माता बखेडा वाली, ताऊ और मरी हुई भैंस

महाभारत का युद्ध समाप्त हो चुका था. चारों तरफ़ युद्ध के बाद का भयावह सन्नाटा...दूर दूर तक सुनसान....गिद्ध कौव्वों के आकाश में मंडराते झुंड.....अधिकतर जवान युद्ध में वीरगति को प्राप्त हो चुके थे.

थके मायूस महाराज धृतराष्ट्र भी अपने भतीजों यानि पांडवों के साथ रहने चले गये थे. उनके दिल का दर्द तो सिर्फ़ समझा ही जा सकता है. हम आपको यहां कोई महाभारत की कहानी सुनाने नहीं आये हैं. कहानी दो अन्य पात्रों की है जो ठीक उसी समय की है. तो सुनिये.....

एक तो थी "माताश्री बखेडा वाली" जिनकी उम्र उस समय भी 780 साल की थी और आज भी उतनी ही है. गरीबों का दुख दर्द दूर करना, उनकी सहायता करना और अपने व्यापार में लीन रहना ही उनकी दिनचर्या का मुख्य हिस्सा था. गरीबों के लिये महाराज धृतराष्ट्र से भी उलझ लेती थी. उन्होंने द्रौपदी चीरहरण के समय महाराज धृतराष्ट्र...पितामह भीष्म...विदूर जी सबकी बखिया उधेड कर बहुत बडा बखेडा खडा कर दिया था....वो तो कृष्ण भगवान वहां आगये दौपदी की लाज बचाने वर्ना तो माता बखेडा वाली ने दुर्योधन, दुशासन और विकर्ण के शीश ही कलम कर दिये होते. वैसे कुछ लोग तो यह भी कहते हैं कि "माता बखेडा वाली" चाहती तो कृष्ण के आने के पहले ही   द्रौपदी की रक्षा कर चुकी होती पर उन्हें तो कृष्ण को यह सम्मान दिलाना था...खैर जो भी हो.....माता बखेडा वाली की जय.....

उनकी इसी वीरता की वजह से भगवान कृष्ण ने उन्हें वरदान दिया था कि "सत्य के पक्ष में आपने अन्याय का विरोध किया, इसी से प्रसन्न होकर मैं आपको वरदान देता हूं कि आप कलयुग में "माता बखेडा वाली" के नाम से पूरे सोशल मीडिया में सर्वत्र पूज्यनीय रहेंगी और इस पृथ्वी के रहने तक आपकी उम्र जो अभी है वही 780 साल की ही रहेगी.   युद्धकाल के बाद जीवन यापन के लिये उन्होंने  साहुकारी का धंधा चालू रखा था जो कि पहले भी करती थी.

अब हमारी कहानी का दूसरा पात्र है ताऊ महाराज...जिनसे आप भली भांति परिचित ही होंगे.....जो नये पाठक हैं उनको कम शब्दों में ही बता देते हैं कि ताऊ महाराज में छूट भलाई सारे गुण कूट कूट कर शुरू से ही भरे थे. ताऊ महाराज उस समय में भी चोरी, डकैती, ठगी, बेईमानी... उठाईगिरी के ही धंधे किया करते थे.... उनको ना पहले कुछ और काम आता था और ना कुछ अब आता है...

महाभारत का युद्ध शुरू होने वाला था....दोनों पक्षों की तरफ़ से सैनिकों की भर्ती चालू थी. ताऊ महाराज भी कौरवों के सेनापति की पकड में आ गये और कौरव दल में जबरदस्ती भर्ती कर लिये गये.... ताऊ ने सोचा फ़ंस गये अब तो...युद्ध के नाम से ही ताऊ कांप रहा था....एक दिन मौका देखकर भाग निकला और जाकर जंगल में छुप गया....पूरे 18 दिन के बाद वापस लौटा जब युद्ध समाप्त हो गया था......

अब ताऊ क्या करे? किसको लूटे..किसको ठगे...किसके यहां डकैती डाले? कोई बचा ही नहीं था.....तो ताऊ ने गुजर बसर करने को एक भैंस पाल ली और अपना गुजारा करने लगा.

यूं ही काफ़ी समय बीत चला था. अब एक दिन हुआ यूं कि ताऊ की भैंस मर गई, ताऊ को काटो तो खून नहीं. अब ताऊ क्या करे? कैसे पेट पाले? पर ताऊ तो ताऊ .....ताऊ को पुराने शौक फ़िर याद आये....ताऊ ने सोचा अब इस मरी हुई भैंस के पैसे वसूल कर लिये जायें तो काम चल सकता है. ताऊ ने चारों तरफ़ नजर दौडाई पर ऐसा कोई सख्श नहीं नजर में आया जिसको इस मरी हुई भैंस की टोपी पहनाई जा सके....अचानक ताऊ को माताश्री बखेडा वाली का ध्यान आया तो खुशी से उछल पडा.

