आज के परिचयनामा मे हम आपको मिलवा रहे हैं सुश्री पारुल जी यानि पारूल…चाँद पुखराज का से. वैसे तो उनके व्यक्तित्व के बारे मे उनका ब्लाग ही सब कुछ कह जाता है. उनके ब्लाग पर जाते ही एक शीतलता और संगीत की माधुर्यता का एहसास होता है. उनसे मुलाकात मे भी वैसी ही एक शांत, सौम्य और निश्छलता का एहसास हुआ. पूरे समय की बात चीत में एक निश्छल हंसी उनके चेहरे पर थी जो उनके व्यक्तित्व की शालीनता मे चार चांद लगा रही थी.पारुलजी पारुलजी से बातचीत मे हमे ऐसा लगा जैसे वो समग्र अस्तित्व में ही विश्वास रखती हैं. जीवन को अपने संपुर्ण होने के एहसास के साथ. आईये हम उनसे हुई बातचीत को उनकी जबानी ही आपसे रुबरू करवाते हैं.
ताउ : हां तो पारुलजी, आखिर आपसे मिलने का सौभाग्य हमको मिल ही गया. अब आप सबसे पहले ये बताईये की आप मूलत: कहां की रहने वाली हैं?
पारुल जी : ताऊजी, मुझे कहते हुए अच्छा लगता है की मैं मूलतः निराला जी की जन्मभूमि उन्नाव से हूँ ....छोटी सी जगह है ..मगर मेरे लिए बहुत महत्वपूर्ण है
ताऊ : और अभी कहां पर हैं?
पारुल जी : .वर्त्तमान में बोकारो स्टील सिटी- झारखण्ड में रहती हूँ.
ताऊ : और यहां आपके परिवार मे कौन कौन हैं?
पारुल जी : दो बेटे और पति.
ताऊ : बेटों के बारे मे कुछ बताईये?
पारुल जी : अब क्या बताऊं? ( हंसते हुये…) बस ये समझ लिजिये कि इन दिनों 2 शरारती बेटों को सम्हाल रही हूँ या पता नही वे मुझे सम्हालते हैं?
ताऊ : और आपके हमसफ़र के बारे में कुछ बतायेंगी?
पारुल जी : ( हंसते हुये..) ताऊ जी बस एक पंक्ति कहूँगी -- बना के मुस्सविर ने तोडा कलम.
ताऊ : आपके शौक क्या हैं?
पारुल जी : संगीत, कविता, घूमना, बागवानी, बारिश निहारना, ब्लाग्स पढ़ना, और फितूर लिखना. ( हंसते हुये…)
इसके अलावा मुझे रेकी विधा में दिलचस्पी है, आर्ट ऑफ़ लिविंग ---आकर्षित करता है ..फिर भी किसी भी विचार धारा के प्रति खुद को अंध भक्त नही मानती .....
ताऊ : अगर ये पूछा जाये कि आपको सख्त ना पसंद क्या है? तो क्या कहेंगी?
पारुल जी : सख्त नापसंद? कुछ तो मुझ में ही हैं, जो मैं जानते हुए भी बदल नही सकती ..इसलिए दूसरों में बुराई नही ढूंढ सकती...
ताऊ : अगर अब मैं आपसे यह पूछूं कि आपकी सबसे बडी कमजोरी क्या है?
पारुल जी : मेरी कमजोरी? ताऊ जी, मैं .दूसरों पे जल्द विशवास कर लेती हूँ ...इसलिए अकसर वसीम बरेलवी का एक शेर याद आता है -
हमारी सादा मिजाजी की दाद दे की तुझे
बगैर परखे तेरा एतबार करने लगे
दोनों बेटे गंगटोक में
ताउ : अब आपकी पसंद के बारे में कुछ बताईये?
पारुल जी : सारे मौसम, जाडों की धूप, सावन के बादल, पूरा चाँद, एक सुर में बरसती बूँदें… मेरे दोनों बेटे, पलाश के फूल, समुद्र…......बहुत बहुत कुछ गिनती नही ( हंसते हुये..)
ताऊ : आप घूमने की शौकीन हैं..प्रकृति प्रेमी हैं…ऐसे में मैं यह पूछूं कि आपको कौन सी खास जगह पसंद है?
पारुल जी : अंडमान के जारवा फारेस्ट की सुबह, नार्थ सिक्किम के पहाड़, कुर्ग का कोहरा…और भी बहुत कुछ..मैने कहा ना कि..गिनती ही नही है.एक तस्वीर जयपुर से
ताऊ : अच्छा अब एक बात बताईये कि हमने जो सुना है वो सही है या नही?
