ताऊ पहेली – २२ का सही जवाब है हिडिंबा मंदिर "मनाली" जिसके बारे मे हमेशा की तरह आज के अंक मे विशेष जानकारी दे रही हैं सुश्री अल्पना वर्मा.
हमारे आज के अंक के अतिथि संपादक हैं प. श्री डी. के. शर्मा "वत्स" जो रामप्यारी द्वारा पूछे गये पुराणों के सवालों के बारे में विशेष जानकारी दे रहे है हमारे अतिथि संपादक के कालम में.
चुनाव खत्म हुये. कोई खुश है कोई दुखी है. अब राजनैतिक पार्टियों द्वारा हार जीत के विश्लेष्ण होंगे. पर फ़िर भी इस बार के चुनाव मे कुछ तो अप्रत्याशित हो ही गया है. कुछ सीटों के दम पर पूरे राष्ट्र को अंगुलियों पर नचाने वाले लोगों से
इस बार देश को मुक्ति मिली है. और उम्मीद करें कि हमारे नये भाग्यविधाता कुछ देश का, कुछ गरीबों का, कुछ बुजुर्गों का खयाल रखने के बाद खुद का खयाल रखेंगे.
उम्मीद ही कर ही सकते हैं कि शासन मे बैठने वाले लोग पहले प्रजा का ध्यान रखकर बाद मे खुद का रखेंगे. वैसे इस मौके पर हमको यह बातचीत याद आ रही है जो ताऊ की अपनी भेडों से हुई थी. और यह बातचीत पढकर आप ही अनुमान लगायें कि ताऊ के शासन काल मे भेड रुपी प्रजा का क्या होगा?
ताऊ ने एक बार काफ़ी सारी भेड और बकरियां पाल रखी थी. और उसी दौरान भयानक अकाल और सूखा पड गया. भूख और प्यास के मारे लोग मरने लगे. ताऊ भी परेशान हो चला.
एक दिन ताऊ ने अपनी सब भेडों को नीम के पेड के नीचे इक्क्ठ्ठा किया और चबूतरे पर चढ कर भाषण देने लगा.
मेरी प्यारी भेडो और बकरियों, मैं आप लोगों को ये बताये देता हूं कि अनाज के संकट की वजह से जीने मरने के हालात पैदा हो गये हैं. मैं जीवन का बहुत सम्मान करता हूं और लोकतंत्र मे मेरी गहन आस्था है. इसलिये मैं आप मे से प्रत्येक को यह अधिकार देता हूं कि आप खुद अपने भाग्य का फ़ैसला करें. और मुझे यह बतायें कि इस संकट की स्थिति मे मैं आपको भूनकर खाऊं या फ़िर...............
अब इससे आगे क्या कहना? चाहे चाकू खरबूजे पर गिरे या खरबूजा चाकू को गले लगाये.
आइये अब चलते हैं सु अल्पनाजी के “मेरा पन्ना” की और:-
-ताऊ रामपुरिया
भारत के उत्तर-पश्चिम में स्थित एक राज्य है--'हिमाचल प्रदेश'
-हिमाचल प्रदेश का शाब्दिक अर्थ बर्फ़ीले पहाड़ों का प्रांत है. उत्तर में जम्मू कश्मीर, पश्चिम तथा दक्षिण-पश्चिम में पंजाब, दक्षिण में हरियाणा एवं उत्तर प्रदेश, दक्षिण-पूर्व में उत्तराखण्ड तथा पूर्व में तिब्बत से घिरा हुआ है. इस प्रदेश को देव भूमि भी कहते हैं. यहाँ की राजधानी शिमला है.जिसके बारे में हम कभी और आप से पूछेंगे. इस के अलावा यहाँ डलहोसी,स्पीती घाटी[छोटा तिब्बत]'लाहोल घाटी,किन्नौर,धरमशाला,राजगढ़ घाटी,पांगी घाटी,छात्रादी,चैल,काँगड़ा फोर्ट,ग्रेट हिमालयन नेशनल पार्क देखने की जगहें हैं.
इसी प्रदेश से हमने आप से पिछले राउंड में व्यास कुंड [रोहतांग पास] वाली पहेली पूछी थी.गर्मियों के इस मौसम में इस ठंडी जगह के बारे में पूछ कर हम ने आप को इस राज्य की सैर कराने का फैसला किया है. दिल्ली, हरियाणा, पंजाब, से नज़दीक अगर कोई बेहद ही खूबसूरत सुकून भरी छुट्टियाँ बिताने की ठंडी जगह है तो वह बेशक मनाली ही है. दिल्ली से पर्यटक मनाली के लिए अक्सर कुल्लू हो कर आते हैं. कुल्लू घाटी बहुत सुन्दर जगह है.यहाँ का दशहरा बहुत धूमधाम से मनाया जाता है दूर दूर से इसे देखने लोग यहाँ आते हैं.
मनाली के बारे में विस्तार से - लोकप्रिय हिल स्टेशन मनाली शहर कुल्लू घाटी के उत्तर में है,समुद्र तल से 2050 मीटर की ऊंचाई पर स्थित मनाली व्यास नदी के किनारे बसा है. हर मौसम में ही पर्यटकों की भीड़ देख सकते हैं..सर्दियों शून्य से नीचे तापमान में भी मनाली में पर्यटकों आते रहते हैं.
