मेरी गोवा यात्रा भाग -1

बीती बातों का सार लिखूं ....भाग - 1
गोवा जाना हमेशा से ही अच्छा लगता आया है, वहां के सुंदर बीच, हरियाली और बारिश मन मोहती है. बिना किसी ड्रेस कोड की चिंता किये टीशर्ट और हाफ़ पैंट पहने मार्केट और समंदर किनारे घूमना आनंद दायक लगता है. जो अनुभव आपको भारत के किसी अन्य शहर में नहीं मिल सकता वो सब आपको यहां मिलेगा. कुल मिलाकर कहा जाये तो एक आम भारतीय माहौल होने के बावजूद कुछ तो है गोवा में, जो बार बार अपनी तरफ खींचता है. गोवा भ्रमण का मौका अक्सर ही  साल छह महीने में किसी ना किसी कांफ्रेंस सेमिनार के बहाने मिल भी जाता है.

अबकी बार शुक्रवार को दोपहर ढाई बजे मुंबई के लिये जेट एयरवेज की फ्लाईट  पकड़ने के लिये हमने देवी अहिल्याबाई होलकर एयरपोर्ट का रुख ऊबर टेक्सी से किया. एयरपोर्ट का रास्ता 40 मिनट का है पर रास्ते में जाम की स्थिति बनी हुई थी जो कि दोपहर के समय प्रायः नही होती.... टेक्सी वाला कुछ ज्यादा ही भला आदमी निकला, बोला साहब मैं आपको चंदन नगर होकर ले चलता हूँ, यहां बड़े गणपति तरफ तो स्मार्ट शहरी करण के चक्कर मे जाम लगा है, हो सकता है आपकी फ्लाईट छूट जाए....हमारे पास और कोई चारा भी नही था सो हामी भर दिए। वहां पहुंचकर टेक्सी वाले ने तयशुदा 200 रुपये ही किराए के मांगे तो थोड़ा आश्चर्य हुआ पर सोचा कि भले लोग भी तो हैं दुनियां में.

गेट पर टिकट का प्रिंट और आईडी दिखाया तो सिक्युरिटी वाले ने हमारी तरफ घूरते हुए देखा और आईडी से शक्ल मिलाने लगा.  हम कुछ डर से गये और दूसरा आईडी निकालने लगे तो वो मुस्कराने लगा और हमारी जामा तलाशी शुरू कर दी और हमारी जेब से तम्बाकू की पुड़िया निकलवा ली.  हमें मालूम था की तम्बाकू की पुड़िया सिक्युरिटी का अभेद्य द्वार नही भेद पाएगी सो एहतियातन हमने चार दिन की पूड़ियाएँ बनाकर चेक इन बगेज के हवाले पहले से ही कर रखी थी सो खुशी खुशी अपने शौक की पुडिया को डस्टबीन के हवाले कर दिया.   अपने सामान को स्कैन करवा कर बोर्डिंग पास लिया और सिक्युरिटी चेक करवाकर निर्धारित गेट नं. 6 पर जाकर इंतजार करने लग.

अभी तक पीछे से ही प्लेन नही आया था तो सोचा कुछ चाय वाय सुड़क ली जाए, फिर सोचा कि काहे 100 रुपये का चूरा करें, यह तो जेट एयरवेज की फ्लाईट है सो चाय नाश्ता तो मिल ही जायेगा.  तभी अनाउंस हुआ कि फ़्लाईट में आधे घंटे का डीले होगा तो हमने कैफेटेरिया में घुसकर चाय सुड़कना बेहतर समझा और सुड़कने लगे.  तभी अनाउंस हुआ कि मुंबई जाने वाले यात्रीगण गेट नम्बर 6 की बजाये गेट नं.  11 की तरफ प्रस्थान करें सो केफ़ेटेरिया से अपने आपको उठाकर  सीढियां उतरते हुए हम  गेट नम्बर 11 की तरफ प्रस्थित होकर लाइन में लग लिए. वहां से  बस में बैठकर जहाज में सवार हो लिए और  अपने आपको सही सीट पर टिका कर बिना कहे ही शरीफ़ बच्चों की तरह सीट बेल्ट बांधली. 

