कल हमने एक पोस्ट लिखी थी...अरे ताऊ "गंभीर देवी तुमको जीने नही देगी और मुस्कान देवी तुमको मरने नही देगी. उस पर हमारे गुरुदेव समीरलाल जी ने यह कहा कि अपना गंभीर लेखन का नमूना भी चेप देते तो फ़ैसला देने में आसानी होती. तो गुरुजी के प्रश्न के जवाब मे आजकी पोस्ट चेंप रहा हूं.
आप सभी ने आपके सुझाव दिये जिसके लिये मैं आपका आभारी हूं. सुश्री अल्पना वर्मा जी ने बहुत ही स्पष्ट और मूल्यवान टिप्पणी की..उनकी टिप्पणी और हौंसला अफ़्जाई के लिये विशेष आभारी हूं.
खन्ना तीस साल बाद बेल्जियम से वतन लौटा है .कल जब अचानक उसका फ़ोन आया तो मैं चौंक गया. उसने घर बुलाया था.
उसके फ़ोन से अचानक पुरानी यादें जेहन में ताजा होगई. तैयार होके बाहर निकलता हुं. शोफ़र गाडी का दरवाजा खोलता है.... गाडी मे बैठता हूं ... शोफ़र गाडी का दरवाजा बंद करके गाडी आगे बढा देता है. मेरी पसंद की बेगम अख्तर की गाई गजलों की सीडी प्लेयर मे डाल कर रिमोट मेरी तरफ़ बढा देता है.
वो जो हम मे तुम मे करार था.....
कितना कुछ बदल गया है...पहले एक नेशनल हेराल्ड बेचकर जब नई फ़ियेट ली थी तब ऐसा लगा था जैसे पुष्पक विमान मिल गया हो...आज इस मर्सडीज में वो बात कहां? पता नही पुरानी यादें और चीजें हमेशा ही तुलनात्मक रुप से ज्यादा अच्छी क्यों लगती हैं?
गजल सुनते सुनते अचानक पुरानी यादों के भंवर मे खोने लगता हुं. आज से ३५ साल पुरानी यादों मे पहुंच जाता हूं.
मैं और नरेश बचपन से एक ही क्लास में पढे. घर भी पास पास ही थे. मेट्रिक पास की फ़िर कालेज मे पहुंच गये.
पहले बार जाना कि स्कूल और कालेज मे क्या फ़र्क होता है? बस उतना ही ..जितना गुलामी और आजादी में....
अचानक मिली आजादी ....कीमत भी वसूलती है...जल्द ही सिगरेट पीना शुरु होगया....और भी बहुत कुछ... इसी बीच मेरी और नरेश की दोस्ती हमारी सहपाठी सुधा बेलचा से होगई.
धीरे धीरे हम तीनों की दोस्ती गहराती गई. अब हम फ़ायनल ईयर मे आचुके थे. मुझे अपने पिता का कारोबार भी संभालना पडता था. अत: समय बहुत कम रहता था. उधर नरेश और सुधा मे अंतरंगता बढती गई. एक दिन दोनों ने शादी का फ़ैसला कर लिया. दोनों के घरवालों की थोडी बहुत नानुकुर के बाद शादी होगई.
वो दोनों ही बहुत खुश थे. मैं अपने कारोबार मे रम चुका था. नरेश अपने व्यापार के सिलसिले मे बेल्जियम चला गया. जहां पेट्रोल पंपों के धंधे में लग गया. नरेश और सुधा दोनो एन.आर.आई. हो गये थे. शुरु के चार पांच साल के बाद तो संपर्क भी खत्म हो चुका था... वक्त कितनी तेजी से बीत गया..पता ही नही चला.
अचानक शोफ़र ने गाडी रोक कर पूछा - कहां चलना है साहब?
ओह...मैं यादों के भंवर मे इतना खो चुका था कि उसे बताना ही भूल गया था. फ़िर मुझे याद आया ...सुधा को मोगरे वाली वेणी बहुत पसंद थी. सोचा उसके लिये लेता चलूं. और नरेश को तिल के लड्डू पसंद थे. आज मकर सक्रांति भी है. पता नही उसको ये सब याद भी है या नही?
मैं ड्राईवर को गाडी साईड मे रोकने के लिये कहता हूं.