पारुल जी : कौन सी बात ताऊजी?
ताऊ : वही जब आपकी स्कूलिंग के दौरान किसी ने आपको देख लेने की धमकी दे डाली थी. क्या किस्सा था वो?
पारुल जी : ओह ताउजी..( हंसते हुये…) वो हुआ ऐसे था मैं कि क्लास 11th में स्कूल प्रेसीडेंट थी और नियमानुसार लेट कमर्स को सज़ा देने का हक रखती थी ..
ताऊ : जी..फ़िर क्या हुआ?
पारुल जी : फ़िर .एक दिन एक लड़की पास से यह कहती हुई गुज़री की बहुत सज़ा देती हैं ...मेरा भाई आज हमारी प्रेसीडेंट को स्कूल गेट पर देख लेगा ...बस मेरा दम निकल गया ..स्कूल के बाद जब तक घर नही पहुँच गयी ...होश फाख्ता रहे ...हालाँकि दूसरे दिन बहुत प्यार से उस कन्या को प्रिंसिपल के सामने खडा किया हम सब ने ( हंसते हुये…)
ताऊ : आप ब्लागिंग मे कब से हैं?
पारुल जी : ब्लागिंग में 2 साल पूरे हो जायेंगे अगस्त में.
ताऊ : कैसे अनुभव रहे ब्लागिंग मे आपके?
पारुल जी : खट्ठे-मीठे अनुभव हैं ...ब्लागिंग में आने से खुद मुझ में बहुत बदलाव हुए हैं ...नए मित्रों के साथ -साथ नयी सोच भी पनपी है ...
ताऊ : जी..
पारुल जी : सबसे खूबसूरत बात ..जब सुबह ब्लागवाणी खोलती हूँ ...और संगीत की मन माफिक पोस्ट मिल जाए तो अपने c d नहीं खंगालने पड़ते
ताऊ : हां ये बात तो है, आजकल संगीत की पोस्ट भी काफ़ी सारी अक्सर मिल जाती हैं.
पारुल जी : हां ताऊजी, ब्लागिंग में पाडकास्टिंग का पहलू मुझे बहुत लुभाता है. ऐसे ही कोई बेहतरीन कविता या गद्य का टुकडा पढ़ने को मिल जाए तो फिर दिन भर मनन चलता है .....
ताऊ : राजनिती के बारे मे आपकी कितनी रुचि है?
पारुल जी : काम भर की रूचि रखती हूं .. वैसे .और भी गम हैं ज़माने में ......
ताऊ : ताऊ पहेली के बारे मे आप क्या सोचती हैं?
पारुल जी : ताऊ जी की पहेली विश्व भ्रमण करवा देती है .....मज़ा पहेली का उत्तर पहले न आने पर ज्यादा आता है ..अंदाजे लगाने में ...और फिर टिप्पणियाँ पढ़ने में ..
ताऊ : टिपणियां पढने में? वो कैसे?
पारुलजी : जैसे समीर जी की पिछली टीपणी थी ....दक्षिण की तरफ सर कर के सो जाता हूँ तो सपने में जगह का पता चल जाएगा ....आदि आदि ( हंसते हुये....)
ताऊ : इसकी कोई मजेदार घटना भी हुई क्या?
पारुल जी : एक बार किसी सब्जी की पहेली थी अरविंद जी के ब्लॉग पे ...मैंने अपनी मेड को सारा काम छुड़वाकर उसे पीसी के सामने बैठा दिया की बूझो तो ज़रा ,,....वो आज भी हसती है ...सच पूछिये तो पहली हल करने से आज भी लगता है मन में कहीं बचपना बाकी है ....
ताऊ : अक्सर पूछा जाता है कि ताऊ कौन? आप क्या कहना चाहेंगी?
पारुल जी : ताऊ जी जो भी हैं मेरे लिए आदरणीय हैं ....
ताऊ : ताऊ साप्ताहिक पत्रिका के बारे मे आप क्या कहना चाहेंगी?
पारुलजी : ताऊजी, बहुत मेहनत करती है आपकी पूरी टीम ....सलाह, मेरा पन्ना, सभी स्तम्भ अत्यंत रोचक लगते हैं.
ताऊ : अच्छा आप खुद आपके स्वभाव के भाव मे क्या कहेंगी?
पारुल जी : अपनी ही पंक्तियाँ कहूँगी --खुद पे
चौथ का चांद जो देखेंगे दाग पायेंगे
हम समझ दार भी हैं और थोड़े जिद्दी भी.
ताऊ : आप अपने लेखन को किस दिशा में पाती हैं?
