राऊंड दो के छठे अंक की पहेली का सही जवाब मा कामाख्या का मंदिर था. जिसके बारे मे आज के अंक मे विशेष जानकारी दे रही हैं सुश्री अल्पना वर्मा.
आजकल की ताजा खबर तो चुनाव ही हैं, पर इससे अलग एक खबर यह भी है कि दिल्ली सरकार ने कुछ लाख रुपये (शायद ३४ लाख के करीब) मध्यप्रदेश सरकार को दिये थे. और यह रुपये इस एवज मे दिये थे कि दिल्ली से बंदरों को पकड कर उन्हे मध्य-प्रदेश मे भेज दिया जाये.
तो साहब इस आफ़र से भला म.प्र. शाशन को क्या आपत्ति हो सकती थी? हींग लगे ना फ़िटकरी और रंग चोखा. यहां पहले ही ताऊ जैसे बडे बडे बंदर रह रहे हैं तो दिल्ली के बंदर यहां क्या करेंगे? सो रुपये अंटी मे किये और पहली खेप आदर सहित बुलवा कर जंगलों मे छोड दी गई.
पिछले सप्ताह फ़िर आफ़र आया कि और रुपये ले लिजिये और कुछ ताऊओं को अपने यहां बसा लिजिये. अबकी बार यहां की सरकार ने कहा – साहब आप तो आपके रुपये अपने पास रखो और पिछले रुपये दुगुने
वापस ले लो और इन ताऊओं को वापस बुलवा लो.
यहां आकर इन दिल्ली के ताऊओं (बंदरों) ने इतना उपद्रव मचाया कि जिन जंगलों म्र इनको छोडा गया था वहां के आसपास के गांवों में रहने वाले ग्रामीण परेशान हो गये. आखिर दिल्ली के बंदर थे सो शांति से नही रह सकते थे.
बात मजाक की नही है. हमने जंगली जानवरों के ठीकानों (जंगलों) को इस बेदरदी से उजाडा है कि अब इन जंगल के बाशिंदों को शहरों का रुख करना पड रहा है. और अब ये बंदर तो कहते हैं कि शहरी जीवन के अभ्यस्त भी हो गये हैं.
आखिर इन्सान अपनी करनी का फ़ल तो भुगतेगा ही. आखिर इन्सान क्या चाहता है? शायद अकील नेमानी साहब ने इसीलिये कहा होगा :
मैं ये सर खुद ही कलम करके तुझे दे देता
मसले तेरे अगर हल मेरे सर से होते
आज हमारे तकनीकी संपादक आशीष खंडेलवाल जी के ब्लाग हिंदी टिप्स की वर्ष गांठ है. उनको हार्दिक बधाईयां .
आइये अब चलते हैं सु अल्पनाजी के “मेरा पन्ना” की और:-
-ताऊ रामपुरिया
-अल्पना वर्मा नमस्कार, फ़िर एक नई जगह की जानकारी के साथ आपके सामने उपस्थित हुई हूं. आशा है हमेशा की तरह आप इसे भी पसंद करेंगे. उत्तर पूर्वी भारत में एक हरा भरा सरहदी राज्य है 'आसाम' जो मानसून और चाय के बागानों लिए प्रसिद्द है.यही बहती है ब्रह्मपुत्र नदी.प्राचीन भारतीय ग्रंथों में इस स्थान को 'प्रागज्योतिषपुर' के नाम से जाना जाता था.इस राज्य की राजधानी है -गुवाहाटी.प्राचीन मंदिरों के दर्शन आप को यहाँ होंगे.मगर यहाँ 'पिकॉक-आइलैंड 'में बने सुंदर 'शिव मंदिर 'में छेनी की धार और हाथ के कौशल से वास्तुकला के आश्चर्यजनक काम को देख कर कोई भी आश्चर्यचकित रह जायेगा. मुख्य दर्शनीय स्थल हैं-कामाख्या मंदिर,नवग्रह मंदिर,उमानन्दा मंदिर,वशिष्ठ आश्रम,असम जू एवं बॉटनिकल गार्डन्स,हाजो,पाव मक्का मस्जिद. मां भगवती कामाख्या मंदिर देवी भागवत पुराण में 108, कालिकापुराण में छब्बीस, शिवचरित्र में इक्यावन, दुर्गा शप्तसती और तंत्रचूड़ामणि में शक्ति पीठों की संख्या 52 बताई गई है.