आजकल के माहोल से त्रस्त होकर हमने एक पोस्ट
"मेहरबां फ़रमाईये किस पर लिखूं?" लिखी थी. क्योंकि सच मे समझ नही आता कि क्या लिखें और क्या ना लिखें. लोगबाग चीरफ़ाड करने को उधार ही रहते हैं. असल मे वस्तु या कथ्य तो एक ही होता है परंतु हर आदमी उसका अवलोकन अपने नजरिये से ही करता है. जैसे हाथी को देखकर कोई कहेगा यह बहुत
विशालकाय है..कोई कहेगा .
.ये तो काला है...यानि हर किसी की अपनी नजर होती है.
और खासकर ब्लागजगत में तो ताऊ के लिखे को देखकर लोग यही कयास लगाते हैं कि आज ताऊ ने ये किसके बारे में लिखा? कुछ लोग पूछते भी हैं और सलाह भी देते हैं कि
ताऊ लौट आवो पुरानी गलियों मे. यहां सब तुम्हारा इंतजार कर रहे हैं...अब ये ताऊ ना हुआ..कश्मीर का आतंकी होगया जो बहक कर फ़ैसलाबाद चला गया और एक रियायती पैकेज ताऊ को मुख्य धारा में लौटाने के लिये सरकार ने दिया हो?अब आप बताईये..ताऊ कहीं गया हो तो लौटे भी...ताऊ तो यहीं बैठा अपनी ताऊगिरी कर रहा है..अब ये अलग बात है कि कुछ लोग गलत फ़ेमिली से और कुछ लोग बहकावे मे आकर ताऊ के ठिये से चले गये हैं तो ताऊ का क्या दोष? ताऊ तो पहले भी उन पर जान छिडकता था अब भी छिडकता है. पर उनको ही ताऊ की जान की कद्र नही है. ये तो वही बात होगई कि
"मुर्गी तो जान से गई और खाने वाले को मजा नही आया".
शायद ताऊ को देखने के सबके अपने अपने चश्में हैं. किसी को ताऊ महाधूर्त लगता है...किसी को शरीफ़ लगता है...किसी को मनोरंजन का सामान लगता है....यानि जैसा आप सोचे ..ताऊ आपके लिये वैसा ही है....पर इससे ताऊ के चरित्र या होने ना होने पर कुछ फ़र्क नही पडता. ताऊ तो ताऊ ही रहेगा.
बस आप यूं समझ लें कि
ताऊ एक गोल और चिकना सा पत्थर है. उस चिकने पत्थर पर आप प्रेम से हाथ फ़िरायेंगे तो आपको स्निग्धता और प्रेम का आभास होगा और अगर आपने उस पत्थर पर गुस्से में आकर आपका सर दे मारा और आपका सर फ़ूट गया तो इसमे उस पत्थर का या ताऊ का क्या कसूर? कसूर तो आपका ही होगा.
हाल फ़िल्हाल हमारी उपरोक्त पोस्ट पर एक बहुत ही बहुमूल्य सुझाव
सुश्री शिखा वार्ष्णेय जी का आया, और यह सलाह हमें सबसे काम की लगी. सबसे पहले तो उनकी टिप्पणी आप जस की तस पढ लिजिये, उसके बाद आपको आगे का प्लान बताते हैं.

shikha varshney said...
ताऊ मान गए क्रीम के लिए सोलिड मोडल ढूंडा है :)....बहुत बिकेगी क्रीम..और लिखने के लिए क्या टोटा पड़ा है ? खुद पर ही लिख दें.
Tuesday, February 16, 2010 11:51:00 PM
तो अब हमने तय कर लिया है कि हम शिखाजी की सलाह अनुसार सिर्फ़ अपने ऊपर ही लिखेंगे. बल्कि लिखेंगे क्या..वो तो लिखा हुआ तैयार ही रखा है. हमको आज तक ध्यान ही नही आया था. और आज ही ये समझ में आया कि ताऊ की शक्ल हनुमान जी से क्युं मिलती हैं? क्युंकी ताऊ को भी हनुमान जी की तरह सब कुछ याद दिलाना पडता है. अब ताऊ लिक्खाडी में किसी से कम है क्या?
अब शिखाजी ने ध्यान दिला दिया तो हमको याद आगया और अब कुछ लिखने की जरुरत ही नही है. अब किसी को शिकायत ही नही रहेगी कि ताऊ ने उसको ये कह दिया उसको वो कह दिया. अब ना रहेगा बांस और ना बजेगी बांसुरी. बस अब तो ताऊ की आत्मकथा ही चलेगी जैसे अखंड रामायण पाठ चलता है.