संबंधित पौराणिक गाथा-
पौराणिक ग्रंथों में मनाली को मनु का घर कहा गया है. कहा जाता है कि जब सारा संसार प्रलय में डूब गया था तो एकमात्र मनु ही जीवित बचे थे. उस समय भगवान के आदेशानुसार मनु ऋषि कश्ती में सवार वर्तमान हिमाचल के इस स्थान पर आ पहुंचे थे, फिर मनु ऋषि ने यहां जीवन का बीज बोया, इस कारण से इस जगह का नाम मनु आली पड़ा और धीरे-धीरे यह मनाली हो गया. इसलिए भी मनाली को हिन्दुओं का पवित्र तीर्थस्थल भी माना जाता है. यहाँ देवदार के पेड़ों को काटना कानूनी जुर्म है.यहाँ के लोग बहुत ही सीधे सादे और अच्छे हैं. मजेदार बात यह कि ४ साल पहले जब हम वहां गए थे तब यह मालूम हुआ कि इस जगह कहीं कोई सिनेमा घर नहीं है. हाँ, वहां किसी रेस्तरां के ऊपर एक कमरे में डी वी डी पर फिल्में दिखाई जाती थीं.अब क्या स्थिति है..यह तो वहां जा कर पता चलेगा.
कैसे जाएँ- १-वायु सेवा
भुंतर नजदीकी एयरपोर्ट [50 kilometer दूर]
२-रेलमार्ग जोगिन्दर नगर नैरो गैज रेलवे स्टेशन मनाली का नजदीकी रेलवे स्टेशन है जो मनाली से 135 किमी. की दूरी पर है. मनाली से 310 किमी. दूर चंडीगढ़ नजदीकी ब्रॉड गेज रेलवे स्टेशन है.
३-सड़क मार्ग मनाली हिमाचल और आसपास के शहरों से सड़क मार्ग से जुड़ा हुआ है.राज्य परिवहन निगम की बसें अनेक शहरों से मनाली जाती हैं.
क्या देखें- मनाली में निम्न लिखित जगहें दर्शनीय हैं-
१-हिडिम्बा मंदिर- यह समुद्र तल से 1533 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है. [यही मंदिर हम ने मुख्य पहेली में पूछा था.] यह भीम की पत्नी हिरमा देवी जिससे हम देवी हिडिम्बा के नाम परिचित है, को समर्पित सुंदर मंदिर है जो देवदार के घने-लम्बे वृक्षों के बीच बना है. ऐसी मान्यता है कि देवी हिडिम्बा इस स्थान पर अपने भाई हिडिम्ब दैत्य के साथ रहती थी. हिडिम्बा का प्रण था कि जो भी उनके भाई हिडिम्ब को हरा देगा, वो उससे शादी करेंगी. पाण्डंव अपने वनवास के दौरान यहां आए तो हिडिम्ब और भीम के बीच लड़ाई हो गई जिसमें हिडिम्ब मारा गया.
हिडिम्बा ने अपने प्रण के मुताबिक भीम से शादी कर ली और हिडिम्बा ने घटोत्कच नाम के लड़के को जन्म दिया. घटोत्कच महाभारत के युद्ध में पांडवों की तरफ से लड़ते हुए कर्ण से भिड़ गया. कर्ण के पास इंद्र द्वारा दिया गया एक अमोघ शस्त्र था जो अर्जुन को मारने के लिए बचा के रखा हुआ था. और इसी अमोघ अस्त्र को अर्जुन पर चलाने की याद दिलाने हेतु उस रोज कर्ण का सारथी स्वयम दुर्योधन बना था.
श्री कृष्ण ने ये सारी चालें भांप कर उस दिन के युद्ध मे अंत समय मे फ़ेर बदल करते हुये अर्जुन की जगह घटोत्कच को कर्ण के सम्मुख युद्ध मे खडा कर दिया. घटोत्कच मायावी युद्ध मे प्रवीण था और घटोत्कच ने कौरव सैना को काफी नुकसान पहुंचा दिया था. जब कर्ण और दुर्योधन को जान के लाले पडे तब दुर्योधन ने कर्ण से वह अमोघ अस्त्र घटोत्कच पर चलाने के लिये कहा. कर्ण ने के यह कहने पर कि वो तो अर्जुन को मारने के लिये रखा है? तब दुर्योधन ने कहा कि अर्जुन को तो तब मारेंगे ना, जब आज यह घटोत्कच हमको जिंदा लौटने देगा. आप तो वो शक्ती इस पर जल्दी चलाओ वर्ना हम दोनों आज मारे जायेंगे.
इसी लिए कर्ण ने अमोघ शस्त्र घटोत्कच पर चला दिया और घटोत्कच वीरगति को प्राप्त हो गया. और एक तरह से यहीं पर इसी दिन महाभारत युद्ध की तकदीर तय हो गई थी. इन्ही घटोत्कच के पुत्र बर्बरीक थे जिन्होने महाभारत युद्ध का निर्णय दिया था और आज कल राजस्थान के सीकर जिले मे खाटू श्याम जी के नाम से पूजे जाते हैं जहां उन पर लाखों लोगों की श्रद्धा और विश्वास कायम है.