इस बार की पहेली में हमने एक शक्ति पीठ के बारे में ही आप से पूछा था. गुवाहाटी से 7 कि.मी की दूरी पर स्थित नीलांचल अथवा नीलशैल पर्वतमालाओं पर समुद्र तल से ८०० फीट ऊँचाई पर स्थित मां भगवती कामाख्या का सिद्ध शक्तिपीठ सती के इक्यावन शक्तिपीठों में सर्वोच्च स्थान रखता है. इस मंदिर का निर्माण कब हुआ? कोई कहता है इसे राजा नरकासुर ने बनवाया था.कोई कहता है कामदेव ने!.मगर इतिहास कहता है की वर्तमान ढांचा १५६५ में कच्छ वंश के राजा चिलाराय[?]ने बनवाया था और मुगल बादशाह औरंगजेब [?] के हमलों में यह नष्ट हो गया था .इस पुनर्निर्माण राजा नर नारायण ने १६५६ में करवाया. इस का गुम्बद मधुमक्खियों के छत्ते की भांति है। इस की शक्ती है कामाख्या और भैरव को उमानंद कहते हैं। इस मंदिर परिसर में मुख्य मंदिर के अतिरिक्त अन्य देवियों - काली , तारा , बगला , छिन्नमस्ता ,भुवनेस्वरी , भैरवी और धूमावती के मंदिर भी हैं.कुछ और मंदिर इसी मंदिर के काम्प्लेक्स में हैं-सीतला , ललित कांता, जय दुर्गा 'वन दुर्गा ,राजराजेस्वरी ,स्मसनाकल , अभयानंद धर्मशाला का काली मंदिर और संखेस्वरी मंदिर.कामख्या मंदिर प्रांगण में भगवान शिव के भी ५ मंदिर हैं जो उनके ५ रूप 'कामेस्वारा, सिद्धेस्वरा , अम्रतोकेस्वारा , अघ्प्रा और तत्पुरुसा 'को बताते हैं.भगवान विष्णु के ३ मंदिर भी यहीं हैं. -मंदिर के गर्भगृह स्थित 'महामुद्रा' पर प्राकृतिक जल धारा बहती है.जिस को रेशम के परिधान और फूलों में ढका देखा जा सकता है.इनके दर्शन में आलौकिक अनुभूति होती है. -सती स्वरूपिणी आद्यशक्ति महाभैरवी कामाख्या तीर्थ को विश्व का सर्वोच्च कौमारी तीर्थ भी माना जाता है.इसीलिए इस शक्तिपीठ में कौमारी-पूजा अनुष्ठान का भी अत्यंत महत्व है -इस स्थान को मानवता के उद्गम का केंद्र भी माना जाता है. दर्शन हेतु मंदिर द्वार खुलने का समय-सुबह ८ से १- पुनः २.३० से कब जाएँ- जब भी माता का बुलावा हो तब दर्शन हेतु जाएँ. कैसे जाएँ -गुवाहाटी शहर सभी मुख्य शहरों से सड़क,वायु,रेल मार्ग से जुडा है. मंदिर से सम्बंधित प्रचलित पुरानी कथाएँ- १-कहा जाता है कि सती पार्वती ने अपने पिता द्वारा अपने पति, भगवान शिव का अपमान किए जाने पर हवन कुंड में कूदकर अपनी जान दे दी थी. भगवान शिव को आने में थोड़ी देर हो गई, तब तक उनकी अर्धांगिनी का शरीर जल चुका था. उन्होंने सती का शरीर आग से निकाला और तांडव नृत्य आरंभ कर दिया. अन्य देवतागण उनका नृत्य रोकना चाहते थे, अत: उन्होंने भगवान विष्णु से शिव को मनाने का आग्रह किया. भगवान विष्णु ने सती के शरीर के 51 टुकड़े कर दिए और भगवान शिव ने नृत्य रोक दिया. कहा जाता है कि सती की योनि (सृजक अंग) गुवाहाटी में गिरी. यह मंदिर देवी की प्रतीकात्मक ऊर्जा को समर्पित है। यह मंदिर शक्ति की देवी सती का मंदिर है.