अब आप हमेशा की तरह ताऊ महाराज धॄतराष्ट्र को गलत समझ रहे हैं. महाराज ना तो बालम को कहीं घुमाने ले जा रहे हैं और ना ही डिनर या ककडी वकडी खिलाने कहीं ले जा रहे हैं. ताऊ महाराज धॄतराष्ट्र ने पिछली पोस्ट "ताऊ आज ताई के हाथों पिटेगा या बचेगा?" मे आपको एक चित्र दिखाया था और उसमे तीन सब्जियों के चित्र थे जो ताऊ महाराज धॄतराष्ट्र बाजार से महारानी गांधारी की फ़रमाईश पर लाये थे. आप लोगों से फ़ैसला करवाने के लिये वो चित्र दिखाया गया था. पर अफ़्सोस जाने अनजाने में किसी ने भी सही जवाब नही दिया और ताऊ महाराज को सभी ने पिटवा डाला. महाराज टूटे हाथ पांव लेकर आज रविवार को खटिया तोडेंगे.
असल में ताई ने टमाटर, सेव और लौकी लाने का कहा था और महाराज सेव और टमाटर तो सही ले आये और ये मत भूलिये कि महाराज अंधे हैं सो हाथ से टटोलने मे लौकी की जगह बालम ककडी ले आये. और घर आकर ताई से बहस भी करने लगे कि ये लौकी ही है.
आप सभी के जवाब भी गलत हैं. ये जो लौकी दिखाई दे रही है यह वास्तव में लौकी ना होकर बालम ककडी है. ... जी हां बालम ककडी. यह खाने में बडी यमी यमी.. होती है. काटने पर अंदर से बिल्कुल केशरिया रंग की निकलती है. इसे ऐसे ही खायें या सब्जी, कोफ़्ते या खीर बनाकर खायें, है बडी मजेदार. ज्यादातर लोग इसे यूं ही काटकर खाते हैं
यहां मालवा प्रांत में रहने वाले लोग इसे बडे चाव से खाते हैं और दूर दूर अपने रिश्तेदारो को भिजवाते हैं. कई तो इसके ऐसे शौकीन हैं कि बाहर विदेशों में रह रहे अपने रिश्तेदारों को भी भिजवाते हैं. यह तोडने के बाद १५/२० दिनों तक सामान्य टेंपरेचर पर खराब भी नही होती.
इसकी और एक विशेषता है कि इसकी पैदावार सिर्फ़ मांडव गढ वाले धार जिले और सैलाना (रतलाम) में ही होती है. अन्य जगह यह नही पैदा होती. यह सैलाना वही है जहां का कैक्टस गार्डन विश्व प्रसिद्ध है. अब सैलाना आ ही गये हैं तो नीचे के विडियो में वहां का प्रसिद्ध कैक्टस गार्डन भी देख ही लिजिये वरना कहेंगे कि ताऊ महाराज ने बालम ककडी तो खिला दी पर कैक्टस गार्डन नही दिखाया.
बालम ककडी के बारे में कहा जाता है कि जैसे आगरे का पेठा आगरे में ही पनपता है वैसे ही यह भी सिर्फ़ इन्हीं दो जगह पैदा होती है....अनेक लोगों ने इसे दूसरी जगह उगाने की कोशीश की पर सफ़लता नही मिल पायी. बालम ककडी के एक नग का वजन लगभग डेढ दो किलो से ढाई तीन किलो तक का होता है.
मांडव गढ (धार) की बालम ककडी थोडी कम मजेदार होती है और थोडी सस्ती भी है यानि एक ककडी १५ से २० रूपये में मिल जाती है वहीं सैलाना की ३० से ५० रूपये में मिलती है. यह बरसात में ही होती है अब इसकी फ़सल खत्म होने पर है ज्यादा से ज्यादा दो सप्ताह की और बची है. इसमे प्रचुर मात्रा में प्रोटीन और अन्य पोषक तत्व पाये जाते हैं. यह कमजोरी दूर करके ताकत प्रदान करती है. और भी बहुत सारे गुण हैं इसमें, जो महाराज आपको कभी बाद में बतायेंगे.
हमारा सोचना है कि इसका नाम लौकी ककडी भी हो सकता था पर इसका नाम बालम ककडी ही क्यों पडा? यह वाकई सोचने वाली बात है कि नही? क्या आप में से कोई बता सकता है? अगर किसी ने जानते बूझते नही बताया तो ताऊ आस्ट्रोलोजिकल क्लिनिक की चेतावनी याद रखें.