इस मंदिर को देखकर 1553 ई के समय की कला के दर्शन होते हैं. कुल्लू-मनाली में इनको सबसे शक्तिशाली देवी दुर्गा व काली का अवतार मानते हैं. मंदिर में महिषासुर मर्दिनी की मूर्ति स्थापित है और माता के चरण पादुका भी है जिनकी प्रतिदिन पूजा होती है. इस मंदिर के थोड़ी सी दूरी पर वो वृक्ष भी है जहां घटोत्कच तपस्या करता था और पशुओं की बली देता था.
पूरे भारत में किसी राक्षसी का यह एक मात्र मंदिर है. हिडिम्बा जन्म से राक्षसी थी लेकिन तप, त्याग और पतिव्रत धर्म से देवी मानी गईं है. इसी कारण से कुल्लू -मनाली के प्रसिद्ध धार्मिक मेले दशहरे में हिडिम्बा का शामिल होना जरुरी माना जाता है. हिडिम्बा को शामिल हुए बिना मेला पूर्ण नहीं माना जाता है. कुल्लू के राजा इन्हें दादी मां मानते हैं . दशहरे के समापन में भैंसे सहित अष्टांग बलियां भी दी जाती हैं[?] इस मंदिर के विशिष्ट पुरातात्विक एवं वास्तुशिल्प विशेषताओं और इस के पुरातात्विक महत्व के कारण भारत सरकार ने प्राचीन संस्मारक तथा पुरातात्विक स्थल के रूप में इसे स्वीकार कर लिया है. 2-मनु मंदिर : पुराने मनाली शहर में बड़े बाजार से 3 कि.मी. दूर मनु ऋषि का मंदिर है। यहां आकर उन्होंने ध्यान लगाया था .मंदिर तक पहुंचने का मार्ग दुरूह और रपटीला है. ऐसा माना जाता है कि यह भारत में मनु ऋषि का एकमात्र मंदिर है.
3-अर्जुन गुफा कहा जाता है महाभारत के अर्जुन ने यहां तपस्या की थी. इसी स्थान पर इन्द्रदेव ने उन्हें पशुपति अस्त्र प्रदान किया था।
4-वशिष्ठ के गर्म जल के झरने और मंदिर/वशिष्ठ कुण्ड- मनाली से 3 किमी. दूर प्राचीन पत्थरों से बने मंदिरों का यह जोड़ा एक दूसरे के विपरीत दिशा में है. एक मंदिर भगवान राम को और दूसरा संत वशिष्ठ को समर्पित है. रोहतांग-दर्रा जाते हुए ब्यास नदी के बाएं किनारे पर एक छोटा सा दर्शनीय गांव है, वशिष्ठ। यह अपने गर्मजल के झरनों और मंदिरों के लिए जाना जाता है। गर्मजल के प्राकृतिक सल्फर युक्त झरनों पर पुरुषों और महिलाओं के स्नान के लिए अलग-अलग तालाब बने हैं, जहां सदैव पर्यटकों की भीड़ लगी रहती है। पास में ही तुर्की स्टाइल के फव्वारों से युक्त स्नानघर भी बने हुए हैं। स्नान के लिए झरनों से गर्म जल की व्यवस्था की गई है। 5-क्लब हाउस : शहर से 2 कि.मी. दूर मनाल्शु नाले के बाएं किनारे पर स्थित क्लब हाउस में इंडोर खेल सुविधाएं मौजूद हैं.
6-तिब्बती मठ : यहां 3 नवनिर्मित विविध रंगों से सजे मठ हैं, जहां से कारपेट और तिब्बती हस्त शिल्प खरीदे जा सकते हैं। दो मठ शहर में स्थित हैं और एक मठ आलियो, ब्यास नदी के बाएं किनारे स्थित है। यहां का गोधन थेकचोकलिंग मठ काफी प्रसिद्ध है।
1969 में इस मठ को तिब्बती शरणार्थियों ने बनवाया था।
7-माउंटेनियरिंग इंस्टीट्यूट : कुल्लू की ओर जाने वाले मार्ग पर 3 कि.मी. दूर ब्यास नदी के बाएं किनारे पर स्थित है। इस इंस्टीट्यूट में ट्रेकिंग, माउंटेनियरिंग, स्कीइंग और वाटर-स्पोर्ट्स से संबंधित बेसिक और एडवांस प्रशिक्षण पाठ्क्रम आयोजित किए जाते हैं। अग्रिम बुकिंग द्वारा यहां से ट्रेकिंग और स्कीइंग के उपकरण किराये पर लिए जा सकते हैं। पर्यटक यहां का बेहतरीन शो-रूम भी देख सकते हैं। 8-नेहरु कुंड:
लेह की ओर जाने वाले राष्ट्रीय राजमार्ग पर 5 कि.मी. की दूरी पर ठंडे पानी का एक प्राकृतिक झरना है, जो पं. जवाहरलाल नेहरु के नाम पर है, अपने मनाली प्रवास के दौरान वे इसी झरने का पानी पिया करते थे। माना जाता है कि यह झरना ऊंचे पहाड़ों में स्थित भृगु झील से अवतरित हुआ है।
9-सोलांग घाटी :13 कि.मी. दूर सोलांग गांव और ब्यास कुंड के बीच यह एक शानदार घाटी है। सोलांग घाटी से ग्लेशशियर और हिमाच्छादित पर्वत और चोटियां दिखाई देती हैं। 10 - कोठी : रोहतांग-दर्रा जाते हुए, मनाली से 12 कि.मी. दूर कोठी एक सुंदर स्थान है। यहां रिज पर पी.डब्ल्यू.पी. का रेस्ट हाउस बना है, जहां से संकरी होती घाटी और पहाड़ों का सुंदर दृश्य दिखाई देता है। यहां बड़ी संख्या में फिल्मों की शूटिंग होती है .