इसका महत् तांत्रिक महत्व है.प्राचीन काल से सतयुगीन तीर्थ कामाख्या वर्तमान में तंत्र सिद्धि का सर्वोच्च स्थल है.यहीं माँ भगवती की महामुद्रा (योनि-कुण्ड) स्थित है। २-कामाख्या के शोधार्थी एवं प्राच्य विद्या विशेषज्ञ डॉ. दिवाकर शर्मा के अनुसार कामाख्या के बारे में किंवदंती है कि घमंड में चूर असुरराज नरकासुर एक दिन मां भगवती कामाख्या को अपनी पत्नी के रूप में पाने का दुराग्रह कर बैठा था. कामाख्या महामाया ने नरकासुर की मृत्यु को निकट मानकर उससे कहा कि यदि तुम इसी रात में नील पर्वत पर चारों तरफ पत्थरों के चार सोपान पथों का निर्माण कर दो एवं कामाख्या मंदिर के साथ एक विश्राम-गृह बनवा दो, तो मैं तुम्हारी इच्छानुसार पत्नी बन जाऊँगी और यदि तुम ऐसा न कर पाये तो तुम्हारी मौत निश्चित है। गर्व में चूर असुर ने पथों के चारों सोपान प्रभात होने से पूर्व पूर्ण कर दिये और विश्राम कक्ष का निर्माण कर ही रहा था कि महामाया के एक मायावी कुक्कुट (मुर्गे) द्वारा रात्रि समाप्ति की सूचना दी गयी, जिससे नरकासुर ने क्रोधित होकर मुर्गे का पीछा किया और ब्रह्मपुत्र के दूसरे छोर पर जाकर उसका वध कर डाला। यह स्थान आज भी [दर्रांग जिले में `कुक्टाचकि' /'kukarkata' के नाम से विख्यात है और यह सीढियाँ 'मेखेलौजा पथ' के नाम से जानी जाती हैं. बाद में मां भगवती की माया से भगवान विष्णु ने नरकासुर असुर का वध कर दिया। नरकासुर की मृत्यु के बाद उसका पुत्र भगदत्त कामरूप का राजा बना। भगदत्त का वंश लुप्त हो जाने से कामरूप राज्य छोटे-छोटे भागों में बंट गया और सामंत राजा कामरूप पर अपना शासन करने लगा।नरकासुर के नीच कार्यों के बाद एवं विशिष्ट मुनि के अभिशाप से देवी अप्रकट हो गयी थीं. यहाँ मनाया जाने वाला महत्वपूर्ण पर्व है -अम्बुवाची पर्व-: विश्व के सभी तांत्रिकों, मांत्रिकों एवं सिद्ध-पुरुषों के लिये वर्ष में एक बार पड़ने वाला अम्बूवाची योग पर्व वस्तुत एक वरदान है. यह अम्बूवाची पर्वत भगवती (सती) का रजस्वला पर्व होता है. पौराणिक शास्त्रों के अनुसार सतयुग में यह पर्व 16 वर्ष में एक बार, द्वापर में 12 वर्ष में एक बार, त्रेता युग में 7 वर्ष में एक बार तथा कलिकाल में प्रत्येक वर्ष जून माह में तिथि के अनुसार मनाया जाता है. साल २००८ में अम्बूवाची योग पर्व जून की 22, 23, 24 तिथियों में मनाया गया. पौराणिक सत्य है कि अम्बूवाची पर्व के दौरान माँ भगवती रजस्वला होती हैं और मां भगवती की गर्भ गृह स्थित महामुद्रा (योनि-तीर्थ) से निरंतर तीन दिनों तक जल-प्रवाह के स्थान से रक्त प्रवाहित होता है. यह अपने आप में, इस कलिकाल में एक अद्भुत आश्चर्य