जैसा कि आप जानते हैं कि ताऊ की शनीचरी पहेली - १ के प्रथम विजेता स्मार्ट इन्डियन यानि की श्री अनुराग शर्मा थे. जिन्हे हम मित्र पित्सबर्गिया के नाम से बुलाते हैं. उनका साक्षात्कार लेने हमें उनके विशेष आग्रह पर वहीं जाना पडा.
हमने उनसे निवेदन किया था कि वो फ़ोन पर ही अपना साक्षात्कार रिकार्ड करवा देवें. पर उन्होने कहा कि वैसे तो आप इधर आते नही हो सो इस बहाने आपका आना भी हो जायेगा और उन्होनें हमको टिकट और वीसा वगैरह का सब प्रबंध करके भिजवा दिया तो उनके पास हमको जाना ही पडा.
हम "पिट्सबर्ग इंटरनेशनल एअरपोर्ट." से बाहर निकले ही थे कि हमको एक आवाज सुनाई दी. ताऊ, जय राम जी की!
हमने पलट कर देखा तो ये अनुराग शर्माजी थे जो हमे लेने एयरपोर्ट आये थे. साथ मे श्रीमती शर्मा और बिटिया अपराजिता भी थी. जो की स्कूल ड्रेस मे थी. हमने भी रामराम की और फ़िर कार से उनके घर की तरफ़ रवाना हुये.
हवाई अड्डे से घर तक पहुँचने के रास्ते में एक लम्बी मगर रौशन सुरंग से गुज़रे.
जैसे ही सुरंग समाप्त हुई, मेरे आश्चर्य का ठिकाना न रहा, एक अद्वितीय नज़ारा था. (श्रीमती एवम श्री शर्मा, बेटी के साथ)
दो विशालकाय नदियों के संगम के किनारे चमकती अट्टालिकाओं से भरा हुआ एक बहुत ही सुंदर नगर हमारे स्वागत में खडा था.. हमारा तो अभी तक सुरंग मे से गुजरने का रोमांच ही नही खत्म हुआ था कि यहां सामने के नजारे को देख कर आश्चर्यचकित रह गये. रास्ते में बिटिया अपराजिता को स्कूल ड्रोप किया.
घर पहूंचकर हमने थोडा आराम किया और तैयार हो कर उनके ड्राईंगरुम में बैठ गये.
फ़िर श्रीमती शर्मा ने हमको भोजन करवाया और खुद बिटिया को लेने स्कूळ चली गई. और हम अनुरागजी का इंटर्व्यु करने बैठ गये. जहां से बाहर का शानदार नजारा दिखाई पड रहा था.
(शर्माजी के घर के पीछे का दृष्य)
हमने पहले ही सवाल को बिना किसी ओपचारिकता के उनको पूछ लिया. और उन्होने भी बिना किसी ओपचारिकता के खुले दिल से जवाब दिये.
ताऊ - : आपके जीवन की कोई अविस्मरणिय घटना हमे बताईये. हमने सुना है कि आपका जीवन बहुत ही घटना प्रधान रहा है?
अनुराग - कहावत है कि पूत के पाँव.......
ताऊ - अरे आगे भी तो कुछ है कहावत में...
अनुराग - हाँ, याद आया... पूत के पाँव, खाने के और, दिखाने के और.
ताऊ - अरे ये क्या किया ? कहावत का भी बेडा गर्क कर दिया. खैर छोडिये, कहावत से बा्द में निबटेंगे, पहले साक्षात्कार तो कर लें... पिट्सबर्ग अब आ ही गये हैं तो जरा यहां घूम फ़िर के भी जायेंगे. पर साक्षात्कार पहले पूरा कर लेते हैं.
अनुराग : जी ताऊ, आपको सब जगह घुमा फ़िराके ही भेजेंगे. अब आप यहां रोज रोज तो आने से रहे.
ताऊ : हाँ जी, इब आप बोलो
अनुराग - दो साल का था तो रामपुर में पिताजी के साथ पुस्तकालय जाता था.
पाँच का हुआ तो जम्मू में अकेला नहर में नहाने चला गया और डूब गया.
बरेली में सात साल की उम्र में मैं शनिवार की साप्ताहिक बालसभा का हीरो था.
आपकी पहेलियों के जवाब तो अल्पना जी दे देती हैं. मेरी पहेली का जवाब वो भी
नहीं दे पाती थीं. न मानो तो पूछ लेना उनके इंटरव्यू में.
ताऊ : एक मिनट..शर्माजी..जरा एक मिनट..ये तो बडा आश्चर्य हुआ कि सु. अल्पना वर्माजी जो कि हमारी पहेलियों के जवाब देने के अलावा ताऊ साप्ताहिक पत्रिका की सलाहकार संपादक भी हैं , वो आपकी क्लास-मेट थी?
वाह भाई वाह... उन्होने तो कभी जिक्र ही नही किया?
अनुराग : असल मे ताऊ जी, बरेली में मेरे क्लास में दो अल्पना वर्मा थीं मगर यह अल्पना जी तो शायद अलग हैं.