11-रहाला जल-प्रपात:रोहतांग-दर्रा जाते हुए, मनाली से 16 कि.मी. दूर है।
12-रोहतांग-दर्रा - रोहतांग-दर्रा कीलोंग / लेह राजमार्ग पर मनाली से 51 कि.मी. दूर है। यहां से पहाड़ों का सुंदर दृश्य दिखाई देता है। यह दर्रा प्रति वर्ष जून से अक्तूबर तक खुला रहता है किंतु पर्वतारोही इसे पहले भी पार करते हैं। गर्मियों के दौरान (मध्य जून से अक्तूबर) मनाली-कीलोंग / दारचा, उदयपुर, स्पीति और लेह के बीच बसें चलती हैं।
13-जगतसुख : जगतसुख मनाली से 6 कि.मी. दूर नग्गर की ओर जाते हुए ब्यास नदी के बाएं किनारे पर स्थित है। यह स्थान शिखर रूप में बने भगवान शिव और संध्या गायत्री के दर्शनीय प्राचीन मंदिरों के लिए प्रसिद्ध है।
14-मणिकरण यहाँ पहुँचने के लिए टेड़े मेडे से रास्तों से और वह भी काफी ऊँचाई से गुजरते हुए बहुत डर लगता है. समुद्र तल से 1700 मीटर की ऊंचाई पर स्थित मणिकरण गर्म पानी का झरना है। कहा जाता है शिव की पत्नी पार्वती के कर्णफूल यहां खो गए थे। उसके बाद से इस झरने का जल गर्म हो गया। हजारों लोग यहां के जल में पवित्र डुबकी लगाने दूर-दूर से आते हैं। सच में पानी, ठण्ड के मौसम में भी वाकई गरम होता है.
15-ओल्ड मनाली मनाली से 3 किमी. उत्तर पश्चिम में ओल्ड मनाली है जो बगीचों और प्राचीन गेस्ट हाउसों के लिए काफी प्रसिद्ध है। मनालीगढ़ नामक क्षतिग्रस्त किला भी यहां देखा जा सकता है। |
इस युग में भी है शाहजहां इतिहास खुद को दोहरा रहा है। आज के युग में भी पत्नी की याद में एक और ताजमहल बन रहा है। प्रेम की यह निशानी बन रही है बंगलूरू में और इसे बनवा रहे हैं 86 साल के खाजा के शरीफ। खाजा की पत्नी बेगम फखर सुलताना का 2001 में निधन हो गया था। खाजा उनसे बेपनाह मोहब्बत करते थे। इस मोहब्बत के लिए उन्होंने 12 एकड़ जमीन में ताज हैरिटेज का निर्माण कराया है और इस पर उन्होंने करीब बीस करोड़ रुपए खर्च किए हैं। खाजा का कहना है कि यह उनके प्रेम की निशानी है। दिलचस्प बात यह है कि बेगम फखर का अंतिम मुगल बादशाह बहादुर शाह ज़फ़र के वंश से ताल्लुक था। खाजा ने अपनी कब्र की जगह भी बेगम की कब्र के पास ही सुरक्षित करवा दी है। खाजा को इस वीडियो में देखा जा सकता है- अगले हफ्ते फिर मिलेंगे नमस्कार |
एक पिता अपने बेटे के साथ पहाड़ों पर चल रहा था . अचानक, उसका बेटा, गिर पडा और तकलीफ से जोर से चिल्लाया "आःह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्छ !"
तभी वह बेटा आश्चर्य चकित हो गया जब उसे उसकी अह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्छ की आवाज कही से दोहराती हुई सुनाई दी.. बेटे ने जिज्ञासु की तरह चिल्लाकर पूछा - , "तुम कौन हो?" "उसे जवाब मिला : "तुम कौन हो?"