का विलक्षण नजारा है. कामाख्या तंत्र के अनुसार - योनि मात्र शरीराय कुंजवासिनि कामदा। रजोस्वला महातेजा कामाक्षी ध्येताम सदा।। इस बारे में `राजराजेश्वरी कामाख्या रहस्य' एवं `दस महाविद्याओं' नामक ग्रंथ के रचयिता एवं मां कामाख्या के अनन्य भक्त ज्योतिषी एवं वास्तु विशेषज्ञ डॉ. दिवाकर शर्मा ने बताया कि अम्बूवाची योग पर्व के दौरान मां भगवती के गर्भगृह के कपाट स्वत ही बंद हो जाते हैं और उनका दर्शन भी निषेध हो जाता है. इस पर्व की महत्ता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि पूरे विश्व से इस पर्व में तंत्र-मंत्र-यंत्र साधना हेतु सभी प्रकार की सिद्धियाँ एवं मंत्रों के पुरश्चरण हेतु उच्च कोटियों के तांत्रिकों-मांत्रिकों, अघोरियों का बड़ा जमघट लगा रहता है। तीन दिनों के उपरांत मां भगवती की रजस्वला समाप्ति पर उनकी विशेष पूजा एवं साधना की जाती है। आद्य-शक्ति महाभैरवी कामाख्या के दर्शन से पूर्व महाभैरव उमानंद, जो कि गुवाहाटी शहर के निकट ब्रह्मपुत्र नदी के मध्य भाग में टापू के ऊपर स्थित है, का दर्शन करना आवश्यक है. यह एक प्राकृतिक शैलदीप है, जो तंत्र का सर्वोच्च सिद्ध सती का शक्तिपीठ है. इस टापू को मध्यांचल पर्वत के नाम से भी जाना जाता है, क्योंकि यहीं पर समाधिस्थ सदाशिव को कामदेव ने कामबाण मारकर आहत किया था और समाधि से जाग्रत होने पर सदाशिव ने उसे भस्म कर दिया था. भगवती के महातीर्थ (योनिमुद्रा) नीलांचल पर्वत पर ही कामदेव को पुन जीवनदान मिला था. इसीलिए यह क्षेत्र कामरूप के नाम से भी जाना जाता है. जिस प्रकार उत्तर भारत में कुंभ महापर्व का महत्व माना जाता है,ठीक उसी प्रकार उससे भी श्रेष्ठ इस आद्यशक्ति के अम्बूवाची पर्व का महत्व है. इसके अंतर्गत विभिन्न प्रकार की दिव्य आलौकिक शक्तियों का अर्जन तंत्र-मंत्र में पारंगत साधक अपनी-अपनी मंत्र-शक्तियों को पुरश्चरण अनुष्ठान कर स्थिर रखते हैं. इस पर्व में मां भगवती के रजस्वला होने से पूर्व गर्भगृह स्थित महामुद्रा पर सफेद वस्त्र चढ़ाये जाते हैं, जो कि रक्तवर्ण हो जाते हैं. मंदिर के पुजारियों द्वारा ये वस्त्र प्रसाद के रूप में श्रद्धालु भक्तों में विशेष रूप से वितरित किये जाते हैं. इस पर्व पर भारत ही नहीं बल्कि बंगलादेश, तिब्बत और अफ्रीका जैसे देशों के तंत्र साधक यहां आकर अपनी साधना के सर्वोच्च शिखर को प्राप्त करते हैं. वाममार्ग साधना का तो यह सर्वोच्च पीठ स्थल है. मछन्दरनाथ, गोरखनाथ, लोनाचमारी, ईस्माइलजोगी इत्यादि तंत्र साधक भी सांवर तंत्र में अपना यहीं स्थान बनाकर अमर हो गये हैं. खबरों में- १-उचित देखरेख के अभाव में प्रसिद्ध कामाख्या मंदिर समेत असम के कई पुराने मंदिरों का ढाँचा कमजोर हो रहा है. आस्था और अंधविश्वास के आगे इन मंदिरों का पुरातात्विक महत्व लुप्त