ताऊ : अच्छा मतलब नाम की समानता है. खैर इसका मतलब ये हुआ कि आप बचपन से ही मेधावी और होनहार थे.
अनुराग : अजी अभी मेरी होनहारी के किस्से आगे भी तो सुनिये.
ताऊ : जी, सुनाईये. हम ये किस्से सुनने ही तो यहां इतनी दूर आये हैं और हमारे पाठक भी इसका आनन्द लेंगे.
अनुराग : जम्मू में जब हाईस्कूल तक के छात्रों की सम्मिलित सभा में जब कोई छात्र दशहरे और दिवाली का महत्व बताने के लिए खडा न हुआ तो मैं उठकर चला गया.और उस समय मेरी उम्र थी नौ साल.
और जो भी बोला उस पर खूब तालियाँ पिटीं और प्राचार्या ने पाँच रुपये इनाम दिए.
और ताऊ, राज़ की बात तो यह है कि - तब से आज तक कभी चुप न हुआ.
ताऊ : ये तो मुझे लगने लगा है. पर आप बताते चलिये. मुझे बडा मजा आ रहा है.
अनुराग : दस का हुआ तो सब बच्चों को धमकाने वाले एक भीमकाय बुली को डराने के लिए चक्कू लेकर स्कूल गया और वहाँ पकडा भी गया.
ताऊ : ये क्या बात हुई? भई हमको तो डर लग रहा है. कहीं वो आदत अब तक तो नही हैं? हमने मजाक करते हुये कहा.
अनुराग : नही ताऊ जी, बचपन की शरारतें बचपन के साथ ही दफ़न हो गई. आप चिंता मत किजिये. पर कोई आपको कुछ कहेगा तो फ़िर पुरानी हरकत दोहरा सकता हूं. अनुराग जी ने भी उसी मजाकिया लहजे में उत्तर दिया.
ताऊ : फ़िर आगे क्या हुआ?
अनुराग : बारह में अपने लिखे नाटक निर्देशित किए.
तेरह में कहानियाँ लिखीं.
चौदह का हुआ तो दुनिया छोड़ कर संन्यास ले लिया.
ताऊ : एक मिनट भाई एक मिनट.. ये सन्यास वाली बात कहां से सूझ गई आपको?
अनुराग : बस आ गई दिमाग मे.
ताऊ : ठीक है . अब आगे बताईये.
अनुराग : सोलह में कवितायें लिखनी शुरू कीं. सत्रह में ट्रेन से कटने से बाल-बाल बचा.
ताऊ : मतलब आपकी जिन्दगी का हर साल अविस्मरणीय रहा है?
अनुराग : जी ताऊ, फ़िर अठारह-उन्नीस साल की उम्र में बदायूं में अपने पैतृक घर में रहने का संयोग हुआ और बस उस घर में ऐसे-ऐसे चमत्कार हुए कि मेरी दुनिया ही बदल गयी.
ताऊ : कैसे बदल गई दुनियां?
अनुराग : संन्यास को अनिश्चित काल के लिए दिल के एक कोने में छिपा दिया और वापस दुनियादार बनकर पहले बरेली और फ़िर दिल्ली आ गया.
ताऊ : फ़िर क्या हुआ?
अनुराग : उसके बाद में स्टेज पर एक बड़ा नाटक किया. भाषण और वाद-विवाद प्रतियोगिताओं में बहुत से इनाम जीते. बड़ी पत्र-पत्रिकाओं, और स्थानीय अखबारों में नाम छपा.
ताऊ : मतलब आपका जीवन अभी तक तो पुर्णत: घटना प्रधान रहा. फ़िर आपने काम धंधा कब शुरु किया?
अनुराग : उसके बाद तीन साल तक टिककर एक नौकरी भी की जिसमें पहली बार घर-परिवार से बाहर की दुनिया को देखा. फ़िर एक-एक करके छः फरिश्तों से मिला, सारा हिन्दुस्तान घूमा, इंग्लॅण्ड देखा और अमेरिका में बस गया.
ताऊ : पर आप यहां वर्तमान मे क्या कर रहे हैं?
अनुराग : आजकल मैं यूपीएमसी में ऍप्लिकेशन आर्किटेक्ट हूँ. कंप्यूटरों से खेलता हूँ. पर एक मजे की बात बताऊं कि टेक्नोलॉजी क्षेत्र में हूँ मगर हर नए सेलफोन का प्रयोग आज भी मेरी बेटी ही सिखाती है.
ताऊ : वाह साहब वाह, यानि बिटिया भी बाप की तरह बहुत तेज दिमाग वाली है. आखिर बेटी भी तो आपकी ही है ना. हां तो और क्या क्या करते हैं आप?
अनुराग : खाली समय में अजीबो-गरीब काम करता रहता हूँ. बच्चों के साथ छोटे-मोटे नाटक आदि कर लेता हूँ, बीच में एक ऑनलाइन रेडियो स्टेशन "पिटरेडियो" शुरू किया था. दो साल तक चलाया फ़िर समय की कमी के चलते बंद कर दिया.