इस प्रतिक्रिया पर वह बच्चा नाराज, हो गया और चिलाया : "डरपोक!" उसने परेशान हो अपने पिता की और देखा और पूछा " ये सब क्या हो रहा है" पिता ने मुस्कुराते हुए कहा, बेटा जरा ध्यान दो बच्चा अब और ज्यादा परेशान और हैरान हो गया मगर उसको कुछ समझ नहीं आया. पिता ने समझाया इसको दुनिया "ECHO" कहती हैं मगर वास्तव मे यही जीवन है. ये तुम्हे वही सब कुछ वापस करती है जो भी तुम कहते हो या करते हो. हमारी जिंदगी केवल हमारी कार्रवाई या हमारे कर्म का एक प्रतिबिंब है$
यदि आप, इस दुनिया में और अधिक प्यार पाना चाह्ते हैं तो अपने दिल में और अधिक प्यार रखें. यदि आप अपनी टीम की क्षमता में सुधार चाहते हैं तो अपने अन्दर अपनी क्षमता को बढाये. और ये सिद्धान्त जीवन के हर एक पहलु में लागु होता है. जीवन वही सब कुछ वापस करता है जो हम जिन्दगी को देते है. कहानी का नैतिक मूल्य : जीवन कोई संयोग नहीं बल्कि इंसान का अपना ही प्रतिबिंब है. |
कुमाऊँ की ऐपण परम्परा
कुमाऊँ में संस्कृति और परम्परा के विविध रंग देखने को मिलते हैं। इन्हीं विविध परम्पराओं में से एक परम्परा है कुमाऊँ की `ऐपण´ परम्परा। जिसे महाराष्ट्र में `रंगोली´, राजस्थान में `मांडणा´ मद्रास में `कोलम´ आदि नामों से जाना जाता है।
ऐपण कुमाउंनी लोकचित्रों की एक ऐसी परम्परा है जिसे अलग - अलग अवसरों पर अलग तरीकों से बनाया जाता है। जैसे विवाहोत्सव में वर के स्वागत के लिये जो चौकी बनाते हैं उसे `धूलि अघ्र्य´ की चौकी कहते हैं।
इसी तरह दीपावली में लक्ष्मी पूजा के दौरान बनायी जाने वाली चौकी को `लक्ष्मी चौकी´, यज्ञोपवीत में `जनेउ´ चौकी कहते हैं। मांगलिक अवसरों पर एक विशेष अंकन बनाया जाता है जिसे `नींबू´ कहते हैं। बूढ़ी दिवाली के अवसर पर लक्ष्मी नारायण की चौकी बनायी जाती है जिसे `घूइया´ कहते हैं और गोवर्धन पूजा के लिये बनायी जाने वाली चौकी को `गोवर्धन चौकी´ कहते हैं। इसी तरह कुछ और चौकियां भी होती हैं।
चौकियों के अलावा ऐपण को देली (प्रवेश द्वार) पर भी बनाया जाता है। जिसमें तरह तरह के फूल, पत्तियां, बेले आदि को बनाया जाता है। दीपावली के दौरान लक्ष्मी के पैरों को भी बनाने का नियम हैं।
इन ऐपणों को बनाने के लिये गेरू मिट्टी (लाल मिट्टी) और चावल को भिगा कर उसे पीस कर लेप (बिसवार) तैयार करके बनाया जाता है। पहले गेरू मिट्टी को उस स्थान या चौकी में लगा लेते हैं जहां पे ऐपण देने होते हैं। उसके सूखने के बाद बिसवार से तरह-तरह की चौकी या नमूने बनाये जाते हैं। इन नमूनों या चौकियों को अंगूलियों की मदद से ही बनाया जाता है।
अब समय के साथ-साथ इसमें बदलाव भी आने लगे हैं। जिसे गेरू मिट्टी की जगह लाल पेंट और बिसवार की जगह सफेद पेंट का इस्तेमाल किया जाने लगा है तथा अंगूलियों की जगह ब्रश से ऐपण दिये जाने लगे हैं। बाजार में भी अब इन चौकियों या देली में लगाये जाने वाले नमूनों की बड़े-बड़े स्टीकर मिलने लगे हैं। |
आईये आपको मिलवाते हैं हमारे सहायक संपादक हीरामन और उनके सहयोगी पीटर से. जिनकी जोडी हीरु और पीरू की जोडी के नाम से प्रसिद्ध है. जो टीपणी वीरों का सलेक्शन करते हैं.
भाईयों और बहनों आप सबको हीरामन “हीरू” और पीटर “पीरू” की नमस्ते. पीटर : अरे हीरू ये देख ..शाश्त्री अंकल को गंजे होने का डर सताने लगा है? हीरामन : हां रे पीरू यार. ये तो खुद ही सठियाने की भी बाते करने लगे हैं? पीटर : हां यार हीरु. सठियाने के पहले का समय ऐसा ही होता है. हीरामन : तो यार ये क्या अपने शाश्त्री अंकल सचमुच सठिया गये हैं? पीटर : अभी तो नही पर धीरे धीरे उस रास्ते चल पडे हैं. हीरामन : तो यार ये समीर अंकल को क्युं घसीट रहे हैं? समीर अंकल तो अभी जवान हैं ना? पीटर : अरे यार तू समझता नही है, यू.. नो …ये तुम्हारा इंडिया में लोग ससुर बना कि बुड्ढा हुआ ..और यू नो कि…शाश्त्री अंकल..का मटलब होटा..कि समीर जी टुम भी अब सुर के साथ हो गये हो यानि ससुर बन गये हो तो बिना कहे ही मेरी लाईन मे आजावो.
