आप इस कहानी के पिछले भाग "शेर, ताऊ और न्याय सियार का" में पढ चुके हैं कि किस तरह बावलीबूच ताऊ को उसके मित्र रमलू सियार ने शेर के मुंह से बचाया और शेर महाराज से परमानेंट दुश्मनी मोल लेली. अब आगे की कहानी पढिये!
शेर को ये बात बिल्कुल अच्छी नही लगी कि ताऊ जैसे मोटे ताजे मुंह में आये शिकार को रमलू सियार ने भगवा दिया और रमलू द्वारा फ़िर से पिंजरे में फ़ंसा दिये जाने की बेइज्जती को भूल नही पा रहा था.
शेरू महाराज ने यह प्रण कर लिया था कि रमलू और ताऊ को जब तक जान से नही मार देगा तब तक आराम से नही बैठेगा और अगर मार भी नही पाया तो भी ब्लागवुड के जंगल से तो खदेड ही देगा.
पिंजरे से छुटते ही ढोबरे के गंदे पानी से प्यास बुझाते महाराजाधिराज
समय आने पर एक दिन शेरू महाराज पिंजरे से बाहर आगये. इतने दिनों के भूखे प्यासे शेरू महाराज ने वहां से छुटते ही सडक किनारे का गंदा संदा पानी पीकर अपनी प्यास बुझाई और पागल कुत्ते की तरह रमलू और ताऊ की तलाश करने लगा. रमलू और ताऊ को भी विश्वस्त सुत्रों से पता लग चुका था कि महाराजाधिराज बाहर आचुके हैं. सो वो भी बडी सतर्कता से रहने लगे थे.
एक दिन रमलू सियार और ताऊ सावधानी पुर्वक जंगल से गुजर रहे थे. दोनों को अब चिंता भी सताती रहती थी की महाराजाधिराज शेरसिंह जी पिंजरे से बाहर आ चुके हैं और अंग्रेज बहादुर की तरह उनको ढुंढ रहे हैं. दोनों को प्यास लगी तो एक झरने के पास खडे होगये और सतर्कता से इधर उधर देखते हुये पानी पीने लगे.
उसी झरने के उपर की तरफ़ शेर साहब इन दोनों की तलाश में छुपे हुये थे. अब इनको देखते ही अचानक शेरू महाराज बाहर की तरफ़ लपके और दहाडने लगे...यू ब्लडी..ईडियट...सियार के बच्चे ...आखिर आज तू मेरे हत्थे चढ ही गया. ठहर जा..आज तुझे तेरे सभी कर्मों का दंड दूंगा...और ऐसा दंड दूंगा कि तुम्हारा हश्र देखके दुबारा कोई मुझसे बदतमीजी की हिम्मत नही कर सके.
शेर को अचानक आया देखकर ताऊ को तो हार्ट मे कुछ कुछ हार्ट अटेक जैसा होने लगा...ताऊ समझ गया कि आज तो बच नही सकते सो ताऊ तो अपना अंत समय जान कर डर के मारे एक तरफ़ दुबक गया और राम राम जपना शुरु कर दिया.
रमलू सियार ने माजरे को भांपा और बोला - अरे ओ बावलीबूच ताऊ! जरा हिम्मत और अक्ल से काम लिया कर. जरा देख तो सही, ये शेर अकेला है और हमारा कुछ नही बिगाड सकता.
ताऊ बोला - अबे रमलू, अब शांति से मरने तो दे मेरे को. देखता नही उपर शेरसिंह जी मूंह खोले खडे हैं और एक छलांग मे यहां नीचे आकर हम दोनों को चट कर जायेंगे. अरे बेवकूफ़ रमलू, शेरों के "लेहडे" नही हुआ करते. शेर अकेला ही काफ़ी है.
रमलू बोला - ताऊ, तेरी जानकारी शहरी अंग्रेजी बाबूओं वाली है. मैं हूं असली जंगल का बाशिंदा. मैं जानता हूं कि शेर कभी अकेला नही रहता वो तो लेहडे (झुंड) में ही रहता है. अकेला शेर चवन्नी की औकात रखता है. अपनी जानकारी सुधार ले. अरे शेर तो शिकार भी नही कर सकता. पूरा मठ्ठा होता है उस के लिये शिकार खुद शेरनी को करना पडता है. शेर सिर्फ़ खाना जानता है.
