कुछ लोग वाकई जीवन मे बहुत ही ज्यादा कुंठित या हीन भावना से ग्रसित होते हैं. उन्हे लगता है कि उनकी उपेक्षा होरही है. वो लिखते कुछ नही हैं. पर उनको अटेंशन पूरी चाहिये. वो कमेंट मे क्या लिख रहे हैं? शायद उनको भी नही मालूम. यानि किसी भी विषय पर बहुत ही घटिया कमेंट करना इनका शगल होता है. पिछले सप्ताह ऐसा ही एक घटिया कमेंट एक ब्लागर को मिला. वो बडे दुखी थे. पोस्ट हटा लेने की बातें करने लगे. यहां तक की नौबत आगई तो आप समझ सकते हैं कि बात किस हद तक चुभने वाली रही होगी?
इस संबंध मे हमको बुद्ध की एक घटना याद आती है. उनके भ्रमण के दौरान वो कुरु प्रेद्श मे भ्रमण रत थे. वहां लोगों ने उनको परेशान करना शुरु कर दिया. बुद्ध चूंकी बुद्धत्व को प्राप्त हो चुके थे. अत: उन पर इन बातों का कोई असर नही होता था. पर उनके शिष्य बडे आहत थे. उनके प्रधान शिष्य आनंद ने उनसे कहा कि भगवन यहां से चलिये. यह प्रदेश हमारे विचरण लायक नही है.
बुद्ध ने पूछा - फ़िर कहां जाओगे? आनंद बोला - हम अन्य ले प्रदेश मे चले जायेंगे. बुद्ध फ़िर पूछते हैं कि अगर वहां भी ऐसा ही हुआ तो क्या करोगे?
स्वाभाविक रुप से आनंद निरुत्तर हो गया. तब बुद्ध बोले - आनंद, इस जीवन मे तुम जहां भी जाओगे, वहीं पर ये ही लोग मिलेंगे. इनसे पलायन करना इसका उपाय नही है. इनका मुकाबला करो. हम अपने तरीके से इनका मुकाबला करेंगे.
तो यहां भी यही बात लागू होती है कि पलायन करके हम यहां से भी कहां जायेंगे? बेहतर है इन कुंठित और लुंठित लोगों का सामना किया जाये. गल्ती वो कर रहे हैं तो उसकी सजा आगे पीछे वही भोगेंगे.
आपका सप्ताह शुभ हो.
-ताऊ रामपुरिया
इधर बहुत चर्चा मे रहा कि लेखन प्रक्रिया क्या हो? बहुत शोध किया, सोचा, विचार और चिन्तन किया और जो निष्कर्ष निकला वो आपको बताता हूँ. मानना न मानना हमेशा की तरह ही आपका अधिकार क्षेत्र है. मुझे लगता है कि लेखन के प्राणतत्व अध्यन, पठन, मनन और चिन्तन है. चिन्तन कर ज्ञान को आत्मसात करना लेखन की शुरुवात है. फिर लेखन हेतु भी कुछ नियम ज्ञानियों ने दिये हैं जो एक अच्छे और सुघड़ लेखन के परिचायक है: इस नियम के अनुरुप अच्छे आलेख का क्रम कुछ यूँ बनता दिखता है: प्रस्तावना: क्या और किस विषय पर लिखा जा रहा है. विवेचना: इस विषय पर क्या सोच कर लिखा गया है अब तक. विश्लेषण: विषय पर उपलब्ध जानकारी का क्या अर्थ है आपकी नजरों में. निष्कर्ष: आपकी समझ से क्या अर्थ निकाला जाना चाहिये. उपसंहार: जानियों और आपके विश्लेषण के आधार पर क्या सार तत्व निकला इस विषय पर आपके अनुसार. यह एक आलेख लिखने की रुप रेखा हो सकती है. बाकी आप जोड़ घटा सकते हैं. भावों की अभिव्यक्ति के लिए भाषा की पकड़ एक मूल तत्व है जो अध्ययन द्वारा अर्जित की जा सकती है. अध्ययन ही इस प्रक्रिया का द्वार है, उसके बिना सब थोथा है. अच्छा या बुरा, पठन और अध्ययन ही प्रमाणिकता के चरम पर ले जायेगा और अगर किसी का पठन किया है, उससे कुछ सीखा है तो लेखक का शुक्रिया अदा करने का समय निकलना न भूलना टिप्पणी करके. :) मैं दर बदर से गुजरता रहा... चुप!! बस हरदम चुप ही रहा!!! -समीर लाल 'समीर' |
केरल- 'God 's own country ' आज हम आप को जहाँ ले कर आये हैं वह भारत की दक्षिण पश्चिम सीमा पर स्थित है. जब हम यहाँ घूमने गए थे तब मुझे इस जगह ने बहुत प्रभावित किया -इस के ठोस कारण हैं एक-यह जगह इतनी हरी भरी है कि आप खुद को प्रकृति के बहुत नज़दीक पाएंगे.और इस स्थान को देव भूमि क्यूँ कहा जाता है समझ आ जायेगा. यहाँ की मिटटी लाल बालू है.कई जगह तो लोग नंगे पाँव भी चलते नज़र आ सकते हैं. दूसरा बड़ा कारण यहाँ के लोगों का मिलनसार और मदद को तत्पर स्वभाव ,मुझे भाषा की कहीं कोई समस्या नहीं हुई. लगभग सभी हिंदी समझते हैं और थोडा बहुत बोल भी लेते हैं [ज्ञात हो केरल के स्कूलों में हिंदी पांचवी कक्षा तक जरुरी विषय है.]जब कि मेरे अनुभव के अनुसार हिंदी भाषा के विषय में तमिलनाडु में स्थिति कुछ भिन्न है. हाँ ,और एक कारण है कि मुझे खाने पीने के लिए उत्तर भारतीय खाना आराम से मिल गया..मेनू में 'परांठे 'का नाम जरुर 'बरोटा 'लिखा देख कर जरुर हंसी आई... क्लू की एक तस्वीर में केले के पत्ते पर समूह को खाना खाते दिखाया गया है वह 'ओणम पर्व 'पर परोसे जाने वाला ख़ास भोजन है जिस में ६४ प्रकार के व्यंजन दिए जाते हैं.चावल के आटे से बने अडा' की खास खीर भी होती है.'