दो योद्धा तलवार बाजी कर रहे थे ! और चूँकी योद्धा है और युद्ध करना
उनका पेशा है ! धर्म है ! सो बिना किसी वैमनस्य के युद्ध जारी है ! कोई भी
फैसला नही हो पाया काफी देर तक ! अचानक एक योद्धा जमीन पर गिरा !
दूसरा उसकी छाती पर चढ़ा हुवा, और तलवार हाथ में हैं , बस नीचे पड़े योद्धा
का गला काटने को तत्पर ! नीचे पड़े योद्धा ने अपनी छाती पर चढ़े योद्धा के
मुंह पर थूक दिया गुस्से में नीचे पड़े पड़े ही !
ऊपर उसकी छाती पर बैठा योद्धा तुंरत खडा हो गया ! अपने हाथ की तलवार
फेंक दी ! नीचे पडा योद्धा बड़ा आश्चर्य चकित हुवा ! आख़िर ये हुवा क्या ? क्यों
इसने मुझे जिंदा छोड़ दिया ? शायद मौत तो मुझे आ ही चुकी थी ! एक बार
उसकी इच्छा हुई की ऊपर बैठा योद्धा अब तलवार फेंक चुका है और यही
उचित मौका है , इसको निपटाने का !
तुंरत उसके मन में आया की अब इसको मारना तो बिल्कुल आसान है ! कोई
अड़चन ही नही है ! पर ये मर गया तो मेरी जिज्ञासा कौन शांत करेगा ?
अब उसने दुसरे योद्धा से पूछा - आप मुझे कृपा कर के ये बता दीजिये की मैं तो
मर ही चुका था ! आपकी तलवार से मेरी गर्दन को कटने से कोई ईश्वर भी नही
बचा सकता था ! फ़िर आपने मुझे क्यों बख्श दिया ? और आप यह भी अच्छी
तरह जानते हैं की एक मैं ही आपका प्रबल शत्रु हु , जिसने आपको यह राज्य
जीतने से रोका हुवा है ! अगर मैं मारा गया , इसका मतलब यह राज्य आपका
हुवा ! दुसरे योद्धा को शांत देख कर पहले ने कहा - मैं बहुत अधीर हो रहा हूँ !
कृपया मुझे जवाब दीजिये !
अब दुसरे योद्धा ने कहा - तुमने गुस्से में आकर मेरे मुंह पर थूक दिया और
तुम्हारी इस हरकत पर मुझे भी गुस्सा आ गया ! और मैं तुम्हारी गर्दन
काटा ही चाहता था की मुझे मेरे गुरु की शिक्षा याद आ गई की गुस्से में
कोई काम मत करना ! भले कितना ही जरुरी हो ! और खासकर जब की
तुम्हारा पेशा ही युद्ध करना हो ! और यदि तुम सेना नायक हो, या किसी
समूह के नायक या मुखिया हो तो और भी जरुरी हो जाता है ! बस मुझे
मेरे गुरु की शिक्षा सही समय पर याद आगई और मैं एक ग़लत काम को
करने से बच गया !
पहले योद्धा ने अपना खंजर उठाया और सामने वाले योद्धा के हाथ की
तरफ़ बढाते हुए नीचे बैठ गया और गर्दन झुकाते हुए बोला - लीजिये इस
खंजर को और तुंरत ही मेरी गर्दन काट दीजिये ! और मुझ पर उपकार
कीजिये ! आप जिस गुरुकुल में पढ़े हैं, मैं भी वहीं पढा हूँ और मुझे भी
वही शिक्षा दी गई थी जो आपको ! मैंने गुस्से में आकर थूक दिया और
गुरु की शिक्षा का अपमान किया ! और आपने ऐसे समय में गुरु की शिक्षा
याद रखी जब की आपके सामने अपने प्रबलतम शत्रु को ख़त्म करने का
सुनहरा मौका था ! और किसी को पता भी नही चलता की आपने यह
नियम विरुद्ध कार्य किया ! और एक विशाल साम्राज्य आपको बदले में
मिलता !
दूसरा योद्धा बोला - आप जो कह रहे हैं वह भौतिक स्तर पर बिल्कुल सत्य
है ! अब हम दुनिया में आए हैं तो हम किसी ना किसी पेशे में रहेंगे ही ! और
कोई उपाय नही है ! लेकिन हमारी आत्मा तो शुद्ध है ! अगर जीवन में हम
नित्य जीवन में भी आत्मा की बात सुन ले तो सब शिक्षा सही समय पर
याद आ जाती है ! और उसका उपयोग भी करवा देती है ! इसलिए अब आप
तैयार हो जाइए , मेरा गुस्सा शांत होने को है और अब हमें फ़िर से युद्ध शुरू
करना है ! और दुसरे योद्धा ने अपनी तलवार उठाली !
