असल में बच्चों के संस्कार और अच्छी बुरी आदतों को तय करने मे सबसे ज्यादा घर का माहोल ही जिम्मेदार है. बच्चे सबसे ज्यादा अपने माता-पिता का ही अनुसरण करते हैं. पिछले सप्ताह एक बहुत ही मजेदार घटना हुई जो कि बिल्कुल सच्ची है. घटना जितनी मजेदार लगती है उससे कहीं ज्यादा हमको सोचने पर विवश करती है.
हमारे एक मित्र हैं..नाम? रहने दिजिये, नाम में क्या रखा है? कभी मौका मिला तो आपको रुबरु ही मिलवा देंगे. हम दशहरा मिलन के लिये उनके घर गये थे. बात चीत शुरु हुई तो उन्होने अपनी पीडा हमको कह सुनाई. अब उनकी पीडा यह थी कि पहले वो कभी कभार दो घूंट सोमपान कर लिया करते थे पर आजकल चार घूंट (पैग) के बाद भी सुरुर नही आता.
हमने कहा - तुम्हारा माथा खराब है ऐसा नही हो सकता और इस उम्र मे इतना अधिक सुरापान अच्छा भी नही है. वो जब बोले कि नही मैं सच कह रहा हूं ताऊ. तब हमने दिमाग दौडाया. यह तो पक्का था कि कुछ गड्बड जरुर है पर हमारे यहां और सब चीजों मे मिलावट हो सकती है पर इस तरह की मिलावट असंभव है कि नशा ही नही आये. बल्कि यहां तो तेज नशे के नाम पर सुरा को जहरीला बनाने मे भी नही हिचकते.
इतनी देर मे उनका नौकर रामसिंह चाय लेकर आगया.... रामसिंह हमारे मित्र का काफ़ी पुराना और विश्वासपात्र नौकर है. उसने नमस्ते की..हमने उसके हालचाल पूछे..... और उससे यूं ही पूछ बैठे कि रामसिंह ये क्या चक्कर है?
रामसिंह शायद सेठजी की नशा नही होने वाली बात सुन चुका था..सो उसकी भाव भंगिमा देखने लायक थी. हमने उसको परेशान देख कर पूछा कि रामसिंह सही सही बताओ...
रामसिंह बोला - ताऊजी, आप भी कैसी बाते करते हो? पीते सेठजी हैं और आप पूछ मुझसे रहे हैं.
तब हमने कहा कि - रामसिंह तुम्हारे सेठजी को तो तुम जानते ही हो? वो पुलिस भी बुला सकते हैं..अत: सही सही बताओ कि सेठजी को नशा क्युं नही आता?
पुलिस का नाम सुनकर रामसिंह सकपकाया और बोल पडा - "३ बुलाये १३ आये दे दाल मे पानी".
हमने पूछा - रामसिंह पहेलियां मत बुझाओ..वो हमारा काम है. सीधी तरह से सच सच बताओ.
वो बोला - ताऊजी, अब मैं बताऊंगा तो भी मैं ही फ़सूंगा और नही बताऊंगा तो भी. यानि चाहे खरबूजा छुरी पर गिरे या छुरी खरबूजे पर गिरे..पर मेरी कोई गलती नही है.
हमने कहा - रामसिंह बिल्कुल सही सही बताओ..तुमको कोई कुछ नही कहेगा.
रामसिंह बोला - ताऊजी अब मैं क्या बताऊ कि सेठजी बोतल घर लाकर रखते हैं और पीछे से बबलू भैया ( सेठजी के १५ वर्षिय सपूत) और उनके दोस्त उसमे से खींच जाते हैं और लेवल मिलाने के लिये उतना ही पानी मिला देते हैं.अब सेठजी को खाली पानी से नशा कैसे होगा?
रामसिंह की बाते सुनकर हंसी भी आई. और हम यह सोचने पर मजबूर भी हुये कि इसमे बबलू की कितनी गलती है और सेठजी की कितनी? जिस किसी के साथ भी ऐसा कुछ हो रहा हो तो ध्यान देने वाली बात है, क्योंकि अब बबलू बडा हो रहा है.
बस भाई इब आज की रामराम.
