सेल्फी और कृष्ण कन्हैया की मुरली

यूं तो सेल्फी का जन्म 1839 में फिलाडेल्फिया के रॉबर्ट कॉर्नेलिअस'  के नाम दर्ज हुआ सुनते हैं पर यह बात गले नही उतरती। सेल्फी का जन्म कन्हैया ने किया था। असल मे उनकी मुरली कोई साधारण मुरली नही थी बल्कि उस मुरली में एक सेल्फी कैमरा भी लगा था।

इंसान सेल्फी का इतना दीवाना क्यों है क्योंकि सेल्फी दूसरों का ध्यान अपनी तरफ खींचने का एक शानदार माध्यम है। कन्हैया ने इस विधा का भरपूर दोहन किया, इसी सेल्फी कला में निपुण होने के कारण वो चौसठ कला निधान बन पाए थे। गोपियों का संग साथ भी इसी सेल्फी की बदौलत था, चली आती थी सेल्फी खिंचवाने। अब बताइये भला आज कौन चौसठ कला निधान नही बनना चाहेगा? बच्चे बूढढे जवान सभी कृष्ण बनने की जुगत भिड़ा रहे हैं इसके पीछे मुख्य कारण यही है। और इसी कारण सब कम्पनियां फोन भी सेल्फी कैमरे के गुणगान के साथ बेचती हैं।

पुराने जमाने मे एक छोरा और एक छोरी कहीं एकांत में दिख जाए तो जो लठ्ठ परसाद की परसादी भोग में मिलती थी वो कई सठियाये लोगों को याद होगी।

पर आज...साहब आज के जमाने का क्या कहना, अभी परसों का किस्सा है, पड़ौस की छोरी राधा भरी दोपहर जलेबी घाट पर रमलू धोबी के छोरे सखिया के साथ पकड़ी गई। होहल्ला मचा, छोरी के बापू तक शिकायत पहुंच गई और छोरी से पूछा तो वो बोली -  बापू ये सारे मुझसे जलते हैंगे, मैं तो सखिया के पास सेल्फी खिंचाने आई थी। कसम से बापू उसने सेमसंग का मस्त सेल्फी वाला फोन खरीदा है, आ चल तेरी भी खिंचवा देती हूँ।

हम तो सन्न रह गए छोरी की हाजिर जवाबी और हिम्मत पर। हमने तो ना जाने सेल्फी खिंचवाने वाले पोज में पकड़े जाने पर कितना लठ्ठ परसाद खाया था और एक ये जमाना है।  कसम ऊपर वाले तूने भी ताऊ से खूब दुश्मनी निकाली है जो 60 वर्ष पहले ही इस दुनिया मे टपका दिया। अरे ताऊ तेरी कौनसी भैस खोल लेता जो तू सेल्फी वाले जमाने मे ताऊ को इस दुनिया मे उतारता तो।

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