हीरामन : अच्छा अब समझा कि इशारों इशारों मे समीर अंकल को भी बुड्ढा बोल रहे हैं. हा…हा…हा…समीर अंकल आपको भी शाश्त्री अंकल ने लपेट लिया आज तो..
टिपणीवीर सम्मान :
पीटर : अरे हिरु जरा देखो ये दिगम्बर नासवा अंकल का तो दिमाग ही काम करना बंद कर दिया?
हीरामन : अरे नही यार..ये अंकल का दिमाग तो बहुत तेज है. इनको समय कम मिलता है तो बहाने मार रहे हैं..समझा क्या?
पीटर : अच्छा …अच्छा..अब समझा… क्या अंकल आप भी खाली पीळी….खैर कोई बात नही आज का दुसरा खिताब आपको जाता है.
पीटर : अरे हीरामन ..देख देख ये अविनाश अंकल कहां भाग लिये? अरे इनको पकडो कोई तो..
हीरामन : अरे पीरू चल जल्दी भाग…अविनाश अंकल को रोको कोई..वर्ना अगली बार इतनी मजेदार टिपणी कहां से मिलेगी?
पीटर : चल यार आज इनको बनाते हैं तीसरे नम्बर का विदुषक.
अब हीरामन और पीटर को इजाजत दिजिये अगले सप्ताह आपसे फ़िर मुलाकात होगी. |
पुराण शब्द ‘पुरा’ एवं ‘अण’ शब्दों की संधि से उत्पन्न हुआ है, जिसका शाब्दिक अर्थ है-‘पुराना’ अथवा ‘प्राचीन’। ‘पुरा’ शब्द का अर्थ है-अनागत एवं अतीत। ‘अण’ शब्द का अर्थ है-कहना या बताना। अर्थात् जो प्राचीन काल अथवा पूर्व काल अथवा अतीत के तथ्यों, सिद्धांतों, शिक्षाओं, नीतियों, नियमों और घटनाओं का विस्तृत विवरण प्रस्तुत करे।
‘‘सृष्टि के रचनाकर्ता ब्रह्माजी ने सर्वप्रथम जिस प्राचीनतम धर्मग्रंथ को प्रकट किया, उसे पुराण के नाम से जाना जाता है। इनकी रचना वेदों से पूर्व हुई थी, इसलिए ये पुराण-प्राचीन अथवा पुरातन कहलाते हैं।’’ पुराण का अस्तित्व सृष्टि के प्रारम्भ से है, इसलिए इन्हें सृष्टि के प्रथम और सबसे प्राचीनतम ग्रंथ होने का गौरव प्राप्त है। जिस प्रकार सूर्य प्रकाश का स्रोत है, उसी प्रकार पुराण को ज्ञान का स्रोत कहा जाता है। जहाँ सूर्य अपनी किरणों से रात्रि का अंधकार दूर कर चारों ओर उजाला कर देता है, वहीं पुराण ज्ञानरूपी किरणों से मनुष्य-मन के अंधकार को दूर कर उसे सत्य के प्रकाश से सराबोर कर देते हैं।
यद्यपि पुराण अत्यंत प्राचीनतम ग्रंथ हैं तथापि इनका ज्ञान और शिक्षाएँ पुरानी नहीं हुई हैं, बल्कि आज के संदर्भ में उनका महत्त्व और भी बढ़ गया है। जब से जगत् की सृष्टि हुई है, तभी से यह जगत् पुराणों के सिद्धांतों, शिक्षाओं और नीतियों पर आधारित है। पुराणों में सृष्टि के आरम्भ से अन्त तक का विस्तारपूर्वक विवरण दिया गया है। पुराणों को मानव सभ्यता के भूत, भविष्य और वर्तमान का दर्पण कहा जाए तो ज्यादा सटीक रहेगा। इसी दर्पण में मनुष्य अपने प्रत्येक युग का चेहरा भली भांती देख सकता है। इसी दर्पण में अपने अतीत को देखकर वह अपना वर्तमान संवार सकता है और भविष्य को उज्जवल बना सकता है। अतीत में जो हुआ, वर्तमान में जो हो रहा है और भविष्य में जो होगा, यही कहते हैं पुराण। इनमें हिन्दू देवी-देवताओं का और पौराणिक मिथकों का बहुत अच्छा वर्णन है । श्री वेदव्यास जी द्वारा रचित इन पुराणों की संख्या 18 हैं; जो कि 6-6 के तीन भागों में त्रिदेवों (ब्रह्मा,विष्णु,महेश) पर आधारित हैं...
