जैसे दुनियां में शुरू से ही, एक ही जाति में दो वर्ग होने का फ़ैशन रहा है वैसे ही ब्लाग जगत तो क्या बल्कि कोई भी जीव समाज इससे कभी अछूता नही रहा. देखा जाये तो गधे और घोडे भी शायद एक ही प्रजाति के जीव हैं पर घोडों को अपने ऊपर विशेष गर्व है. घोडा कहलाना फ़ख्र की बात है और गधा कहलाना अपमान की, जबकि दोनों ही बिना सींग के हैं और दोनों ही लीद करते हैं. दोनों मे कुछ भी फ़र्क नही है. एक राज की बात आपको और बता देते हैं कि ये तथाकथित घोडे भी कभी गधे ही थे पर चालाकी, मौका परस्ती और चापलूसी से अपने आपको स्वयंभू घोडा घोषित कर लिया. इस वजह से जो भी मान सम्मान, पुरस्कार, सुविधाएं होती हैं वो सब घोडों के हक में आ गयी और गधे बेचारे निरीह बन कर रह गये.
एक दिन कुछ गणमान्य गधों का डेलीगेशन ताऊ महाराज धृतराष्ट्र के पास आया और उन्होंने अपना दुखडा रोया. अब ताऊ महाराज धृतराष्ट्र से किसी का दुख देखा नही जाता सो उसी दिन से ताऊ महाराज धृतराष्ट्र ने गधा सम्मेलन करवाना शुरू कर दिया. इस मौके पर सभी गणमान्य गधों को उचित मूल्य पर विशेष पुरस्कार और सम्मान दिया जाने लगा. लेकिन घोडों को यह भी बर्दाश्त नही हुआ, उन्होंने उल्टे सवाल उठा दिये कि गधों को सम्मेलन करवाने का हक ही नही है. यह सिर्फ़ और सिर्फ़ घोडों का एकाधिकार है जिस तरह समुद्र मंथन से निकले अमृत पर देवताओं का एकाधिकार था.
इस तरह महाराज धृतराष्ट्र द्वारा आहूत गधा सम्मेलन अस्तित्व में आया. पिछले वर्ष यह गधा सम्मेलन इस लिये नही हो पाया कि पिछला साल गधों और घोडों के बीच शीत युद्ध का रहा. असली युद्ध तो इराक, मिश्र, सीरिया और अफ़गानिस्तान में चल रहा था सो दोनों ही पक्ष उलझे हुये थे. इस साल एक दिन गधों और घोडों के मध्य जमकर बहस हो गई. दोनों ही सर्वश्रेष्ठता का दावा कर रहे थे.
घोडों के लीडर ने कहा - अबे गधों अपनी औकात में रहो, हम तो तुमको हमारे सम्मेलन में आमंत्रित ही नही करते...तुम गधे हो और हम घोडे हैं. तुम कभी घोडे नही बन सकते....और ना ही हमारे सम्मेलन में शामिल हो सकते हो और ना ही कोई सम्मान पा सकते हो.
इस बार गधों का लीडर था रामप्यारे जो कि महाराज धृतराष्ट्र की संगत में रहकर आरपार हो चुका था. रामप्यारे ने घोडों के लीडर से कहा - घोडों के लीडर जी.. ये सही है कि हम गधे कभी घोडे नही बन सकते पर क्या तुममें से कोई एक भी गधा बन कर दिखा सकता है?
अब तो घोडों के अस्तबल में खामोशी पसर गई...सब हैरान परेशान...ऐसे घोडे क्या काम के? जो कभी वापस गधे ही नही बन सकें? घोडों ने गधा बनने के लिये तुरंत अपनी इमरजेंसी मीटिंग आहुत कर ली है जो शीघ्र ही होने वाली है.
इधर गधों के लीडर रामप्यारे की जय जय कार होने लगी....और इस जीत के शुभ अवसर पर गधों ने भी एक प्रीतिभोज का आयोजन कर डाला जिसमे खूब गुलाब जामुन, रसमलाई और समोसे खाये गये.