असल में हम जब ताऊ बने तो हमको
समीरलाल जी और
श्री राज भाटिया" जी ने यह कहकर चने के विशालकाय झाड पर चढा दिया कि ताऊ तुम अपनी आत्मकथा लिख डालो. रातोंरात बेस्ट सेलर बुक बन जायेगी और तुम भी चांदी काटना. और इस की कमाई से भाटिया जी का कर्जा भी चूकता कर देना और तुम्हारी भी
बीसों उंगलियां शक्कर में और सर तूवर की दाल मे रहा करेगा.
हमने दिन रात मेहनत करके ताऊ की आत्मकथा लिख डाली. कई प्रकाशकों के आफ़िस आफ़िस द्वारे द्वारे धक्के खाये. आने जाने में जो थोडी बहुत पूंजी जेब मे थी वो भी खत्म होगई, पर कोई तैयार नही हुआ. समीरलाल जी और भाटिया जी ने भी किनारा कर लिया.
एक बार एक प्रकाशक महोदय के पास पहुंच गये तो पता नही उसने क्या सोच कर हमको बैठा लिया और आत्मकथा की कापी लेकर पढने लगा. थोडा उल्टा पुल्टा कर बोला - ताऊ, मैं तुम्हारी आत्मकथा छाप तो सकता हुं पर मेरी कुछ शर्ते होंगी.
हमने कहा - साहब आपकी सब कुछ शर्तें मंजूर, आपतो एक बार छाप दिजिये.
वो बोला - ताऊ, पहली शर्त तो यह है कि किताब तेरे खर्चे पर छपेगी. यानि अभी तो तू एक लाख नगद जमा करवा दे और किताब का नाम
ताऊ की आत्मकथा की बजाये
एक गधे की आत्मकथा रखना पडेगा. क्योंकि ये आदमी की बजाये एक गधे की आत्म कथा ज्यादा लगती है.
मैं बोला -
रे बावलीबूच, तू मन्नै आदमी तैं गधा बणाण लागरया सै? अबे.. पागल के बच्चे...मेरे पास एक लाख रुपये ही होते तो किताब क्यूं कर छपवाता? युं ही एक लाख के आनंद लेता फ़िरता.
और हमारा इतना कहना था कि गुस्से मे आकर उस प्रकाशक ने हमारी आत्मकथा के पन्ने हमारे मुंह पर दे मारे और चपरासी को बोलकर हमें धक्के देकर आफ़िस से बाहर करवा दिया. गुस्सा तो बहुत आया कि इसकी दाढी नौंच ले...पर वहां खडे गनमैन को देखकर सारी ताऊगिरी भूल गये और जैसे तैसे हवा में उडे पन्ने समेटे और चले आये.
इसके बाद हमने भरसक कोशीश भी की पर हाय री किस्मत...सब जगह से धक्के खाके ही निकले. कहीं भी सफ़लता नही मिली. बस यूं समझ लिजिये कि
जिसकी खटिया के नीचे हमने आग लगाई वही ऊठकर भाग गया. वाली बात होती रही हमारे साथ.
अब हमको अपनी औकात पता चल चुकी है कि
हम आदमी नही हैं बल्कि गधे हैं. यानि अपनी असली औकात समझने में ही इतनी जिंदगी खराब होगई. और अब हमारी आत्मकथा हम खुद ही क्रमश: छापेंगे.
शीर्षक क्या हो? इसके लिये आप अगर मदद कर सकें तो आपकी बडी मेहरवानी होगी. पर ध्यान रहे कि शीर्षक मे गधा शब्द आना जरुरी है.
तो अब आप इस आत्म कथा को आगामी दिनों मे पढ पायेंगे. अब चूंकी ये एक गधे की गधे द्वारा लिखी आत्मकथा है तो बाते भी गधे पने की होंगी. और इसका कोई सा भी चेप्टर मैं कहीं से भी छापूंगा. क्योंकि जब उस प्रकाशक ने हमारे मूंह पर वो पन्ने फ़ेंक मारे थे तब हम उनको जैसे तैसे बटोर लाये थे. कुछ तो उड भी गये थे... तो जो भी पन्ना हमारे हाथ मे आयेगा हम वही पन्ना आपको पढवाते जायेंगे.