ओणम पर्व क्या है यह कभी और विस्तार में बताएँगे. दूसरे क्लू में यहाँ होने वाली प्रसिद्ध नौका दौड़ का चित्र दिखाया गया था. तीसरे क्लू में केरल के परम्परागत नृत्य का चित्र दिखाया गया था. मुख्य पहेली में जिस स्थान के बारे में पूछा गया था वह थी-चेरमान जुमा मस्जिद केरल पर मैंने बहुत ही संक्षेप में अधिक जानकारी देने का प्रयास किया है. अब जानते है इस खूबसूरत प्रदेश के बारे में - केरल की सीमा जहाँ एक और अरब सागर को छूती हैं तो दूसरी और पडोसी राज्य तमिलनाडु और कर्णाटक को. अरब सागर में केंद्र शासित राज्य लक्षद्वीप के साथ भी इस का भाषाई और सांस्कृतिक सम्बन्ध है.आज़ादी से पूर्व यहाँ राजाओं की रियासतें थीं.जुलाई 1949 में तिरुवितांकूर और कोच्चिन रियासतों को जोडकर 'तिरुकोच्चि' राज्य का गठन किया गया. उस समय मलबार प्रदेश मद्रास राज्य (वर्तमान तमिलनाडु) का एक जिला मात्र था . नवंबर 1956 में तिरुकोच्चि के साथ मलबार को भी जोडा गया और इस तरह वर्तमान केरल की स्थापना हुई.यहाँ की भाषा मलयालम है . इतिहास- केरल की उत्पत्ति के संबन्ध में पुराणिक कथा प्रसिद्ध है . कहते हैं कि महाविष्णु के दशावतारों में से एक परशुराम ने अपना फरसा समुद्र में फेंक दिया था उससे जो स्थान उभरकर निकला वही केरल बना . केरल को 'भगवान का अपना घर' भी कहा जाता है. कहा जाता है कि "चेर - स्थल", 'कीचड' और "अलम-प्रदेश" शब्दों के जोड़ से केरल शब्द बना है. केरल शब्द का एक और अर्थ है : - वह भूभाग जो समुद्र से निकला हो . समुद्र और पर्वत के संगम स्थान को भी केरल कहा जाता है. प्राचीन विदेशी यायावरों ने इस स्थल को 'मलबार' नाम से भी सम्बोधित किया है. यहाँ की संस्कृति हजारों साल पुरानी है.महाप्रस्तर स्मारिकाएँ (megalithic monuments) केरल में मानव जीवन की प्रामाणिक जानकारियाँ देती हैं . केरल प्रान्त में इसाई धरम पहली शताब्दी में आया. उस से पहले यहाँ ब्राह्मण थे. यहाँ जैन और बोद्ध धरम का भी प्रचार हुआ.अरबवासियों के साथ व्यापर के कारण आठवी शताब्दी में यहाँ इस्लाम का आगमन भी हो गया. यहाँ के उत्सव-: ओणम यहाँ का राज्योत्सव है, जिसे सभी धरम के लोग प्रेम और श्रद्धा से मनाते हैं. इस के अलावा प्रमुख हिन्दू त्योहार हैं - विषु, नवरात्रि, दीपावली, शिवरात्रि, तिरुवातिरा आदि . मुस्लिम पर्व- रमज़ान, बकरीद, मुहरम, मिलाद-ए-शरीफ आदि हैं तो ईसाई क्रिसमस, ईस्टर आदि मानते हैं . कुछ और मिली-जुली जानकारियां- -WHO ने इस राज्य को विश्व का पहला 'baby friendly रज्य घोषित किया था-यहाँ ९५% बच्चे अस्पताल में जन्म लेते हैं. -९१% साक्षरता है. -यहाँ का आयुर्वेद इलाज विश्व भर में लोकप्रिय है. -केरल में कुल 44 नदियाँ है और अनेकों झील झरने जल प्रपात हैं. विश्व भर के पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र यहाँ का उष्ण मौसम, प्रकृति, जल की प्रचुरता, सघन वन, लम्बे समुद्र तट हैं. -हर क्षेत्र में उन्नत्ति कर रहा यह राज्य साक्षरता में सबसे आगे है. -अभी तक मैंने कई हिंदी भाषी प्रदेशों की अधिकारिक वेब साईट देखीं मगर अफ़सोस कि वे सभी सिर्फ अंग्रेजी में हैं सिर्फ एक इसी राज्य की साईट मुझे हिंदी समेत ७ भाषाओँ में मिली. -'कळरिप्पयट्टु' केरल की प्रान्तीय आयुधन कला है. -यहाँ की धार्मिक कलाओं में मंदिर कलाएँ और अनुष्ठान कलाएँ आती हैं . मंदिर कलाओं मेंकूत्तु, कूडियाट्टम्, कथकळि, तुळ्ळल, तिटम्बु नृत्तम्, अय्यप्पन कूत्तु, अर्जुन नृत्तम्, आण्डियाट्टम्, पाठकम्, कृष्णनाट्टम्, कावडियाट्टम आदि प्रमुख हैं- इसके अंतर्गत मोहिनियाट्टम जैसा लास्य नृत्य भी आता है. -कथकली के बारे में संक्षेप में-- भारतीय अभिनय कला की नृत्य नामक रंगकला के अंतर्गत कथकली की गणना होती है . रंगीन वेशभूषा पहने कलाकार गायकों द्वारा गाये जानेवाले कथा संदर्भों का हस्तमुद्राओं एवं नृत्य-नाट्यों द्वारा अभिनय प्रस्तुत करते हैं . इसमें कलाकार स्वयं न तो संवाद बोलता है और न ही गीत गाता है .गायक गण वाद्यों के वादन के साथ आट्टक्कथाएँ गाते हैं . कलाकार उन पर अभिनय करके दिखाते हैं . -केरल की अधिकारिक साईट के अनुसार-वर्ल्ड ट्रेवल एण्ड टूरिज़्म काउंसिल (WTTC) द्वारा सन् 2002 में प्रकाशित टूरिज़्म सेटलाइट एकाउण्ड (TSA) के अनुसार आगामी दस वर्षों में वैश्विक स्तर पर सर्वाधिक पर्यटकों के आगमन तथा अधिक विदेशी मुद्रा प्राप्ति और पर्यटन विकास में केरल का स्थान सर्वोपरि होगा . कहाँ घूमे ? यहाँ १४ जिले हैं--कण्णूर ,कोष़िक्कोड ,कासरगोड ,मलप्पुरम ,इडुक्कि ,तिरुवनन्तपुरम [केरल की राजधानी] आलप्पुष़ा ,कोल्लम ,कोट्टयम ,पत्तनमतिट्टा ,एरणाकुलम ,वयनाडु ,पालक्काड ,तृश्शूर इन सभी जिलों में में आप को कुछ न कुछ जगहें दर्शनीय मिल जाएँगी.