"कल परिचयनामा मे मिलिये"
हमारे एक मित्र हैं..नाम? रहने दिजिये, नाम में क्या रखा है? कभी मौका मिला तो आपको रुबरु ही मिलवा देंगे. हम दशहरा मिलन के लिये उनके घर गये थे. बात चीत शुरु हुई तो उन्होने अपनी पीडा हमको कह सुनाई. अब उनकी पीडा यह थी कि पहले वो कभी कभार दो घूंट सोमपान कर लिया करते थे पर आजकल चार घूंट (पैग) के बाद भी सुरुर नही आता.
हमने कहा - तुम्हारा माथा खराब है ऐसा नही हो सकता और इस उम्र मे इतना अधिक सुरापान अच्छा भी नही है. वो जब बोले कि नही मैं सच कह रहा हूं ताऊ. तब हमने दिमाग दौडाया. यह तो पक्का था कि कुछ गड्बड जरुर है पर हमारे यहां और सब चीजों मे मिलावट हो सकती है पर इस तरह की मिलावट असंभव है कि नशा ही नही आये. बल्कि यहां तो तेज नशे के नाम पर सुरा को जहरीला बनाने मे भी नही हिचकते.
इतनी देर मे उनका नौकर रामसिंह चाय लेकर आगया.... रामसिंह हमारे मित्र का काफ़ी पुराना और विश्वासपात्र नौकर है. उसने नमस्ते की..हमने उसके हालचाल पूछे..... और उससे यूं ही पूछ बैठे कि रामसिंह ये क्या चक्कर है?
रामसिंह शायद सेठजी की नशा नही होने वाली बात सुन चुका था..सो उसकी भाव भंगिमा देखने लायक थी. हमने उसको परेशान देख कर पूछा कि रामसिंह सही सही बताओ...
रामसिंह बोला - ताऊजी, आप भी कैसी बाते करते हो? पीते सेठजी हैं और आप पूछ मुझसे रहे हैं.
तब हमने कहा कि - रामसिंह तुम्हारे सेठजी को तो तुम जानते ही हो? वो पुलिस भी बुला सकते हैं..अत: सही सही बताओ कि सेठजी को नशा क्युं नही आता?
पुलिस का नाम सुनकर रामसिंह सकपकाया और बोल पडा - "३ बुलाये १३ आये दे दाल मे पानी".
हमने पूछा - रामसिंह पहेलियां मत बुझाओ..वो हमारा काम है. सीधी तरह से सच सच बताओ.
वो बोला - ताऊजी, अब मैं बताऊंगा तो भी मैं ही फ़सूंगा और नही बताऊंगा तो भी. यानि चाहे खरबूजा छुरी पर गिरे या छुरी खरबूजे पर गिरे..पर मेरी कोई गलती नही है.
हमने कहा - रामसिंह बिल्कुल सही सही बताओ..तुमको कोई कुछ नही कहेगा.
रामसिंह बोला - ताऊजी अब मैं क्या बताऊ कि सेठजी बोतल घर लाकर रखते हैं और पीछे से बबलू भैया ( सेठजी के १५ वर्षिय सपूत) और उनके दोस्त उसमे से खींच जाते हैं और लेवल मिलाने के लिये उतना ही पानी मिला देते हैं.अब सेठजी को खाली पानी से नशा कैसे होगा?
रामसिंह की बाते सुनकर हंसी भी आई. और हम यह सोचने पर मजबूर भी हुये कि इसमे बबलू की कितनी गलती है और सेठजी की कितनी? जिस किसी के साथ भी ऐसा कुछ हो रहा हो तो ध्यान देने वाली बात है, क्योंकि अब बबलू बडा हो रहा है.
बस भाई इब आज की रामराम.
इब खूंटे पै पढो:-
एक दिन आशीष खंडेलवाल जी ने समीरलाल जी को फ़ोन लगाया और पूछा कि आप ये इतनी सारी पहेलियां कैसे जीत लेते हो? समीरजी ने जवाब दिया कि मैं रामप्यारी का खयाल रखता हूं और रामप्यारी मेरा खयाल रखती है.
बात आशीष जी की समझ मे आगई और उन्होने रामप्यारी के लिये मुंबई से एक खिलौना रेलगाड़ी खरीद कर भिजवाई. खिलौना पाकर रामप्यारी बडी खुश हुई और वो उस रेलगाडी को लेकर अपने कमरे मे चली गई.
