ब्लाग संसद खचाखच भरी हुई थी. इस सत्र में कई बिल पास होने थे इनमें भी महत्वपूर्ण बिल यह था कि इस साल का "सर्वश्रेष्ठ ब्लाग रत्न शिरोमणी" अवार्ड किसे दिया जाये? यूं तो ब्लागिस्तान में क्षेत्रिय दलों की तरह अनेकों छोटे मोटे ब्लाग मठ हैं जो अपनी अपनी ढपली बजाते रहते हैं और अपने अपने इलाके में राज भी करते हैं.
पर राष्ट्रीय स्तर पर ब्लागिंस्तान मुख्य रूप से दो मठों में बंटा हुआ है. दोनों ही मठों के मठाधीष चाहते हैं कि इस बार का "सर्वश्रेष्ठ ब्लाग रत्न शिरोमणी" अवार्ड उन्हीं को मिले, सारी ताकत दोनों मठों ने झौंक रखी है. और इसके लिये संसद में भारी बहस चल रही थी. सभी अपने अपने कारनामें बढ चढकर बता रहे हैं कि किसने सबसे ज्यादा मौज ली? किसने सबसे ज्यादा बेनामी टिप्पणियां की? किसने कितने ब्लागरों को ब्लागिंग छोडने के लिये मजबूर किया...इत्यादि इत्यादि.....
इधर ताऊ अपनी प्यारी भैंस चंपाकली सहित अपनी सारी भैंसों को लेकर ब्लाग संसद की और जाने वाली सडक पर बढता जा रहा है. मुख्य मार्ग पर यह नजारा देखकर भीड भी ताऊ के पीछे हो लेती है. ताऊ अपनी भैंसों सहित ब्लाग संसद में घुसने के लिये कोशीश करता है पर ब्लाग पुलिस उसे गेट पर ही रोक लेती हैं. ताऊ नाराज होने लगा तो ब्लाग पुलिस का मुखिया अंदर जाकर ब्लाग संसद के अध्यक्ष को सूचित करता है की एक ताऊ अपनी बहुत सारी भैंसों के साथ ब्लाग संसद में घुसना चाहता है.
अधयक्ष महोदय घबरा जाते हैं, उन्हें यह अंदेशा था कि हो ना हो यह वही भैंसों वाला ताऊ होगा जिसने एक बार कैट एयरवेज के एयरक्राफ़्ट से अपनी भैंस को बांध दिया था. आज तो वो हद ही कर रहा है कि अपनी सारी भैंसों को लेकर ब्लाग संसद में घुसना चाहता है. क्या मालूम इस ताऊ का क्या इरादा है? यह सोचकर वो बाहर गेट पर आकर ताऊ से उसके वहां आने का कारण पूछते हैं.
ब्लाग संसद के अध्यक्ष महोदय ने पूछा - ताऊ, यहां कैसे आना हुआ? तुमको मालूम नही कि ये ब्लागरों की संसद है और बहुत जरूरी बहस चल रही है?
ताऊ बोला - मैं कौन सी तुम्हारी बहस में लठ्ठ मार रहा हूं? मैं तो यहां अपनी भैंसों की पूंछ की कटिंग करवाने और उनका रंग काला करवाने आया हूं जो कि उनकी उम्र के हिसाब से थोडा भूरेपन पर आ गया है.
अध्यक्ष महोदय ने गुस्से से तमतमाकर कहा - तो फ़िर किसी हेयर कटिंग सैलून में ले जाकर करवावो ना, यहां क्या करने आये हो? यह ब्लाग संसद है....बेवकूफ़ कहीं का...
ताऊ बोला - मैने सुना था कि ब्लागिस्तान में इससे बेहतर कटिंग और डाई करने की कोई दूसरी सैलून नही हो सकती, इसलिये आया हूं.....मेरी भैंसें जरा नाजुक हैं इसलिये मैं उनकी पूंछ की कटिंग और डाई किसी उच्च स्तर की सैलून में ही करवाता हूं.
अध्यक्ष महोदय ने तल्खी से कहा - चल भाग यहां से ताऊ कहीं का. आया बडा भैंसों की पूंछ के बाल कटाने वाला....जैसे हमने कटिंग सैलून खोल रखी हो....