जब आप केरल घूमने जाएँ तो थोडा समय ले कर जाएँ ताकि इस प्रदेश का ज्यादा से ज्यादा आनंद उठा सकें. हम आप को ले कर आये हैं त्रिस्सुर जिले में- कब जाएँ--जून से सितम्बर में वर्षा काल होता है, कभी कभी बहुत अधिक वर्षा होती है जो आप के प्रोग्राम में बाधा बन सकती है.इस लिए इस समय के अलावा आप कभी भी वहां घूमने जा सकते हैं. अब बताती हूँ--चेरमान जुमा मस्जिद के बारे में- दुनिया की दूसरी सबसे पुरानी और भारत की सबसे पुरानी पहली मस्जिद का नाम है चेरमान जुमा मस्जिद. हम में से अधिकतर यही जानते हैं कि इस्लाम बाबर या गजनी के आने के साथ इस देश में आया.मगर नहीं ऐसा नहीं है.उस से पहले ही इस्लाम,दक्षिण समुद्री तट पर समुद्र के रास्ते आने वाले सौदागरों के द्वारा हमारे देश में अपना प्रभाव डालने लगा था. इस का उदाहरण है यह मस्जिद. जो भारत के दक्षिण में स्थित राज्य केरल के जिला त्रिस्सुर से ३७ किलोमीटर दूर 'कोदुन्गल्लुर' में स्थित है.केरल की अधिकारिक site के अनुसार इसका निर्माण सन् ६२९ में हुआ था.[ प्रोफेट मोहम्मद के मदीना चले जाने के ७ साल बाद]. यह पहले लकडी की बनी हुई थी.हाल ही में इस का पुनरुद्धार किया गया जिसमें कंक्रीट की मीनारें भी जोड़ दी गयी हैं.जो आप को पहले के इस के चित्र में दिखाई नहीं देंगी. यह मस्जिद हिन्दू मंदिर की शैली में निर्मित है.इस के मध्य भाग में १००० सालों से एक दीप रखा हुआ है.जिसे आज भी परम्परागत जलाया जाता है.यह 1000 साल से लगातार बिना बुझे जलता आ रहा है.इसमें कोई भी धरम का व्यक्ति तेल डाल सकता है.[?] किसने बनवाया?-- साउदी [जेद्दाह ]के राजा जब केरल आये तब उन्होंने एक मस्जिद बनानी चाही जिसमें राजा चेरमन पेरूमल ने पूरी मदद दी. 'अरथाली मंदिर' को मस्जिद बनाने के लिए चुना गया. राजा के नाम पर इस का नाम चेरमान जुमा मस्जिद पड़ा.राजा चेरमान ने साउदी अरब के मक्का जा कर अपना धरम परिवर्तन किया और इस्लाम अपना लिया और नाम बदल कर थाजुद्दीन रख लिया था. सउदी अरब के [जेद्दाह के] इस राजा की बहन से उनकी शादी भी हो गयी.वाह पहले भारतीय थे जिहोने इस्लाम धरम अपनाया. भारत वापसी में उनकी सलालाह[ओमान का एक भाग] में मृत्यु हो गयी.उसके बाद उनके अनुयायी मालिक बिन दीनार और मालिक बिन हबीब ने उत्तरी केरल जा कर इस्लाम का प्रचार किया. 'जुमा की नमाज़' भारत में सब से पहले यहीं से शुरू हुई.यही एक ऐसी मस्जिद भी है जहाँ किसी भी धरम के लोग जा सकते हैं. इसमें लगा काला संगमरमर का पत्थर मक्का से लाया गया बताया जाता है.इस के अन्दर दो tomb हैं एक बिन दीनार की और दूसरी उसकी बहन की ! उनपर रोजाना अगरबत्ती-धूप जलाई जाती है. राजा चेरमान के वंशज आज भी केरल में वहीँ हैं . वे हिन्दू धरम को ही मानते हैं. मगर अपने पूर्वज राजा चेरमान पेरूमल के धरम परिवर्तन को पूरा samman देते हैं.राजा चेरमान के वंशज ८७ वर्षीय राजा वालियाथाम्पुरम से विस्तार से इस लिकं पर जा कर जानिए-http://www.iosworld.org/interview_cheramul.htm यह मस्जिद अपने आप में सभी धर्मों के मेल जोल और सहिष्णुता की एक मिसाल है. यही एक ऐसी मस्जिद भी है जो पूरब की तरफ है. यहाँ हिन्दू रिवाज़ बच्चों का' विद्या आरम्भं' भी करवाया जाता है. ------------------------------------------------------------------------------------------------------------------ इस के अतिरिक्त तृश्शूर [thrissur ] पहुँच कर आप ये जगहें भी देख सकते हैं- 1-अतिरप्पळ्ळि और वाष़च्चाल 2-केरल कलामण्डलम 3-कोडुंगल्लूर ४-सेंट थॉमस चर्च ५-चिम्मिणि ६-ड्रीम वर्ल्ड अतिरप्पळ्ळि ७-पीच्ची - वाष़ानि वन्यजीव अभयारण्य ८-पुन्नत्तूरकोट्टा ९-पूरातत्त्व संग्रहालय १०-शक्तन तंपुरान महल कोट्टारम ११-सिल्वर स्टोम एम्यूज़मेंट पार्क १२-गुरुवायूर मंदिर (२९ km थ्रिस्सुर से दूर] यह केरल की बहुत ही महत्वपूर्ण पावन जगह है .यहाँ का मुख्य आकर्षण भगवान कृष्ण का मंदिर है. -इस के साथ ही केरल की सैर समाप्त करते हैं और बढ़ते हैं किसी दूसरे राज्य की तरफ एक नए स्थान के बारे में जानने के लिए...तब तक के लिए नमस्कार |