ताऊ  माता बखेडा वाली को दादीश्री कहकर बुलाता था क्योंकि दोनों की उम्र में 300 साल का फ़र्क था. ताऊ उनके  पास पहुंचा और बोला - दादीश्री राम राम....
माता बखेडा वाली ने सोचा आज ये ताऊ मेरे पास क्या लेने आया है? फ़िर भी बोली - रामराम ताऊ रामराम...बता क्या हाल चाल है? कैसे आना हुआ?

ताऊ बोला - दादीश्री मुझे मेरी भैंस एक हजार रूपये में बेचना है...भैंस तो ज्यादा की है पर मुझे रूपये की जरूरत है इसलिये एक हजार में दे दूंगा.
माता बखेडा वाली भी कम नहीं थी...पूरी साहुकार व्यापारी थी और बिजनेस में किसी तरह का कोई कंप्रोमाईज पसंद नहीं करती थी...आप कह सकते हैं कि पूरी कडक व्यापारी थी. बोली - अच्छा...तेरी वो मरगिल्ली सी भैंस के कौन देगा एक हजार?  तुझ पर दया करके तेरी भैंस के 500  रूपया दे सकती हूं.... लेना हो तो ले वर्ना अपना रास्ता नाप.....मुझे बहुत काम है और माता अपने हिसाब किताब में लग गई.

ताऊ ने सोचा....आसामी तो फ़ंस गई...फ़िर भी उदास सा मुंह बनाकर बोला - ठीक है...मेरी मजबूरी का फ़ायदा उठा रही हो आप....लावो दे दो पांच सौ ही...और भैंस मेरे घर पर पडी मिलेगी....बुलवा लेना.....

माता बखेडा वाली हिसाब किताब में व्यस्त थी सो यह नहीं सुना कि भैंस पडी है....ताऊ को पांच सौ रूपये दे दिये और ताऊ ने रूपये अपने खीसे में डाले और गांव छोडकर यह जा...वो जा...होगया.

ताऊ को डर था कि बखेडा वाली माता उसे छोडने वाली नहीं है सो काफ़ी समय तक तो वापस लौटा ही नहीं....फ़िर एक दिन चुपचाप अपने घर लौट आया...आखिर कब तक बाहर रहता. ताऊ को रोज डर लगता था कि आज माता बखेडा वाली आई कि कल आई. जब माता आई ही नहीं तो ताऊ खुद उनके पास पहुंच गया और प्रणाम करके बैठ गया.....माता बखेडा वाली ने ताऊ का काफ़ी आदर सत्कार किया और मरी हुई भैंस का कोई जिक्र ही नहीं किया तो ताऊ आश्चर्य में पड गया और पूछ बैठा...

तब माता बखेडा वाली बोली - ताऊ, तुम तो मरी भैंस मेरे गले बांध गये थे पर मुझे तो उससे काफ़ी मुनाफ़ा हुआ. अब ताऊ के चौंकने की बारी थी....पूछ बैठा - दादीश्री....मरी भैंस से फ़ायदा...?

माता बखेडा वाली बोली - ताऊ तुम बेईमानी ठगी से कमाते हो और हम व्यापारी हैं, अक्ल से कमाते हैं......जब तुम मरी भैंस बेचकर भाग गये तो मुझे मालूम था कि तुमको भागने के बाद पकडना ऐसा ही है जैसे गधे के सर से सींग पकडना....मैंने एक एक रूपये के लाटरी टिकट निकाल दिये और ईनाम में भैंस रख दी. कुल दस हजार रूपयों से ज्यादा के टिकट बिके. एक आदमी को भैंस ईनाम में निकल गयी. मैने उसको तुम्हारी मरी भैंस ईनाम में   दे दी....वो बोला - यह तो मरी हुई भैंस है...मैं इसका क्या करूंगा...मुझे तो जिंदा मुर्रा भैंस चाहिये.

मैंने कहा - ज्यादा चकर बकर नहीं.....लेना हो तो ले वर्ना तूने जो एक रूपया का टिकट खरीदा था वो एक रूपया वापस पकड....और निकल ले....वो अपना एक रूपया लेकर वापस चला गया....इस तरह पूरे दस हजार से ज्यादा का मुनाफ़ा तेरी मरी हुई भैंस दे गई.....

ताऊ भौंचक्का सा हुआ दादीश्री के मुंह की तरफ़ देखता रह गया.

#हिन्दी_ब्लॉगिंग

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