको कौन रोकेगा? जम के लूट लो..शायद अगले जन्म में ये मौका मिले ना मिले. दुर्भाग्य कि इन राज दरबारियों के हाथों हस्तिनापुर के तोतले अनाथों की तरह यूं ही लुटते पिटते रहेंगे...महाराज ताऊ धॄतराष्ट्र के मंत्री संत्री किसी तोतले से डरते नही हैं...किसी की इनक्मटेक्स की जांच करवा देते हैं...किसी की सीडी की जांच...किसी की कुछ .. किसी की कुछ... झूंठे मामलों मे फ़ंसाकर उनका ध्यान मूल मुद्दों से हटाने में माहिर हैं..
(क्रमश:)
अंधों के संग किस दृश्य पर बातें होगीं।
ReplyDeleteताऊ श्री,थारी कहानी में तो बहुत पेच हैं.
ReplyDeleteम्हारी तो खोपड़ी ही भन्ना गई.
कुछ शुभ शुभ भी हांकियेगा.
जब शासनाध्यक्ष अंधा हो जाये तब उसकी अर्धांगिनी की ये जिम्मेदारी हो जाती है कि राज्य शासन की बागडोर संभालने में महाराज की सहायता करे.
ReplyDelete--
ताऊ राम-राम!
व्यंग्य में बहुत प्रभावी सन्देश दे दिया आज तो!
बहुत तीखा व्यंग है भाई ताऊ । भाई ताऊ --हा हा हा ! यह भी खूब रही ।
ReplyDeleteबाद बंदगी के, ताऊ, महाराज धृतराष्ट्र की अन्धगी का किस्सा सुनकर एक रहस्योद्घाटन पुराण आपने उजागर किया जो शायद सूट जी ने भी कलिकाल में अपने तोतलों, सॉरी, शिष्यों को न् सुनायी होगी!
ReplyDeleteइस महान उपलक्ष्य में किस दिन व्रत रखना है यह अगले अंक में अवश्य प्रकट करें जिसे सुनने की इच्छा है ताकि मानव कल्याण हो सके.. और हम भी अन्धशिरोमणि के दरबार की शोभा बढ़ा सकें!!
राम राम!!
ताई को अँधा , बहरा बनाने में ताऊ का हाथ है .... उत्पीडन का केस बन गया है !
ReplyDelete@@..उन्होने देख लिया कि जब महाराज और महारानी ही अंधे और बहरे हैं तो हमको कौन रोकेगा? जम के लूट लो..शायद अगले जन्म में ये मौका मिले ना मिले. दुर्भाग्य कि इन राज दरबारियों के हाथों हस्तिनापुर के तोतले अनाथों की तरह यूं ही लुटते पिटते रहेंगे...महाराज ताऊ धॄतराष्ट्र के मंत्री संत्री किसी तोतले से डरते नही हैं...किसी की इनक्मटेक्स की जांच करवा देते हैं...किसी की सीडी की जांच...किसी की कुछ .. किसी की कुछ... झूंठे मामलों मे फ़ंसाकर उनका ध्यान मूल मुद्दों से हटाने में माहिर हैं..
ReplyDelete----वर्तमान राजनीति की असली तस्वीर.
जय हो, जय हो..फिर हुक्का गुड़गुड़ाओ..फिर जिन्न बुलाओ...जो बिगड़े हैं उनकी पीठ पर लठ्ठ चलवाओ...बड़ी अंधेर मची है ताऊ..तुम ही सुधार सकते हो..।
ReplyDeleteहा हा हा ! यह भी खूब रही ।
ReplyDeleteRam Ram
बहुत ग़ज़ब का लिखते हैं आप...
ReplyDeleteएक अच्छा व्यंग |साथ ही संदेशात्मक भी |
ReplyDeleteआशा
धारदार व्यंग्य .......बहुत खूब लिखा है ताउजी ,राम -राम
ReplyDeleteisiliye to aap TAAU hain...
ReplyDeletemaza laga diyo taau... khaaree mirch laagyo hai...
हुण की होवेगा, ताऊ. वैसे आप भी बड़े वो हो. गांधी जी के बन्दरों से पूरा सबक ले लिया. आंख, नाक, मुंह सब बन्द..
ReplyDeleteसमय तो अच्छों अच्छों को बंदर बना देता है, ताऊ ताई की क्या बिसात
ReplyDeleteताऊ जी राम राम ... इब आगे क्या होने वाला है ..
ReplyDeletetauji.....aapka apne farm me aana hi
ReplyDeletehame kilkit-cha-pulkit kar riya hai..
ghani pranam
कहीं पे निगाहें...कहीं पे निशाना ...ताऊ की जय हो...
ReplyDeleteनीरज
लोग-बाग़ अब अपने अंधे और बहरे होने का भी नाजायज लाभ लेने लगे हैं। और युवराज भी विकलांग पैदा हो रहे हैं। अफ़सोस के ये अब देश चलायेंगे। राम राम ।
ReplyDeleteजय हो आंखें बन्द रखने में तो आनन्द ही आनन्द है।
ReplyDeleteबहुत खूब लिखा है ताउजी
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