पुराणों की श्लोक संख्या :
कहीं-कहीं "वायु-पुराण" नाम से एक अन्य पुराण की भी चर्चा आती है . जिसकी श्लोक संख्या चौबीस हजार छ: सौ है. इसके अतिरिक्त सनत्कुमार पुराण,नृ्सिंह पुराण,नारद पुराण,शिवपुराण(वास्तव में यह लिंग पुराण का ही भाग है),कपिलपुराण, दुर्वासा पुराण,मनुपुराण,उशन: पुराण, वरूण पुराण,कालिका पुराण,साम्बपुराण्,सौरपुराण,पाराशरपुराण,नंदी पुराण,अदित्य पुराण,भागवत पुराण, माहेश्वर पुराण,वशिष्ठ पुराण् नामक 18 उपपुराण माने गए हैं. इनके साथ ही वर्तमान में जैन और बौद्ध धर्मों के भी कुछ पुराण प्रचलन में है. नोट:- आधुनिक युग में जिन लोगों को पुराणों के बारे में तनिक भी जानकारी नहीं है, उस प्रकार के कुछ लोग "एकलिंग पुराण" को भी इन पुराणों की श्रेणी में सम्मिलित करने लगे हैं. जब कि वास्तव में इस ग्रन्थ की रचना आज से लगभग 550 वर्ष पहले क्षत्रिय राजपूत राजा कुंभा के समय में हुई थी. राजस्थान में लिखा गया यह हिन्दु संस्कृ्ति का एकमात्र ग्रन्थ है. किन्तु इस ग्रन्थ का पुराणों से कोई भी संबंध नहीं है. |
पत्रिका अच्छी लगी। बहुत सी जानकारियाँ प्राप्त हुई। लेकिन पुराणों के संबंध में यह जानकारी मिथ्या है कि वे वेद से भी पुराने हैं। हाँ पुराणकार ऐसा जरूर लिखते हैं। लेकिन पुराणकार मिथ्याभाषी भी हैं। हर पुराण में दूसरे पुराण से विपरीत बातें कही गई हैं। पुराणों का रचना काल ईसा के उपरांत दूसरी शताब्दी के बाद का है। यदि इनके रचनाकाल के बारे में जानकारी देनी थी तो सभी मान्यताओं को एक साथ रखा जाना चाहिए था। इस से भ्रम की स्थिति नहीं बनती। गरुड़ पुराण तो विभत्सरस की सब से श्रेष्ठ रचना है और भय उत्पन्न कर के यजमानों से धन ऐंठने के निकृष्ठ ब्राह्मण कर्म की उपज है। अब तो उस का स्थान गीतापाठ लेता जा रहा है।
ReplyDeleteताऊ जी, राम राम,
ReplyDeleteपत्रिका का ये रंग बहुत भाया। हिडिम्बा देवी और महाभारत संबधित जानकारी बहुत अच्छी लगी। पंडित जी ने पुराणो पर अच्छी जानकारी दी, वैसे सारे पाठक पुराणों पर आधारित वेबसाईट वेदपुराण पर वेदों और पुराणों को सुन भी सकते हैं।
आज का अंक तो और भी ताजगी भरा है.
ReplyDeleteअच्छा अंक हमेशा की तरह...
ReplyDeleteभेड़ों वाला भाषण तो जबरदस्त है...
ताऊ जी।
ReplyDeleteतू भेडों को भाषण पिलाने कार मे बैठा कर लाया।
कमाल है।
जो कमजोर वजीरे-आजम की,
स्वर लहरी बोल रहे थे।
शासन स्वयं चलाने को,
मुँह में रसगुल्ले घोल रहे थे।।
उनको भारत की जनता ने,
सब औकात बता डाली है।
कितनों की संसद में जाने की,
अभिलाष मिटा डाली है।।
मनसूबे सब धरे रह गये,
सपने चकनाचूर हो गये।
आशा के अनुरूप मतों को,
पाने को मजबूर हो गये।।
फील-गुड्ड के नारे को तो,
पहले ही ठुकरा डाला था।
अब भी नही निवाला खाया,
जो चिकना-चुपड़ा डाला था।।
माया का लालच भी जन,
गण, मन को, कोई रास न आया।
लालू-पासवान के जादू ने,
कुछ भी नही असर दिखाया।।
जिसने जूता खाया, उसको हार,-
हार का हार मिला है।
पाँच साल तक घर रहने का,
बदले में उपहार मिला है।।
लोकतन्त्र के महासमर में,
असरदार सरदार हुआ है।
ई.वी.एम. के भवसागर में,
फिर से बेड़ा पार हुआ है।।
जनता की उम्मीदों पर,
अब इनको खरा उतरना होगा।
शिक्षित-बेकारों का दामन,
रोजगार से भरना होगा।।
"जीवन कोई संयोग नहीं बल्कि इंसान का अपना ही प्रतिबिंब है..." बहुत प्रेरक..
ReplyDeleteताऊ बधाई पत्रिका के एक और बहुआयामी अंक के लिये..
कभी भेड़ो के साथ हमे भी घुमाने ले चलो ताऊजी।
ReplyDeleteताउजी की पत्रिका क्या है जानकारी का खजाना है...सब की मेहनत रंग लायी है और हम से अज्ञानियों की जानकारी बढ़ाई है....जय हो...(आज कल येही नारा चल रहा है)
ReplyDeleteनीरज
पत्रिका का ये रंग बहुत भाया।
ReplyDeleteपत्रिका का ये रंग बहुत भाया।
ReplyDeleteहर बार की तरह बेहतरीन अंक... ताऊजी समेत सभी संपादकों का आभार
ReplyDeleteताऊ जी, पत्रिका का ये अंक तो समझिए कि जानकारियों का खजाना है.....आशीष जी, अल्पना जी, सुश्री सीमा गुप्ता जी एवं सुश्री विनीता अवस्थी जी ने तो पत्रिका में चार चांद ही लगा दिए.....सभी विद्वानों का आभार.