पारुल जी : मेरा लेखन मेरे लिए मेरे मन की ऊडान है.
ताऊ : आज हमारे भारतीय परिवारों में संयुक्त परिवार की अवधारणा, जाने या अनजानें मे टुटती जा रही है? आप इस संबंध में कुछ कहना चाहेंगी?
पारुल जी : मैं संयुक्त परिवार में पली बढी हूँ और अभी न्यूक्लीयर परिवार में हूँ ...दोनों के अपने अपने धूप छाव हैं .....अगर संबंधों में मिठास हो तो संयुक्त परिवार से अच्छा कुछ नहीं
ताऊ : पारुलजी , अब मैं आपसे गुजारिश करुंगा कि आप हमारे पाठकों के लिये आपकी खुद की कोई रचना सुनाये, तो बहुत आनंद आयेगा.
प्राणप्रन से हो निछावर
बंदिनी जब कर लिया,
अंकुशों के श्राप से फिर
प्रीत को बनबास क्यों …
मौन हो जाये समर्पण
शेष सब अधिकार हों,
नेह का बंधन डगर की
बेड़ियाँ बन जाये क्यों…
मोह के संसार की
काँटों भरी पगडंडियाँ,
नग्न पैरों की जलन पर
प्रणय का गुणगान क्यों…
सांझ के मद्धम दिये सी
ये ऊषा की लालिमा,
भोर के पहले चरण मे ही
कहीं खो जाये क्यों
छटपटाती देह में
श्वासों का ये आवा गमन,
वेदना के… ताल-स्वर पर
व्यथित मन का गान क्यों……
प्राणप्रन से हो निछावर
बंदिनी जब कर लिया
प्रेमपूरित नयन फिर
रह-रह सजल हो जाएं क्यों………
"एक सवाल ताऊ से”
सवाल पारुलजी का : प्रश्न तो वडा सिम्पल है ताऊ जी, की आखिर फोटू म्ह ताऊ की जगे जे बन्दर कोण है ?
जवाब ताऊ का :
पारुलजी, आपके सवाल का जवाब देने से पहले मैं आपका धन्यवाद करता हूं कि आप हमारे पाठकों से रुबरु हुई. और ईश्वर का भी धन्यवाद कि उसने मुझे आप जैसी कविमना और सहृदयी इंसान से मुलाकात का सौभाग्य दिया. मुझे आपके प्रश्न के उत्तर मे जितमोहनजी की ये कविता याद आरही है. शायद आपको जवाब मिल जाये.
शक्ल हो बस आदमी की क्या यही पहचान है।
ढूँढ़ता हूँ दर-ब-दर मिलता नहीं इन्सान है।।
घाव छोटा या बडा एहसास दर्द का एक है।
दर्द एक दूजे का बाँटें तो यही एहसान है।।
अपनी मस्ती राग अपना जी लिए तो क्या जीए।
जिंदगी, उनको जगाना हक से भी अनजान है।।
लूटकर खुशियाँ हमारी अब हँसी वे बेचते।
दीख रहा, वो व्यावसायिक झूठी सी मुस्कान है।।
हार के भी अब जितमोहन का हार की चाहत उन्हें।
ताज काँटों का न छूटे बस यही अरमान है।।
मग्गाबाबा का चिठ्ठाश्रम
मिस.रामप्यारी का ब्लाग
ताउ : हां तो पारुलजी, आखिर आपसे मिलने का सौभाग्य हमको मिल ही गया. अब आप सबसे पहले ये बताईये की आप मूलत: कहां की रहने वाली हैं?
पारुल जी : ताऊजी, मुझे कहते हुए अच्छा लगता है की मैं मूलतः निराला जी की जन्मभूमि उन्नाव से हूँ ....छोटी सी जगह है ..मगर मेरे लिए बहुत महत्वपूर्ण है
ताऊ : और अभी कहां पर हैं?
पारुल जी : .वर्त्तमान में बोकारो स्टील सिटी- झारखण्ड में रहती हूँ.
ताऊ : और यहां आपके परिवार मे कौन कौन हैं?
पारुल जी : दो बेटे और पति.
ताऊ : बेटों के बारे मे कुछ बताईये?
पारुल जी : अब क्या बताऊं? ( हंसते हुये…) बस ये समझ लिजिये कि इन दिनों 2 शरारती बेटों को सम्हाल रही हूँ या पता नही वे मुझे सम्हालते हैं?
ताऊ : और आपके हमसफ़र के बारे में कुछ बतायेंगी?
पारुल जी : ( हंसते हुये..) ताऊ जी बस एक पंक्ति कहूँगी -- बना के मुस्सविर ने तोडा कलम.