ताऊ इन दोनों योद्धाओं को प्रणाम करता है और हमेशा ही ताऊ बने रहने
की कसम लेता है ! भाई अपने को तो ताऊ गिरी ही रास आती है ! हमारे
गुरु की शिक्षा भी यही कहती है ! खुश रहो और दुसरे को खुश रहने दो !
इब राम राम !
उनका पेशा है ! धर्म है ! सो बिना किसी वैमनस्य के युद्ध जारी है ! कोई भी
फैसला नही हो पाया काफी देर तक ! अचानक एक योद्धा जमीन पर गिरा !
दूसरा उसकी छाती पर चढ़ा हुवा, और तलवार हाथ में हैं , बस नीचे पड़े योद्धा
का गला काटने को तत्पर ! नीचे पड़े योद्धा ने अपनी छाती पर चढ़े योद्धा के
मुंह पर थूक दिया गुस्से में नीचे पड़े पड़े ही !
ऊपर उसकी छाती पर बैठा योद्धा तुंरत खडा हो गया ! अपने हाथ की तलवार
फेंक दी ! नीचे पडा योद्धा बड़ा आश्चर्य चकित हुवा ! आख़िर ये हुवा क्या ? क्यों
इसने मुझे जिंदा छोड़ दिया ? शायद मौत तो मुझे आ ही चुकी थी ! एक बार
उसकी इच्छा हुई की ऊपर बैठा योद्धा अब तलवार फेंक चुका है और यही
उचित मौका है , इसको निपटाने का !
तुंरत उसके मन में आया की अब इसको मारना तो बिल्कुल आसान है ! कोई
अड़चन ही नही है ! पर ये मर गया तो मेरी जिज्ञासा कौन शांत करेगा ?
अब उसने दुसरे योद्धा से पूछा - आप मुझे कृपा कर के ये बता दीजिये की मैं तो
मर ही चुका था ! आपकी तलवार से मेरी गर्दन को कटने से कोई ईश्वर भी नही
बचा सकता था ! फ़िर आपने मुझे क्यों बख्श दिया ? और आप यह भी अच्छी
तरह जानते हैं की एक मैं ही आपका प्रबल शत्रु हु , जिसने आपको यह राज्य
जीतने से रोका हुवा है ! अगर मैं मारा गया , इसका मतलब यह राज्य आपका
हुवा ! दुसरे योद्धा को शांत देख कर पहले ने कहा - मैं बहुत अधीर हो रहा हूँ !
कृपया मुझे जवाब दीजिये !
अब दुसरे योद्धा ने कहा - तुमने गुस्से में आकर मेरे मुंह पर थूक दिया और
तुम्हारी इस हरकत पर मुझे भी गुस्सा आ गया ! और मैं तुम्हारी गर्दन
काटा ही चाहता था की मुझे मेरे गुरु की शिक्षा याद आ गई की गुस्से में
कोई काम मत करना ! भले कितना ही जरुरी हो ! और खासकर जब की
तुम्हारा पेशा ही युद्ध करना हो ! और यदि तुम सेना नायक हो, या किसी
समूह के नायक या मुखिया हो तो और भी जरुरी हो जाता है ! बस मुझे
मेरे गुरु की शिक्षा सही समय पर याद आगई और मैं एक ग़लत काम को
करने से बच गया !
पहले योद्धा ने अपना खंजर उठाया और सामने वाले योद्धा के हाथ की
तरफ़ बढाते हुए नीचे बैठ गया और गर्दन झुकाते हुए बोला - लीजिये इस
खंजर को और तुंरत ही मेरी गर्दन काट दीजिये ! और मुझ पर उपकार
कीजिये ! आप जिस गुरुकुल में पढ़े हैं, मैं भी वहीं पढा हूँ और मुझे भी
वही शिक्षा दी गई थी जो आपको ! मैंने गुस्से में आकर थूक दिया और
गुरु की शिक्षा का अपमान किया ! और आपने ऐसे समय में गुरु की शिक्षा
याद रखी जब की आपके सामने अपने प्रबलतम शत्रु को ख़त्म करने का
सुनहरा मौका था ! और किसी को पता भी नही चलता की आपने यह
नियम विरुद्ध कार्य किया ! और एक विशाल साम्राज्य आपको बदले में
मिलता !