अब ताऊ का दिमाग घूम गया सो चिल्ला कर बोला - तुमको मेरी भैंसों की कटिंग तो करनी ही पडेगी.. तुमसे बडा कटिंग मास्टर और कौन होगा? तुम लोग यहां बैठकर कितनी खूबसूरती से जनता की गर्दन काटते हो, रिश्वत और घोटालों की फ़सल काटते हो तो मेरी भैंसों की कटिंग क्यों नही काट सकते? और तुम इतने काले कारनामे करते हो तो तुमसे बढकर मेरी भैंसों का रंग काला और कौन कर सकता है?
अध्यक्ष महोदय को गुस्सा आ रहा था पर सही बात के आगे कुछ निरूत्तर से होगये...इतनी ही देर में ताऊ की सबसे लाडली भैंस चंपाकली आकर बोली - ताऊ, सब भैंसों को भूख लग आई है....उनके खाने का कुछ इंतजाम करावो.
ताऊ और ताऊ की भैंसें ब्लाग संसद के गेट पर चारा खाने के लिये अंदर घुसने की जद्दोजहद कर रहे हैं और ब्लाग पुलिस उनको खदेडने में डटी हुई है. हो सकता है आंसु गैस के गोले भी फ़ोडने पड जाये. पर अबकि बार भैंसे मानने वाली नही हैं.
इतनी ही देर में ब्लाग पुलिस ने वाटर कैनन से पानी की फ़ुहारें मारनी शुरू कर दी.... ताऊ और भैंसे समझ रहे हैं कि ये उनको डाई करने के के लिये धुलाई शुरू हो गई है. वैसे भी भैंसों को पानी की ठंडी फ़ुहारे बहुत अच्छी लगती हैं.
जैसे जनता को कोई भी कानून बनता देखकर खुशी होती है कि बस अब तो हमारे दुख दर्द दूर हुये ही समझो. उसी तरह वाटर कैनन के इस्तेमाल को भैंसों ने अपने हक में कानून समझकर खुश होकर नाचना गाना शुरू कर दिया.......
मन डोले मेरी पूंछ डोले
मेरे पेट की मिट गई भूख रे
ये कौन मारे है फ़ुहारिया
मधुर मधुर सपनों में देखा था चारा घना अकेला
छोड़ चली हूं लाज शर्म, अब खालूं सारा चारा
रस घोले धुन यूँ बोले
ठंडी पड़ रही फुहार रे
ये नेताजी बजाये बांसुरिया
मन डोले मेरी पूंछ डोले ...
इसी तरह खाद्द्य सुरक्षा कानून के बनने से गरीब जनता भी नाचना गाना शुरू कर देगी मानो उनका पेट ही भर गया हो.
पर राष्ट्रीय स्तर पर ब्लागिंस्तान मुख्य रूप से दो मठों में बंटा हुआ है. दोनों ही मठों के मठाधीष चाहते हैं कि इस बार का "सर्वश्रेष्ठ ब्लाग रत्न शिरोमणी" अवार्ड उन्हीं को मिले, सारी ताकत दोनों मठों ने झौंक रखी है. और इसके लिये संसद में भारी बहस चल रही थी. सभी अपने अपने कारनामें बढ चढकर बता रहे हैं कि किसने सबसे ज्यादा मौज ली? किसने सबसे ज्यादा बेनामी टिप्पणियां की? किसने कितने ब्लागरों को ब्लागिंग छोडने के लिये मजबूर किया...इत्यादि इत्यादि.....
ताऊ अपनी भैंसों के साथ ब्लाग संसद की ओर बढता हुआ
इधर ताऊ अपनी प्यारी भैंस चंपाकली सहित अपनी सारी भैंसों को लेकर ब्लाग संसद की और जाने वाली सडक पर बढता जा रहा है. मुख्य मार्ग पर यह नजारा देखकर भीड भी ताऊ के पीछे हो लेती है. ताऊ अपनी भैंसों सहित ब्लाग संसद में घुसने के लिये कोशीश करता है पर ब्लाग पुलिस उसे गेट पर ही रोक लेती हैं. ताऊ नाराज होने लगा तो ब्लाग पुलिस का मुखिया अंदर जाकर ब्लाग संसद के अध्यक्ष को सूचित करता है की एक ताऊ अपनी बहुत सारी भैंसों के साथ ब्लाग संसद में घुसना चाहता है.