होता जा रहा है. २ -हर साल जून मास में लगने वाले मेले में निसंतान दंपत्ति संतान प्राप्ति हेतु आशीर्वाद लेने भी आते हैं. ३-यहाँ दी जाने वाली पशु बलि के विरुद्ध पशु प्रेमी संस्थानों ने अपनी चिंता जतायी है. [यह जानकारी अंतर्जाल से अव्यवसायिक एवम शैक्षिक उद्देश्य हेतु संकलित की गयी है.] अगले सप्ताह फ़िर किसी नई जगह के बारे मे जानकारी लेकर मिलते हैं तब तक के लिये नमस्ते. -अल्पना वर्मा ( विशेष संपादक ) |
-आशीष खण्डेलवाल नमस्कार, इस कार को ठीक से पहचान लीजिए। यह कार अगर आपके शहर, आपकी गली में दिखाई दी तो आप मुश्किल में पड़ सकते हैं। यह कार आपका सुख-चैन छीन सकती है। जी नहीं, मेरी गूगल कंपनी या इसकी कार से कोई दुश्मनी नहीं है। मैं तो बस आपको आगाह करना चाह रहा हूं। पिछले हफ्ते जब यह कार जब ब्रिटेन के बकिंघमशायर से गुजरी, तो वहां के लोगों ने इसका जमकर विरोध किया और उसके बाद इस कार को अपना काम किए बगैर ही लौटना पड़ा। आप सोच रहे होंगे कि आखिर यह कार ऐसा कौनसा काम करती है। दरअसल यह कार गूगल स्ट्रीट व्यू परियोजना का हिस्सा है। इस कार के ऊपर लगा कैमरा आपके शहर की हर गली की तस्वीरें खींचता है और उसके बाद इसे गूगल मैप के जरिए इंटरनेट पर डाल दिया जाता है। यह परियोजना भले ही अभी तक भारत में लागू नहीं हुई हो, लेकिन यह अमेरिका, ब्रिटेन, नीदलैंड्स, फ्रांस, इटली, स्पेन, आस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड और जापान में चल रही है। भारत भी इस परियोजना का अगला हिस्सा हो सकता है। अब आप सोच रहे होंगे कि इस कार का विरोध आखिर क्यों किया जा रहा है। यह तो अच्छा है कि पूरी जानकारी इंटरनेट पर मुहैया हो जाएगी। अगर आप वाकई ऐसा सोच रहे हैं तो नीचे दिए गए वीडियो को देख लीजिए। आपकी राय बदल जाएगी। अगले हफ्ते तक के लिए इजाज़त। आपका दिन शुभ हो.. -आशीष खण्डेलवाल ( तकनीकी संपादक ) |
-Seema Gupta जिंदगी मे युं तो श्रम का अपना एक स्थान है, और सर्वोपरी है. यानि श्रम का कोई मुकाबला नही है. फ़िर भी अनेक बार सभी ने महसूस किया होगा कि कुछ बाते व्यवहारिक रुप से भी अगर उपर वाले पर छोड दी जायें तो ज्यादा हितकारी होती हैं. एक बार एक लड़का अपनी माँ के साथ एक दुकान मे गया. दुकान दार ने छोटे प्यारे बच्चे को देखा तो उसने स्वाभाविक रुप से उसे टाफियों का डिब्बा दिखाया और कहा, लो बेटे इसमें से तुम अपनी पसंद की टाफ़ियां लेलो. लेकिन बच्चे ने नहीं टाफ़ियां नही ली. दुकान दार ..बडा हैरान था की इतना छोटा सा बच्चा है और वह डिब्बे से टाफ़ियां क्यों नही ले रहा है? उसने फिर से उसे ....