ताऊ भौंचक सा रमलू का मूंह देखता रहा!
रमलू बोला - ताऊ मेरा मुंह क्या देखता है? वो देख शेरसिंह जी अकेले हैं. और अकेला शेर हमारा कुछ नही बिगाड सकता. डर मत ताऊ...अकेला शेर नीचे नही आयेगा...बेनामी टिप्पणियों जैसे गालियां भले ही देले....
ताऊ बोला - अरे हां यार रमलू भाई, शेर जी तो अकेले हैं. और अब मुझे समझ आया कि आजकल शेर जी ने इसीलिये मामा मारीच और सुर्णपखाएं पाल रखी हैं. मुझे तो आज समझ आया कि शेर जी अपना असली शिकार तो इन सुर्पणखाओं से ही करवाते हैं.
रमलू को गालियां देता शेर और दुबका बैठा ताऊ
और अब ताऊ की जान में जान आई. उधर शेर सिंह को उम्मीद नही थी कि रमलू सियार इतना अक्लमंद होगा कि उनकी नस नस जानता होगा. सो वो गालियां देने लगा और गुर्राकर बोला - अबे सियार की औलाद, तुझे तो अभी सबक सिखा कर रहुंगा. आखिर बकरे की मां कब तक खैर मनायेगी? य़ु बास्टर्ड....कमीने ...छोटे और ओछे लोग......? और शेरु महाराज ने हिंदी अंग्रेजी मिश्रित गालियों की बोछार करते हुये गुस्से से थूका...
रमलू बोला - शेरू महाराज, हम तो पैदायशी छोटे लोग हैं और हमारे बारे में तो सभी ये सदियों से कह रहे हैं तो हममे तो हीन भावना आना कुछ तर्क संगत लगता है. पर आपके जैसे उच्च श्रेणी के लोगों के बारे में भी हमारे परसाई दादा कुछ फ़रमा गये हैं. लगता है ये उन्होने आपके लिये ही कहा होगा....."नशे के मामले में हम बहुत ऊंचे हैं. दो नशे खास हैं--हीनता का नशा और उच्चता का नशा, जो बारी-बारी से चढ़ते रहते हैं." लगता है आप पर वही चढता उतरता है.
इतना सुनते ही शेरुसिंह जी के तन बदन मे निमाडी मिर्ची लग गई और चिलाये...ठहर..कमीने...तुझे मैं बताता हूं...तू ऐसे नही मानेगा बदजात कहीं का.
ताऊ ने रमलू को पकडा और बोला - रमलू चल यार, मुझे तो डर लग रहा है...तू चल मेरे भाई ...तेरे हाथ जोडे...अब से मैं तेरे साथ तेरे घर कभी नही आऊंगा...तुझे मुझसे मिलना हो तो खुद ही शहर में मेरे घर चले आना.
रमलू बोला - अरे ताऊ, तू डर मत. जंगल मे रहना है तो जंगल के कानून अब इन उच्च लोगों को मानने ही पडेंगे.
ताऊ : अरे रमलू, ताकत के आगे कैसे कानून? मुझे तो डर लग रहा है तू चल...जान बचे तो चैन आये.
रमलू बोला - ताऊ तू चिंता मत कर. इस शेर को तो मैं पानी में लेजाकर मारूंगा. ये चाहे जितनी सुर्पणखाएं और मामा मारीच जंगल मे मेरे पीछे भेज दे...आखिर मैं भी जंगल मे ही पैदा हुआ हूं. जंगल इस शेर की बपौती नही है. जंगल जितना इसका है उतना ही हमारा भी है.
ताऊ - रमलू, भाई तू इस शेर जी से समझौता क्युं नही कर लेता? अरे हम छोटे लोग हैं ...हमें बडे लोगों के मुंह नही लगना चाहिये.
रमलू बोला - ताऊ, तू क्या समझता है? मैने कोशीश नही की? अरे ताऊ मैने खूब तेल लगाया इस कमीने को, पर यह हर समय कोई ना कोई बहाना लगाकर मेरी ऐसी तैसी करने का कोई मौका नही चूकता. कई बार इसको समझा दिया कि महाराजाधिराज आप और आपकी चंडाल चौकडी शांति से रहो.. और हमको भी रहने दे, लेकिन क्या करें... इस पर तो जैसे उच्च वर्ग का होने का नशा छाया है. फ़िर कुछ इसके चेले चेलियां हैं जो इसको शांति से नही रहने देते. भडकाया करते हैं इसको.