अधयक्ष महोदय घबरा जाते हैं, उन्हें यह अंदेशा था कि हो ना हो यह वही भैंसों वाला ताऊ होगा जिसने एक बार कैट एयरवेज के एयरक्राफ़्ट से अपनी भैंस को बांध दिया था. आज तो वो हद ही कर रहा है कि अपनी सारी भैंसों को लेकर ब्लाग संसद में घुसना चाहता है. क्या मालूम इस ताऊ का क्या इरादा है? यह सोचकर वो बाहर गेट पर आकर ताऊ से उसके वहां आने का कारण पूछते हैं.
ब्लाग संसद के अध्यक्ष महोदय ने पूछा - ताऊ, यहां कैसे आना हुआ? तुमको मालूम नही कि ये ब्लागरों की संसद है और बहुत जरूरी बहस चल रही है?
ताऊ बोला - मैं कौन सी तुम्हारी बहस में लठ्ठ मार रहा हूं? मैं तो यहां अपनी भैंसों की पूंछ की कटिंग करवाने और उनका रंग काला करवाने आया हूं जो कि उनकी उम्र के हिसाब से थोडा भूरेपन पर आ गया है.
अध्यक्ष महोदय ने गुस्से से तमतमाकर कहा - तो फ़िर किसी हेयर कटिंग सैलून में ले जाकर करवावो ना, यहां क्या करने आये हो? यह ब्लाग संसद है....बेवकूफ़ कहीं का...
ताऊ बोला - मैने सुना था कि ब्लागिस्तान में इससे बेहतर कटिंग और डाई करने की कोई दूसरी सैलून नही हो सकती, इसलिये आया हूं.....मेरी भैंसें जरा नाजुक हैं इसलिये मैं उनकी पूंछ की कटिंग और डाई किसी उच्च स्तर की सैलून में ही करवाता हूं.
अध्यक्ष महोदय ने तल्खी से कहा - चल भाग यहां से ताऊ कहीं का. आया बडा भैंसों की पूंछ के बाल कटाने वाला....जैसे हमने कटिंग सैलून खोल रखी हो....
अब ताऊ का दिमाग घूम गया सो चिल्ला कर बोला - तुमको मेरी भैंसों की कटिंग तो करनी ही पडेगी.. तुमसे बडा कटिंग मास्टर और कौन होगा? तुम लोग यहां बैठकर कितनी खूबसूरती से जनता की गर्दन काटते हो, रिश्वत और घोटालों की फ़सल काटते हो तो मेरी भैंसों की कटिंग क्यों नही काट सकते? और तुम इतने काले कारनामे करते हो तो तुमसे बढकर मेरी भैंसों का रंग काला और कौन कर सकता है?
अध्यक्ष महोदय को गुस्सा आ रहा था पर सही बात के आगे कुछ निरूत्तर से होगये...इतनी ही देर में ताऊ की सबसे लाडली भैंस चंपाकली आकर बोली - ताऊ, सब भैंसों को भूख लग आई है....उनके खाने का कुछ इंतजाम करावो.
ताऊ बोला - जावो, अंदर घुस जावो और चारा खा आवो.
अब अध्यक्ष महोदय चिल्लाकर बोले - अरे ओ ताऊ, तेरे को कहा ना, यह ब्लाग संसद है कोई तबेला नही जो यहां भैंसों को चारा खिलाने के लिये कह रहा है?
ताऊ बोला - देख भाई, तुम ब्लाग नेता यहां बैठकर चारा नही खाते क्या? अगर नही खाते तो चारा घोटाला कैसे हुआ? जब तुम यहां चारा खा सकते हो, रिश्वत खा सकते हो तो यही सब चीजें मेरी भैंसों को भी खा लेने दो. अब वैसे भी तुम्हारा लंच टाईम हो रहा है सो मेरी भैंसों को भी लंच कर लेने दो.
बाहर जब इतनी देर तक बवाल चलता रहा तो अंदर से ब्लाग सांसद सतीश सक्सेना निकल कर बाहर आये और सामने ताऊ को भैंसों सहित देखकर मुस्कराये और बोले - ताऊ, आज भैंसों को चराने अकेले ही आये हो क्या? ताई को साथ नही लाये?
ताऊ बोला - सतीश जी, आज मुझे अपनी भैंसों को चराने के अलावा उनकी कटिंग भी करवाना थी और घर को आजकल चोरों के डर से ज्यादा देर सूना नही छोडा जा सकता, इसलिये उसे गृह मंत्रालय सौंप आया हूं जिसे वो संभाल रही है.