कुछ स्थानीय सांस्कृतिक संस्थाओं के लिए वेब-साईट भी बनाई थीं - एक अभी भी है. आजकल आवाज़ (हिंद-युग्म) पर साप्ताहिक "सुनो कहानी" का संचालन और मासिक कवि सम्मलेन की तकनीकी सहायता कर रहा हूँ.
अपने मित्र भीष्म देसाई की प्रेरणा से विनोबा जी के गीता प्रवचन को भी स्वर दिया है
ताऊ : अरे वाह. हम तो समझे थे कि आम भारतीय की तरह आप भी पढ लिख कर सीधे यहां आगये होंगे? पर आप तो बहुत ज्यादा घुम्मकड निकले ? यानि सारी दुनियां ही नाप डाली? और यहां आकर भी आप चैन से नही बैठे?
अनुराग : चैन से नहीं बैठे से आपका क्या मतलब? आप क्या कहना चाहते हैं?
ताऊ : भई आप तो उल्टे हमारा इंटर्व्यु लेने लग गये? हमारे कहने का मतलब कि आप अभी तक भी आपकी बचपन वाली ऊठापटक से बाज नही आये?
अच्छा तो अब आपकी ये अविस्मरणिय़ घटनाए हमें और हमारे पाठकों को और बताईये. हमे इसमें बडा मजा आरहा है.
अनुराग : जी ताऊ. सच कहूं तो मेरे जीवन में जीवन कम है अविस्मरणीय घटनाओं का पुलिंदा ज़्यादा है. मगर आज मैं ऐसी एक भी घटना नहीं बताऊंगा. पूछो क्यों?
ताऊ: क्यों? अभी तक तो बता रहे थे. अब क्या नाराजी हो गई?
अनुराग : क्योंकि अगर मैंने बता दिया तो
इन घटनाओं पर लिखे मेरे अविस्मरणीय
उपन्यासों "एन एलियन अमंग फ्लेश ईटर्स" और "बांधों को तोड़ दो" और मेरी जीवनी को कौन पढेगा?
ताऊ : अच्छा तो ये बात है? चलिये साहब हम इन घटनाओं को आपकी लिखी किताबों से जान लेंगे.
पर आप ये बताईये कि आपकी कविताओ मे दर्द और लेखों मे साहित्यक विचार झलकने के पीछे कोई विशेष कारण? कोई खास वजह?
अनुराग : ताऊ, लोग उसी चीज़ के पीछे भागते हैं जो उनके पास नहीं होती है. अपन ठहरे मस्तराम बदायूँनी, दिल के साफ़ और दिमाग से साफ़. दर्द क्या होता है, कभी जाना ही नहीं.
ताऊ : फ़िर ये दर्द कहां से आगया आपके लेखन मे?
अनुराग : बस एक दिन जगजीत सिंह को गाते सुना, "जिन बातों को ख़ुद नहीं समझे, औरों को समझाया है" - उसी दिन तय कर लिया की अपनी कविता में वही भाव समझायेंगे जो ख़ुद कभी नहीं समझा.
किस्मत अच्छी थी कि पाठक आप जैसे समझदार और दरियादिल निकले और उन्होंने उस दर्द को भी प्रोत्साहित ही किया. ज़िक्र आया है तो बताता चलूँ कि आप लोगों के
प्यार के लिए बहुत आभारी हूँ
और मेरा सपना है कि मैं भी अपने पाठकों, जिसमें आप भी शामिल हैं, जैसा ही उदारमना बन सकूं. बात आयी है तो यह भी बता दूँ कि अभी हाल ही में मेरा काव्य संकलन आया है,
"पतझड़ सावन वसंत बहार."
कृपया ज़रूर पढ़ें और अपने विचारों से अवगत कराएँ.
यदि आपकी नज़दीकी दूकान पर न मिले तो मुझे ज़रूर बताएं.
लेखों में साहित्यिक विचार के बारे में तो मुझे ज़्यादा पता नहीं है मगर इतना ज़रूर है कि जो भी देखता हूँ उसको गहराई से महसूस करने की कोशिश करता हूँ और लिखते समय पाठकों की संवेदनाओं का और "बहुजन हिताय, बहुजन सुखाय" का सूत्र याद रखता हूँ.
ताऊ : कोई ऐसा संदेश जो आप ताऊ साप्ताहिक पत्रिका के पाठकों कहना चाहे?
अनुराग - मैं अपनी ज़िंदगी के हर दशक में कम से कम एक बार मौत को बिल्कुल
छूकर गुजरा हूँ. मैं जानता हूँ कि ज़िंदगी बहुत छोटी है. इसे छोटी-मोटी शिकायतों या बेवजह के स्वार्थों में बरबाद करने के बजाय थोड़ी सी मेहनत करके अपने आस-पास फैले उन बदनसीब भाई-बहनों के काम में लाने की कोशिश करें जो न जाने कितनी पीढियों से बहुत बेसब्री से हम जैसे भले लोगों का इंतज़ार कर रहे हैं.