लो बेटे टाफ़ियां खाओ. अब माँ ने भी दुकान दार की बात सुन कर कहा कि, 'बेटा टाफ़ियां ले लो " मगर बच्चे ने फिर भी नहीं ली... दुकानदार ने देखा की बच्चा टाफ़ियां नही ले रहा है. तो उसने खुद ही अपने हाथॊं में भरकर टाफ़िया बच्चे के दोनों हाथो में और जेब मे भर दी. अब बच्चा अपने दोनों हाथों और जेब में चाकलेट टाफ़ियां भरी देख कर बहुत खुश हुआ. घर लौटते हुए माँ ने बच्चे से पूछा : 'तुम चाकलेट क्यूँ नहीं ले रहे थे जब दुकान दार ने लेने के लिए कहा था?' क्या आप प्रतिक्रिया अनुमान कर सकते हैं: की बच्चे ने क्या कहा होगा ???? उस बच्चे, ने उत्तर दिया : 'माँ, मेरे हाथ बहुत छोटे हैं और यदि मैं अपने हाथों से टाफ़ियां ले लेता तो शायद एक या दो ही मेरे हाथ में आती लेकिन, तुम ने देखा ना की दुकान वाले अंकल ने अपने बड़े बडे दोनों हाथों से दिया तो मेरे दोनों हाथ और जेबे भी भर गये टाफ़ियों से ...!!! सीख : जब हम खुद लेते हैं तो कम मिलता है लेकिन, जब भगवान - सर्वशक्तिमान, देता है वह हमें हमारी उम्मीदों से कहीं अधिक देता है . ... अब अगले सप्ताह फ़िर मिलते हैं तब तक के लिये इजाजत, नमस्कार. -Seema Gupta संपादक (प्रबंधन) |
आईये आपको मिलवाते हैं हमारे सहायक संपादक हीरामन से. जो तीन अति मनोरंजक टिपणियां छांट कर लाये हैं आपके लिये.
अब ताऊ साप्ताहिक पत्रिका का यह अंक यहीं समाप्त करने की इजाजत चाहते हैं. अगले सप्ताह फ़िर आपसे मुलाकात होगी. संपादक मंडल के सभी सदस्यों की और से आपके सहयोग के लिये आभार.
संपादक मंडल :- मुख्य संपादक : ताऊ रामपुरिया
विशेष संपादक : अल्पना वर्मा
संपादक (प्रबंधन) : Seema Gupta
संपादक (तकनीकी) : आशीष खण्डेलवाल
सहायक संपादक : बीनू फ़िरंगी एवम मिस. रामप्यारी
सहायक संपादक : हीरामन
ताऊ जी!
ReplyDeleteघणी राम राम।
बहिन अल्पना वर्मा ने कामाख्या मन्दिर के सम्बन्ध में अच्छी ज्ञान-वर्धक जानकारियाँ दी है। धन्यवाद और बधाई।
अन्त में इतना ही..........
लगे रहो.........लगे रहो........।
हर हिस्सा रोचक और दिलचस्प..खास पसंद: विद्द्या माता की कसम //// रामप्यारी को भी पता है कि ऐसी कसम खा लो..गलत भी रही तो उसे विद्द्या माता से खास कुछ लेना एना तो है नहीं. बेचारी यूँ भी नकल टीप कर काम चला रही है.
ReplyDeleteप्रथम भाग का गंभीर चिन्तन निश्चित ही विचारणीय है.
अतिसुंदर!
ReplyDeleteपत्रिका बहुत निखरी निखरी लगी आज। जानकारियाँ और सूचनाएँ भी बहुत हैं।
ताउओं की जगह न दिल्ली में है न एमपी में. यह राजनीति में ही अच्छे.
ReplyDeleteताऊ और बन्दर ?
ReplyDeleteअल्पना जी की कामाख्या मंदिर की जानकारी रोचक है -यह जादू टोना -कला जादू ,वशीकरण मन्त्र आदि सिद्ध करने की अधिष्टात्री देवी भी हैं !
गूगल स्ट्रीट सर्च से एक तलाक की नौबत आगयी ही जब एक सद्य परिणीता ने देखा कि उसका कुंन्कडू पति उसकी दोस्त के यहाँ कार पार्क किये है ! सत्यानाश गूगल का !
मौला एक मुट्ठी भर मुझे भी तो दे दे -नहीं तो सीमाजी से शिकायत करूंगा -हाँ बोले देता हूँ !