सामने ही गजरे वाले की दूकान से मोगरे की वेणीयां पैक करवाता हूं. फ़िर वहीं पास की मिठाई की दूकान से तिल के लड्डू लेकर शोफ़र को खन्ना साहब के घर चलने का कहता हूं.
सामने बंगले मे गाडी से उतर कर काल बेल बजाता हूं. दरवाजा खुलता है. सामने एक अधेड महिला खडी है...स्कर्ट कमीज...बाय कट बाल...मैं चौकंता हूं....कहीं गलत जगह तो नही आगया? हडबडाकर पूछता हुं...ये नरेश खन्ना का बंगला है? और आप?
महिला बोली - ओह या...यू आर राईट जैंटलमैन...प्लिज कम इन.. आई एम मिसेज खन्ना...और वो दरवाजा खोल कर अंदर चली जाती है.
अंदर से ब्रिट्नी स्पियर्स का ऊप्स आई डिड इट अगेन...के बजने की आवाज आरही है...
मुझे अचानक शाक सा लगता है. तो यही है सुधा? ... सुधा बेलचा...यानि सुधा खन्ना....जो अपने बालों से बेपनाह मुह्हब्बत करती थी. जिसे ना झटको जुल्फ़ से ... गाना सुनना दीवानगी की हद तक सुहाता था?
अचानक मुझे कुछ अच्छा नही लग रहा है.....सुधा ..जिसे मोगरे की वेणियां बेपनाह पसंद थी उसकी जुल्फ़ें ही साफ़ हो चुकी हैं....तो क्या अब नरेश को तिल के लड्डू और मकर सक्रांति याद भी होगी?
अचानक एक खयाल आया और तिल के लड्डू और वेणियां जो हाथ मे थी.. उन दोनों को वहीं छोडकर दरवाजे से वापस पलट जाता हूं...
पिछली सीट पर बैठते हुये शोफ़र को आफ़िस चलने के लिये कहता हूं....और अनायास मेरा हाथ गाडी मे रखे सिगरेट के पेकेट की तरफ़ बढ जाता है.....
सीडी प्लेयर पर मेहंदी हसन की गाई गजल बज रही है...शोला था जल बुझा हूं....
गाडी ओवर ब्रिज पार कर रही है. बाहर पुल के फ़ुटपाथ पर देखने लगता हूं....मैले कुचेले कपडे पहने बच्चे...औरते..बुड्ढे और बुड्ढो जैसे जवान...जिंदगी की आपाधापी मे कोलाहल मचाये हैं...वही रबर के टायरो को जलाकर अलाव तापते लोग...चूल्हे पर सिकती रोटियां...यानि रोजमर्रा की जद्दोजहद से निपटती इन जैसे लाचारों की दुनियां.......
सोचता हूं ..क्या यही लोहडी है? जो हर साल इन लोगों द्वारा रबर के टायरों को जलाकर पूरी सर्दी मनाई जाती है?
मैं सिगरेट मुंह मे लगाता हूं..और दूसरा हाथ लाईटर निकालने के लिये बढ जाता है......!
The Last Punch :-
संतू गधा जंगल से घर की ओर लौट रहा था. उसको अकेले देखकर शेर चुपचाप पीछे लग गया. दुर से रमलू सियार यह सब देख रहा था. संतू गधा इस अनहोनी से बेखबर मस्ती में...परबत परबत..बस्ती बस्ती..गाता जाये बंजारा..लेकर ताऊ का इकतारा... गाता हुआ चला जारहा था.
रमलू सियार ने जान लिया की अब संतू की जीवन लीला शेर के हाथों समाप्त ही समझो. लेकिन सियार आखिरी दम तक हिम्मत नही छोडता.उसने तुरंत संतू गधे के मोबाईल पर रिंग दी और उससे कहा - हिम्मत बिल्कुल मत हारना...शेर पीछे लगा है...और क्या करना है..इस बात की हिदायत दी..
संतू था तो गधा ही, पर चूंकी ताऊ का गधा था सो रमलू सियार की सारी बाते समझ गया था. और योजना के अनुसार तुरंत ही अपनी चाल धीमी करके लंगडाते हुये चलना शुरु कर दिया. शेर ने जब देखा कि यह तो लंगडा गधा है तो बडा खुश हुआ कि चलो आज तो बिना ज्यादा मेहनत किये ही भोजन मिल गया.