ताऊ : आपके शौक क्या हैं?
पारुल जी : संगीत, कविता, घूमना, बागवानी, बारिश निहारना, ब्लाग्स पढ़ना, और फितूर लिखना. ( हंसते हुये…)
इसके अलावा मुझे रेकी विधा में दिलचस्पी है, आर्ट ऑफ़ लिविंग ---आकर्षित करता है ..फिर भी किसी भी विचार धारा के प्रति खुद को अंध भक्त नही मानती .....
ताऊ : अगर ये पूछा जाये कि आपको सख्त ना पसंद क्या है? तो क्या कहेंगी?
पारुल जी : सख्त नापसंद? कुछ तो मुझ में ही हैं, जो मैं जानते हुए भी बदल नही सकती ..इसलिए दूसरों में बुराई नही ढूंढ सकती...
ताऊ : अगर अब मैं आपसे यह पूछूं कि आपकी सबसे बडी कमजोरी क्या है?
पारुल जी : मेरी कमजोरी? ताऊ जी, मैं .दूसरों पे जल्द विशवास कर लेती हूँ ...इसलिए अकसर वसीम बरेलवी का एक शेर याद आता है -
हमारी सादा मिजाजी की दाद दे की तुझे
बगैर परखे तेरा एतबार करने लगे
ताउ : अब आपकी पसंद के बारे में कुछ बताईये?
पारुल जी : सारे मौसम, जाडों की धूप, सावन के बादल, पूरा चाँद, एक सुर में बरसती बूँदें… मेरे दोनों बेटे, पलाश के फूल, समुद्र…......बहुत बहुत कुछ गिनती नही ( हंसते हुये..)
ताऊ : आप घूमने की शौकीन हैं..प्रकृति प्रेमी हैं…ऐसे में मैं यह पूछूं कि आपको कौन सी खास जगह पसंद है?
पारुल जी : अंडमान के जारवा फारेस्ट की सुबह, नार्थ सिक्किम के पहाड़, कुर्ग का कोहरा…और भी बहुत कुछ..मैने कहा ना कि..गिनती ही नही है.
ताऊ : अच्छा अब एक बात बताईये कि हमने जो सुना है वो सही है या नही?
पारुल जी : कौन सी बात ताऊजी?
ताऊ : वही जब आपकी स्कूलिंग के दौरान किसी ने आपको देख लेने की धमकी दे डाली थी. क्या किस्सा था वो?
पारुल जी : ओह ताउजी..( हंसते हुये…) वो हुआ ऐसे था मैं कि क्लास 11th में स्कूल प्रेसीडेंट थी और नियमानुसार लेट कमर्स को सज़ा देने का हक रखती थी ..
ताऊ : जी..फ़िर क्या हुआ?
पारुल जी : फ़िर .एक दिन एक लड़की पास से यह कहती हुई गुज़री की बहुत सज़ा देती हैं ...मेरा भाई आज हमारी प्रेसीडेंट को स्कूल गेट पर देख लेगा ...बस मेरा दम निकल गया ..स्कूल के बाद जब तक घर नही पहुँच गयी ...होश फाख्ता रहे ...हालाँकि दूसरे दिन बहुत प्यार से उस कन्या को प्रिंसिपल के सामने खडा किया हम सब ने ( हंसते हुये…)
ताऊ : आप ब्लागिंग मे कब से हैं?
पारुल जी : ब्लागिंग में 2 साल पूरे हो जायेंगे अगस्त में.
ताऊ : कैसे अनुभव रहे ब्लागिंग मे आपके?
पारुल जी : खट्ठे-मीठे अनुभव हैं ...ब्लागिंग में आने से खुद मुझ में बहुत बदलाव हुए हैं ...नए मित्रों के साथ -साथ नयी सोच भी पनपी है ...
ताऊ : जी..
पारुल जी : सबसे खूबसूरत बात ..जब सुबह ब्लागवाणी खोलती हूँ ...और संगीत की मन माफिक पोस्ट मिल जाए तो अपने c d नहीं खंगालने पड़ते
ताऊ : हां ये बात तो है, आजकल संगीत की पोस्ट भी काफ़ी सारी अक्सर मिल जाती हैं.
पारुल जी : हां ताऊजी, ब्लागिंग में पाडकास्टिंग का पहलू मुझे बहुत लुभाता है. ऐसे ही कोई बेहतरीन कविता या गद्य का टुकडा पढ़ने को मिल जाए तो फिर दिन भर मनन चलता है .....
ताऊ : राजनिती के बारे मे आपकी कितनी रुचि है?
