लाल बत्ती और वीवीआईपी पर उसके प्रभाव



अभी जुम्मे जुम्मे चार दिन की ही तो बात है जब हम  शाम को आफ़िस से घर लौटे तो देखा कि पडौस वाले गुप्ता जी का घर दिपावली जैसी रोशनी से नहाया हुआ था. गुप्ता जी के यहां ना तो कोई शादी ब्याह लायक था और ना ही किसी नये मेहमान आने की उनकी उम्र थी सो जल्दी से अपने घर में घुसे और पप्पू की अम्मा को आवाज लगाई कि ये माजरा क्या है?

पप्पू की मां जो शायद हमारे आने का ही इंतजार कर रही थी, हमारे कुछ पूछ्ने से पहले ही आतंकवादियों के बम की तरह फ़ट पडी. गुर्राते हुये बोली – तुमसे तो आज तक कुछ नहीं हो सका और एक ये देखो गुप्ताजी वीवीआईपी होगये…उनको लाल बत्ती मिल गई…..ताना सा मारते हुये बोली - तुम तो बस इस खटारा स्कूटर पर ही घुमाते रहना मुझको. हमने कहा पप्पू की अम्मा, कुछ शांति से बतावो तो बात समझ में आये.


हमारी बात सुनते ही वो नार्थ कोरिया वाले मोटू तानाशाह “किम जोन उंग” की तरह फ़टते हुये बोली – कुछ तो शर्म करो, सारा दिन इधर से उधर नेतागिरी करते फ़िरते हो, आज तक तुम कुछ भी नही बन पाये और एक ये देखो गुप्ता जी को आज सीएम ने खाद निगम का अध्यक्ष बना दिया और उनको लाल बत्ती देकर वीवीआईपी भी बना दिया. गुप्ताईन ऐसे बन ठनकर मेम साहिब की तरह इतराते हुये लाल बत्ती की गाडी में बैठकर गई है जैसे पैदा ही लाल बत्ती में हुई हो….

हमने कहा – भागवान अब चुप भी हो जा….जीत उनकी पार्टी की होगई तो वो वीवीआईपी  होगये….. कल हमारी पार्टी जीत जायेगी तो तुम लालबत्ती वाली वीवीआईपी हो जावोगी. पप्पू की अम्मा हमें ऐसे देख रही थी कि हमे उनके इरादे ठीक नही लगे. हमारी हालत ऐसी हो रही थी जैसे राह चलते लालबत्ती की गाडी को पीछे या सामने से आते देखकर आमजनों में दहशत फ़ैल जाती है. सब रास्ता देने लगते हैं तो हमने सोचा कि अब पप्पू की अम्मा के सामने से हट जाने में ही भलाई है वर्ना जो हाल लालबत्ती वाले जनता का करते हैं वही हाल ये हमारा करेगी.


हम अपना खटारा स्कूटर उठाकर घर से बाहर निकले ही थे कि सामने से फ़राटे से लालबत्ती तेजी से आकर रूकी, हमे लगा कि कहीं हमारे ऊपर ही ना ढ जाय सो हडबडी में अपने स्कूटर को जल्दबाजी में एक तरफ़ झुकाकर हम भी झुक गये. तभी कार से गुप्ता जी उतरते हुये दिखे सो हमने भी सौजन्यता वश उन्हें अध्यक्ष बनने की बधाई दी तभी भाभी जी यानि गुप्ताईन जी पल्लू संभालते हुये कार से बाहर निकली. हमारी तो आंखे चौंधिया गई उनको देखकर….हमने जल्दबाजी में उन्हें भी नमस्ते किया…बदले में अभी तक के पहले, जो अधेड दिखती थी और अभी बिल्कुल “भाभीजी घर पर हैं” वाली "अनीता भाभी" की तरह वैल ड्रेस्ड दिख रही, गुप्ताईन जी ने भी हमें बडे नाजोअदा से नमस्ते… नमस्ते….भाईसाहब कहा और अंदर जाने के लिये पलट ली.

बस साहब उस दिन से हमारी तकलीफ़ तो किससे कहें पर पप्पू की अम्मा ने अपनी तकलीफ़ें बता बता कर हमारा कचूमर निकाल डाला. घर में खाना पीना सब ऐसा बनने लगा जैसे गमी वाला घर हो, बिना हल्दी मिर्च के छौंके वाला खाना. पप्पू की अम्मा की तानाकशी से तंग आकर हमने भी घर पर रहना कम ही कर दिया. अपना ज्यादातर समय “रमलू” चाय वाले के ठीये पर या “संटू भिया कबाडी” के ठीये पर ही बीतने लगा.

पप्पू की अम्मा की तबियत भी नासाज सी दिखने लगी थी हमें आजकल. हां एक बात आते जाते हमने जरूर नोटिस की कि पप्पू की अम्मा का मन पूजा पाठ और ज्योतिषियों में ज्यादा लगने लगा था. घर में बने पूजाघर में ही ज्यादातर समय दिया बत्ती करती रहती थी. क्या पता कोई ज्योतिषियों के बताये टोने टोटके भी करती हों,  हमने सोचा चलो, इसी पूजा पाठ के बहाने इनको शांति मिलती रहेगी, हम तो लाल बत्ती का जुगाड कर वीवीआईपी बनने से रहे.