इसके बाद विचार विमर्श शुरू हुआ गधा सम्मेलन की तारीख, समय और स्थान तय करने का.
आप दिल थाम के बैठिये....गधा सम्मेलन की तारीख, समय और स्थान शीघ्र ही घोषित किये जाने वाले हैं. जिन्हें भी गधा सम्मेलन में हिस्सा लेना हो वो तुरंत संपर्क करें.
विशेष नोट : - सिर्फ़ आमंत्रित अथितियों के ही आने जाने, ठहरने व खाने पीने की व्यव्स्था मुफ़्त रहेगी बाकी के सभी लोग अपनी अपनी व्यवस्था से आयें और सम्मेलन स्थल का पास अग्रिम प्राप्त कर लें. गधा सम्मेलन में कोई जातिगत भेद भाव नही किया जाता यानि अपने आपको घोडा समझने वाला भी समिल्लित हो सकता है.
विशेष सम्मान प्राप्त करने के लिये अपना आफ़र आप सील बंद लिफ़ाफ़े में रखकर एडवांस में भी भिजवा सकते हैं पर आखिरी निर्णय बोलियां लगवा कर सम्मेलन स्थल पर ही लिया जायेगा. सम्मान और पुरस्कार हर श्रेणी और वर्ग में दिया जायेगा.
पुराने गधा सम्मेलनों की झलकियां निम्न पोस्टों में पढ सकते हैं.
जलेबियां खत्म हो गई आते आते : सबसे तेज गधा सम्मेलन रिपोर्टम
गधा सम्मेलन 2010 समाप्त : फ़िर से वही रामदयाल और वही गधेडी
"अपने अपनों को रेवडी कैसे बांटे?" : गधा सम्मेलन के शुभारंभ सत्र का विषय
महाराज ताऊ धृतराष्ट्र द्वारा गधा सम्मेलन 2010 आहूत
गधा सम्मेलन के लिये ताऊ का सोंटा (Taau's Baton) रवाना
ताई गांधारी कोपभवन में, गधा सम्मेलन खतरे मे, ताऊ धृतराष्ट्र ने मांगी माफ़ी
गधा सम्मेलन स्थल से प्रथम अनोपचारिक रिपोर्ट
महाराज ताऊश्री धृतराष्ट्र द्वारा सम्मेलन की औपचारिक घोषणा
(क्रमश:)
गधा सम्मेलन 2010 समाप्त : फ़िर से वही रामदयाल और वही गधेडी
"अपने अपनों को रेवडी कैसे बांटे?" : गधा सम्मेलन के शुभारंभ सत्र का विषय
महाराज ताऊ धृतराष्ट्र द्वारा गधा सम्मेलन 2010 आहूत
गधा सम्मेलन के लिये ताऊ का सोंटा (Taau's Baton) रवाना
ताई गांधारी कोपभवन में, गधा सम्मेलन खतरे मे, ताऊ धृतराष्ट्र ने मांगी माफ़ी
गधा सम्मेलन स्थल से प्रथम अनोपचारिक रिपोर्ट
महाराज ताऊश्री धृतराष्ट्र द्वारा सम्मेलन की औपचारिक घोषणा
(क्रमश:)
हा हा हा हा हाहा ...क्या बात कह दी आपने ......भूचाल आने के पूरे आसार नज़र आ रहें हैं
ReplyDeleteराम राम :))))
कभी गधे को गौर से देखो
ReplyDeleteमासूम, ज़माने से डरा चेहरा
मक्कारी का नामोनिशान नहीं
शायद इसीलिए वो इंसान नहीं
गधा कभी प्रैक्टीकल नहीं होता
कोई कुछ कहे रिएक्ट नहीं करता
गधा उम्र भर गधा ही रहता है
काश वो अक्ल के घोड़े दौड़ा पाता
इंसान को इंसान से भिड़ा जाता
फिर कोई उसे गधा क्यों कहता
सोच रहा हूं खुद तन्हा बैठा
लोग मुझे गधा क्यों कहते हैं...
http://www.deshnama.com/2009/12/blog-post_20.html
गधा सम्मेलन के लिए मेरी एंट्री दर्ज़ कीजिए...