शेर बिना मेहनत किये शिकार को हराम का मानता है सो मेहनत दिखाने की गर्ज से शेर पास आगया और गधे की पीठ पर एक हाथ मारते हुये पूछने लगा - क्यों बे गधेडे....ब्लडी..ईडियट...जब तेरे से चला नही जाता तो जंगल मे क्या मरने के लिये आया था? तुझे मालूम है ना कि लंगडे जानवर को जंगल मे नही आना चाहिये?
संतु गधेडा बोला - माई बाप...हम प्रजा का फ़र्ज है कि आपका कथन अगर झूंठ का पुलिंदा भी हो तो भी साक्षात धर्मराज के मुंह से निकला सत्य का बाण समझना चाहिये. राजा कभी झूंठ बोल ही नही सकता. आप हमारे राजा हैं...God save the king... आप युग युग जीयें...गधे का तो फ़र्ज ही है कि राजा की सेवा करे..और उनके काम आये. आज मेरा जन्म लेना सफ़ल हुआ..जो आज मैं महाराज के किसी काम आऊंगा....मैं हर जन्म में गधेडा बनूं और महाराज की क्षुधा शांत करने के काम आऊं... पर महाराज ..आप मुझे खाये इसके पहले आप मेरे पैर मे चुभा हुआ जहरीला कांटा निकाल लें. कहीं ऐसा ना हो कि मुझे खाते समय वो जहरीला कांटा आपके पेट मे चला जाये और कोई अनहोनी होजाये.
शेर तो गधे की बात सुनकर प्रशन्न हुआ और बोला - वाह..तुम्हारी जैसी प्रजा पाकर मैं धन्य हुआ. लाओ संतू.. इधर करो तुम्हारा पैर ..मैं उस कांटे को निकाल दूं......
अब संतू गधे ने अपनी पोजिशन ऐसी जमाई कि शेर उसकी पिछली टांगो कि पहुंच मे आगया. और बिना शेर को कोई मौका दिये ही उसने फ़टाफ़ट सात आठ दुल्लतियां (kick = किक = पाद प्रहार, पदाघात या खुराघात) शेर के नाक को निशाना बनाकर फ़टकार दी. और इसी बीचे रमलू सियार ने आकर पिछले पंजो से शेर की आंखों मे धूल उडा दी.
शेर नाक पर दुल्लतियां पडने से दर्द के मारे तिलमिला गया और आंखों मे जो धूल घुसने से जलन मची उसने और कबाडा कर दिया. शेर ने रमलू सियार की कारस्तानी समझ ली और बोला - हरामजादे...तू क्या समझता है? मैं तुझे छोड दूंगा? ठहर जा...
रमलू सियार बोला - अबे शेर...हम तो वक्त के गुलाम हैं...और वक्त कभी ठहरता नही है..जो हम ठहर जायें? मैं तो कहता हूं ..तू सुधर जा, समय को पहचान.. और दंभ छोड कर शांति से रह और दूसरों को भी रहने दे. वर्ना जनता तुझे यों ही दुल्लतियायेगी. और सुन जब तक हमारा विवेक साथ देता रहेगा तब तक तू कुछ भी नही बिगाड पायेगा.
सोचता हूं ..क्या यही लोहडी है? जो हर साल इन लोगों द्वारा रबर के टायरों को जलाकर पूरी सर्दी मनाई जाती है?..
ReplyDelete.......सवाल तो अनुत्तरित कर गया ताऊ jee.
सोचता हूं ..क्या यही लोहडी है? जो हर साल इन लोगों द्वारा रबर के टायरों को जलाकर पूरी सर्दी मनाई जाती है?
ReplyDeleteसच में ये प्रश्न तो हमे भी निरुत्तर कर गया,.....
regards
रमलू सियार बोला - अबे शेर...हम तो वक्त के गुलाम हैं...और वक्त कभी ठहरता नही है..जो हम ठहर जायें? मैं तो कहता हूं ..तू सुधर जा, समय को पहचान.. और दंभ छोड कर शांति से रह और दूसरों को भी रहने दे. वर्ना जनता तुझे यों ही दुल्लतियायेगी. और सुन जब तक हमारा विवेक साथ देता रहेगा तब तक तू कुछ भी नही बिगाड पायेगा.