शादी की ड्रेस ऐसी भी! चीन में एक दम्पती ने शादी के दिन ऐसी ड्रेस पहनी, जिसकी कोई कल्पना भी नहीं कर सकता। यह ड्रेस ऐसी थी कि दूल्हा और दुल्हन तो एक दूसरे से करीब थे, लेकिन सारे बाराती उनसे कई मीटर की दूरी पर थे। कारण यह था कि दोनों ने मधुमक्खियों को अपनी शादी का लिबास बना लिया था। वर ली वेनहुआ और वधू यान होंगजिया दोनों का पेशा मधुमक्खी पालन ही है। वे उत्तरी चीन के निंगायन शहर के एक बगीचे में काम करते हैं। ली का कहना है कि उन्हें मधुमक्खियों से प्यार है, इस वजह से उन्होंने शादी में कुछ अलग करने की सोची। साथ ही वे अपने शरीर पर सबसे ज्यादा मधुमक्खियां धारण करने का रिकॉर्ड भी बनाना चाहते थे। इसलिए दोनों ने अपने शरीर पर रानी मक्खी को रखा और उसके बाद दूसरी मधुमक्खियों ने उन्हें घेर लिया। समस्या यह है कि मधुमक्खियों को गिना नहीं जा सका, इस कारण उनके रिकॉर्ड को मान्यता मिलेगी या नहीं यह स्पष्ट नहीं है। अगले हफ्ते फिर मुलाकात होगी.. तब तक के लिए हैपी ब्लॉगिंग। |
प्रेरणात्मक कहानी एक बार कुछ व्यक्तियों का एक समूह था, जिसमे - एक युवा उत्साही आदमी और कुछ बुजुर्ग लोग शामिल थे जो , एक जंगल में लकड़ी काटने का काम करते थे . वो नौजवान बेहद महेनती था और अपने दिन के खाने इत्यादि के अवकाश मे भी काम करता रहता था और उसे हमेशा ये शिकायत रहती थी की ये बुजुर्ग लोग आपना समय ज्यादा इधर उधर बर्बाद करते हैं, कभी खा पी कर कभी यहाँ वहां की बाते कर के. उसने यह भी महसूस किया की सारे दिन काम करने के बाद भी दुर्भाग्य से उसके काम के परिणाम कुछ अच्छे नहीं थे . एक दिन उनमे से एक बुजुर्ग आदमी ने उस नौजवान को दोपहर में खाने के समय आमंत्रित किया , तो गुस्से में वह नौजवान बोला की मेरे पास व्यर्थ समय नहीं है, मुझे काम करना है. इस पर वह बुजुर्ग आदमी मुस्कुराते हुए बोला , की इस तरह अपनी कुल्हाडी की धार तेज किये बिना पेड़ को काटते रहना और भी ज्यादा अपना समय बर्बाद करना है. और ऐसा करते रहने से थोडी देर मे ही तुम थक कर ये काम बीच में छोड़ दोगे क्योंकि तुम अपनी बहुत सी ऊर्जा बर्बाद कर चुके होंगे. अचानक उस नौजवान आदमी को एहसास हुआ की असल मे खाने के दौरान जब वे बुजुर्ग लोग आपस में बात चीत करते थे , तब साथ साथ वो लोग अपनी कुल्हाडी की धार भी तेज किया करते थे , और इसी कारण से वे लोग अपना काम जल्दी करते थे और वो भी उससे कम समय में. तब उन बुजुर्गो ने उसे समझाया की अपने काम को करने के लिए हमे दक्षता की जरूरत होती है जो जिसे हम अपने कौशल और समझदारी से ही बढा सकते हैं, और कम समय में अधिक कार्य कर सकते हैं. और तभी हमे अपना कार्य करने के लिए भी अधिक समय मिल सकता है. वरना तुम हमेशा यही कहते रहोगे "मेरे पास समय नहीं है" कहानी का नैतिक मूल्य" किसी भी कार्य के दौरान एक छोटा सा ब्रेक यानी आराम करने से आप खुद को अच्छा महसूस करेंगे और योग्यता से सोच सकेंगे और बेहतर प्रदर्शन कर सकेंगे . कार्य के दौरान आराम करने का मतलब काम को रोकना नहीं है बल्कि उस काम को बेहतर करने की रणनीति को हर कोने से दुबारा सोचना होता है. |
नैनीताल के प्राचीनतम भवन नैनीताल का सेंट जोन्स चर्च नैनीताल की सबसे प्राचीनतम भवनों में से एक है। यह चर्च मल्लीताल में स्थित है। इस इमारत के निर्माण के लिये जगह का चुनाव सन् 1844 में कोलकाता के बिशप डेनियल विल्सन द्वारा किया गया था। इस चर्च का नाम भी उन्हीं के द्वारा किया गया था। इस इमारत का आर्किटेक्ट कैप्टन यंग द्वारा तैयार किया गया और अक्टूबर 1846 में इस इमारत का निर्माण कार्य शुरू किया गया। उस समय इस इमारत के निर्माण में करीब 15,000 रुपये का खर्च आया था। इसे पहली बार 2 अप्रेल 1848 को जनता के लिये खोला दिया गया जबकि उस समय भी यह चर्च पूरी तरह तैयार नहीं हुआ था। सन् 1856 में इसे सरकार द्वारा सार्वजनिक इमारत के रूप में अधिकृत कर लिया गया। उस समय से अभी तक चर्च में कुछ निर्माण कार्य और किये गये हैं। बाद के समय में इस चर्च में कुछ स्मारक बनाये गये हैं, जिनमें सन् 1880 में आये भयानक भूस्खलन में मारे गये लोगों और प्रथम विश्वयुद्ध (1914-1918) में शहीद हुई इंडियन सविल सर्विस के सैनिकों के स्मारक हैं। यह इमारत आज भी नैनीताल की शान बनी हुई है। |