अच्छाई के बारे में बड़ी-बड़ी बातें लिखें या न लिखें, कोई फर्क नहीं पड़ता है. अपनी सीमाओं में रहकर जितनी अच्छाई कर
सकते हैं, ज़रूर करें. साथ ही क्षमाशील बनने की कोशिश करें.
ताऊ : हर सफलता के पीछे एक प्रेरणा होती है? आप इसके पीछे किसे मानते हैं?
(शर्मा परिवार "फालिंग वाटर्स" में)
अनुराग : - जी, सफलता तो अभी तक नहीं मिली हाँ प्रेरणा ज़रूर है. मेरे लेखन के
पीछे मेरी पत्नी का बहुत बड़ा हाथ है. वे मेरी सह्कर्मिणी थीं. हमने अपनी जाति-भाषा-क्षेत्र से बाहर जाकर विवाह किया.
ताऊ : जी बहुत अच्छा लगा आपके विचार और आपकी अर्धांगनी के बारे में जानकर. आपकी बेटी भी हैं एक? उनके बारे मे बताईये.
अनुराग : जी मेरी बेटी अपराजिता है जो बाप की तरह कहानियां तो लिखती ही है, साथ में माँ की तरह चित्रकार भी है.
उसके बनाए एक चित्र को ओमनी होटल समूह ने अपने क्रिसमस+नववर्ष कार्ड पर प्रयुक्त किया था.
(अपराजिता द्वारा बनाई पेंटिंग)
यहां से हम अनुराग जी के घर के पीछे का दृष्य देख पारहे थे. सभी पेडो पर बर्फ़ जमी हुई थी. अब आप तो जानते ही हैं कि
हिंदुस्तान मे तो हमको यह मालूम पड जाये कि कश्मीर मे बर्फ़ पडी है तो हमे घर बैठे २ ठंड लगने लग जाती है.
और यहां तो हम चारों तरफ़ बर्फ़ देख कर ही ठंड मे सिकुड रहे थे.
(शर्माजी के घर से दिखाई देता एक दृष्य)
इतनी देर मे श्रीमती शर्मा अपराजिता बिटिया को स्कूल से लेकर आगई. और उन्होने थोडी देर मे हमारे सामने गर्मा गर्म चाय और नाश्ता रख दिया. अब हमारी सर्दी थोडी दूर भागी और हमने ईंटर्व्यु का सिलसिला आगे बढाया.
ताऊ : तो अनुराग जी अब आप हमारे पाठकों को आपके कैरियर के शुरुआत और वर्तमान तक के बारे मे कुछ बतायें.
अनुराग : जब मैं संन्यास से उबरकर बाहर आया तो पढाई पूरी की. पहली नौकरी नोएडा
में की. तीन साल पूरे होने से पहले ही केनरा बैंक में प्रोबशनरी अधिकारी बन गया.
जब तक बैंकिंग के विभिन्न पक्ष सीखे, बैंक कम्प्यूटरीकरण शुरू हो गया. योग्य अधिकारियों को चुनकर सॉफ्टवेयर विकास के लिए लगाया गया तो अपना भी रास्ता बदल गया. एक दशक दिल्ली में नौकरी की और अब एक दशक से पिट्सबर्ग में हूँ.
ताऊ : अनुराग जी अगर मैं आपसे आपकी पसंद पूछूं तो क्या जवाब देंगे?
अनुराग : पसंद..सही मे मुझे ...लोग - सरल, स्पष्टवादी, बुद्धिमान, उदार और निर्भीक सबसे ज्यादा पसंद हैं.
ताऊ : और आप पिछले दस साल से USA मे हैं तो खाने मे आपको क्या पसंद है?
अनुराग : खाने मे... - शाकाहारी और चरपरा..यानि तीखा..
ताऊ : किस तरह के स्थान अच्छे लगते हैं?
अनुराग : मुझे ऐसे स्थल हैं जैसे कि नैसर्गिक सौंदर्य से भरपूर.
ताऊ : किताबे कैसी पसंद करते हैं आप?
अनुराग : किताबें - शिक्षाप्रद ज्यादा पसंद हैं.
ताऊ : आपको नापसंद क्या है?
अनुराग : भ्रष्टाचार, स्वार्थ, मौकापरस्ती, संकीर्णता ये सब सख्त नापसंद हैं.
ताऊ : और संगीत के बारे मे? यानि किसका संगीत पसंद है?
अनुराग : संगीत - अपने अलावा किसी भी आवाज़ में
ताऊ - पर आपकी आवाज तो काफ़ी खूबसूरत है. और हमारे पाठक आपकी आवाज मे कई कहानियां भी पाडकास्ट पर सुन चुके हैं. चलिये ..हमारे पाठकों के लिये अपनी आवाज मे कोई कविता ही सुना दिजिये.
अनुराग : लीजिये साहब ये कविता सुनिये.