रमलू के ये वाक्य सुनते ही शेर तैश मे आगया और उपर से नीचे आने लगा...तभी रमलू बोला - ताऊ अब भाग ले...मामा मारीच और सुर्पणखाओं की गंध आने लगी है मुझे...वो यहां आयें उसके पहले ही भागो...क्योंकि मारीच और सुर्पणखां के आते ही शेरू महाराज सवा शेर हो जाते हैं....
उधर शेर गालियां देते हुये..गुस्से में पगला रहा था...और ये दोनों जान बचाकर भाग लिये....(क्रमश:)
शेर को ये बात बिल्कुल अच्छी नही लगी कि ताऊ जैसे मोटे ताजे मुंह में आये शिकार को रमलू सियार ने भगवा दिया और रमलू द्वारा फ़िर से पिंजरे में फ़ंसा दिये जाने की बेइज्जती को भूल नही पा रहा था.
शेरू महाराज ने यह प्रण कर लिया था कि रमलू और ताऊ को जब तक जान से नही मार देगा तब तक आराम से नही बैठेगा और अगर मार भी नही पाया तो भी ब्लागवुड के जंगल से तो खदेड ही देगा.
समय आने पर एक दिन शेरू महाराज पिंजरे से बाहर आगये. इतने दिनों के भूखे प्यासे शेरू महाराज ने वहां से छुटते ही सडक किनारे का गंदा संदा पानी पीकर अपनी प्यास बुझाई और पागल कुत्ते की तरह रमलू और ताऊ की तलाश करने लगा. रमलू और ताऊ को भी विश्वस्त सुत्रों से पता लग चुका था कि महाराजाधिराज बाहर आचुके हैं. सो वो भी बडी सतर्कता से रहने लगे थे.
एक दिन रमलू सियार और ताऊ सावधानी पुर्वक जंगल से गुजर रहे थे. दोनों को अब चिंता भी सताती रहती थी की महाराजाधिराज शेरसिंह जी पिंजरे से बाहर आ चुके हैं और अंग्रेज बहादुर की तरह उनको ढुंढ रहे हैं. दोनों को प्यास लगी तो एक झरने के पास खडे होगये और सतर्कता से इधर उधर देखते हुये पानी पीने लगे.
उसी झरने के उपर की तरफ़ शेर साहब इन दोनों की तलाश में छुपे हुये थे. अब इनको देखते ही अचानक शेरू महाराज बाहर की तरफ़ लपके और दहाडने लगे...यू ब्लडी..ईडियट...सियार के बच्चे ...आखिर आज तू मेरे हत्थे चढ ही गया. ठहर जा..आज तुझे तेरे सभी कर्मों का दंड दूंगा...और ऐसा दंड दूंगा कि तुम्हारा हश्र देखके दुबारा कोई मुझसे बदतमीजी की हिम्मत नही कर सके.
शेर को अचानक आया देखकर ताऊ को तो हार्ट मे कुछ कुछ हार्ट अटेक जैसा होने लगा...ताऊ समझ गया कि आज तो बच नही सकते सो ताऊ तो अपना अंत समय जान कर डर के मारे एक तरफ़ दुबक गया और राम राम जपना शुरु कर दिया.
रमलू सियार ने माजरे को भांपा और बोला - अरे ओ बावलीबूच ताऊ! जरा हिम्मत और अक्ल से काम लिया कर. जरा देख तो सही, ये शेर अकेला है और हमारा कुछ नही बिगाड सकता.
ताऊ बोला - अबे रमलू, अब शांति से मरने तो दे मेरे को. देखता नही उपर शेरसिंह जी मूंह खोले खडे हैं और एक छलांग मे यहां नीचे आकर हम दोनों को चट कर जायेंगे. अरे बेवकूफ़ रमलू, शेरों के "लेहडे" नही हुआ करते. शेर अकेला ही काफ़ी है.
रमलू बोला - ताऊ, तेरी जानकारी शहरी अंग्रेजी बाबूओं वाली है. मैं हूं असली जंगल का बाशिंदा. मैं जानता हूं कि शेर कभी अकेला नही रहता वो तो लेहडे (झुंड) में ही रहता है. अकेला शेर चवन्नी की औकात रखता है. अपनी जानकारी सुधार ले. अरे शेर तो शिकार भी नही कर सकता. पूरा मठ्ठा होता है उस के लिये शिकार खुद शेरनी को करना पडता है. शेर सिर्फ़ खाना जानता है.