दाल-बाटी-चूरमा "स्वाद राजस्थान का", इस क्रम मे पुर्व सप्ताह "दाल-ढोकली" बनाकर खाने का मजा लिया था। राजस्थान रन्गबिरन्गा प्रदेश है। यह भॉति-भॉति के रीत-रिवाज, तरह तरह के आकर्षक खाने के लिये भी जाना जाता है। शायद आप पर्यटक के रुप मे जब भी जयपुर जाते है, तो चोखी-ढाणी जाकर दाल-बाटी-चूरमा खाने को मन जरुर करता है. देश विदेश मे प्रसिद्ध दाल-बाटी-चूरमा हम उन लोगो के लिए बताने जा रही हू जो राजस्थान से दुर बैठे-बैठे घर पर ही दाल-बाटी-चूरमा बना कर चोखी-ढाणी जयपुर जाने का अहसास कर भर ले. 10-12 व्यक्तियो के लिए दाल सामग्री 500 gm. मूग की दाल {छिलका वाली} 100 gm. चने के दाल 100 gm. उडद की दाल ( इच्छा हो तो ) 100 gm. मूग की दाल {पीली दाल} 1/2 छोटा चम्मच हल्दी पाउडर 1 छोटा चम्मच लालमिर्च पाउडर 5 कलिया लहसुन 1 छोटा चम्मच जीरा 2 छोटा चम्मच गरम मसाला थोडा कडी पत्ता, थोडी सी कटी धनियापत्ती बनाने की विधि:- दालो को धो कर हलदी, नमक डालकर उबाल ले. दाल गल जाए तब फ़्राइन्ग पैन मे घी गरम कर के जीरा, करीपत्ता, व लहसुन का तडका लगाऎ,मिर्च और गरम मसाला डाले, धनियापत्ती से सजाए। बाटी सामग्री 1 KG. गेहू का आटा 300 gm. वनस्पति घी 100 gm. दही 300 gm. पानी 100 gm. देशी घी 5 gm. अजवाईन 5 gm. सोफ़ 3 gm. साबूतधनिया नमक स्वाद अनुसार, एवम तलने के लिए घी { आप चाहे तो तेल भी ले सकते है }. बनाने की विधि:- आटा, हलदी, नमक, अजवाइन, धनिया, वनस्पति घी,पानी, दही और सोफ़ मिलाइए, व अच्छी तरह आटे को सख्त गून्धे ले। गून्धे हुए आटे की छोटी-छोटी गोल बाटीया {लड्डू के आकार मे} बानाऎ. एक भगोले मे पानी उबाले. व उस मे बाटीया डाल कर 20 मिनट उबाले. कडाही मे घी गरम करे. और बाटियो को तल ले। देशी घी मे डूबोकर दाल के साथ सर्व करे. साथ मे अचार प्याज पापड या खिचिया हो तो खाने का कुछ और ही मजा है. इसे आप दाल के साथ चूर कर साथ मे आचार मिलाकर भी खा सकते है. नोट-; अगर बाटी को घी मे नही तलना हो तो आप इसे ऒवन मे पक्का सकते है बाद मे घी मे डूबोकर या कम घी लगाकर खा सकते है. चूरमा सामग्री-: 500 gm. गेहू का मोटा आटा 200 gm. वनस्पति घी 200 gm. गुड 1 बडा चम्मच देशी घी (उपर से डालने के लिए) थोडे से ड्राई फ़्रूट, नमक स्वाद अनुसार बनाने की विधि:- आटे मे नमक व पिघला हुआ वनस्पती घी मिलाए और कडा गून्ध कर छोटी-छोटी गोलिया बना ले. कडाही मे घी (या तेल) गरम करे, व उसमे गोलिया तले. गोलिया ठण्डी कर के पीस ले उसमे बारीक पीस कर गुड मिलाए. फ़िर ड्राई फ़्रूट बारीक काट कर मिलाए. अब घी मिलाए और गरम गरम सर्व करे. ****** ****** चुरमा बनाने मे ड्राईफ़्रूट चाहिए थे. किचन मे ड्राईफ़्रूट की बर्नियो के पास पहुची तो काजू, बदाम, पिस्ता, सभी खूश दिख रहे थे. मेने इसका राज पुछा तो -"पिस्ताबाई", "बादाम बाई", "और काजू भाई" एक साथ बोले-" भाभीजी आज हम बर्नी से बहार निकल कर "चूरमा जी" के सग जा मिलेगे, और चुरमाजी की शान बढाएगे इसलिए हम खुश है!" पास की बोतल मे अखरोट जी बडे मायूस लग रहे थे. अखरोट कहता है -"पता है! पता है! आप मेरे को चूरमे मे नही मिलाएगे, बडे-बुजर्ग तो मुझे खाने से कतराते है, जैसे उनके दॉत मैने गिराए हो!" "अरे भाई गुस्सा मत हो- मै तो तेरे से प्यार करती हू ना !" मैने उससे आगे पूछा-~ चल तू ही बता तेरे को खाने से लोगो का क्या भला होगा ?" तब अपने मस्तिष्क रेखाफ़ल को उपर निचे करते हुऎ अखरोट कहता है -" भगवान ने मेरी रचना बिल्कुल मानव मस्तिष्क की अनुकृति कि है. मेरे मे ऎसे *तत्व भरे पडे है जो मानव मस्तिष्क को सन्तुलित एवम सक्षम बनाकर रख सकने मे सामर्थीय रखता हू. *अगर लोग मेरा प्रतिदिन 50 ग्राम से 250 ग्राम का सेवन करे तो उनकी स्मृति-भन्ग की शिकायत मै दुर कर दुगा. *मै आपको बता दे रहा हू मेरे पेड को बडा होने मे और फ़ल देने मे 30-40 वर्ष तक लग जाते है. *मेरे वृक्ष की छाल रन्गाई मे और दवाईयो मे काम आती है. मेरे डन्ठल और पत्तिया जानवरो के काम आती है. *अगर कोई मेरा (अखरोट) तेल सुबह सुबह 20gm. से 40gm. तक प्रात:काल दूध के साथ लेने से पेट मुलायम और साफ़ रहता है. *मेरे से वात और पित्त दोनो ही डरतॆ है. मै मानव जीवनी का शक्ती बढाने मे एक अमोध शस्त्र हू. जो भी कोई एक निशिचत मात्रा मे मेरा प्रतिदिन प्रयोग करेगा उसमे रोग का प्रादुर्भाव नही होने दुगा. यहा तक की आपकी भुल जाने की बिमारी को मस्तिष्क मे उत्पन ही नही होने दुगा." अरे! ठीक है, अखरोट भाई! अब मै तो रोज तुम्हारा सेवन करुगी ही "ताऊ डॉट इन" के भाई - बहनो को बताऊगी की वो तुम्हे भुले नही . अब अखरोट प्रसन्न दिख रहा था. अब आप मुझे आज्ञा दीजिए अगले सप्ताह फ़िर मिलेगे एक नऎ विषय के साथ तब तक नमस्कार! प्रेमलता एम सेमलानी |
सहायक संपादक हीरामन मनोरंजक टिपणियां के साथ.