ताऊ और ताऊ की भैंसें ब्लाग संसद के गेट पर चारा खाने के लिये अंदर घुसने की जद्दोजहद कर रहे हैं और ब्लाग पुलिस उनको खदेडने में डटी हुई है. हो सकता है आंसु गैस के गोले भी फ़ोडने पड जाये. पर अबकि बार भैंसे मानने वाली नही हैं.
इतनी ही देर में ब्लाग पुलिस ने वाटर कैनन से पानी की फ़ुहारें मारनी शुरू कर दी.... ताऊ और भैंसे समझ रहे हैं कि ये उनको डाई करने के के लिये धुलाई शुरू हो गई है. वैसे भी भैंसों को पानी की ठंडी फ़ुहारे बहुत अच्छी लगती हैं.
जैसे जनता को कोई भी कानून बनता देखकर खुशी होती है कि बस अब तो हमारे दुख दर्द दूर हुये ही समझो. उसी तरह वाटर कैनन के इस्तेमाल को भैंसों ने अपने हक में कानून समझकर खुश होकर नाचना गाना शुरू कर दिया.......
मन डोले मेरी पूंछ डोले
मेरे पेट की मिट गई भूख रे
ये कौन मारे है फ़ुहारिया
मधुर मधुर सपनों में देखा था चारा घना अकेला
छोड़ चली हूं लाज शर्म, अब खालूं सारा चारा
रस घोले धुन यूँ बोले
ठंडी पड़ रही फुहार रे
ये नेताजी बजाये बांसुरिया
मन डोले मेरी पूंछ डोले ...
इसी तरह खाद्द्य सुरक्षा कानून के बनने से गरीब जनता भी नाचना गाना शुरू कर देगी मानो उनका पेट ही भर गया हो.
ताऊ अब बुड्ढा हो चला है जो की इस पोस्ट पढने से पता चल रहा है ..
ReplyDeleteशुरुआत की ब्लॉग रत्न अवार्ड से ..
और पंहुच गया भैंसे धुलवाने संसद में !!
कुछ और काम शुरू करदे ताऊ ..
जय हो ब्लॉगिस्तान शिरोमणि, भैंस धनि, ताऊ जी महराज की जय हो....
ReplyDeleteइतना प्यार और सुरक्षा जब संसद देने लगेगी तो सब वहीं पहुँच जायेंगे। टिप्पणी सुरक्षा विधेयक कब आयेगा।
ReplyDeleteबहुत खूब,ताऊ आपका जबाब नही ,,,
ReplyDeleteRECENT POST : अपनी पहचान
अब ताऊ का दिमाग घूम गया सो चिल्ला कर बोला - तुमको मेरी भैंसों की कटिंग तो करनी ही पडेगी.. तुमसे बडा कटिंग मास्टर और कौन होगा? तुम लोग यहां बैठकर कितनी खूबसूरती से जनता की गर्दन काटते हो, रिश्वत और घोटालों की फ़सल काटते हो तो मेरी भैंसों की कटिंग क्यों नही काट सकते? और तुम इतने काले कारनामे करते हो तो तुमसे बढकर मेरी भैंसों का रंग काला और कौन कर सकता है?
ReplyDeleteअपनी मर्जी के मालिक हैं ये ब्लोगिये (सारी संसदिये )कहो तो भैंस को बिलकुल सफ़ेद बना दें .ब्लॉग हवाला यह काम करता है .ॐ शान्ति .
बहुत ही गंभीर मसले को व्यंग्य की चाशनी में डुबो कर प्रस्तुत किया है.
ReplyDeleteथोड़े में ही बहुत कुछ कह दिया और संकेत भी दिए.आशा है ,जनता समझ से काम लेगी.
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
ReplyDeleteआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा आज मंगलवार (16-07-2013) को मंगलवारीय चर्चा --1308--- भुंजे तीतर सा मेरा मन में "मयंक का कोना" पर भी है!
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
ताऊ आप भी कहाँ पहुंचे है ! कहीं ऐसा नहीं हो कि भेंसे ही वापिस नहीं मिले और दूसरे दिन अखबार में भेंस घोटाले की खबर ही पढ़ने को मिले !!
ReplyDeleteआभार ,राम राम !!