ताई कुछ देर बाद जब रामप्यारी के कमरे में गयी तो देखा कि रामप्यारी उस खिलौना रेलगाड़ी से खेल रही है ..और जोर जोर से आवाज लगा रही है - ... जिस उल्लू के पट्ठे को उतरना है वो उतर जाए, और जिस उल्लू के पट्ठे को चढ़ना है वो चढ़ जाए. जल्दी फ़टाफ़ट...इब यो रेलगाड़ी दो मिनट से ज्यादा इत नहीं रुकेगी ......
रामप्यारी जैसी छोटी बच्ची के मुंह से यह भाषा सुनकर ताई को गुस्सा आगया और उसने रामप्यारी के कान तले यानि कनपटी पर दो इनिशियल एडवांटेज (तमाचे) लगाए और फिर कभी इस तरह से न बोलने की चेतावनी दी.. और ताऊ को बुलाकर रामप्यारी की शिकायत कर दी.
ताऊ ने रामप्यारी को डांट लगाई और बोला - मैं दो घंटे के लिए बाजार जा रहा हूं। तब तक तुम सिर्फ पढ़ोगी, समझी ना. एंड नो बदमाशी....और रामप्यारी बेचारी चुपचाप पढने बैठ गई.
ताऊ जब बाजार से लौटकर आया तो देखा कि रामप्यारी तो किसी शरीफ़ बच्ची की तरह पढने मे लगी हुई है तो ताऊ का दिल पसीज गया और उसने रामप्यारी को खिलौना रेलगाडी से खेलने की इजाजत देदी.
अबकी बार रामप्यारी कुछ यूं आवाजे लगा कर खेल रही थी - जिस उल्लू के पट्ठे को उतरना है वो उतर जाए, जिस उल्लू के पट्ठे को चढ़ना है वो चढ़ जाए । रेलगाड़ी पहले ही एक उल्लू के पट्ठे की वजह से दो घंटे लेट हो चुकी है .....
कल गुरुवार १ अक्टूबर को शाम ३:३३ बजे परिचयनामा मे मिलिये सुश्री प्रेमलता पांडे से.
ताऊ - आप शिक्षण से ताल्लुक रखती हैं...आप आज के समय में विशेषकर पालकों से क्या कहना चाहेंगी?
प्रेमलता जी - पालकों! बच्चों को अपना खिलौना न समझें वे भी जानदार और दिमागदार है। बालकों! - माता-पिता और बड़ों का आदर और सेवा करें यही आराधन है और पूजा है। अनुभव से सीखा ज्ञान शुद्ध होता है।
बहुतै बढिया।
ReplyDelete-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
खुटां मजेदार.. और दाल में पानी भी..
ReplyDeleteखुब..
वाह ताऊ....!
ReplyDeleteऐसी ही पोस्ट का तो इन्तजार था।
आखिर आ ही गये अपने पुराने रंग में।
खूँटा बहुत बढ़िया रहा।
बधाई!
बच्चे घर से सीखते है और बबलु बड़ा हो रहा है. इशारे में सब समझा दिया :)
ReplyDeletemast taau 3 bulaae terha aaye to aisaa hi hogaa nashaa kya khaak hogaa!!
ReplyDeleteताउजी अब आप एकदम असली रंग में आ गए . बोदूराम को वापस भेज दू क्या ?:)
ReplyDeleteवाह ताऊ इस बबलू को हम पहचान गये.:)सर को फ़ोन लगाकर बताते हैं अभी.:)
ReplyDeleteऔर ताऊ रामप्यारी का खूंटा जोरदार रहा. आप पुराने रंग मे ही आजावो, कहां आपने दुनिया भर की पंचायती खडी कर ली.
ReplyDeleteदारु मे पानी यानि दाल मे पानी, खूंटे पर रामप्यारी दोनो जबरदस्त, सु. प्रेमलताजी के साक्षात्कार का कल इंतजार रहेगा.
ReplyDeleteवाह, वाह ये दाल में पानी और एक्स्ट्रा मिर्च के प्रयोग पर तो बड़े केटरर जिन्दा हैं! इसका प्रयोग सोम रस के संदर्भ में भी हो सकता है - यह आपने बताया!