अरे हीरू ..देख जरा ..देख…ये मुरारी अंकल को क्या हुआ? अरे पीरू क्यों बक बक करे जा रिया है? क्या होगिया? अरे देख ..देख मुरारी अंकल को भूत ने पकड लिया.. कहां..? अबे पेलवान जरा सोच समझकर बोला कर.. अरे तो क्या मैं झूंठ बोल रिया हूं…ले खुद पढ ले…यहां तो आशीष अंकल को भी रामप्यारी की क्लास मे भर्ती होने की सलाह है?
अरे हीरू ..चल निकल ले पेलवान..भौत घणी झमाझम बारिश शुरु हो री है.. हां..भिया चल जल्दी उड…घर भी पोंचणा हे कि नी? |
ट्रेलर : - पढिये : श्री अभिषेक ओझा से ताऊ की अंतरंग बातचीत
इस सप्ताह के गुरुवार शाम ३:३३ पर परिचयनामा में मिलिये श्री अभिषेक ओझा से ताऊ - अपने जीवन की कोई अविस्मरणीय घटना बतायेंगे? अभिषेक - जब फिरंगी लड़की ने हमारी हिंदी समझ ली, वो हमउम्र तथा बड़ों से दोस्ती जिसकी कोई मिसाल नहीं, वो प्रोफेसर साहब का दुबारा अपने घर पर रहने के लिए बुलाना, वो 'लडकियां' जिन्होंने प्रोपोज किया, प्रोफेसर साहब ने जिस दिन अपनी बेटी का रिश्ता दिया, अनेकों हैं... ताऊ के साथ एक बहुत ही दिलचस्प मुलाकात हमा्रे सम्माननिय मेहमान श्री अभिषेक ओझा से |
अब ताऊ साप्ताहिक पत्रिका का यह अंक यहीं समाप्त करने की इजाजत चाहते हैं. अगले सप्ताह फ़िर आपसे मुलाकात होगी. संपादक मंडल के सभी सदस्यों की और से आपके सहयोग के लिये आभार.
संपादक मंडल :-
मुख्य संपादक : ताऊ रामपुरिया
वरिष्ठ संपादक : समीर लाल "समीर"
विशेष संपादक : अल्पना वर्मा
संपादक (तकनीकी) : आशीष खण्डेलवाल
संपादक (प्रबंधन) : Seema Gupta
संस्कृति संपादक : विनीता यशश्वी
सहायक संपादक : मिस. रामप्यारी, बीनू फ़िरंगी एवम हीरामन
स्तम्भकार :-
"नारीलोक" - प्रेमलता एम. सेमलानी
ताऊ सम्पादकीय से मिला संदेश ग्रहणीय है और सारे स्तम्भ सुंदर
ReplyDeleteसमीर जी की सलाह हमने नोट कर ली है एक लेख लिखकर देखेंगे इसी के अनुसार !
ReplyDeleteआज का ये अंक हमेशा की तरह बहुत सुन्दर और ग्रहणीय है पूरे संपादक मंडल को इसके लिये बधाई और आभार्
ReplyDeleteबहुद उम्दा जानकारी ताऊजी की बुद्ध कहानी से बुद्धि विशाल करने की आवश्यकता है, श्री श्री १००८ महाराज समीरानंद के वचन शिरोधार्य हैं, केरल यात्रा का नांद अच्छा है मुझे भी यही गलत फहमी थी थी की तमिल नाडू में लोग हिंदी जानबूझ के नहीं बोलते, अल्पना जी ने संका का निवारण किया, आशीष जी की news तो बेहतर रहती है !! पता नहीं ये अशिस मियाँ कहाँ कहाँ कैमरा ले के घूमते रहते हैं , सीमा जी की प्रेरणा दायक कहानी बचों को जरुर सुनाउंगी बड़े तो मानते नहीं क्यूंकि पक्के घडे पे मट्टी नहीं चढ़ती , विनीता जी का "सेंट जोन्स चर्च " पर आलेख वाकई जानकारी में इजाफा करने वाला है | प्रेम लता जी का दाल बाटी चूरमा और अखरोट के साथ साक्षात्कार !! मुझे तो पता ही नहीं था की दाल बाटी बनाने में इतना लफडा है | हीरू मन बंधू टिप्पणी पे तडका लगाने के लियी बहुत बहुत आभार !! अभिषेक जी का इन्तेजार है साक्षात्कार के लिए !!
ReplyDeletebahut sundar patrika
ReplyDeleteबहुत उपयोगी जानकारी मिली, धन्यवाद
ReplyDeleteबहुत उपयोगी जानकारी मिली, धन्यवाद
ReplyDeleteसमीरलालजी सहित सभी की पोस्ट अति उत्तम हैं. आभार सभी का.
ReplyDeleteसमीरलालजी सहित सभी की पोस्ट अति उत्तम हैं. आभार सभी का.
ReplyDeletesundar patrika.aabhar
ReplyDeletebahut sundar prayas taauji
ReplyDelete"इस जीवन मे तुम जहां भी जाओगे, वहीं पर ये ही लोग मिलेंगे. इनसे पलायन करना इसका उपाय नही है. इनका मुकाबला करो. हम अपने तरीके से इनका मुकाबला करेंगे.
ReplyDeleteतो यहां भी यही बात लागू होती है कि पलायन करके हम यहां से भी कहां जायेंगे? बेहतर है इन कुंठित और लुंठित लोगों का सामना किया जाये. गल्ती वो कर रहे हैं तो उसकी सजा आगे पीछे वही भोगेंगे."
ताऊ जी!