ReplyDelete-----------------------------------
यहां मैं श्री द्विवेदी जी से एक बात कहना चाहूंगा कि अभी हम लोगों की समझ बूझ उतनी विकसित नहीं हुई है कि वेद और पुराणों में निहित तत्वों को जान पायें.
"गरुड़ पुराण तो विभत्सरस की सब से श्रेष्ठ रचना है और भय उत्पन्न कर के यजमानों से धन ऐंठने के निकृष्ठ ब्राह्मण कर्म की उपज है।"इसके उत्तर में मैं सिर्फ इतना ही कहना चाहूंगा कि सब देखने वाले की नजर पर निर्भर करता है..कि वो क्या देखना चाहता है. आपको ये वीभत्सरस की रचना दिखाई देती है. जब कि मेरी नजर में सभी पुराणों में इससे बढकर कृ्ति कोई भी नहीं हैं.जिसके प्रत्येक श्लोक में इस सृ्ष्टि का एक गूढ रहस्य छिपा है.
माना कि आज अधिकांशत: ब्राह्मण इसके माध्यम से लोगों के मन में भय का संचार करके धन ऎंठने का निकृ्ष्ट कर्म कर रहे हैं तो यहां समस्त दोष उस ब्राह्मण वर्ग का है न कि "गरूड पुराण" का.
हमेशा की तरह लाजवाब है ताऊ.............
ReplyDeletebhedon vaali बात तो सोचने वाली बात है................पूरी पोस्ट आराम से पढने वाली होती है .. रोचक और जानकारी से भरपूर
हाय रामप्यारी, कैसी हो तुम ?
ReplyDeleteताऊ पत्रिका का ये अंक भी रोचक जानकारियों से भरा हुआ है.
मुझे लगता है कि तुम्हारी बातें और ताऊ जी के पहेलियों से मेरा जेनरल नॉलेज अच्छा हो जायेगा.
शानदार पत्रिका, आभार सभी संपादकों का.
ReplyDeleteशानदार पत्रिका, आभार सभी संपादकों का.
ReplyDeleteताऊ भेडों के बहाने शानदार व्यंग.
ReplyDeleteबहुत व्यव्स्थित लगी पत्रिका, अतिथि संपादक के रुप मे पुआणों से संबंधित अच्छी जानकारी. आपका
ReplyDeleteप्रयास बहुत अच्छा है.
पुआणों को पुराणों पढें.
ReplyDeleteताऊ आज तो हीरू और पीरू की जोडी जम गई.
ReplyDeleteओर भेडों का हाल तो खरबूजे जैसा ही है. सही कहा.
bahut badhiya hai.
ReplyDeleteताऊ बहुत बढिया लिखा भेडों के बहाने. सराहनिय
ReplyDeleteराम राम ताऊजी।
ReplyDeleteआज तो मजा आ गया।
हिडिम्बा मंदिर के बारे में पहली बार जाना. पुराणों कि जानकारी अच्छी रही. सीमा जी का तो जवाब नहीं
ReplyDeleteआप सभी को बधाई जी
ReplyDeleteघणी राम राम सा
भेडो के लिये दिया भाषण अच्छा लगा ।
ReplyDeleteयह तो बहुत अच्छी पत्रिका निकाल रहे हैं आप .
ReplyDeleteएक ही पन्ने पर कई सारे पन्ने ,और वो भी एक से बढ़्कर एक
संपादक मंडल :-मुख्य संपादक : ताऊ रामपुरिया
ReplyDeleteविशेष संपादक : अल्पना वर्मा
संपादक (प्रबंधन) : Seema Gupta
संपादक (तकनीकी) : आशीष खण्डेलवाल
संस्कृति संपादक : विनीता यशश्वी
सहायक संपादक : मिस. रामप्यारी, बीनू फ़िरंगी एवम हीरामन
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आप सब को बहुत बहुत बधाई --
पूरी पत्रिका पढी -
बेहद रोचक लगी
स स्नेह,
- लावण्या
जय हो!
ReplyDeleteपत्रिका का एक और उत्कृष्ट अंक. ताऊ ये रिडायरेक्ट का कुछ तो चक्कर है रीडर से खोलने पर खुला ही नहीं कल. और हम पढ़ के बैठ गये. :(
ReplyDeleteवाकई, बहुत उत्कृष्ट पत्रिका होती जा रही है. पीडीएफ डाउनलोड की व्यवस्था की जाये ताकि प्रिन्ट करके ट्रेन वगैरह में इत्मिनान से पढ़ा जा सजे. आशीष बतायें.
ReplyDeleteसभी को बधाई एवं शुभकामनाऐं.
हमें तो हीरामन से शास्त्री जी की हरकत का पता चला..मुझ जैसे युवा के लिए ऐसी बात-देखता हूँ अभी.
ReplyDeleteबहुत ही अच्छी जानकारियाँ प्राप्त हुई.पुराणो पर बहुत अच्छी जानकारी .सभी का आभार.
ReplyDeletePuran can not be older than Vedas.
ReplyDeletePuranas have been written 400 years +/- A.D.