जय हिंद...
एक फॉर्महाउस के मालिक ने गधा और कुत्ता पाल रखा था...गधा पूरे दिन फॉर्महाउस में काम पर गधे की तरह जुटा रहता...कुत्ता खाता-पीता और इधर-उधर मौज मस्ती करता रहता...बस इसी तरह दिन बीत जाता...रात को घर पर आते तो कुत्ता लंबी तान कर सो जाता...गधा तो बेचारा दिन भर पिस कर आता ही था, जल्दी ही उसे भी नींद आ जाती...
ReplyDeleteएक दिन रात को सोते हुए गधे ने घर के बाहर खटपट सुनी तो उसकी नींद खुल गई...गधे ने देखा, साथ ही कुत्ता ज़ोर से खर्राटे मार रहा था...गधे ने कुत्ते को जगाने की कोशिश की और कहा...लगता है बाहर चोर आए हुए हैं...तेरा काम चौकीदारी का है और तू भौंकने की जगह मज़े से सो रहा है...कु्त्ते ने आंख बंद किए हुए ही गधे से कहा....गधे के बच्चे, चुपचाप सोजा...मेरी नींद खराब मत कर...कुछ नहीं होगा...अब गधा तो ठहरा बेचारा मालिक का वफ़ादार...गधे ने ढेंचू-ढेंचू करना शुरू कर दिया...घर का मालिक थोड़ी देर ढेंचू-ढेंचू बर्दाश्त करता रहा, फिर आकर गधे के ज़ोर की लात मारी और बोला...तू रहा गधे का गधा ही, बिना बात रात को शोर मचा रहा है...
अगले दिन मालिक जगा तो उसे पता चला कि कॉलोनी में एक उसके घर को छोड़कर बाकी सभी घरों में चोरी हो गई थी...मालिक को एहसास हुआ कि गधे के शोर मचाने से ही उसका घर चोरों से बचा रहा...वो फौरन गधे के पास आकर बोला...शाबाश...आज तूने मेरे नमक का कर्ज़ अदा कर दिया...तू तो चौकीदारी का काम भी बड़ी अच्छी तरह कर लेता है...आज से तू दिन मे फॉर्महाउस पर काम करने के साथ रात को घर की चौकीदारी भी करेगा...ये कुत्ता तो किसी काम का नहीं है, इस पर मैं कोई भरोसे वाला काम नहीं छोड़ सकता....
http://www.deshnama.com/2010/12/blog-post_17.html
जय हिंद...
गधे में कर्तव्य निष्ठा भी भरी पूरी है…… निभाओ कर्तव्य……
Deleteआमंत्रण के लिए जरूरी शुल्क तो बताया ही नहीं।
ReplyDelete:))) इंतज़ार रहेगा...
ReplyDeleteBy the way.. Spouses भी हैं Invited क्या...??? :P
~सादर!!!
प्रतीक्षा में बैठे हैं, वैसे हम गधे को प्यार से गदहा कहते हैं।
ReplyDelete@ पर घोडों को अपने ऊपर विशेष गर्व है. घोडा कहलाना फ़ख्र की बात है और गधा कहलाना अपमान की, जबकि दोनों ही बिना सींग के हैं और दोनों ही लीद करते हैं.
ReplyDeleteइस उम्मीद के साथ कि इस सम्मलेन में बेईमानी कम होगी , कम से कम एक पुरस्कार मुझे भी मिलेगा , अतः गधा सम्मलेन में मेरी भी एंट्री स्वीकार की जाए !
ताऊ भी क्या क्या करते रहते हैं !!
ReplyDeleteताऊ को देख कर दुनियां के सारे गुरुघंटाल ट्रेंड हुए हैं पूरण जी
Delete!