केबिन क्रू द्वारा सेफ्टी नियमों का प्रदर्शन रूटीन तौर पर किया गया तब तक प्लेन टेक आफ की तैयारी में रनवे पर दौड़ने के लिए कमर कस चुका था. पांच सात मिनट बाद जहाज निर्धारित ऊंचाई पर पहुंच गया और सीट बेल्ट खोलने की घोषणा के साथ ही हवाई सुंदर/सुंदरियां ट्राली लेकर दौड़ पड़े. फ्लाइट टाइम एक घण्टा होने की वजह से करीब 250 यात्रियों को सर्व करना भी एक हिम्मत का ही काम है.

ट्राली लिए हवाई सुंदरी ने हमको एक ट्रे पकड़ा दी जिसमे एक पानी की बच्चा बोतल, खट्टी मीठी गीले से चूर्ण वाली दो गोलियां, ड्राई दूध पाउडर, सुगर की पुड़िया और खाली कप था.  दस पन्द्रह मिनट तक किसी ने सुध नही ली, हमने पास बैठे सहयात्री की तरफ देखा तो वो पठ्ठा किटकैट की दस रुपये वाली चाकलेट खा रहा था.  हमने अपनी ट्रे टटोली पर उसमें चाकलेट तो क्या, चाकलेट की खाली पन्नी भी नही दिखी तभी उसी हवाई सुंदरी की आवाज आई...सर वेज और नानवेज? हमारे वेज कहते ही उसने एक गर्मागर्म एल्युमिनियम फाइल वाला लिफाफा पकड़ा दिया.  उसको खोला तो एक मैदा की रोटी को गोल चौकोर मोड़कर कुछ पत्तागोभी गाजर भरी हुई थी, एक बाइट लेकर वापस रखदी क्योंकि बिल्कुल ही बेस्वाद थी....हमको भूख भी नही थी सो चाय का इंतजार करने लगे.  इस बीच हमने दोनों चूर्ण वाली गोलियां खाकर पानी की बोतल मुंह से लगाकर गला तर कर लिया.

तभी अनाउंस हुआ कि अब हम मुम्बई उतरने वाले हैं कृपया सीट बेल्ट बांध लें....तभी हवाई सुंदरी ट्रे समेटती हुई आगई तो हमने कहा चाय के लिए गर्म पानी तो देदो और हमको चाकलेट भी नही मिली.  वो मुस्कराते हुए बोली,  सर फ्लाईट कम समय की है अब चाय सर्व करना तो सम्भव नही होगा और चॉकलेट खत्म हो चुकी है.  हमको ऐसा लगा कि इसने तो हमको बच्चा समझकर ऊल्लू बना दिया.....खैर खीझ मिटाने के लिए हमने विंडो से बाहर झांका तो प्लेन बादलों और पहाड़ियों के बीच से गुजर रहा था... बहुत ही मनमोहक दृश्य था सो हम उसका वीडियो बनाने लगे जो लैंडिंग तक बनाया, करीब 7 मिनट का.  आपने भी कई बार इस रूट पर यात्रा की होगी पर शायद ऐसे दृश्य पर ध्यान नही गया होगा. 

मुम्बई से गोवा जाने वाली फ्लाईट में 50 मिनट का ले-ओवर था सो फटाफट ट्रांसफर डेस्क की तरफ सिक्युरिटी चेक के लिए दौड़ से लिये.  मुम्बई में टर्मिनल 2 पर डोमेस्टिक फ्लाइट के लिए ट्रांसफर करना भी बहुत भागादौड़ी और थकाऊ काम है.  नान-स्टॉप या होपिंग फ्लाइट में इतना कष्ट नही होता पर कनेक्टिंग फ्लाईट थकाने वाला काम है, खासकर बड़े एयरपोर्ट्स पर.  सब काम निपटा कर रामराम करते हुए गोवा जाने के लिए बोर्डिंग गेट पर पहुंच कर लाइन में खड़े हो गए.
शेष अगले भाग में.....

Comments

  1. मुझे भी भारत के पर्यटन स्थलों में सबसे ज्यादा गोवा पसन्द है
    तम्बाकू की पुडिया बैग में तो रखनी ही पडती है और जेब वाली नोटों के बीच में रखकर एन्ट्री कर लेता हूं :-)
    प्रणाम

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  2. Connecting flights ka hamesha se hi chakkar hai.....aur Domestic flights lagta hai hamesha hi delay hoti hain..Hamari bhi Mumbai se Goa flight delay thi...aap ka yatra vrtant jaari rakhiye ..main bhi apne tour ke baare mei likhungi..lekin kab ..pata nahin.

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