आलू भरी वो, कचौडी बनाएं
ख़ुद भी खाएं, हमें भी खिलाएं
आलू भरी वो...
भरवां करेले नहीं माँगता हूँ
पूरी औ' छोले नहीं माँगता हूँ
पत्तों की चटनी बनाकर वो लायें
ख़ुद भी चाटें, हमें भी चटायें
आलू भरी वो...
कैसे बताऊँ मैं भूखा नहीं
खा लूंगा मैं रूखा सूखा सही
मुझको न थाली सुनहरी दिखाएँ
ख़ुद भी खाएं, हमें भी खिलाएं
आलू भरी वो...
ताऊ : वाह साहब बडा मजा आया आपकी इस कविता में तो. अब आप मुझे ये बताईये कि आप ब्लागिंग मे कब से हैं? और हिंदी ब्लागिंग मे कब से आये?
अनुराग : मैंने २००५ में "बरेली ब्लॉग" http://bareilly.spaces.live.com/blog/) के नाम से अंग्रेजी में ब्लोगिंग शुरू की थी.
२००८ के उत्तरार्ध में हिन्दी ब्लोगिंग की दुनिया में आया. आप तब से तो मुझे भली प्रकार पहचानते ही हैं.
(इस्कोन मंदिर का भीतरी दृश्य)
और इसके बाद अनुराग जी ने हमको पिट्सबर्ग घुमाने का कार्यक्रम बनाया. माउंट वाशिंगटन से नगर (डाउनटाऊन) का दृश्य बड़ा मोहक लगा. हम तो मंत्र-मुग्ध हो गये देख कर.
फ़िर हम मनरोविल में श्री वेंकटेश्वर मन्दिर और हिन्दू जैन मन्दिर गए. ऊड्ड्पी रेस्तराओं में शुद्ध शाकाहारी दक्षिण भारतीय खाना खाकर तो हम और भी आनन्द मग्न हो गये, ऐसा दक्षिण भारतीय भोजन तो यहां भारत में भी नही मिलता.
रास्ते में हमने नगर (डाउनटाऊन) में अनुराग जी के दफ्तर की इमारत यानि "स्टील टॉवर" को देखा. शहर से लगभग ८०-१०० मील की दूरी पर इस्कोन का न्यू वृन्दावन
मन्दिर और स्वर्ण महल जाकर दर्शन का लाभ लिया.
हमने कुछ तस्वीरें हमारे कैमरे से खींची थी. नीचे हम आपको वही तस्वीरे दिखा कर उन मंदिरों के बारे में थोडा बहुत बताते हैं.
(इस्कान मंदिर में मुर्तियां)
सबसे पहले इस्कोन मन्दिर व वहाँ के स्वर्ण महल (पैलेस ऑफ़ गोल्ड - जहाँ प्रभुपाद आकर रुकते थे) गये . बहुत ही सुंदर जगह है.
(इस्कान मंदिर पिटस्बर्ग)
यह मन्दिर और महल इस्कोन के स्वर्णिम दिनों की याद है और इसे इस्कोन के गौर कृष्णभक्तों भक्तों ने ख़ुद अपने हाथों से बनाया था.
(श्री वेंकटेश्वर मंदिर पिटस्बर्ग)
अगले दिन हमने आराम किया. और फ़िर शाम को मार्केट और पिटस्बर्ग की अन्य जगह घूमते हुये हम वहां के श्रीवेंकटेश्वर मंदिर गये. यह मंदिर ईस्टर्न सब अर्ब में पेन हिल्स पर स्थित है.
यह मंदिर अमेरिका मे बने शुरुआती मंदिरों मे से है जो कि यहां बसने वाले भारतीय समुदाय की आस्था का केंद्र है. और सारे अमेरिका और कनाडा तक से लोग यहां दर्शन करने आते हैं.
(हिंदू जैन मंदिर पिटस्बर्ग)
और जब शर्माजी ने हमको वहां हिंदू जैन टेम्पल होने की बात कही तो हमे विश्वास ही नही हुआ कि इतना सुंदर हिंदू जैन मंदिर वहां हो सकता है. यह मंदिर परमार्थ निकेतन के स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी के निर्देशन में बनवाया गया था.
यहां गणेश जी, लक्ष्मीनारायण, राधाकृष्ण, राम , सीता, लक्ष्मण, हनुमान और भगवान महावीर के दर्शन करके मन प्रफ़ुल्लित हो गया.
अगले दिन शर्माजी सपरिवार हमको एयरपोर्ट छोडने आये. और इस तरह हमने अपनी पिटस्बर्ग यात्रा पुर्ण की.
एक निहायत ही जिन्दा दिल, जोश से भरे और साहित्य प्रेमी शख्स और उनकी धर्मपत्नि एवम बिटिया से मुलाकत करके हमको तो बहुत ही शानदार अनुभव हुआ.
आज के जमाने मे ऐसे आदर्श वादी पुरुष से मिलकर एक सुखद आश्चर्य हुआ. हमने शर्माजी द्वारा भेंट की गई उनकी किताबों मे से "पतझड़ सावन वसंत बहार." को फ़्लाईट मे पढने के लिये बाहर ही रख लिया.