दूसरा योद्धा बोला - आप जो कह रहे हैं वह भौतिक स्तर पर बिल्कुल सत्य
है ! अब हम दुनिया में आए हैं तो हम किसी ना किसी पेशे में रहेंगे ही ! और
कोई उपाय नही है ! लेकिन हमारी आत्मा तो शुद्ध है ! अगर जीवन में हम
नित्य जीवन में भी आत्मा की बात सुन ले तो सब शिक्षा सही समय पर
याद आ जाती है ! और उसका उपयोग भी करवा देती है ! इसलिए अब आप
तैयार हो जाइए , मेरा गुस्सा शांत होने को है और अब हमें फ़िर से युद्ध शुरू
करना है ! और दुसरे योद्धा ने अपनी तलवार उठाली !
कहानी आगे कहती है की पहला योद्धा दुसरे योद्धा के पांवो में गिर पडा और बोला - मैं आपसे युद्ध नही कर सकता ! आपकी और मेरी कोई बराबरी नही है ! मैं आपसे युद्ध अब से कुछ मिनट पूर्व हार चुका हूँ ! अब से आप मेरे गुरु हैं ! और कहते हैं दोनों गहरे मित्र बन गए ! यहाँ तो बात साम्राज्य की थी और हम तो अपनी बात से असहमत होने वाले पर बस चले तो तलवार चला दे ! |
ताऊ इन दोनों योद्धाओं को प्रणाम करता है और हमेशा ही ताऊ बने रहने
की कसम लेता है ! भाई अपने को तो ताऊ गिरी ही रास आती है ! हमारे
गुरु की शिक्षा भी यही कहती है ! खुश रहो और दुसरे को खुश रहने दो !
इब राम राम !
बडे मार्के की बात कही और बहुत ढंग से कही....कहते हैं समझदार को इशारा काफी होता है......इसी में यदि आपसी सिरफुटौवल करने वाले लोग समझदारी दिखायें तो ठीक वरना बेमतलब की चिल्ल-पो करना अब धीरे-धीरे बेमानी सा लगने लगा है।
ReplyDeleteअच्छी पोस्ट रही।
ताऊ, सबसे पहले तो हमारा प्रणाम स्वीकार कीजिए... बहुत बढ़िया कथा प्रस्तुत की आपने..
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका इसे यहा प्रकाशित करने के लिए..
ताऊ आप तो दिलफेंक मस्ती के लिए जाने जाते हो, आप खिन्न हो जाओगे तो ब्लॉग में मौज की धार कौन बहाएगा। और वैसे भी जरा सोचो, आप हमेशा लट्ठ लिए फिरते हो, एकाध को लग भी जाती होगी और आपको पता भी नहीं चलता होगा। आज आपने मग्गा बाबा का प्रवचन ताऊनामे में डाल दी और हम उधर आश्रम के आगे ऑखें मिचे खड़े रहे। उधर कब आओगे बता देना।
ReplyDeleteउम्मीद करता हूँ इस कथा के माध्यम से जो आप कहना चाह रहे है वो लोगो को समझ आ जायेगा ....
ReplyDeleteबहुत बढिया ताउ..
ReplyDeleteकहानी प्रेरणादायक थी..
bahut prerak katha aapne sunayi....
ReplyDeleteaisi kahaniyan ham bachpan me padha karte the, ant me poocha jaata tha ki hamne kahani se kya seekha...
ReplyDeleteaccha laga itne din baad aisi kahani padhkar,dhanyavad
मान गये ताऊ जी को .
ReplyDeleteधन्य हैं ताऊ. अद्भुत पोस्ट है.
ReplyDeleteनमन हूँ ताऊ आपके सामने.
शिक्षा तो गांठ बाधने वाली है। पर यहां कोई योद्धा-विशेष की ओर इंगित कर रहे हों तो सन्दर्भ स्पष्ट नहीं।
ReplyDeleteखैर, गुस्सा थूक दिया जाये तो मतभेद के बावजूद मैत्री प्रगाढ़ हो सकती है।
जो कुछ कहीं भी चल रहा हो उसके सन्दर्भ में बहुत ही प्रेरणादायक ! आप तो छा गए ताऊ -अब अपनी असली फोटो भी दिखा दें !
ReplyDelete' very very inspiring and motivating story" wonderful
ReplyDeleteRegards
हर बार बेमतलब युद्ध की कहानी यही समाप्त होती है..आपकी लेखनी की जय हो ..प्रणाम स्वीकारें.
ReplyDeleteप्रेरणादायक कहानी के लिए धन्यवाद ताऊ
ReplyDeleteएक बहुत ही उत्कृष्ट एवं शिक्षाप्रद पोस्ट के लिए आभार. इसी तरह ज्ञान की गंगा बहाते रहें और हमें भटकने से बचाते रहें.
ReplyDeleteआप धन्य हैं ताऊ. आपकी ताऊगिरी को नमन. यह ताऊगिरी बहुतेरों के कागजी ज्ञान पर भारी (गुरु) है.