आपकी इस पोस्ट से बहुत ब्लॉगर्स को सम्बल मिलेगा।
सलाह उड़नतश्तरी की, उपयोगी रही है।
"मेरा पन्ना" मे -अल्पना वर्मा जी ने
केरल का सुन्दर दिग्दर्शन कराया है।
आशीष खण्डेलवाल जी की दुनिया उनकी नजर से देखकर सुद लगा।
सीमा गुप्ता जी की कहानी प्रेरणदायी लगी।
सुश्री विनीता यशश्वी ने नैनीताल का सुन्दर दिग्दर्शन कराया।
प्रेमलता एम. सेमलानी जी का दाल-बाटी-चूरमा
बहुत पसन्द आया।
श्री अभिषेक ओझा से ताऊ की अंतरंग बातचीत
का इन्तजार है।
ताऊ आप लोग कितनी मेहनत करते हैं? वाकई बहुत मेहनत है इस काम में. सलाम है आपको और आपकी टीम को.
ReplyDeleteताऊ का संदेश और महाताऊ की सलाह दोनों ही मननयोग्य हैं। अल्पना जी ने भी हमेशा की तरह बेहतरीन जानकारी प्रदान की। आशीष जी, सीमाजी,वन्दना जी,प्रेमलता जी और दोनों नभचर बन्धुओं ने पत्रिका हेतु अपनी भूमिका का बहुत अच्छे से निर्वहण किया है।
ReplyDeleteधन्यवाद्!
ताऊजी! आपने भगवान बुद्ध का प्रेरणास्पद सन्देश के माध्यम से चिठ्ठाजगत को जो सम्बल प्रदान किया वो सरहानीय लगा। वास्तव मे हमे इन लोगो के बिच रहकर ही काम करना है तो डरकर या असन्तोषी मन के साथ पलायन करने की सोच को बदलना ही ऐसे गडबडी लोगो के लिए सबक होगा।
ReplyDeleteसुन्दर एवम पठनीय ताउनामा!
आभार/शुभकामनाओ सहीत
हे प्रभु यह तेरापन्थ
मुम्बई टाईगर
सभी को प्रणाम
ReplyDeleteताऊजी का आभार हौसलावर्धक ज्ञान के लिये
"पलायन करके हम यहां से भी कहां जायेंगे? बेहतर है इन कुंठित और लुंठित लोगों का सामना किया जाये"
ये तो मेरे लिये ही लिखा गया लगता है
"मैं दर बदर से गुजरता रहा...
चुप!! बस हरदम चुप ही रहा!!!"
आदरणीय समीर जी की सलाह पर अमल करने की कोशिश करूंगा।
धन्यवाद अल्पना जी का सुन्दर केरल की यात्रा और जानकारी कराने के लिये
आशिष जी कहां कहां से ढूंढ लाते हो अनोखी खबरें
सीमाजी की प्रेरणादायक कहानी के लिये आभार
"अब तो मैं भी अपने कार्य में गुणवत्ता ला सकता हूं"
नैनीताल का सेंट जोन्स चर्च तो मैंने भी देखा था, पर इतनी बातें इस चर्च के बारे में आज पता चली; धन्यवाद विनीता जी
दाल-बाटी कम पर चूरमा ज्यादा पसंद है मुझे, अब प्रेमलता जी से सीखकर सभी गैरराजस्थानी भी इस स्वादिष्ट पकवान को बिना जयपुर जाये खा सकेंगें । शुक्रिया जी
अरे हीरू ..चल निकल ले पेलवान..भौत घणी झमाझम बारिश शुरु हो री है..
हां..भिया चल जल्दी उड…घर भी पोंचणा हे कि नी?
लेखन प्रक्रिया के बारे मे समीरजी ने बहुत ही सुन्दर तरिके से समझाया। हम तो आज से ही इन बिन्दुओ पर अमल मे लाने की घोषणा करते है..
ReplyDeleteआभार/शुभकामनाओ सहीत
हे प्रभु यह तेरापन्थ
मुम्बई टाईगर
अलपनाजी ने चेरमान जुमा मस्जिद एवम केरला की भोगोलिक एवम पर्यटन सम्बन्धी जानकारी को बडी ही सुन्दर ढग से प्रस्तुत किया। अब तो कोची वाले शास्त्री अकल को सभी हिन्दी चिठाकारो को केरला घुमाने का आमन्त्रण दे देना चाहीऐ। भाई कोई केरला जाये या ना जाऐ मै तो शास्त्रीजी के केरला प्रदेश मे घुमने जा रहा हू।
ReplyDeleteआभार/शुभकामनाओ सहीत
हे प्रभु यह तेरापन्थ
मुम्बई टाईगर
आशीषजी खण्डेलवाल के तो क्या कहने हमेसा की तरह आज भी नई जानकारी पढने को बाध्य कर दिया। धन्यवाद सर जी!
ReplyDeleteआभार/शुभकामनाओ सहीत
हे प्रभु यह तेरापन्थ
मुम्बई टाईगर
Seemaजी Gupta, की शिक्षाप्रद बात,
ReplyDeleteसुश्री विनीताजी यशश्वी की नैनीताल के प्राचीनतम भवन की जानकारी, -प्रेमलताजी एम. सेमलानी के दाल बाटी चुरमा,एवम" मैं हूं हीरामन भाऊ" की टॉग खिचाई, सभी ने ताऊ डॉट ईन को और भी रोचक बना दिया। सभी को मेरा प्रणाम एवम धन्यवाद।
सोमवार के दिन रामप्यारी की की कमी महसुस होना लाजमी है, क्यो कि उससे हम सभी खुब लाड प्यार जो करते है। पर हम सभी जानते है बेचारी को ताऊ जैसा खडूस प्रिसिपल जो मिला है । सोमवार का एक ही दिन तो है जब रामप्यारी आराम करती है।
आभार/शुभकामनाओ सहीत
हे प्रभु यह तेरापन्थ
मुम्बई टाईगर
दाल बाटी चूरमा.
ReplyDeleteराजस्थानी सूरमा..
हमेशा सुनते थे.. आज पकाने की विधी भी पढ़ ली.. वैसे अगर सुविधा हो तो गोबर के कण्डे में बाटी पका कर खाये.. पैसा वसूळ हो जायेगा..