ReplyDelete"बेहद ज्ञान की बात कह गया ये रमलू सियारा तो......"
regards
wakai serious ka rdiya aaj to..........dono hi vakyon ne anuttarit kar diya.
ReplyDelete".... वर्ना जनता तुझे यों ही दुल्लतियायेगी...."
ReplyDeleteताउजी, मैं तो आपकी इसी बात पर काफी देर से सिर पकड़ कर सोप्चने में लगा हूँ कि यह ताऊ जी ने कोई जरूर गहरी बात कह दी ! मैं यही याद करने की कोशिश कर रहा हूँ कि ये दुल्लती आखिर मारता कौन सा जानवर है ?
हम्म!! गंभीर पीस इतना गंभीर, कि सोच से उबरना मुश्किल और हास्य पीस इतना हंसोड कि हँसी को रोकना मुश्किल-दफ्तर में ऐसे में लफड़ा हो जाता है...
ReplyDeleteकोई बीच का माईल्ड लिखने का तरीका भी जानते हैं क्या?? तभी कुछ फैसला ले पायेंगे..
अभी तो टंगे हैं बिना फैसले के. :)
..तू सुधर जा, समय को पहचान.. और दंभ छोड कर शांति से रह और दूसरों को भी रहने दे. वर्ना जनता तुझे यों ही दुल्लतियायेगी. और सुन जब तक हमारा विवेक साथ देता रहेगा तब तक तू कुछ भी नही बिगाड सकता।
ReplyDeleteरमलु सियार और संतु गधेड़ा दोनु शेर का भी बाप निकळ्या। शेर रह गया मुरख का मुरख, दुल्लती भी खाई नाक भी तुड़वाई और जात-मरजाद भी गंवाई। ताऊ जी यो तो सरकस सा शेर लाग्या मन्ने तो।
संतू गधा और रमलू सियार सही सीख दे गये!!
ReplyDelete’दंभ छोड कर शांति से रह और दूसरों को भी रहने दे. वर्ना जनता तुझे यों ही दुल्लतियायेगी. ’
और खन्ना...३० सालों बाद आया है, आप बाह्य आवरण से ही अपनी विचारधारा बना कर चले आये...मेरे हिसाब से मिलना जरुर था आपको!!
@समीर जी ,ताउ जी के सब्र की परीक्षा ले रहे हैं या लेखन कौशल की?
ReplyDeleteदिन तय कर लीजीए ..एक दिन गंभीर देवी की स्तुति का एक दिन हास्य देवी का...
ReplyDeleteBALANCE RAHEGA!
दोनो तरह का लेखन...बढ़िया!
वाह ताऊ जी !
ReplyDeleteआज तो लगता गंभीरी व मुस्कान दोनों देवियों को प्रसन्न कर दिया | दोनों ही रचनाएँ एक से बढकर एक |
रमलू सियार बोला - अबे शेर...हम तो वक्त के गुलाम हैं...और वक्त कभी ठहरता नही है..जो हम ठहर जायें? मैं तो कहता हूं ..तू सुधर जा, समय को पहचान.. और दंभ छोड कर शांति से रह और दूसरों को भी रहने दे. वर्ना जनता तुझे यों ही दुल्लतियायेगी. और सुन जब तक हमारा विवेक साथ देता रहेगा तब तक तू कुछ भी नही बिगाड पायेगा.
रमलू सियार ने यह बात सोलह आने सही कही | एकदम ज्ञान वर्धक | फिर भी लोग ना समझे तो उनका भगवान् ही मालिक
हर साल इन लोगों द्वारा रबर के टायरों को जलाकर पूरी सर्दी मनाई जाती है?......
ReplyDeleteबहुत ही गहरी सोचने को मजबूर कर गई आपकी बात ...... क्या है असली लौहरी ..........
ताउजी गजब का चेपा हा हा . लड्डू संक्राति की बधाई .
ReplyDeleteवाह ताऊ जी,पिछली पोस्ट में तो गंभीर लेखनी की बात की और इस बार लिख भी दी!वास्तव में हम त्योंहार खुशियों के लिए मनाते है वही वे गरीब बिचारे जीवन बचाने के लिए जतन करते है...