श्री अनुराग शर्मा से मिलना आपको कैसा लगा? अवश्य बताईयेगा.
ताऊजी,
ReplyDeleteपिटस्बर्ग एवम मंदिरों की यात्रा का वृतान्त बडा ही सुन्दर लगा। श्री अनुराग शर्मा कि आपकी भेट बहुत अच्छी लगी। श्री शर्माजी और परिवार ने आपकी मेहमान नवाजी बडे ही सुन्दर ढग से कि । शर्माजी के उज्जवल भविष्य के लिये हे प्रभु की तरफ से शुभकामना..............।
ताऊजी राम राम....... अब एक सप्ताह बाद मिलेगे। हेपी वैलन्टाइन डे.....................
बहुत अच्छे ताऊ मज़ा आ गया!
ReplyDelete---
चाँद, बादल और शाम
शर्मा जी और आप ताऊ को भी धन्यवाद !!!
ReplyDeleteपढ़ कर अच्छा लगा !!
लगता है कि काफी लफडेदार आदमी रहे हैं अनुराग जी ??
ताऊ अनुराग शर्मा जी के बारे में जानकर अच्छा लगा इंटरव्यू पढने के बाद लगा अनुराग जी वाकई स्मार्ट इंडियन है |
ReplyDeleteवैरी गुड ताऊ... क्या सधा हुआ इंटरव्यू लिया है.. एक बी जाणकारी ना छोड्डी... बहुत बधाई.. अनुराग जी को सपरिवार शुभकामनाएं..
ReplyDeleteताऊ तुम्हारी फंतासी और अनुराग जी के परिवार उर उनके कृतित्व सभी कुछ तुमने ईस्टमैन कलर में प्रस्तुत क्र दिल जीत लिया है -अनुराग जी शाकाहारी हैं -यह उनकी पुस्तक -एलियंस अमंग फ्रेश ईटर्स से लगती है -पहले मैं चौका कि साईंस फिक्शन है -पुस्तक का कलेवर भी कुछ वीसा ही है ! वे सहित्य्मना हैं !भुत बहुत आभार !
ReplyDeleteइंटरव्यू पढकर बहुत अच्छा लगा......अनुराग शर्मा जी से मिलवाने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।
ReplyDeleteअनुराग जी के और पिटस्बर्ग बारे में इतना सब जान कर बहुत अच्छा लगा .उनकी किताब तो मैं भी पढ़ना चाहूंगी वह आवाज़ की दुनिया में बहुत बढ़िया काम कर रहे हैं ..
ReplyDeleteताऊ जी हम तो ये कहेंगे की आदरणीय अनुराग जी छुपे रुस्तम निकले ....इतनी खूबियाँ जो छुपा रखी हैं....उनके इस अनदेखे व्यक्तित्व से रूबरू करने का आभार.... और पिटस्बर्ग एवम मंदिरों की यात्रा का वृतान्त चित्रों सहित बडा ही सुन्दर लगा। आप की मेहनत रंग ला रही है......इस नेक कार्य के लिए आपको बहुत बहुत बधाई और अनुरागा जी को ढेरो शुभकामनाये...."
ReplyDeleteRegards
ताऊ जी अच्छा लगा शर्मा जी के बारे मे जानकर्।वैसे उनके लेख भी बता देते है कि वे एक अच्छे इंसान है।
ReplyDeleteअनुराग जी को नजदीक से जानकर अच्छा लगा। सचमुच एक अच्छे और सच्चे इंसान। हमारी तरफ से उनको और उनके परिवार को ढेरों शुभकामनाएं।
ReplyDeleteअनुराग जी और के बारे में जान कर अच्छा लगा ......ऐसे ही परिचय होता अहता है आप जिस को पढ़ते हैं.
ReplyDeleteआपका इंटरव्यू लेने का अंदाज भी निराला है..........रोचकता बनी रहती है
ताऊ, आपके माध्यम से अनुराग शर्मा जी के व्यक्तित्व के बारे में विस्तार से जानने का अवसर प्राप्त हुआ.इसके लिए आपको धन्यवाद एवं अनुराग जी को उनके उज्जवल भविष्य हेतु ढेरों शुभकामनाऎं........
ReplyDeleteशुक्रिया ताऊ...हम अनुराग जी के मौन प्रशंसकों में हैं...आपके साक्षात्कार के जरिये उनकी कई दूसरी खूबियां पता चलीं अलबत्ता ज़हीन और संजीदा ब्लागर तो उन्हें पहले से ही मानते रहे हैं।
ReplyDelete...और आप तो लाजवाब हैं ही। शुक्रिया ...इस शानदार प्रस्तुति के लिए
इंटरव्यू से अनुराग जी और उनके परिवार के बारे मे जाना । और साथ-साथ पिट्सबर्ग भी आपने हम लोगों को भी घुमा दिया ।
ReplyDeleteशुक्रिया !