पारुल जी : काम भर की रूचि रखती हूं .. वैसे .और भी गम हैं ज़माने में ......
ताऊ : ताऊ पहेली के बारे मे आप क्या सोचती हैं?
पारुल जी : ताऊ जी की पहेली विश्व भ्रमण करवा देती है .....मज़ा पहेली का उत्तर पहले न आने पर ज्यादा आता है ..अंदाजे लगाने में ...और फिर टिप्पणियाँ पढ़ने में ..
ताऊ : टिपणियां पढने में? वो कैसे?
पारुलजी : जैसे समीर जी की पिछली टीपणी थी ....दक्षिण की तरफ सर कर के सो जाता हूँ तो सपने में जगह का पता चल जाएगा ....आदि आदि ( हंसते हुये....)
ताऊ : इसकी कोई मजेदार घटना भी हुई क्या?
पारुल जी : एक बार किसी सब्जी की पहेली थी अरविंद जी के ब्लॉग पे ...मैंने अपनी मेड को सारा काम छुड़वाकर उसे पीसी के सामने बैठा दिया की बूझो तो ज़रा ,,....वो आज भी हसती है ...सच पूछिये तो पहली हल करने से आज भी लगता है मन में कहीं बचपना बाकी है ....
ताऊ : अक्सर पूछा जाता है कि ताऊ कौन? आप क्या कहना चाहेंगी?
पारुल जी : ताऊ जी जो भी हैं मेरे लिए आदरणीय हैं ....
ताऊ : ताऊ साप्ताहिक पत्रिका के बारे मे आप क्या कहना चाहेंगी?
पारुलजी : ताऊजी, बहुत मेहनत करती है आपकी पूरी टीम ....सलाह, मेरा पन्ना, सभी स्तम्भ अत्यंत रोचक लगते हैं.
ताऊ : अच्छा आप खुद आपके स्वभाव के भाव मे क्या कहेंगी?
पारुल जी : अपनी ही पंक्तियाँ कहूँगी --खुद पे
चौथ का चांद जो देखेंगे दाग पायेंगे
हम समझ दार भी हैं और थोड़े जिद्दी भी.
ताऊ : आप अपने लेखन को किस दिशा में पाती हैं?
पारुल जी : मेरा लेखन मेरे लिए मेरे मन की ऊडान है.
ताऊ : आज हमारे भारतीय परिवारों में संयुक्त परिवार की अवधारणा, जाने या अनजानें मे टुटती जा रही है? आप इस संबंध में कुछ कहना चाहेंगी?
पारुल जी : मैं संयुक्त परिवार में पली बढी हूँ और अभी न्यूक्लीयर परिवार में हूँ ...दोनों के अपने अपने धूप छाव हैं .....अगर संबंधों में मिठास हो तो संयुक्त परिवार से अच्छा कुछ नहीं
ताऊ : पारुलजी , अब मैं आपसे गुजारिश करुंगा कि आप हमारे पाठकों के लिये आपकी खुद की कोई रचना सुनाये, तो बहुत आनंद आयेगा.
पारुल जी : …जी ताऊजी जैसी आपकी इच्छा...कोशीश करती हूं.
प्राणप्रन से हो निछावर
बंदिनी जब कर लिया,
अंकुशों के श्राप से फिर
प्रीत को बनबास क्यों …
मौन हो जाये समर्पण
शेष सब अधिकार हों,
नेह का बंधन डगर की
बेड़ियाँ बन जाये क्यों…
मोह के संसार की
काँटों भरी पगडंडियाँ,
नग्न पैरों की जलन पर
प्रणय का गुणगान क्यों…
सांझ के मद्धम दिये सी
ये ऊषा की लालिमा,
भोर के पहले चरण मे ही
कहीं खो जाये क्यों
छटपटाती देह में
श्वासों का ये आवा गमन,
वेदना के… ताल-स्वर पर
व्यथित मन का गान क्यों……
प्राणप्रन से हो निछावर
बंदिनी जब कर लिया
प्रेमपूरित नयन फिर
रह-रह सजल हो जाएं क्यों………
"एक सवाल ताऊ से”
सवाल पारुलजी का : प्रश्न तो वडा सिम्पल है ताऊ जी, की आखिर फोटू म्ह ताऊ की जगे जे बन्दर कोण है ?
जवाब ताऊ का :
पारुलजी, आपके सवाल का जवाब देने से पहले मैं आपका धन्यवाद करता हूं कि आप हमारे पाठकों से रुबरु हुई. और ईश्वर का भी धन्यवाद कि उसने मुझे आप जैसी कविमना और सहृदयी इंसान से मुलाकात का सौभाग्य दिया. मुझे आपके प्रश्न के उत्तर मे जितमोहनजी की ये कविता याद आरही है. शायद आपको जवाब मिल जाये.