ऐसे सम्मेलनो से जानकारियों के सोए हुए सोते फूट पडते है।
ReplyDeleteगधा सम्मेलन ....में दुनिया भर से गधे आयेंगे ,तो निःसंदेह आनंद आएगा |
ReplyDeleteगधा सम्मलेन अहा मजा आएगा वैसे मै पहली बार
ReplyDeleteदेखने जा रही हूँ :)
आप भी ... ??
Deleteशायद सिर्फ गधों के लिए है यह सम्मलेन
Deleteमेरा मतलब दर्शक से है :)
यह सम्मलेन गधों के लिए ही है ...सोंच के आना !
Deleteअब इन्तजार रहेगा इस मजेदार सम्मलेन का :)
ReplyDeleteइन्तजार रहेगा आपके इस मजेदार सम्मलेन का....
ReplyDeleteब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन अमर मरा करते नहीं - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteताऊ जी.........................
ReplyDeleteगधों का सम्मलेन और इतने डिसेज... :)
ये तो नाइंसाफी है जी....कोई खाए बिन मरे कोई खा खा के मरे
अब उस दिन तो ब्लॉग जगत को संभल कर रहना होगा.....वरना भगदड़ मची तो आफत
ReplyDeleteअहा! ताजपोशी भी दिलचस्प होना चाहिए..
ReplyDeletetaau ji naya rang bikherane wale hain
ReplyDeleteइधर (पक्ष )भी गधे हैं ,
ReplyDeleteउधर (विपक्ष )भी गधे हैं ,
जिधर देखता हूँ ,गधे ही गधे हैं।
ये मेरे गधे ,वो तुम्हारे गधे हैं।
नहीं कोई धोबी ,बस गधे के गधे हैं।
चलो सम्मेलन का इंतजार करते हैं।
ReplyDeleteदुनिया की लहदी ,
ReplyDeleteऔर ढेंचू का राग
गदहों के कान खड़े
धुबिया रे ,जाग !
बहुत अच्छा व्यंग्य है आपका...दुनिया का यही दस्तूर है साहब कि जो ए.सी. में बैठता है भरपूर तनख्वाह पाता है और दरवाजे पर धूप में दिन भर बंदूक लिए खड़ा व्यक्ति डॉ वक्त की रोटी मुश्किल से जुटा पाता है...आपके इस व्यंग्यात्मक लेख के लिए आभार!!
ReplyDeleteदेख लीजिए ताऊ जी स्त्रियाँ कितनी खुश हो रही हैं आपके इस सम्मेलन के लिए...खुद दर्शक बनेंगी और पतियों को सम्मेलन में भागीदारी करानें की सोच रही हैं;-))दिल की बात धीरे-धीरे आपने निकल ही ली ना;-))
ReplyDeleteइस सूचना और तैयारी में ही ई-सम्मेलन यहां हो गया.
ReplyDeleteताऊ ,यह अपवाह है या सच?... कि गधे सम्मलेन में श्रोताओं के लिए एंट्री फीस रखी गयी है ताकि महाराज ध्रितराष्ट्र का खज़ाना भर सके
ReplyDeleteइस सम्मेलन की सफलता के लिए शुभकामनायें
ReplyDeleteबढ़िया है ....ऐसे सुंदर सम्मलेन का आयोजन :)
ReplyDeleteहा हा हा...
ReplyDeleteवैसे बिना धोबी की इजाजत के एक भी गधे नहीं आ पायेंगे। गधे स्वतंत्र कब हुए?
गधा सम्मलेन में आकर , शिरकत करके मुझे बेहद ख़ुशी होंगी ! मेरी एंट्री कबूल करे.
ReplyDeleteकाश गधे और घोड़े आप की ये पोस्ट पढ़ सकते !
ReplyDeleteआयोजन सफल रहे ,शुभकामनाएँ.
रिपोर्ट का इंतज़ार रहेगा .
सितम्बर में दो दो हैं :-)
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