ताऊ भौंचक सा रमलू का मूंह देखता रहा!
रमलू बोला - ताऊ मेरा मुंह क्या देखता है? वो देख शेरसिंह जी अकेले हैं. और अकेला शेर हमारा कुछ नही बिगाड सकता. डर मत ताऊ...अकेला शेर नीचे नही आयेगा...बेनामी टिप्पणियों जैसे गालियां भले ही देले....
ताऊ बोला - अरे हां यार रमलू भाई, शेर जी तो अकेले हैं. और अब मुझे समझ आया कि आजकल शेर जी ने इसीलिये मामा मारीच और सुर्णपखाएं पाल रखी हैं. मुझे तो आज समझ आया कि शेर जी अपना असली शिकार तो इन सुर्पणखाओं से ही करवाते हैं.
और अब ताऊ की जान में जान आई. उधर शेर सिंह को उम्मीद नही थी कि रमलू सियार इतना अक्लमंद होगा कि उनकी नस नस जानता होगा. सो वो गालियां देने लगा और गुर्राकर बोला - अबे सियार की औलाद, तुझे तो अभी सबक सिखा कर रहुंगा. आखिर बकरे की मां कब तक खैर मनायेगी? य़ु बास्टर्ड....कमीने ...छोटे और ओछे लोग......? और शेरु महाराज ने हिंदी अंग्रेजी मिश्रित गालियों की बोछार करते हुये गुस्से से थूका...
रमलू बोला - शेरू महाराज, हम तो पैदायशी छोटे लोग हैं और हमारे बारे में तो सभी ये सदियों से कह रहे हैं तो हममे तो हीन भावना आना कुछ तर्क संगत लगता है. पर आपके जैसे उच्च श्रेणी के लोगों के बारे में भी हमारे परसाई दादा कुछ फ़रमा गये हैं. लगता है ये उन्होने आपके लिये ही कहा होगा....."नशे के मामले में हम बहुत ऊंचे हैं. दो नशे खास हैं--हीनता का नशा और उच्चता का नशा, जो बारी-बारी से चढ़ते रहते हैं." लगता है आप पर वही चढता उतरता है.
इतना सुनते ही शेरुसिंह जी के तन बदन मे निमाडी मिर्ची लग गई और चिलाये...ठहर..कमीने...तुझे मैं बताता हूं...तू ऐसे नही मानेगा बदजात कहीं का.
ताऊ ने रमलू को पकडा और बोला - रमलू चल यार, मुझे तो डर लग रहा है...तू चल मेरे भाई ...तेरे हाथ जोडे...अब से मैं तेरे साथ तेरे घर कभी नही आऊंगा...तुझे मुझसे मिलना हो तो खुद ही शहर में मेरे घर चले आना.
रमलू बोला - अरे ताऊ, तू डर मत. जंगल मे रहना है तो जंगल के कानून अब इन उच्च लोगों को मानने ही पडेंगे.
ताऊ : अरे रमलू, ताकत के आगे कैसे कानून? मुझे तो डर लग रहा है तू चल...जान बचे तो चैन आये.
रमलू बोला - ताऊ तू चिंता मत कर. इस शेर को तो मैं पानी में लेजाकर मारूंगा. ये चाहे जितनी सुर्पणखाएं और मामा मारीच जंगल मे मेरे पीछे भेज दे...आखिर मैं भी जंगल मे ही पैदा हुआ हूं. जंगल इस शेर की बपौती नही है. जंगल जितना इसका है उतना ही हमारा भी है.
ताऊ - रमलू, भाई तू इस शेर जी से समझौता क्युं नही कर लेता? अरे हम छोटे लोग हैं ...हमें बडे लोगों के मुंह नही लगना चाहिये.
रमलू बोला - ताऊ, तू क्या समझता है? मैने कोशीश नही की? अरे ताऊ मैने खूब तेल लगाया इस कमीने को, पर यह हर समय कोई ना कोई बहाना लगाकर मेरी ऐसी तैसी करने का कोई मौका नही चूकता. कई बार इसको समझा दिया कि महाराजाधिराज आप और आपकी चंडाल चौकडी शांति से रहो.. और हमको भी रहने दे, लेकिन क्या करें... इस पर तो जैसे उच्च वर्ग का होने का नशा छाया है. फ़िर कुछ इसके चेले चेलियां हैं जो इसको शांति से नही रहने देते. भडकाया करते हैं इसको.