शक्ल हो बस आदमी की क्या यही पहचान है।
ढूँढ़ता हूँ दर-ब-दर मिलता नहीं इन्सान है।।
घाव छोटा या बडा एहसास दर्द का एक है।
दर्द एक दूजे का बाँटें तो यही एहसान है।।
अपनी मस्ती राग अपना जी लिए तो क्या जीए।
जिंदगी, उनको जगाना हक से भी अनजान है।।
लूटकर खुशियाँ हमारी अब हँसी वे बेचते।
दीख रहा, वो व्यावसायिक झूठी सी मुस्कान है।।
हार के भी अब जितमोहन का हार की चाहत उन्हें।
ताज काँटों का न छूटे बस यही अरमान है।।
तो यह थी आज की हमारी सम्माननिय मेहमान सुश्री पारुल जी. आपको इनसे मिलकर कैसा लगा? अवश्य बताईयेगा.
मग्गाबाबा का चिठ्ठाश्रम
मिस.रामप्यारी का ब्लाग
तो ये है, पुखराज का चाँद....आपके माध्यम से जाना...बहुत अच्छी मुलाकात रही. बधाई व शुभकामनाएं.
ReplyDeleteपारुल जी के बारे में जान कर बहुत अच्छा लगा .. शुक्रिया
ReplyDeleteसुश्री पारुल जी यानि पारूल…चाँद पुखराज का
ReplyDeleteसे मिल कर अच्छा लगा।
पारुल जी के सुखमय भविष्य की कामना करता हूँ
और साथ में ताऊ को धन्यवाद ज्ञापित करता हूँ।
पारुल जी के ब्लॉग पर आकर हमेशा ऐसा लगता है जैसे किसी मंदिर में आ गए हों...वो ही सात्विकता उसमें नज़र आती है और वोही शांति दिल को मिलती है...उन्होंने अपने बारे में अधिक नहीं बताया और न ही अपने 'उनके' और बच्चों के बारे में...काश बच्चों का ऐसा चित्र लगातीं जिसमें उनकी शक्लें साफ़ दिखाई देतीं... कोई बात नहीं जितना उनके बारे में जाना उतने को ही बहुत मान लेते हैं...संगीत उनकी रग रग में है और इसी कारण वो अपनी सोच में इतनी साफ़ और पाक हैं...इश्वर उन्हें और उनके परिवार को हमेशा खुश रख्खे...ये ही कामना करते हैं...
ReplyDeleteउनकी आवाज़ जितनी बार सुनो मन नहीं भरता...आभार आपका ताउजी उनसे मिलवाने और उन्हें सुनाने का.
नीरज
पारुल जी से परिचय कराने के लिए धन्यवाद। ताऊ ने बंदर की फोटो क्यों लगा रखी है। इस सवाल का जवाब लाजवाब है।
ReplyDeleteअच्छा लगा पारुल जी से मिल कर..शुभकामनाऐं..
ReplyDeleteIs Parichay ke liye aap badhaayi ke paatr hain.
ReplyDelete-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
पारूल…चाँद पुखराज का जितना सुंदर नाम है उतना ही सुंदर व्यक्तित्व है. आपके ब्लाग पर आकर हर सप्ताह विभिन्न ब्लाग हस्तियों के बारे मे पढना बहुत अच्छा लगता है. पारुलजी के बारे मे पढकर बहुत अच्छा लगा.
ReplyDeleteपारूल…चाँद पुखराज का जितना सुंदर नाम है उतना ही सुंदर व्यक्तित्व है. आपके ब्लाग पर आकर हर सप्ताह विभिन्न ब्लाग हस्तियों के बारे मे पढना बहुत अच्छा लगता है. पारुलजी के बारे मे पढकर बहुत अच्छा लगा.
ReplyDeleteबहुत अच्छा लगा पारुलजी के बारे में जानकर. और आज तो पारुलजी के सवाल का आपने जो जवाब दिया उसके सामने तो नतमस्तक ही हूं.
ReplyDeleteआप दोनों हस्तियों को बहुत शुभकामनाएं.
अति सुंदर परिचय नामा रहा. बहुत बधाई और शुभकामनाएं.
ReplyDeleteअति सुंदर परिचय नामा रहा. बहुत बधाई और शुभकामनाएं.