मैं तो सोच रहा था कि अध्यक्ष महोदया अपनी पतली सी आवाज में कहेंगी " शांत हो जाइए, शांत हो जाइए ताऊ जी, देखिये आपकी भैसों की कटिंग भी होगी क्योंकि हमारे सदन के ज्यादातर सदस्यगण कैंची चलाने में उस्ताद है और फिर आपकी भैसों को उसी कैंटीन में खाना भी खिलाया जाएगा, जहां हमारे माननीय मात्र ३० रुपये में भरपेट खाते है, भेज और नौन्भेज दोनों। "
ReplyDeleteताऊ सच में आज कल आप की दिमाग नहीं चल रहा है , इतना भी नहीं समझ पाए , वो पानी की फुहारे डाली गई थी की सभी भैसे शांत हो जाये , जब आप नाच रहे थे और वो आप की एक एक भैस को दुह कर चले गए , आज तो ताई को खानी पड़ेगी जब भैसे एक बंद भी दूध न देंगी ।
ReplyDeleteबहुत भाया यह चुटीला अंदाजे -बयां ..
ReplyDeleteमेरा ख़्याल है कि ब्लॉग संसद भी धूर्तों के हत्थे चढ़ गई है इसलिए उसमें सींग घुसेड़ने का सबसे बढ़िया लोकतांत्रिक तरीका है कि 'आम भैंस पार्टी' बना कर सभी भैंसों के अपने-अपने ब्लॉग खुलवा दिए जाएं और काइयां भैंसों के तो एक से अधिक ब्लॉग खुलवाएं. इस तरह इनकी 'भैंस-पॉवर' का जलवा जब यहां वहां फैलने लगेगा तो ये संसदिए अपने-आप ही इनकी चिरौरियां काटते इन्हीं के आगे-पीछे 'आओ जी आओ जी' करते मारे-मारे डोलेंगे ...
ReplyDelete@ जैसे जनता को कोई भी कानून बनता देखकर खुशी होती है कि बस अब तो हमारे दुख दर्द दूर हुये ही समझो. उसी तरह वाटर कैनन के इस्तेमाल को भैंसों ने अपने हक में कानून समझकर खुश होकर नाचना गाना शुरू कर दिया.......
ReplyDeleteबढ़िया बात कही है ताऊ,
सटीक व्यंग्य है देर से पढ़ पायी इन दिनों थोड़ी व्यस्त थी, :)
वाह यार ताऊ मजा आ गया,खूब खींच मारा सब को,जरा ताई का ध्यान रखना आजकल चोर उच्चकों ने अपनी ब्रांच सब जगह खोल राखी हैं कहीं आप यहाँ धरना देते रह जाओ और वे पीछे से उनका अपहरण कर चलते बने.,
ReplyDeleteगई भैंस ब्लॉग पानी में।
ReplyDeleteसही डुबो डुबो कर धोया है।
वाह भाई ताऊ जी गजब कह दिया
ReplyDeleteमारे गये गुलफाम
उत्कृष्ट व्यंग्य
आपके अपने अंदाज में
बधाई
बातों को सरल सहज कहना आपसे सिखा जा सकता है
ReplyDeleteब्लॉग यात्रा जारी रखे .....राम राम
ReplyDeleteजीयो ताऊ सा बे लाग होकर लिखो ऐसे ही इच बिंदास .ॐ शान्ति
ReplyDeleteहूँ...पर भैंस कब अपने कटिंग के हथियार का उपयोग करेंगी ?
ReplyDeleteलगता है कि ताऊ के दिमाग की सारी ही खिड़कियां खुल गयी है, खूब धारदार लिखा जा रहा है।
ReplyDeleteबेचारी भोली भाली जनता और शातिर ताऊ !
ReplyDeleteताऊ कहां की बात कहां जाकर लगनी चाहिए ये पहले ही सोच लेते हो ... क्या बात है ...
ReplyDeleteराम राम जी ...
जैसे जनता को कोई भी कानून बनता देखकर खुशी होती है कि बस अब तो हमारे दुख दर्द दूर हुये ही समझो.
ReplyDeleteवाह...बहुत खूब...
करारा व्यंग....
जैसे जनता को कोई भी कानून बनता देखकर खुशी होती है कि बस अब तो हमारे दुख दर्द दूर हुये ही समझो. उसी तरह वाटर कैनन के इस्तेमाल को भैंसों ने अपने हक में कानून समझकर खुश होकर नाचना गाना शुरू कर दिया..
ReplyDelete:):) ज़बरदस्त व्यंग्य
लोग पूछते हैं -अक्ल बड़ी या भैंस?
ReplyDeleteसब सामने है,समझना चाहें तो !