रमलू के ये वाक्य सुनते ही शेर तैश मे आगया और उपर से नीचे आने लगा...तभी रमलू बोला - ताऊ अब भाग ले...मामा मारीच और सुर्पणखाओं की गंध आने लगी है मुझे...वो यहां आयें उसके पहले ही भागो...क्योंकि मारीच और सुर्पणखां के आते ही शेरू महाराज सवा शेर हो जाते हैं....
उधर शेर गालियां देते हुये..गुस्से में पगला रहा था...और ये दोनों जान बचाकर भाग लिये....(क्रमश:)
गांधीजी अपना ब्लाग बनवाने ताऊ के पास आये! यहां पढिये....
भाग गये...?? जरुर कोई प्लान होगा वापस आने का...क्रमशः का इन्तजार करते हैं.
ReplyDeleteदेखी देखी सी कहानी लगती है ताऊ..सत्यकथा है क्या??
शेर के पास शूर्पनखा और मामा मारीच है तो क्या ...ताऊ कौन कम है ...रमलू है ना ....!!
ReplyDeleteठीक है हम भी शेर के मामाओं मामियों और सूर्पनाखाओं के लेहड़े का इंतज़ार करते हैं ...ताऊ तुम जरा भी मत घबराना ,मुझे भी पुकार लेना -देखते हैं ससुरा शेर का बिगाड़ लेता है तेरा -त्रैन्क्वलायज़िंग साथ रखता हूँ हमेशा ! साले को बेहोश कर उसके सभी दांत तोड़ कर जंगल में छोड़ दिया जाएगा -फिर तो लेहड़े चोहड़े भी भाग खड़े होंगे .
ReplyDeleteलेकिन ताऊ, ब्लागवुड में सिंह कौन आ गया है, इसका भी खुलासा हो जाता.
ReplyDeleteवाह ! क्या शानदार कहानी है | क्रमश: का इन्तजार ........................
ReplyDeleteमामा मारीच और सुर्पणखाओं की गंध आने लगी है मुझे...वो यहां आयें उसके पहले ही भागो...क्योंकि मारीच और सुर्पणखां के आते ही शेरू महाराज सवा शेर हो जाते हैं....
ReplyDelete" हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा अब समझ आया शेरू की बहादुरी का राज......बहुत खूब ताऊ जी"
regards
आजतक कभी यह श्रंखला पढी ही नहीं , आज अपनी भूल का अहसास हुआ कि जिन्दा रहने के लिए, जल में रहकर मगर के बारे में जानना बहुत जरूरी है ! आपकी पिछले अंक पढ़ लूं पहले तब शायद कुछ समझ आये :-(
ReplyDeleteमगर इतना मैं समझ पाया हूँ कि यहाँ हरामजादों को महिमा मंडित करने वालों की कमी नहीं है उन्हें रोकने के लिए उन्ही की भाषा में बात करनी होगी !
इस धर्मयुद्ध में मैं आपके साथ हूँ !!
ब्लागर लोग भी शेरपुत्र हैं...ये भी लेहड़ों में रहते हैं :)
ReplyDeleteपर आपके जैसे उच्च श्रेणी के लोगों के बारे में भी हमारे परसाई दादा कुछ फ़रमा गये हैं. लगता है ये उन्होने आपके लिये ही कहा होगा....."नशे के मामले में हम बहुत ऊंचे हैं. दो नशे खास हैं--हीनता का नशा और उच्चता का नशा, जो बारी-बारी से चढ़ते रहते हैं." लगता है आप पर वही चढता उतरता है.
ReplyDeleteजबरदस्त व्यंग, मजा आया।
शेर को अचानक आया देखकर ताऊ को तो हार्ट मे कुछ कुछ हार्ट अटेक जैसा होने लगा...ताऊ समझ गया कि आज तो बच नही सकते सो ताऊ तो अपना अंत समय जान कर डर के मारे एक तरफ़ दुबक गया और राम राम जपना शुरु कर दिया.
ReplyDeletehansi nahi ruk rahi taauji.