ReplyDeleteपारुल जी से मिलकर अच्छा लगा।
ReplyDeleteपारुल जी के इस परिचयनामे के लिये आभार ।
ReplyDeleteपारुल सरस्वती का अवतार हैं।
ReplyDeleteइक और नयी फनकार पारुल जी रुबरु कराने के लिये धन्यवाद
ReplyDeletesushri paarulji k baare me vistaar se jaana
ReplyDeleteaur jaan kar ye maana ki zindgi me buraai k liye koi sthaan nahin hona chahiye
doosron me dosh dhoondhne k bajaay doosron k gunon ko enjoy karna chahiye
,,,,,,,,,,,,bahut achha
unki kavita k kya kahne...
bheetar tak bha gayi
mano man me bahaar aa gayi
taau ji ne sawal bhi sateek kiye...
taauji ka jawaab bandar wale saawaal par yon laga maano kisi sant ne apnaa hridya khol kar rakh diya
BHAI YE TAAUJI AAKHIR CHEEJ KYA HAI?
KOI AVTAAR FILM KA HIRO HAI KYA>>>>>>
maza aagaya.....
badhaai
badhaai
badhaai !
JAI HO !
बहुत अच्छा लगा परुल्जी का साक्षात्कार पढ़के और उनके मुख से उनकी रचना सुनके| पारुल जी ने अपनी पसंद में सिक्किम के पहाडों को शामिल किया मेरी तो खुशकिस्मती है की यहीं रहता हूँ | ताऊ का जवाब भी लाजवाब ! अति सुन्दर आनंद आया !!
ReplyDeleteसुश्री पारूल जी के बारे में जानना बहुत अच्छा लगा। उन्हे शुभकामनाऎं और ताऊ को इस परिचयनामा के लिए धन्यवाद.......
ReplyDeleteपारुल जी के बारे में इतना कुछ जानने को मिला इस साक्षात्कार के माध्यम से.. आभार
ReplyDeleteबहुत सुन्दर मन को छू लेने वाली साहित्यिकता से ओतप्रोत कविता -पढ़ा , सुना और गुना भी !
ReplyDelete"सब्जी की पहेली थी अरविंद जी के ब्लॉग पे ..."
पारुल जी ने याद याद तो किया -मैंने पहेली बुझाना क्या छोडा पारुल जी ने मेरे ब्लागों पर आना छोड़ दिया !
बहुत शुक्रिया ताऊ जी !!
ReplyDeleteपारुल जी से मुलाकात के लिए ...
बहुत सुन्दर भाव था उनके कथन में -
"बना के मुस्सविर ने तोडा कलम"
पारुल जी के प्रश्न का उत्तर घुमा -फिरा के दिया आपने hmmm..:)))
घाव छोटा या बडा एहसास दर्द का एक है।
दर्द एक दूजे का बाँटें तो यही एहसान है।।
अपनी मस्ती राग अपना जी लिए तो क्या जीए।
जिंदगी, उनको जगाना हक से भी अनजान
उम्दा नज़्म!!!!!
इसमें आपके व्यक्तित्व की गहरी छाप दिखती है ..
राम राम
वैसे ये अबूझ पहेली कब बुझेंगे आप ...ताऊ कौन वाली :))))) ?
बहुत बढिया रहा पारुलजी के बारे में जानना.बहुत आभार आपका.
ReplyDeleteताऊजी आप हर सप्ताह ही एक नई सखशियत से मिलवाकर ब्लागजगत को एक परिवार का रुप देने मे लगे हो. आपकी यह मेहनत बेकार नही जायेगी. आपको और पारुलजी को बहुत शुभकामनाएं.
ReplyDeleteताऊजी आप हर सप्ताह ही एक नई सखशियत से मिलवाकर ब्लागजगत को एक परिवार का रुप देने मे लगे हो. आपकी यह मेहनत बेकार नही जायेगी. आपको और पारुलजी को बहुत शुभकामनाएं.
ReplyDeletebahut sundar parichay karawaya apane parulji se. abhar
ReplyDeleteपारुलजी के बारे मे जानना बहुत आत्मिय लगा. उनका ब्लाग ही उनके व्यक्तित्व की झलक दे देता है. उनको और आपको बहुत शुभकामनाएं.
ReplyDeleteपारुलजी से परिचय के लिए आभार. देख लेने वाली घटना रोचक रही :)
ReplyDeleteपुखराज का चाँद. पारुलजी के नाम मे ही चाँद झुडा हुआ है। इनके बारे मे जानकर प्रसन्नता का अनुभव हुआ। और ताऊजी आपके तो क्या कहने साक्षात्कार बेहद ही रोचक रहा। पारुलजी एवम आप सभी को शुभकामनाऍ ।
ReplyDeleteराम राम
आभार
हे प्रभु यह तेरापन्थ
मुम्बई टाईगर
SELECTION & COLLECTION
यह मेरी खुशकिस्मती है कि पारुल से रूबरू होने का मुझे मौका मिल चुका है और उसके बारे में मेरी एक ही राय है......." बहुत ही सुरीली बच्ची "......लिखती है तो लगता है कि साठ की है और बाकी समय में आठ की है....