आज सुबह सुबह हम तो सोकर उठे भी नही थे कि हाथों में अखबार लहराती हुई पप्पू की अम्मा ने ऐसी आवाज लगाई मानों उनको ही लाल बत्ती मिल गई हो. ऐसी खुश दिखाई दे रही थी जितनी की ट्रंप की जीत पर उसकी लुगाई “मेलानिया” भी नही हुई होगी. हमने पूछा – भागवान, ये सुबह सुबह क्या बचपना कर रही हो बुढापे में? साफ़ साफ़ बताओ कि हुआ क्या है?

वो बोली – देखो ये खबर…..आज से कोई नेता, मिनिस्टर, अफ़सर और वीवीआईपी…… कोई भी लाल बत्ती नही लगायेगा, ऐसा आर्डर सरकार ने निकाल दिया है…...वो एक सांस में ही बोले जा रही थी….. अरे मैं कोई रोज पूजाघर में यूं ही फ़ोकट थोडे ही बैठी रहती थी. आखिर भगवान ने मेरी सुन ही ली…..अब देखती हूं गुप्ताईन कैसे ठसके से बैठेगी लाल बत्ती में….बडी वीवीआईपी बनी फ़िरती थी….. जब भी लाल बत्ती में बैठती थी तब मेरी तरफ़ ऐसे देखती थी जैसे मैं कोई चींटी हूं और वो हाथी….ले गुप्ताईन अब बैठ तू लाल बत्ती में… और पप्पू की अम्मा अपनी पूजा का फ़ल पाने की खुशी में चाय बनाने चली गई.

हम बाहर बरामदे में आकर अखबार के पन्ने पलटाने लगे. बगल में झांककर देखा तो गुप्ता जी और उनका ड्राईवर  कार से लाल बत्ती उतार रहे थे…..गुप्ताईन जी भी बगल में खडी थी जिनका चेहरा कल तक अनीता भाभी जैसा लगता था अब हमे अधेड से भी ज्यादा बूढा लगने लगा था.   

Comments

  1. आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन विश्व पृथ्वी दिवस और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।

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    1. हर्षवर्धन जी, आभार आपका. बुलेटिन का लिंख भी दे देते तो अच्छा होता, आजकल फ़ीड की व्यवस्था नही होने से वहां तक पहुंचना कठिन सा हो गया है.
      रामराम

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  2. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" रविवार 23 अप्रैल 2017 को लिंक की गई है.... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. दिग्विजय जी, आभार आपका. बुलेटिन का लिंख भी दे देते तो अच्छा होता, आजकल फ़ीड की व्यवस्था नही होने से वहां तक पहुंचना कठिन सा हो गया है.
      रामराम

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  3. वाह रे!लाल बत्ती की माया
    क्या ख़ूब !खेल दिखाया
    सरपट दौड़े हैं आम जन
    भागे बन के ,छाया।

    बहुत ही रोचक एवं हास्यास्पद लेख है श्रीमान आपकी ,आभार।

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    1. आभार ध्रूव सिंह जी आपका.
      रामराम

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  4. सरकार का लाल बत्ती को लेकर लिया गया फैसला सराहनीय है। अब केवल 5 ( राष्ट्रपति,उप-राष्ट्रपति,प्रधानमंत्री , न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश और लोकसभा अध्यक्ष )लाल बत्ती के अधिकारी रह गए। देशभर में लगभग पौने छह लाख लाल बत्ती धारी वीआईपी इस फैसले से एक साथ प्रभावित हुए हैं। इनमें मंत्री ,अधिकारी ,न्यायाधीश एवं सेना के उच्चाधिकारी शामिल हैं।
    यह लाल बत्ती समाज और सड़क पर रुतबे का प्रतीक बन गयी थी अब देखना है लाल बत्ती के सीमित किये जाने का व्यावहारिक स्वरुप हमारे सामने किस रूप में आता है। इस लाल बत्ती ने कई आमजनों की जानें भी ले ली हैं जिसमें प्रधानमंत्री का काफला भी शामिल रहा है।
    आपका व्यंग भलीभांति बता रहा है कि समाज में किस प्रकार की होड़ चल रही थी लाल बत्ती को लेकर। लाल बत्ती को लेकर तीखी चर्चा पिछले चार साल से गर्म थी। एक फिल्म में अभिनेता नाना पाटेकर भी लाल बत्ती और वीआईपी काफलों के कारण जनता को होने वाली दुश्वारियों की ओर ध्यान आकृष्ट करते हैं। आपकी भाषा -शैली जनता से सीधा संवाद स्थापित करने वाली है। बधाई स्वीकारें ताऊ जी.......

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    1. रविंद्र सिंह जी, पोस्ट का असली मतलब समझने और उत्साह वर्धन के लिये आपका बहुत बहुत आभार.
      रामराम

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  5. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (25-04-2017) को

    "जाने कहाँ गये वो दिन" (चर्चा अंक-2623)
    पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  6. लाल बत्ती की माया बहुत ही रोचक है

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