मोदीजी को भगत ताऊ का खुला खत

आदरणीय मोदीजी रामराम
वर्तमान स्थितियों में आप अति व्यस्त होंगे फिर भी समय निकाल कर कृपया अविलम्ब गौर करें।

हाल यह है कि इतने दिनों से काम धंधे बन्द कर घर में बैठकर खाते हुए सब जमा पूंजी खत्म हो गयी है अब क्या करें?

आपने 20 लाख करोड़ का राहत पैकेज जब घोषित किया तो मन प्रसन्न हो गया और यक़ीन मानिए उस रात बिना नींद की गोली खाये ही मस्त नींद आयी।
पर अगले दिन जब बहन निर्मला सीतारमण जी ने जलेबी सी उतारना शुरू की और 5 दिन तक उतारती ही  रही तो समझ आगया की इन जलेबियों में चाशनी नहीं है।

पहली बात तो यह कि निर्मला जी पूरे 20 लाख करोड़ की जलेबी भी नहीं उतार पाई। यदि उनकी सारी जलेबियों का हिसाब भी जोड़ा जाए तो ये 13 या 13.5 लाख करोड़ की कीमत की ही बैठती हैं।
अब अगर RBI द्वारा पूर्व प्रदत्त लिक्विडिटी के 8 लाख करोड़ भी इसमें जोडलें तो यह आपके 20 की बजाय 21 या 21.5 लाख करोड़ का राहत पैकेज बन गया।

ताऊ कोई अर्थशास्त्र का ज्ञाता तो है नहीं, ताऊ है एकदम अंगूठा छाप,  पर एक बीघा में कितना किलो बीज लगेगा यह अच्छी तरह जानता समझता है।

आपके राहत पैकेज से जनता अनुमान लगाए बैठी थी कि सबके खाते में 15/16 हजार रुपये अब आये ही समझो। पर आपके इस पैकेज का लॉलीपॉप मुझे कुछ इस तरह समझ आया है कि -

रिजर्व बैंक ने जो 8 लाख करोड़ की लिक्विडिटी लोन के लिए दी थी वह पैसा भी बाजार में आ नही पाया क्योंकि लोन कोई क्यों लेगा? काम धंधा है नहीं, फोकट लोन लेकर कोई कर्ज का बोझ क्यों बढ़ाएगा? ऊंच नींच होगई तो आप विजय माल्या बनने नहीं दोगे।

अब इस राहत पैकेज के 11 या 11.5 लाख करोड़ आपने MSMEs को लोन के लिए रखे हैं तो लोन का हाल आपको ऊपर बता ही चुका हूँ, इस तरह  पैकेज तो यहां पूरा हो गया।

हाँ, आपने जेब से करीब 1.5 लाख करोड़ के आस पास मनरेगा, जनधन व महिलाओं के लिए नगद खर्च किया है उसके लिए आपका आभार। आपने मनरेगा  बजट को 61 हजार करोड़ से  40 हजार करोड़ अतिरिक्त बढाया है उसके लिए भी आभार।

आपने जीडीपी के 10% का राहत पैकेज देने की घोषणा की थी जो कि सिर्फ 0.75% ही आपने दिया है।

पर इस 1.5 लाख करोड़ के सर्कुलेशन से तो अर्थव्यवस्था का पहिया नहीं दौड़ेगा। सर, अर्थव्यवस्था को उबारने के लिए आपको नगदी माल जनता के हाथ में देना ही होगा। 1930 की अमेरिकी मंदी के समय भी वहां की सरकार ने खुले हाथों जनता को खर्चने के लिए डॉलर दिए थे और अर्थव्यवस्था को उबार लिया गया था।

अब आप कहेंगे कि पैसा क्या पेड़ पर लगता है जो जनता में बांट दूँ? कहाँ से लाऊं इतनी नगदी?
सर, पेड़ पर भी नहीं लगता, और आपकी जेब में भी नहीं है  पर आप उधार ले सकते हैं या बजट घाटा बढ़ा  बढ़ा सकते हैं, इन परिस्थितियों में ऐसा करने से कोई आफत नहीं आएगी, पर नगदी जनता को खर्चने के लिए व्यवस्था करें।

मां बाप अपने बच्चों को महंगी शिक्षा दिलाने के लिए उधार ले सकते हैं तो आप जनता की और अर्थव्यवस्था की भलाई के लिए उधार क्यों नहीं ले सकते? क्यों आप बजट घाटा नहीं बढ़ा सकते?

मेरी बातों पर ध्यान दिया जाए क्योंकि मुझे अब कल की चिंता में नींद आना बंद हो गई है। यदि राहत पैकेज का स्वरूप नहीं बदला गया तो मुझे कल बहुत ही भयानक दिख रहा है।

निवेदक
अंगूठा टेक ताऊ

#हिन्दी_ब्लॉगिंग

Comments

  1. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (20-05-2020) को "फिर होगा मौसम ख़ुशगवार इंतज़ार करना "     (चर्चा अंक-3707)    पर भी होगी। 
    -- 
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है। 
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    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।  
    --
    सादर...! 
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' 

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  2. सब के जुगाली का टाईम है लगे हुऐ हैं। बढ़िया।

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