ReplyDeleteताऊ जी ,बड़ा ही रोचक लगा आपका यह परिचय नामा...बहुत बहुत आभार...
पारुल जी यानि पारूल…चाँद पुखराज का आपने बढ़िया विस्तृत परिचय दिया .
ReplyDeleteपारूल जी से मुलाकात बहुत अच्छी लगी। उन के अपने स्वरों में गीत लाजवाब रहा।
ReplyDeleteपारूल जी को थोड़ा-सा और जानना अच्छा लगा...
ReplyDeleteबस थोड़ा सा ही तो जान पाये हम।
वैसे उनके "फ़ितुर" के जरिये उनको जानना दिलचस्प रहता है....
इस इंटरव्यू को पढाकर ललचा दिया आपने .. आभासी दुनिया में नहीं , हकीकत में .. पारूल जी से दो बार मिल चुकी हूं .. फिर भी एक बार और मिलने का लोभ संवरण नहीं कर पा रही .. जल्द ही एक बार फिर उनसे मिलना होगा।
ReplyDeleteबड़े दिन से इन्तजार था. आज पढ़ा. बड़ा अच्छा लगा पारुल जी के बारे में जानकर. उनको ब्लॉग पर पढ़ना तो हमेशा ही अद्भुत होता है.
ReplyDeleteताऊ, आपका आभार इस मुलाकात के लिए.
पारुल जी से परिचय कराने के लिए शुक्रिया ताऊ !
ReplyDelete…जो स्वयम चाँद- पुखराज हो ,उसका इंटरव्यू भी वैसा ही होगा.पारुल जी को मैं काफी समय से उनकी रचनाओं,विचार और अभिव्यक्ति से परिचित होता रहा हूँ,उनके ब्लॉग पर अपना विचार भी देता रहा हूँ और जैसा कि मेरा विचार था की उनके ऊपर माँ सरस्वती की कृपा है ,इस इंटरव्यू से भी साबित हो गया . इस प्रस्तुति हेतु ताऊ जी आपको बहुत धन्यवाद .
ReplyDeleteसुन्दर परिचय पारुलजी से कराया। शुक्रिया।
ReplyDeleteपारूल जी से परिचय कराने का शुक्रिया।
ReplyDeleteपारुल जी के बारे में जान कर बहुत अच्छा लगा .. शुक्रिया
ReplyDeleteबहुत सुंदर और पठनिय परिचयनामा. बधाई
ReplyDeleteबहुत सुंदर और पठनिय परिचयनामा. बधाई
ReplyDeleteअच्छी मुलाकात.... है...
ReplyDeleteमीत
एक अच्छॆ इंसान का उम्दा परिचय !
ReplyDeleteNice interview...
ReplyDeleteपारुल जी के बारे में जान कर बहुत अच्छा लगा .. शुक्रिया
ReplyDeleteregards
पारुल जी से मिल कर अच्छा लगा. धन्यवाद.
ReplyDeleteसाक्षात्कार संक्षिप्त मगर अच्छा लगा.
ReplyDeleteइस प्रस्तुति के लिए बहुत बहुत शुक्रिया .
जितना सुंदर नाम, ब्लॉग का नाम, उतना ही उनका व्यक्तित्व और आपका साक्षात्कार............. धन्यवाद ताऊ का
ReplyDeleteपारुल जी का परिचयनामा पढ़ कर अब तक जो नहीं जाना या नहीं समझ सका था वो भी समझ चुका.
ReplyDeleteपारुल जी जैसे साहित्यकार हमारी ब्लॉग बिरादरी में रहेंगे तो मैं समझता हूँ, सच्चे अर्थों में हम हिंदी साहित्य और हिंदी को समृद्ध बना पायेंगे.
पारुल जी के विचारों को जान कर एक सुखद अनुभव हुआ और साथ ही उनकी "" प्रीत को वनवास क्यों "" सुनकर ऐसा लगा जैसे हम उनके सामने बैठ कर उनसे काव्यपाठ सुन रहे हों,
पारुल जी यूँ ही साहित्याकाश में देदीप्यमान होती रहें.
- विजय तिवारी " किसलय "
बहुत खूब .ताऊ जी|
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