सिंहन के लेहड़े बने हंसन की है पांत ।
ReplyDeleteसारी मान्यताएं बदली खुब कही है बात॥
ताऊ जी-आपने तो क्रमश: लगा दिया
चलो आगे की कहानी का ईंतजारे सै।
राम-राम
ये श्रंखला तो जोरदार है, पीछे की कडियां पढनी पडेंगी, पहले तो. मस्त लिखा है ताऊ.
ReplyDeleteअकेला शेर चवन्नी की औकात रखता है. अपनी जानकारी सुधार ले. अरे शेर तो शिकार भी नही कर सकता. पूरा मठ्ठा होता है उस के लिये शिकार खुद शेरनी को करना पडता है. शेर सिर्फ़ खाना जानता है.
ReplyDeleteताऊजी ये तो नई जानकारी मिली. व्यंग बडा सटीक है.
अकेला शेर चवन्नी की औकात रखता है. अपनी जानकारी सुधार ले. अरे शेर तो शिकार भी नही कर सकता. पूरा मठ्ठा होता है उस के लिये शिकार खुद शेरनी को करना पडता है. शेर सिर्फ़ खाना जानता है.
ReplyDeleteताऊजी ये तो नई जानकारी मिली. व्यंग बडा सटीक है.
ताऊ जी लो हम भी भागते हैं राम राम वैसे ये शेर कौन है?????????
ReplyDeleteअब कुछ कुछ समझ में आने लगा है, बड़े नादे खतरनाक दुश्मन पाल लिए ! वैसे बाई द वे तेरा लट्ठ कहाँ खो गया ताऊ, और दोस्तों को क्यों नहीं बुलाता !
ReplyDeleteवैसे इन अंग्रेजों की औलादों का पाला ठीक जगह पड़ा है !
'एक नये शब्द 'लेहड़े'से परिचय हुआ.
ReplyDelete-शेर सिर्फ़ खाना जानता है!!!!!!!!!
---------------------
--'हार्ट मे कुछ कुछ हार्ट अटेक जैसा'--Not bad!
हार्ट में 'नेक पेन '[neck pain]होता तो नयी बात होती!:D
.............
mazedaar! rochak series! :)
चलो अच्छा हुवा अभी तो भाग लिए ........ दुबारा सामने आएगा शेर तो देखा जाएगा ....... तब तक कोई और जुगाड़ हो जाएगा ......
ReplyDeleteभाई ताऊ मामा मारीच और सुर्णपखाएं मतलब कितनी है एक से ज्यादा क्या?
ReplyDeleteरोचकता के साथ व्यंग्य की धार भी बहुत पैनी है!
ReplyDeleteराम-राम!
पहला भाग बाकी है, लेकिन ये लाजवाब निकला। और अगले का इंतजार है।
ReplyDelete:)
ReplyDeleteअरे ताऊ जी फोटो में तो पानी महरानी पी रहीं हैं आपनें तो महाराजाधिराज लिख दिया?क्या चक्कर है...
ReplyDeleteहम लोंगो को घनचक्कर बनाने का इरादा है क्या?...
@ डॉ. मनोज मिश्र जी
ReplyDeleteहमको कहीं भी महारानी नही दिखाई देरही है. जरुर ये शेर मायावी है जो आपको महारानी के रुप मे दिख रहा है. लगता है ये ताऊ और रमलू सियार को फ़ंसाने की इसकी कोई नई चाल है. आप ध्यान से देख के बताईये कि ये महारानी है या महाराजा?
हमें तो महाराजाधिराज ही दिखाई देरहे हैं पानी पीते हुये.
रामराम.
ताऊ, हमें भी इस रूपक कथा की अन्त:कुक्षी में समाहित सत्य का आभास हो चुका है :)
ReplyDeleteताऊ, पेट में हैडेक तो सुण राख्या सै, यो हार्ट में हार्ट-अटैक सा तो किमे कसूती बीमारी लागे सै, देखिये कदे एच.आई.वी. टेस्ट न करवाना पड जाये डा.झटका के धोरे जाके।
ReplyDeleteअगली मुलाकात का इंतजार, अब क्या करेगा - रमलू सियार।
अकेला शेर चवन्नी की औकात रखता है. अपनी जानकारी सुधार ले. अरे शेर तो शिकार भी नही कर सकता. पूरा मठ्ठा होता है उस के लिये शिकार खुद शेरनी को करना पडता है. शेर सिर्फ़ खाना जानता है.
ReplyDeleteये शेर भी न, बहुत ओवररेटेड जानवर है.