ReplyDeleteअरे वाह. दोनों ही बहुत बढ़िया हैं. अब तो त्यौहार ऐसे ही हो गये हैं. आखिर हम भी माडर्न हो गये हैं.
ReplyDeleteshukriyaa taau ji...
ReplyDeletecomment ke liye..
ताऊ एक बात बताऊ ""खन्ना"" जैसे बहुत से लोग जब वतन वापिस आते है,टिकट लेने से रास्ते भर सुनहरे सपने देखते है, अपनो के... ओर जब टेकसी से घर आते है तो सडक के दोनो तरफ़ देखते है सब कुछ पहले जेसा ही तो है, कुछ नही बदला... लेकिन जब वो खन्ना अपनो मै आता है तो सर घुनने लगता है क्यो आया वो इतना खर्चा कर के... यहां अपना तो कोई बचा नही..... सब ड्रामे वाज बचे है ओर उस समय बेगानो से कम अपनो से ज्यादा डर लगता है.
ReplyDeleteताऊ बहुत ही जबरदस्त लिखा पर आप खन्ना साहब से बिना मिले क्यूं आगये? इसका क्या राज है? कुछ तो बात जरुर है. क्या यह भी कोई जासूसी कहानी जैसी ही है?
ReplyDeleteयानि सियार ने शेर को निपटा डाला? देखना ये सियार बच नही पायेगा?:)
ReplyDeleteपानी मे रहकर मगर से बैर कर रहा है. भगवान भली करे...पर क्या पता ये भी ताऊ का सियार है तो कहीं शेर को ही कुएं मे ना धकेल दे?:)
संतू गधा इस अनहोनी से बेखबर मस्ती में...परबत परबत..बस्ती बस्ती..गाता जाये बंजारा..लेकर ताऊ का इकतारा... गाता हुआ चला जारहा था.
ReplyDeleteवाह ताऊजी लास्ट पंच तो गजब का रहा..सही है कि आदमी को विपत्ति मे धैर्य नही खोना चाहिये.
बहुत उत्तम सीख.
संतू गधा इस अनहोनी से बेखबर मस्ती में...परबत परबत..बस्ती बस्ती..गाता जाये बंजारा..लेकर ताऊ का इकतारा... गाता हुआ चला जारहा था.
ReplyDeleteवाह ताऊजी लास्ट पंच तो गजब का रहा..सही है कि आदमी को विपत्ति मे धैर्य नही खोना चाहिये.
बहुत उत्तम सीख.
आज तो सचमुच मामला गंभीर है।
ReplyDeleteअब पता चला की कैसे रूठ कर घर लौट आये।
संक्रांति के दिन जाना ही नहीं चाहिए था, सुधा बेलचा ओह सॉरी सुधा खन्ना के घर।
अब इस शहर में कोई किसी को नहीं मनाता।
राम राम।
ताऊ इतना गम्भिरिया भी सकते हैं ...कभी सोचा नहीं था ... गंभीरता देवी और मुस्कान देवी को बहुत बहुत धन्यवाद जो ताऊ के दोनों रूप एक साथ देखन को मिले ...
ReplyDeleteटायर जलाकर लोहड़ी मानते हर नुक्कड़ पर नजर आ जाते हैं ....उन्ही ऊँची हवेलियों के बीच जो हरदम हीटर से गर्म रहती हैं फिर भी ठण्ड का सबसे ज्यादा असर उन पर ही होता है ...!!
खन्ना परिवार बहुत कुछ सोचने को मजबूर करता है ! क्षीण होते पुराने मूल्यों के साथ हमें बदलना होगा ताऊ !
ReplyDeleteसादर
यही है मज्झम निकाय
ReplyDeleteकर दिया आपने बैलेंस बराबर गंभीरदेवी और मुस्कान देवी का
आपको चरण-स्पर्श कर रहा हूं
अपने बारे में निर्णय लेना हमेशा कठिन होता है
ReplyDeleteताऊ ( स..) तेरे कितने रूप
वाह!!! आप तो आप हैं जो हर रंग में पाठक को रंग देते हैं !!! बात लेखन की नहीं बात है है आपकी आत्मा की जो इतनी सशक्ति से लिखती है की पाठक के मन पे असर छोड़ जाती है !!!!
ReplyDelete"दिल से जो आवाज निकलती है असर रखती है|
पर नहीं ताकते परवाज़ मगर रखती है!!!