हीरामन के जरिये बोलताहै ताऊ !
साप्ताहिक पत्रिका का कलेवर निखरता जा रहा है.....अल्पना जी, सीमा जी और आशीष जी रामप्यारी के साथ मिल कर वो क्या कहते हैं ...हाँ "चार चांद" लगा देते हैं पत्रिका में
ReplyDeleteआज के सारे धन्यवाद अल्पना जी को जिनसे ताऊ जी इतनी मेहनत करातें हैं ,बहुत अच्छी जानकारी दी है मंदिर के इतिहास के बारे में .
ReplyDelete"अल्पना जी की जानकारी बेहद रोचक लगी....मंदिर में माता की मूर्ति मनमोहक है...." आशीष जी द्वारा काली कार की जानकारी ने तो होश ही उडा दिए.......अब विरोध तो जायज ही है...विदूषक खिताब के विजेताओ को भी बधाई....."
ReplyDeleteवैसे गुवाहाटी से अपना बहुत पुराना दर्द का रिश्ता है जब हम छोटे ही थे हमारे पिता जी की पोस्टिंग थी वहां पर ......हमारे जुड़वाँ भाइयों का जन्म हुआ था गुवाहाटी में मगर एक भी भाई हॉस्पिटल से घर नहीं आ सका एक महीने तक डॉक्टर ने बहुत कोशिश की मगर ....... बस आज अचानक फिर से याद आ गयी .....
Regards
जंगल जिस तेजी से गायब हो रहे हैं वह चिंता का विषय है और इस का परिणाम भी धीरे धीरे सभी को भुगतना पड़ेगा अब वो दिल्ली वाले हों या मध्य प्रदेश वाले!
ReplyDeleteआशीष जी की गूगल वाली खबर भी सोचने पर मजबूर करती है की क्या यह किसी देश या शहर की आंतरिक सुरक्षा को प्रभावित नहीं करेगी?इस का विरोध होना सही है.
सीमा जी की प्रबंधन टिप काम की है..अब इंतज़ार है कि कब वह सर्वशक्तिमान मेहरबान होता है?
कामाख्या मंदिर के बारे में जब मैं ने पहली बार ,पहेली के लिए जानकारी एकत्र करते हुए पढ़ा तो आश्चर्य चकित रह गयी कि ऐसी भी जगह हमारे देश में हैं और हम अनभिग्य हैं,[कम से कम मुझे इतने विस्तार से इस जगह के बारे में नहीं पता था.]नहीं तो आसाम /गुवाहाटी के नाम से वहां बाढ़ या नकसल्वादियों के हमले ही याद आते हैं. पहेली प्रतियोगिता का धन्यवाद कि मैं भी नयी जगहों के बारे में जान रही हूँ.
ताऊ राम राम.. इस पहेली में भाग न लेने का अफसोस है..
ReplyDeleteबधाई सभी को..
पत्रिका का यह अंक भी हमेसा की तरह ज्ञानवर्धक रहा.
ReplyDeleteबहुत सराहनिय प्रयास है आप लोगों का. एक जगह ही इतनी जानकारियां उपलब्ध करवाने के लिये आप सभी का आभार.
ReplyDeleteऔर ताऊ आप तो कहीं भी रहो वहीं पर उत्पात होगा चाहे दिल्ली हो या म.प्र. :)
बढिया खबर.
रामप्यारी को अतिविशेष नमस्कार और अगले शनीवार के लिये दस चाकलेट का कोरियर भिजवा दिया है. :)
ReplyDeleteबहुत धन्यवाद जी आपकी इस पत्रिका को इस रुप मे लाने के लिये. वाकई आप सभी की मेहनत साफ़ दिखाई दे रही है.
ReplyDeleteताऊजी, आपका शुक्रिया.. सालगिरह की बधाई और अकील नेमानी साहब के इतने अच्छे वाक्य को पढ़वाने के लिए.. अल्पना जी ने इस बार बहुत ही गहन जानकारी दी है कामाख्या मंदिर के बारे में.. इसके लिए उन्हें बधाई.. अब तो उन्हें इतिहास लेखक हो जाना चाहिए.. :).. सीमा जी की सीख को गांठ बांध लिया है.. रामप्यारी और हीरामन को भी बधाई इस बेहतरीन अंक के संपादन में योगदान के लिए..