अनुराग जी के बारे में जानना सुखद रहा...
ReplyDeleteआज का साक्षात्कार भी बहुत खूबी से लिया और प्रस्तुत किया गया है.
ReplyDeleteरोचक प्रश्नों का रोचक ढंग से जवाब .
पित्स्बुर्घ की यात्रा,,,पाठकों भी करा दी..
-स्मार्ट इंडियन जी के बारे में उनके परिवार से मिलवाने के लिए शुक्रिया.
-उन के प्रतिभाशाली वक्तित्व की झलकियाँ देखने को मिलीं .
-'अल्पना वर्मा' उन की क्लास फेल्लो थीं..वो भी एक नहीं दो दो!
बढ़िया है! क्या उन के साथ 'भी 'झगडा किया kartey थे???
[खैर..मेरे नाम में 'वर्मा 'विवाह उपरांत जुडा है..इस लिए ताऊ जी आप की यह शंका पूरी तरह से दूर हो जाती है.]
-उन की किताबें खूब पढ़ी जायें -शुभकामनाओं के साथ !
-आशा है..आप की पहेलियों में हर बार कोई नया ब्लॉगर प्रथम विजेता बने.ताकि ज्यादा से ज्यादा छुपे रुस्तमों के बारे में सब जान सकें ,उन की प्रतिभा से परिचित हो सकें.
शुभकामनाओं सहित!
एक बात और.. अनुराग शर्मा जी आप ने मेरे लिए 'एडवांस में थोक भर बधाईयाँ' भविष्य की पहेलियाँ जीतने पर [राज जी की पहेली पोस्ट में ] दी हैं..उस के लिए आज यहीं धन्यवाद दे देती हूँ. :)
ReplyDeleteसच ताऊ, ऐसे लोग आजकल कम मिलते हैं...अनुराग जी को करीब से जानना बहुत अच्छा लगा. इस साक्षात्कार के लिए आपको धन्यवाद.
ReplyDeleteAnuraag ji se mulakat achhi rahi...
ReplyDeleteReally very smart INDIAN Anurag
ReplyDeleteतू तैने बड़ा जुलुम किया. हमें भी बता देते, अपना टिकट काद कर साथ हो लेते. अच्छा लगा. आभार.
ReplyDeleteताऊजी, एक ही महावरे में खूब घुमा-फिरा कर भेज दिया - ताऊ के पैर...एक मुंह में एक हाथ में:)
ReplyDeleteभाई अनुराग जी से पहचान करवाने के लिए धन्यवाद.
ReplyDeleteअनुराग जी को पढ़ा तो था इतना आज ही जाना। पढ़कर बहुत अच्छा लगा।
ReplyDeleteताऊ, हम तो ऋणी हो गए इतनी सारी जानकारियों से भरपूर साक्षात्कार पढ़ कर। लट्ठ का लोहा मान गए आज।
ReplyDeleteaapke sakshatkaar ke sath sath kachauree ka maja bhi lya aur anurag ji ki avaz kano me shahad ghol gayee tauji bahut bahut bdhai aur shubhkaamnaayen
ReplyDeleteताऊ अकेले ही पिट्सबर्ग घुम आये? हमें भी ले चलते। इतनी सुंदर जगह और इतने शानदार सखशियत से हम भी मिल लेते।
ReplyDeleteपर चलिये साहब आपके साक्षात्कार द्वारा ही मिलना हो गया। बहुत अच्छा लगा , अनुरागजी और उनके परिवार से मिलकर। बहुत शुभकामनाएं।
bahut achchha laga anurag ji ke bare me janakar. badhai aapako aur unako.
ReplyDeletePad kar accha laga.Bahut saandar interview liye ho.Badhai ho.
ReplyDelete"श्री अनुराग शर्मा से मिलना आपको कैसा लगा? अवश्य बताईयेगा." पढने में यूँ खोये की पता ही नहीं चला ये लाइन कब आ गई. अब क्या बताएं ! इतना अच्छा लगा अनुरागजी के बारे में इतना विस्तार से जानना कि कहने को शब्द नहीं.
ReplyDeleteताऊ, थम एक इन्टरव्यू करण खात्तिर आड़े तईं आए, घना धन्यवाद स्वीकारो!
ReplyDeleteआपकी लाई हुई इन्दोरी चाट और मिठाइयां मेरे अमरीकी पड़ोसियों को बहुत पसंद आयीं. वे पूछ रहे थे, "वेन विल टाऊ कम अगेन? वी वांट मोर?"
आपसे बात करना तो अच्छा लगा ही, अब पढ़कर ऐसा लग रहा है जैसे की यहाँ बैठे-बैठे इतने सारे मित्रों से एक साथ बात करने का सौभाग्य प्राप्त हो गया.
आप सभी का आभार!
अकेले अकेले विदेस घूम आए .कम्बल लेकर गए थे या नही ?खैर अपने हमनाम से मिलकर खुशी हुई...वे एक नेक ओर सरल इंसान है .सबसे अच्छी बात जिसको मै भी मानता हूँ उन्होंने कही की "अपनी अपनी सीमायों में रहकर भी आप अच्छे काम कर सकते है .".उनकी किताब कहाँ मिलेगी ?