ReplyDeleteइतनी काम की बात और कौन बताता! :-)
तीन बुलाये तेरह आये, दे दाल में पानी
ReplyDeleteमजा आ गया ताऊजी
इस पोस्ट के लिये धन्यवाद
प्रणाम स्वीकार करें
तीन बुलाये तेरह आये, दे दाल में पानी
ReplyDeleteमजा आ गया ताऊजी
इस पोस्ट के लिये धन्यवाद
प्रणाम स्वीकार करें
सच्ची बात बच्चें घर से ही सीखते है।
ReplyDeleteदाल मे मजा क्युं नही आया? पानी ज्यादा था.
ReplyDeleteपीने से नशा क्युं नही आया? पानी ज्यादा था.
रामप्यारी ने तो आज सारा बदला निकाल लिया ताऊ को ही उल्लू का पठ्ठा कह दिया.:)
दाल मे मजा क्युं नही आया? पानी ज्यादा था.
ReplyDeleteपीने से नशा क्युं नही आया? पानी ज्यादा था.
रामप्यारी ने तो आज सारा बदला निकाल लिया ताऊ को ही उल्लू का पठ्ठा कह दिया.:)
bahut majedar taau
ReplyDeletekhoonta mast raha.. :)
ReplyDeleteताऊ जी, हँसते हँसाते काम की बातें कहने में आप का कोई सानी नहीं ब्लाग जगत में! भाटिया जी या कोई और जो कंपीटीशन में हों नाराज न हों। इस से बढ़िया टिप्पणी अभी शेष है।
ReplyDeleteअरी मर जानी राम प्यारी तु आज कल सच बोलने लग गई है, अब तो बहुत सयानी सयानी बाते करने लग गई है तु, नटखट कही की...
ReplyDeleteओर ताऊ यह बबलु तो बिलकुल ताऊ के पदचिंहो पर चल रहा है ना, इसे कहते है संगत का असर.
बहुत अच्छा.
खूंटे के साथ ही दारू में पानी , मजा आ गया ताऊ श्री !
ReplyDeleteजिस उल्लू के पट्ठे को उतरना है वो उतर जाए, जिस उल्लू के पट्ठे को चढ़ना है वो चढ़ जाए । रेलगाड़ी पहले ही एक उल्लू के पट्ठे की वजह से दो घंटे लेट हो चुकी है .....
ReplyDeleteताऊजी आज तो गजब कर दिये. बस मजा आगया जी आज तो. यानि घी सा घल्ग्या.
जिस उल्लू के पट्ठे को उतरना है वो उतर जाए, जिस उल्लू के पट्ठे को चढ़ना है वो चढ़ जाए । रेलगाड़ी पहले ही एक उल्लू के पट्ठे की वजह से दो घंटे लेट हो चुकी है .....
ReplyDeleteताऊजी आज तो गजब कर दिये. बस मजा आगया जी आज तो. यानि घी सा घल्ग्या.
taau ji,
ReplyDeletekhunta achchaa laga.
waah tau thara koi jawaab naa hain ...bahut badiya likha se taine
ReplyDeleteआप भी मिल आये इनसे :) अरे इनसे तो सबलोग मिल चुके होंगे ! बड़े पोपुलर किस्म के इंसान हैं हर मोहल्ले में मिलते हैं अलग-अलग नाम से. और खूंटा तो छा गया आज.
ReplyDeletetau bada mazedaar kissa raha.. raampyari wala bhi!!
ReplyDeletebablu aur rampyari dono hi kisse bahut mazedar rahe,magar sochne par bhi majboor karte hai.jaise bado ka aacharan hoga,bachhe bhi vaise hi karenge.
ReplyDeleteताऊ जी, खूँटे समेत सारी पोस्ट एकदम मजेदार रही......लेकिन एक बात कहे देते हैं कि यदि हम किसी दिन इन्दौर आए तो ये "दे दाल में पानी" वाला फार्मूला हमारे पे मत आजमाईयो:))
ReplyDeleteऐसा तो होना ही था. इसलिए आजकल बाप बेटा दोनों मिलकर बैठने की प्रथा हो गयी है. हमारे कालोनी में ही होता है. हम भी एक और बात बताते हैं. एक शहर है खरसिया. यहाँ ९९% लोग हरयाणा वाले हैं. बाप के जाने के बाद उसी कोठे पर बेटा भी जाता है. आपने ठीक ही कहा, संस्कार तो विरासत में मिलती है.