सीमा जी की सलाह से ब्रेक ले रहा हूं.. बाकी कमेंट ब्रेक के बाद..:))
महत्वपूर्ण जानकारियों से भरपूर यह पत्रिका मन को भा गयी
ReplyDeleteताऊ जी इस पत्रिका के बारे में जो भी कहा जाय कम है ,मेरी राय है अब सब कुछ छोड़ कर इस पत्रिका को ही नियमित करिये .अल्पना जी ने केरल के बारे में महत्त्वपूर्ण जानकारी दी है जो की एक स्थान पर नहीं मिल सकती .इसी तरह
ReplyDeleteआशीष खण्डेलवाल जी ,सीमा गुप्ता जी,सुश्री विनीता जी,प्रेमलता जी सभी नें रोचक जानकारी दी है.श्री अभिषेक ओझा से बातचीत का इन्तजार करते हुए इन लाइनों पर जरा गौर फरमाएं-
मैं दर बदर से गुजरता रहा...
चुप!! बस हरदम चुप ही रहा!!!
-समीर लाल 'समीर'
pehle se aakhari line ek saans mein padh li,shandar pratrika,ab tho ye aadat ban gayi hai.
ReplyDeleteएक और बेमिसाल अंक...
ReplyDeleteसीमा जी की कथा हमेशा की तरह प्रेरणा देती हुई...सरकार समीर तनिक उलझा गये अपने शेर से...ऊपर कहते हैं कि ट्प्पणी देकर लेखक को शुक्रिया कहें और नीचे शेर जड़ देते हैं "मैं दर बदर से गुजरता रहा/चुप!! बस हरदम चुप ही रहा!!!"
कुंठित और लुंठित लोगो को लुन्ठाने दीजिये.. आप तो इसी तरह बढ़िया सब्जी तरकारी लाकर शाम को समेटते रहिये.. :)
ReplyDeleteसंगीता जी की कहानी हमेशा की तरह धारधार है..
प्रेमलता जी की दी गयी रेसिपी को पढ़कर हमने तीन चार दिन पहले ही दाल ढोकली बनायीं है. जो बहुत अच्छी बनी.. और हमने ताऊ को फोन करके उन्हें धन्यवाद् कहने की अर्जी भी लगायी है..
इस बार दाल बाटी भी मजेदार रही.. ये तो हम अक्सर बनाते है.. वैसे आज दाल बाटी की जो विधि है. इसे बाफला बाटी कहते है.. एक और चीज़ जो शायद उनसे मिस हो गयी.. वो ये कि यदि बाटी ओवन में बनायीं जाए तो उसे उबालने की कोई जरुरत नहीं,,
वैसे बाटी में यदि जौ का आटा और सफ़ेद तिल मिला दिए जाए तो बाटी बड़ी जायकेदार बनती है..
बेमिसाल आयोजन
ReplyDeleteबेमिसाल आयोजन
ReplyDeleteबहुत उम्दा अंक. अल्पना जी के तो क्या कहने. आशीष जी, फिर विनिता जी देश दर्शन, प्रेम लता जी का अखरोट के विषय में ज्ञान, सब एक से बढ़ कर एक और फिर सीमा जी ने कहा है तो ब्रेक ले ही लेते हैं. :)
ReplyDeleteअभिषेक से बातचीत का इन्तजार!
बहुआयामी पत्रिका । समीर जी का आलेख तो जबर्दस्त रहा - कुछ अलग सा । और ताऊ का संदेश भी महत्तम ।
ReplyDeleteमहत्वपूर्ण जानकारियों से भरपूर पत्रिका |
ReplyDeleteसमीरजी के ठोस सुझाव..केरल का भ्रमण ..सीमाजी की सीख...आशीषजी की ड्रेस ...नैनीताल का चक्कर ...प्रेमलता जी की दाल बाटी ...सावन की बेहतर सौगात है आपकी पत्रिका ...धन्यवाद ..!
ReplyDeleteसम्पादकीय की बोधकथा ...अनुकर्णीय सन्देश ..!!
ReplyDeleteहमेशा की तरह बहुत सुन्दर अंक...बहुत उपयोगी जानकारी मिली...सम्पादकीय लाजवाब...
ReplyDeleteवाह... वाह-वाह... वाह-वाह-वाह....
मस्त है ताऊ...
ReplyDeleteमीत
आज तो दाल-बाटी ही बनेगा.
ReplyDeleteसम्पादकीय प्रभावी है..सामयिक भी.ऐसे लोगों से बहस न ही की जाये तो बेहतर है.
ReplyDelete@समीर जी अगर सिर्फ धन्यवाद लिख कर आयेंगे तो कई बार इसे लेखक अपनी तौहीन मानने लगते हैं.लेकिन आप को धन्यवाद.
**शादी के इस लिबास की तो हद्द है..कैसे कैसे आईडियाआते हैं logon ko bhi.
**बाकि सभी स्तम्भ भी हर बार की तरह संग्रहनीय लगे.
Abhishek ji to maths ke master hain..@Raampyari zara interveiw mein Maths ke do-chaar sawaal poochh lena...
यों तो साप्ताहिक पत्रिका के सभी अंक श्रेष्ठ होते हैं। पर यह अंक कुछ खास लगा। संपादक मंडल को बधाई।
ReplyDeleteबहुत सुंदर पत्रिका! काफी अच्छी जानकारी मिली!
ReplyDeleteजी ताऊ जी पलायन किसी बात का हल नही है ...उम्दा बात बतायी सुन्दर कहानी के ज़रिये...
ReplyDeleteसमीरलाल जी द्वारा दी गयी जानकारी अमल करने योग्य है
केरल .. 'God 's own country '
अल्पना जी का बहुत आभार !!!
आशीष जी की खबरें मजेदार होती हैं..कहाँ से ढूढ निकलते हैं हम सभी के लिए ?:)
प्रेमलता जी का दाल बाटी चूरमा का नाश्ता स्वादिष्ट रहा
ओहो ये हीरामन महाराज तो बात को पकड़ ही लेते हैं..और खूब पकड़ते हैं haha..
कुल मिलाकर फिर इक मजेदार रही अपनी पत्रिका
सभी का आभार व बहुत बधाई !!
राम राम
ताऊ !
ReplyDeleteआज का सम्पादकीय विचारणीय रहा ! घटिया और क्रूरता पूर्ण कमेंट्स के शिकार हम सभी कभी न कभी होते रहे हैं ! शायद दूसरों को कष्ट देने से कुछ लोगों को अच्छा ही लगता होगा, और शायद इन्ही लोगों के कारण हिन्दी ब्लाग जगत का वह सम्मान नहीं है जिसका वह हकदार है !
समीर लाल के जन्म दिन पर बधाई !
पत्रिका बहुत अच्छी लगी ।
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