पर इतना वादा पक्का है कि आपको आनंद अवश्य आयेगा. इस गधे की आत्मकथा में कुछ बहुत ही गूढ रहस्य खुलेंगे जैसे खत्रीजी की चंद्रकांता संतति में परत दर परत खुलते ही चले जाते थे. और आपको इस दुनियां में मौजूद हर तरह के गधों और गधेडियों से रुबरु भी करवाया जायेगा. और कुछ बहुत ही सनसनीखेज खुलासे होंगे जिन्हें पढकर आप भी चौंक उठेंगे. आपको यह जानना बहुत मनोरंजक लगेगा कि एक अच्छा भला शरीफ़ गधा आखिर इतना चालू गधा कैसे बन गया?
तो अब अपने आपको तैयार कर लिजिये संतू गधे की सनसनी खेज आत्मकथा पढने के साथ साथ इस जगत में मौजूद भांति भांति के गधों के संसार में झांकने के लिये.
और अब अंत में :-
सियाचिन ब्लागर मिलन में ब्लागर्स पहुंचना शुरु होगये हैं. और वहां उनको मौसम का अभ्यस्त बनाने के लिये बाबा समीरानंद जी ने योगासन शुरु करवा दिये हैं और खुद का वजन भी उन्होनें
ताऊ प्रोडक्ट्स के सेवन से काफ़ी कम कर लिया है. आज ही हमें सेटेलाईट से दो चित्र मिले हैं आप भी अवलोकन करें.
संचार रूम में आगंतुक ब्लागर्स को जानकारी देते हुये श्री अरविंद मिश्र बहुत सारे ब्लागर्स रोज वहां पहुंच रहे हैं आप भी जल्दी करें. वहां अब सीमित मात्रा मे स्थान बचे हैं.
श्री अरविंद मिश्र ने वहां पहुंचकर ब्लागर्स के लिये
हाईस्पीड नेट कनेक्शन और सब तैयारियां पुर्ण करली हैं. आपको लेपटोप वगैरह साथ ले जाने की आवश्यकता नही है. संचार रूम में समस्त ब्लागिंग की सुविधाये उपलब्ध करवा दी गई हैं.
इसके साथ ही अनुभवी होने की वजह से यह जिम्मेदारी भी श्री अरविंद मिश्र जी को दी गई है कि सबको बेड टी दोपहर के खाने के तुरंत बाद मुहैया करा दी जाये एवं किसी भी मेहमान को मच्छर न काटें. इस हेतु प्राप्त सूचनाओं के आधार पर मच्छरों को उस दौरान कुंभ स्नान के लिए विशेष विमान से इलाहाबाद भेजा जा रहा है.
आप चाहें तो मिश्र जी से सीधे फ़ोन पर बात करके आपका ब्लागिंग का शेड्युल संचार रूम में तय करलें.
"अब ताऊ वजन घटाऊ पाऊडर" का एक और चमत्कार देखिये. ताऊ प्रोडक्ट्स इस्तेमाल के पहले | ताऊ प्रोडक्ट्स इस्तेमाल के एक महिने बाद |
मुझे यकिन नही आता कि मैं इतना स्लिम ट्रिम और चुस्त दुरुस्त हो जाऊंगा. पर
"अब हाथ कंगन को आरसी क्या" ताऊ प्रोडक्ट्स वाकई बहुत ही असरकारक प्रोडक्ट्स हैं. देखिये मैं कितना गोरा होगया और कितना चुस्त दुरुस्त होगया. "थैंक्स ताऊ प्रोडक्ट्स" आप भी लाभ ऊठाईये!
मैं आपको भी सलाह दूंगा कि आप भी
ताऊ प्रोडक्ट्स इस्तेमाल करें और अपना शानदार जीवन युं ही जाया ना करें. पहले मुझे कहीं आने जाने मे आलस्य आता था. पार्टियों मे मोटापे की वजह से जाने में शर्म आती थी पर अब मैं पार्टीयों की रौनक होगया हूं.
-समीरलाल "समीर" उडनतश्तरीवालेअगले सप्ताह हम ताऊ प्रोडक्ट्स का एक अचूक फ़ार्मुला पेश करने वाले हैं. आप जानते हैं कि मुंहासे कितने गंदे और बदसूरत होते हैं. जीवन में निराशा भर देते हैं. तो अगले सप्ताह पेश करेंगे...
"ताऊ रुपकंचन लेप" यानि मुहांसो का दुश्मन.
मुंहासो का दुश्मन "ताऊ रुपकंचन लेप"विशेष सूचना :-"ताऊ रुपकंचन लेप" की खरीद पर सिर्फ़ महिलाओं को
17.5 प्रतिशत की विशेष रियायत सिर्फ़ होली पर्व के उपलक्ष्य में दी जायेगी जो कि सिर्फ़ होली तक जारी रहेगी!
नोट :- इस प्रोडक्ट के लिये
माडल्स की आवश्यकता है. कृपया संपर्क करे.