ReplyDeleteआज उल्लू के पट्ठे का खूंटा बहुत बढ़िया लगा.
ReplyDeleteओह ! अनर्थ हो गया... मेरा मतलब था कि, आज उल्लू के पट्ठे वाला खूंटा बहुत बढ़िया लगा.
ReplyDeleteदाल तो पृथ्वी वाली
ReplyDeleteअरहर की महंगी
और पानी चांद का
उससे भी महंगा
एक सेर तो
दूसरा ...
सवा नहीं...
ढाई सेर।
प्रेमलता पांडे से परिचय की प्रतीक्षा है
आज तो घर में ही दो दो काम अटक गये:
ReplyDeleteबड़े बबलू को चैक करना पड़ेगा क्यूँकि मेरा डोज भी बढ़ गया है फिर भी नशा नहीं हो पाता.
और छोटा बबलू, कल ही कमरे में रेलगाड़ी खेल रहा था और कुछ कुछ बुदबुदा रहा था. शायद आशीष अंकल से ही रेलगाड़ी लाया हो. आज छिप कर सुनता हूँ.
मस्त रहा ताऊ
ताउ जी
ReplyDeleteखूंटा बहुत मज्जेदार रहा.
पानी रे पानी तेरा रंग कैसा,
ReplyDeleteजिसमें मिला दे लगे उस जैसा...
बबलू के बारे में सुन कर बुरा लगा.
पानी रे पानी,हो पानी,
ReplyDeleteअसल में बच्चों के संस्कार और अच्छी बुरी आदतों को तय करने मे सबसे ज्यादा घर का माहोल ही जिम्मेदार है...सच है ...मगर कई बार साधू के घर शैतान तो शैतान के घर साधू भी जन्म ले लेते हैं ...उलटफेर है ये जग का..!!
ReplyDeleteरामप्यारी बड़ी सयानी होती जा रही है ...
बहुत अच्छा रहा आज का अंक ..!!
bade hote bacche apne aap main ek poori pathshala hai...
ReplyDelete...maine kahi kahani padhi thi
"Ek baap se beta bola, pitaji jab aap cigrette hath main lete ho bade smart lagte ho, usi din se baap ne cigrett chor di"
ye wahi baap tha jo maa ke laakh mana karne par bhi nahi maan tha...
aur khoonte pe ko agar main post se relate kar diya jaiye to tau ko kya karna hai ye tau samajh gaye honge...
:)
acchi post !!
ताऊ जी ने आज पाक कला और जीवन जीने की कला की क्लास ले डाली :)
ReplyDeleteये मन को भला लगा -
- आप सभी को विजया दशमी की शुभकामनाएं तथा आगामी दीपावली के त्यौहार भरे दिनों के लिए , भी
सादर, स - स्नेह,
- लावण्या
हल्के फुल्के अन्दाज में आपने बहुत बड़ी बात बता दी कि माता पिता ही बच्चों के प्रथम गुरु होते हैं और वही इनके संस्कार के लिए उत्तरदायी होते हैं।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति!
ताऊ जी बहुत बडिया क्या बात है बधाई इस धाँसू पोस्ट के लिये
ReplyDeleteबहुत ही सरस रचना। पता नहीं हम भी किसी उल्लू के पठठे के कारण विलम्ब से इस पोस्ट पर पहुँच पाए नहीं तो तो दो घण्टे लेट नहीं होते। बहुत ही उम्दा चुटकुला।
ReplyDeleteबहूत दिनों बाद खूंटा दुबारा सजाया है आपने ......... लाजवाब है .... बहूत मजेदार
ReplyDeleteताऊ आज तो आपके दाल मेमजा आया
ReplyDeleteKhunta prasang bahut mazedaar rahaa.
ReplyDeleterochal post!
Premlata ji ke interview ki prateeksha rahegi.
आपको पुराने रंग मे देखना बहुत अच्छा लगा ताऊजी।
ReplyDeleteहैप्पी ब्लागिंग।