ReplyDeleteशुक्रिया ताऊ ...
Anurag ji se milkar maza hi aa gaya.
ReplyDelete
ReplyDeleteजय राम जी की ताऊ..
आप तो आख़िर ताऊ ठहरे, वह भी मेरे ..
तो फिर..
यह कैसे चूक गये कि अनुराग जी,
अपने ग्यारहवें साल की घटना सफ़ाई से गोल कर गये,
और उन छः फ़रिश्तों को सामने लाने में भी डिप्लोमेसी बरत गये ?
वैसे अनुराग जी ने तस्वीरें चुन कर भेजी हैं
@ गुरुदेव अमर कुमार जी.
ReplyDelete११ वें साल और छ फ़रिश्तों के बारे में भी उन्होने बताया था पर पोस्ट बहुत बडी हो रही थी.
अगले किसी साक्षात्कार के लिये इन दोनों घटनाओं को रख लिया है. आपसे पक्का वादा है कि अगले साक्षात्कार मे इन दोनों घटनाओं को जरुर शामिल करेंगे. आपका बहुत २ आभार इतनी रुचिपुर्वक बच्चों का उत्साह वर्धन करने के लिये.
सदैव ही आपके आशिर्वाद के आकांक्षी हैं.
ताऊ, अनुराग जी से मिलकर अच्छा लगा.. वाकई वे है स्मार्ट इंडियन..
ReplyDeleteये अच्छा है ताऊ साक्षात्कार के बहाने आप दुनिया घूम रहे हो और थोडा दर्शन हमको भी करवा रहे हो..
राम राम
Waah !! Bahut khoob !! Rochak andaaj me liya gaya yah saakshatkaar bada hi aanand dayi laga.Phli baar hi anurag ji may pariwaar ke photograph dekhne aur itni baten jaanne ka suyog mila.Danyawaad.
ReplyDeleteस्मार्ट इंडियन की स्मार्ट बातें पढ़ कर मजा आ गया ताऊ....अनुराग जी जितनी अच्छे किस्सागो हैं,उतने ही अच्छे वाचक भी,पहली बार उनकी आवाज सुनी ना..
ReplyDeleteऔर ताऊ आपके साक्षात्कार लेने की कला भी सुभानल्लाह
श्री अनुराग शर्मा जी से मिल कर बहुत सुंदर लगा, लगता है पिटस्बर्ग मे भारतीया बहुत ही ज्यादा है, तभी इतने मंदिर भी है, हमारे गांव मै तो हम ही हम एक भारतीया है.
ReplyDeleteधन्यवाद
acchha lagaa jaankar/padhkar
ReplyDeleteएक अविस्मरणीय यात्रा कराने के लिए धन्यवाद। आपके माध्यम से हमने भी अनुराग शर्मा जी को जाना। उनके बचपन को जाना। उन शहरों को जाना जिनमें वह रहते थे। उस शहर को जाना जहां अब वह रहते हैं। उनकी कविताएं भी लाजवाब हैं और और उनकी कहानियां भी। आपको और अनुराग शर्मा (SMART INDIAN) को भी बहुत बहुत बधाई और शुभकामनाएं।
ReplyDeleteएक अविस्मरणीय यात्रा कराने के लिए धन्यवाद। आपके माध्यम से हमने भी अनुराग शर्मा जी को जाना। उनके बचपन को जाना। उन शहरों को जाना जिनमें वह रहते थे। उस शहर को जाना जहां अब वह रहते हैं। उनकी कविताएं भी लाजवाब हैं और और उनकी कहानियां भी। आपको और अनुराग शर्मा (SMART INDIAN) को भी बहुत बहुत बधाई और शुभकामनाएं।
ReplyDeleteअनुराग शर्मा जी से मुलाकात करवाने का शुक्रिया। क्या तो धांसू इंटरव्यू लेते हो ताऊ जी आप। धन्य हो!
ReplyDeleteआजकल यात्राएँ हो रहीँ हैँ और लेट आने के लिये क्षमाप्रार्थी हूँ
ReplyDeleteअनुराग भाई को काव्य पुस्तक के लिये बहुत बधाईयाँ व शुभकामनाएँ ..
और इस रोचक इन्टर्व्यु के लिये, ताऊजी को घणी घणी शाबाशी व बधाई :)
स स्नेह, सादर,
- लावण्या
बहुत बढिया लगा शर्माजी से मिलकर
ReplyDeleteबहुत अच्छा लगा।
ReplyDeleteसरजी की लिखी किताबें पढ़ने की इच्छा है,कहाँ से मिल सकती हैं, बताने का कष्ट करें।
वैसे ये ’बदायूँ’ वही है न जिसे ’बदाऊं’ भी कहते हैं लेकिन ऐसा कहने का हक सिर्फ़ बदायूं वालों को ही है?