मेहनत के दम पर अपनी किस्मत संवार सकते हैं.

एक 15/16 साल का लडका रोज दोपहर बाद सर पर सब्जी की टोकरी रखे आवाज लगाता घर के सामने से गुजरता. उस पर कभी ज्यादा ध्यान नहीं दिया पर जब कभी सब्जी घर में नहीं होती तो पत्नि उसको रोक कर सब्जी खरीद लेती थी. उसकी सब्जियां बहुत ताजी होती थी अत: बाद में वह नियमित सब्जी देने लगा.

एक दिन गर्मी बहुत अधिक थी वो लडका पानी पीने अंदर आ गया. मैने देखा वो पसीने में तर था पर उसकी आंखों में चमक थी और थकान का कोई नामोनिशान उसकी शक्ल पर नहीं था. मैंने उससे नाम पूछा तो वह बोला – बाबूजी मेरा नाम शंकर है. 

मैने उसके बारे में और जानकारी ली तो पता चला कि वह नजदीक के ही गांव का रहने वाला है और उसके पिता नहीं है. घर में मां और एक छोटी बहन है. वह गांव के ही स्कूल में 8वीं कक्षा में पढता है. कुल 3 बीघा जमीन है जिस पर वो सब्जियां उगाते हैं. पहले सारी सब्जियां मंडी के दलालों के मार्फ़त बेच देते थे जिससे सिर्फ़ लागत ही निकल पाती थी.

फ़िर उसने बताया कि साल भर से वह स्कूल से लौटकर खेत की सब्जियां लाकर यहां शहर की एक दो कालोनियों में बेच देता है जिससे उसे अच्छी आमदनी हो जाती है. गांव से शहर तक बस टेंपो से आने जाने में उसका काफ़ी समय बर्बाद हो जाता था तो मैने उससे कहा कि वह एक साईकिल लेले तो काफ़ी समय और मेहनत बचेगी. मेरे यहां बेटे की एक साईकिल रखी थी जो अब किसी काम में नहीं आ रही थी. मैने वो साईकिल उसे दे दी. साईकिल पाकर वह बहुत खुश था, ऐसा लगता था जैसे कोई कार उसने पा ली हो. अब वो पहले से भी ज्यादा मेहनत से काम करने लगा.

उसकी सब्जियों की क्वालिटी काफ़ी बढिया और ताजी होती थी तो उसके ग्राहक भी नियमित बन गये थे. ऐसे ही तकरीबन दो तीन साल बीत गये. शंकर अब काफ़ी हठ्ठा कठ्ठा और कद काठीदार हो चला था. एक दिन वो आया और बोला बाबूजी मुझे एक मोटर साईकिल दिलवा दिजीये. मैने कहा – शंकर, मोटर साईकिल तो काफ़ी महंगी आयेगी. वो बोला बाबूजी आपके यहां यह जो मोटर साईकिल रखी रहती है यह किसकी है? तो मेरे ध्यान में आया कि मेरे बेटे की मोटर साईकिल काफ़ी समय से यूं ही रखी है. बेटा बाहर रहता है और अब वो मोटर साईकिल चलाता भी नहीं है. मैंने पत्नी से बात की और उसको हां कर दी. वो बोला मैं कल आकर ले जाऊंगा.

अगले दिन वो आया और बोला बाबूजी मैंने ये 25 हजार रूपये जोडे हैं आज तक, और मेरे हाथ में 25 हजार रूपये रख दिये. अब मैं क्या कहता? हालांकि मोटर साईकिल का बाजार मूल्य पैंतीस छत्तीस हजार का रहा होगा पर उसकी काम करने की लग्न और मदद करने के लिये मैंने उसे दे दी.
उसने मोटर साईकिल को सब्जी के हिसाब से तैयार करवाया और सब्जियां बेचने का अपना दायरा और बढा लिया.

इसी बीच उसकी मां और बहन ने घर में दो तीन भैंसे पाल ली थी जिनका दूध थोक व्यापारी को दे दिया जाता था और उसमें कोई ज्यादा मुनाफ़ा नहीं होता था. मोटर साईकिल आने के बाद शंकर ने थोक व्यापारी को दूध देना बंद कर दिया और खुद ही घर घर जाकर दूध बांटना शुरु कर दिया. उसने समय के साथ पडौसियों का दूध भी लेकर बांटना शुरू कर दिया.
जो भी बचत होती थी उसको संभालकर जमा करता गया. बाद में उसने शहर में ही दूध डेयरी की दूकान खोल ली. मेहनत ईमानदारी और शुद्धता के बल पर दूकान चल निकली. आज शंकर दूध व्यवसायियों में प्रतिष्ठित नाम है.

इसे कहते हैं “मेहनत के दम पर अपनी किस्मत संवारना”. कोई भी मनुष्य लग्न और ईमानदारी के बल पर आगे बढ सकता है. और ऐसे मेहनती लोगों को अपने आप रास्ता भी दिखाने वाले मिल ही जाते हैं, बस मेहनत और लग्न में कमी नहीं रहनी चाहिये.  


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