ताऊ आज आपने लाख टके की शिक्षा दी - गुस्से में कोई काम नहीं करना चाहिए। हालांकि यह संयम मेरे जैसे तुच्छ जीव के लिए आसान नहीं है, लेकिन निर्वाह करने की कोशिश करूंगा।
ReplyDeleteशिक्षाप्रद कथा के लिए कोटिश: धन्यवाद। ऐसे ही हमें सही मार्ग दिखाते रहें।
ताऊ बहुत सुथरी कहानी सुनाई आज तो !
ReplyDeleteसही बात ये है की आदमी को एक मिनट में
गुस्सा आता है ! पर किस्मत की बात ये है
उस वक्त याद तो आए की मुझे गुस्सा नही
करना ! गुस्से के समय तो आदमी पर शैतान
सवार हो जाता है !
ताऊ ये ज्ञान व्यान की बातें छोड़ और तिवारी साहब की मान !दुनिया में तेरी ताऊ गिरी पर दो आदमी हंस लेते हैं तो तेरा क्या बिगड़ जयेगा ? लोगो को हंसा और शबाब कमा ! थारे ब्लॉग के दाहिने हाथ का चुटकला भी सही है ! कहीं गोरा रंग करके नई फोटू लगाने का विचार तो नही चल रहा है ? !
ReplyDeleteताऊ काला ही बना रह नही तो तेरी मर्जी ! :)
ताऊ ये ज्ञान व्यान की बातें छोड़ और तिवारी साहब की मान !
ReplyDeleteदुनिया में तेरी ताऊ गिरी पर दो आदमी हंस लेते हैं तो तेरा
क्या बिगड़ जयेगा ? लोगो को हंसा और शबाब कमा !
थारे ब्लॉग के दाहिने हाथ का चुटकला भी सही है ! कहीं गोरा
रंग करके नई फोटू लगाने का विचार तो नही चल रहा है ? !
ताऊ काला ही बना रह नही तो तेरी मर्जी ! :)
बहुत गजब सीख!! हम तो ताऊ को प्रणाम करते हैं..तलवार खूब दूर फेंक दी है. :)
ReplyDeleteनाम नहीं बताया योद्धा का ताऊ ! मगर प्रसंग अच्छा रहा !
ReplyDeleteताऊ की सीख पसंद आई... हम भी प्रणाम करते हैं उन योद्धाओं को और ताऊ को भी ! राम-राम.
ReplyDeleteहमको भी ताऊगिरी भावे से !!रह गया सवाल वैचारीक असहमती का तो आपने बडे रहस्यपुर्ण तरीके से सबको समझा दिया !!
ReplyDeleteआपने घणी सुथरी प्रेरणादायक कहानी पढवाई। शुक्रिया।
ReplyDeleteसत्य वचन ताउ जी
ReplyDeleteवाह ताऊ वाह
ReplyDeleteकमाल का ताऊ-चिंतन
इसी की जरूरत है सबको
असल ताऊगिरी यही तो है
वरना हर आदमी जगत-ताऊ होजै
जैरामजीकी
भाई मेरे मेहमान क्या आ गई मेरी तो बालोगिं ही छुट गई, ओर हमारे ताऊ को पता नही क्या होगया...
ReplyDeleteताऊ भाई जो बोले उस के साथ दिल से ओर खुशी से बोलो जो कुछ गलत बोले उस की सुनो ही मत, लेकिन दिल मे कोई बात मत लगाओ वरना किसी ओर का नही अपना नुक्सान करोगे, मस्त रहो ओर हम किसी को बदल नही सकते , इस लिये अगर कोई सही आदमी गलत बात कहेगां तो उसे अपनी बात का अहसास भी होगा ओर जरुर वापिस आ कर माफ़ी मांगेगा, लेकिन अगर कोई गलत आदमी होगा जिस का काम ही अन्या लोगो को तंग करना हे तो उस की बातो को ज्यादा मत तुल दो.... ओर ताऊ आ जाओ पुरानी मस्ती मे.
अगर अभी भी मुड खराव हे तो मेरे को ताई के पावॊं पकडने पडेगे कि ऎ ताई इस ताऊ के जरा होश टिकाने तो लगा, उस लठठ से
सादर नमस्कार!
ReplyDeleteकृपया निमंत्रण स्वीकारें व अपुन के ब्लॉग सुमित के तडके (गद्य) पर पधारें। "एक पत्र आतंकवादियों के नाम" आपकी अमूल्य टिप्पणी हेतु प्रतीक्षारत है।
बहुत बढ़िया कथा !!
ReplyDelete...आप बडा अच्छा करते हैँ एकसे बढकर एक अच्छी कथाओँ से
हमेँ परिचित करवाते हैँ ...