ReplyDeleteअल्पना जी की सुन्दर और रोचक जानकारी..........
ReplyDeleteआशीष जी और सीमा जी का भी आभार...........
पूरी पोस्ट रोचक और विविध जानकारी से भरी
Is baar ka ank bhi humesha ki tarah achhi jankari wala hai...
ReplyDeleteधन्यवाद इतनी ज्ञानवर्धक जानकारी देने के लिए.
ReplyDeleteचार पांच पोस्ट एक जगह और उन सब के लिए एक टिपण्णी, बड़ी बेइंसाफी होगी. एक बार बन्दर शहर का आदी हो जावे तो वापस जंगल में नहीं रह सकता. उनसे मुक्ति का एक मात्र उपाय उन्हें चिडिया घर में रखना है. इन सब के मूल में निश्चित ही उनके आवास का मनुष्य द्वारा अतिक्रमण है.
ReplyDeleteअल्पना जी ने बहुत शोध किया और हमें लाभान्वित किया. पहेली तो बूझ पाना संभव ही नहीं था. मां कामाख्या का चित्र बहुत ही सुन्दर है. ऐसा ही एक कामख्या (कामाक्षी) का मंदिर कांचीपुरम में भी है जो अधिक प्राचीन है.
सीमा जी ने बड़ी सुन्दर बात कही वह भी बच्चे के मुह से.
आशीष जी ने कार के बारे में बताया. सावधान रहेंगे.
विजेताओं को बधाई.
पोस्ट का हरेक हिस्सा पूरी तरह से रोचक और विविध जानकारियों से भरपूर......अल्पना जी,सीमा जी,अशीष जी,हीरामन,और आपके सहित सभी संपादक मंडल का बहुत् बहुत धन्यवाद.......
ReplyDeleteइतनी ज्ञानवर्धक जानकारी देने के लिए धन्यवाद!
ReplyDeleteआशिष जी, इंतजार रहेगा भारत के स्ट्रिट व्यु देखने का.. पर पता नहीं गुगल कितनी गली जा पायेगा, यहां तो सरकार को ही नहीं पता गली है कितनी..
ReplyDeleteसीमा जी - ये शिक्षा मिल रही है की सामने वाले के हाथ देखकर काम करो:)
अल्पना जी- कामख्या मंदिर के बारे में जानकारी देने के लिये आभार.
बहुत अच्छा लगा पढ़कर...
ReplyDeleteगुवाहाटी में दो ब्लॉस्ट में 8 निर्दोष लोगों के मारे जाने की खबर सुनी। मन आहत हो गया.. जहां कामाख्या मां का मंदिर है उस जगह भी दरिंदे खून बहाने से नहीं चूकते..
ReplyDeleteसभी जानकारियां बड़ी रोचक है !
ReplyDeleteहमेँ ताऊ जी की पत्रिका व सारे स्तँभकार अपने से लगने लगे हैँ अब -
ReplyDelete- लावण्या
ताऊ राम राम!
ReplyDeleteसीमा जी की सलाह बड़ी उपयोगी है. मैंने अक्सर ऐसा होते हुए देखा है. जहां तक कामाख्या मंदिर की बात है, मैंने बचपन और कैशोर्य का काफी समय पूर्वोत्तर राज्यों में बिताया है. कामाख्या सचमुच तांत्रिकों के लिए मशहूर है. यह सच है कि इस शक्तिपीठ का अपना धार्मिक और ऐतिहासिक महत्त्व है मगर इसके अन्य पक्ष भी हैं. सन २००२ में नेपाल के तत्कालीन राजा ने भी वहां विशेष तांत्रिक पूजा कराई थीं और भैसों की बलि भी चढाई थीं - सब जानते हैं कि आज नेपाल का राजवंश किस गति को प्राप्त हुआ है.