नन्हीं सी बूंद एक
सीप मे समाते ही
बेशकीमती मोती बन निखर जाती है
एक सुई धागे से मिलकर
सी कर जोड देती है
अपने से भी अनंत गुना वस्त्र
जरा सा तेल और बाती
एक हो जब जलते हैं
भगा देते है मगरुर अंधेरे को
उसी तरह एक नन्हीं धूल का कण
बन जाता है
आंख की किरकिरी
और जरा सा व्यंग द्रौपदी का
रच जाता है
महाभारत सा इतिहास
उसपे जरासा स्नेह मां कुंती का
जिता जाता है पांडवों को
महाभारत की जंग
(इस रचना के दुरूस्तीकरण के लिये सुश्री सीमा गुप्ता का हार्दिक आभार!)
सीप मे समाते ही
बेशकीमती मोती बन निखर जाती है
एक सुई धागे से मिलकर
सी कर जोड देती है
अपने से भी अनंत गुना वस्त्र
जरा सा तेल और बाती
एक हो जब जलते हैं
भगा देते है मगरुर अंधेरे को
उसी तरह एक नन्हीं धूल का कण
बन जाता है
आंख की किरकिरी
और जरा सा व्यंग द्रौपदी का
रच जाता है
महाभारत सा इतिहास
उसपे जरासा स्नेह मां कुंती का
जिता जाता है पांडवों को
महाभारत की जंग
(इस रचना के दुरूस्तीकरण के लिये सुश्री सीमा गुप्ता का हार्दिक आभार!)
बढ़िया!!
ReplyDeleteबढ़िया!!
ReplyDeleteबढ़िया, जरा - जरा सी बातें ही इतिहास बनाती है
ReplyDeleteबहुत सुंदर भाव हैं।
ReplyDeleteजरा सा व्यंग द्रौपदी का
रच जाता है
महाभारत सा इतिहास
बहूत खूब।
ज्ररा सी बात का इतिहास
ReplyDeleteवाकई बहुत खास ।
मान गए ताऊ अब तुम कवि जमात में पूरी तरह शिरकत के काबिल हुए -यह कविता तो अंतिम राऊंड में निकाल दी तुम्हे ! बधायी !
ReplyDeleteजरा सी बात से ही युद्ध होते हैं बहुत भारी।
ReplyDeleteजरा सी बात से ही क्रुद्ध होते हैं धनुर्धारी।।
जरा सी बात ही माहौल में विष घोल देती है।
जरा सी जीभ ही कड़ुए वचन को बोल देती है।।
मगर हमको नही इसका कभी आभास होता है।
अभी जो घट रहा कल का वही इतिहास होता है।।
बहुत सही..
ReplyDeleteबहुत खुब... छोटी वस्तुओं का भी अपना महत्तव है.. नकार ्नहीं सकते..
और जरा सा व्यंग द्रौपदी का
ReplyDeleteरच जाता है
महाभारत सा इतिहास .
-बहुत गहन!!उम्दा!!
सच में - जरा सी को जरा सी नहीं समझना चाहिये।
ReplyDeleteअच्छी कविता है.
ReplyDeleteज़रा सी बात..दिया -बाती,मोती -सीप......बहुत ही अच्छे बिम्बों के सहारे भाव अभिव्यक्त किये गए हैं.
बढिया।
ReplyDeleteबेहतरीन कविता के लिये धन्यवाद ।
ReplyDeleteबहुत ही उम्दा !
ReplyDeleteएक नन्ही सी टिप्पणी जन्म देती है होनहार ब्लॉगर को....
ReplyDeleteछोटे को छोटा न समझे.
बहुत ही बढिया!!!!!!!!पूर्णत: सत्य कथन
ReplyDeleteताऊ तो कृ्ष्ण जी की तरह सोलह कलां सम्पूर्ण होता जा रहा है........
सच में जरा सी चिंगारी ही तो बन जाती है ज्वाला...
ReplyDeleteतभी तो आज हमारा देश भी आजाद है...
मीत
वाह ताऊ वाह..क्या अर्थपुर्ण बात कही है आज तो। बेहद लाजवाब।
ReplyDeleteवाह ताऊ..............कितनी गहरी बात लिखी है.......और अंत तो बहूत कुछ सोचने को मजबूर करता है..........आपने और सीमा जी ने lajawaab लिखा है
ReplyDeleteसुंदर कविता के लिये धन्यवाद.
ReplyDeleteरामराम.
bahut hi khubasurat poem
ReplyDeleteजरा सा व्यंग द्रौपदी का
ReplyDeleteरच जाता है
महाभारत सा इतिहास
सुंदर बहुत ही सुंदर
जरा सा तेल और बाती
ReplyDeleteएक हो जब जलते हैं
भगा देते है मगरुर अंधेरे को
बहुत सही उपमाएं दी हैं आपने. सुंदर
ताऊ छा गये आज तो. बेहद पसंद आई ये रचना. कितनी सटीक बाते कही हैं.
ReplyDeleteताऊ छा गये आज तो. बेहद पसंद आई ये रचना. कितनी सटीक बाते कही हैं.
ReplyDeleteजरा जरा सी बात से ही सब कुछ हो जाता है ! वाह !
ReplyDeleteजरा सी बात सदियो की दुरिया पेदा कर देती है जी, बहुत सुंदर भाव लिये है यह कविता.
ReplyDeleteराम राम जी की
नन्ही सी कविता में भरा है गहरा अर्थपूर्ण भाव..सरल और सहज लेकिन प्रभावशाली रचना
ReplyDeleteएक हो जब जलते हैं
ReplyDeleteभगा देते है मगरुर अंधेरे को
उम्दा!!
बढ़िया!!
बहूत खूब।
बधायी !
बेहतरीन
बेहद लाजवाब।
भावाभिव्यक्ति सशक्त रही
ReplyDeleteछोटी पँक्तियाँ...
बहुत समेटे हुए
- लावण्या
गागर में सागर!
ReplyDeleteबेहतरीन कविता
ReplyDeleteअच्छी रचना ,बधाई सीमा जी को और प्रस्तुतीकरण के लिए आपको भी .
ReplyDeleteबेहतरीन रचना।
ReplyDeleteबहुत खूब....!!
ReplyDeleteये जरा से के कारनामें तो बहुत खूब गिनाये सीमा जी ने ....!!
उफ़्फ़्फ़्फ़...
ReplyDeleteअनूठे बिम्ब ताऊ...
एक सुई धागे से मिलकर
ReplyDeleteसी कर जोड देती है
अपने से भी अनंत गुना वस्त्र
Bahut achhi kavita
क्या बात है....
ReplyDeleteबहुत सुंदर भाव...
ReplyDeletechha gaye tau wah
ReplyDeleteएक सुई धागे से मिलकर
सी कर जोड देती है
अपने से भी अनंत गुना वस्त्र