ताऊ महाराज धृतराष्ट्र महल में बैठे हुये पुराने ख्यालों में खो गये......ताऊ महाराज को यादों के धुंधलके में सब कुछ याद आने लगा. देखते ही देखते ताऊ महाराज का हस्तिनापुर का तख्तो ताज कैसे गणतंत्र में बदल गया. हस्तिनापुर को याद करके ताऊ महाराज का दिल भर आया. जिस हस्तिनापुर के राज्य का कभी सुर्यास्त नही होता था आज वो महज एक गणतंत्र बन कर रह गया.
ताऊ महाराज के हाथ से सत्ता का हस्तांतरण सीधे "सांडनाथ पार्टी" को हुआ. सांडनाथ पार्टी जिसने गणतंत्र के लिये ताऊ महाराज से वर्षों तक संघर्ष किया था, जिसने प्रजा को ताऊ राज से मुक्ति दिलाने और रामराज्य देने का वादा किया था, को ताऊ महाराज ने ना चाहते हुये भी मजबूरन सत्ता सौंप दी.
ताऊ महाराज भी कोई कम खेले खाये हुये नही थे, युगों तक सारी दुनियां पर राज किया था सो हस्तिनापुर के भी दो टुकडे करवा कर दो अलग अलग राष्ट्रों में बंटवारा करके सत्ता सौंप दी. खुद ताऊ महाराज अब नाम के ताऊ महाराज रह गये और दूर से ही मजे लेने लगे. जिस सांडनाथ पार्टी को हस्तिनापुर की सत्ता सौंपी गयी थी उस सांडनाथ पार्टी में सत्ता आते ही काफ़ी जूतमपैजार हुई और आखिर में जिसका बहुमत उसकी जीत के आधार पर कई सालों तक सांडनाथ पार्टी राज करती रही.
सत्ता के मद में चूर होकर सांडनाथ पार्टी अपने हिसाब से हस्तिनापुर का राजकाज चलाने लगी. पार्टी में सारे चाटुकार और भाट इकठ्ठे हो गये. जनता के सामने नया नारा आया "सांडनाथ इज हस्तिनापुर - हस्तिनापुर इज सांडनाथ". इस नये नारे के साथ ही प्रजातंत्र की धज्जियां उडने लगी, मनमानी और लूट खसोट भ्रष्टाचार अपनी चरम सीमा तक जा पहुंचा. जो भी लूट खसोट का विरोध करता उसे आपातकाल के नाम पर जेलों में ठूंस दिया जाता. प्रजा भयभीत रहने लगी.
आखिर सांडनाथ पार्टी का मुकाबला करने अब एक जनता की पार्टी खडी होगई जिसने सांडनाथ पार्टी को जबरदस्त पटकनी देते हुये सत्ता हथिया ली, पर इस जनता की पार्टी के दो अढाई साल में ही कई टुकडे हो गये, इनमें से कई क्षेत्रिय दलों के रूप में उभरे और इन सबमें एक बडी पार्टी का उदय हुआ जिसका नाम था "भैंसानाथ पार्टी"
हस्तिनापुर की सत्ता में अब सांडनाथ और भैंसानाथ नाम की दो ही पार्टियां रह गयी, जो छोटी मोटी बिच्छु पार्टी, सांप पार्टी, नेवला पार्टी, गिरगिट पार्टी....इत्यादि पार्टियां इनके ही किसी गठबंधन में शामिल हो गयी.
अब जनता के गाढे खून पसीने की कमाई को इन दोनों पार्टियों ने लूटना शुरू कर दिया, इतनी लूट तो ताऊ महाराज धृतराष्ट्र के राज में भी नही थी.
दोनों ही पार्टियां जनता के सामने एक दूसरे को जमकर गालियां देती रहती, जनता समझती हुई भी नासमझ बनी रहती. सता में चाहे सांडनाथ हों या भैसानाथ. सबका हिस्सा बराबर था. एक तरफ़ इनकी सरकार दूसरी तरफ़ उनकी सरकार, यानि नंबर लगता रहता था शासन करने का. अंदर से दोनों ही पार्टियां मिली हुई थी. जिसकी भी सरकार होती वो ऊपर से तो विपक्षी की जांच करवाने और जेल में डाल देने की धमकियां देती पर अंदर से मामला सेट रहता, किसी का कुछ नही बिगडता था, बंदर बांट का हिस्सा सबको स्विस बैंक के माध्यम से मिल जाता था. दोनों पार्टियां ही अमन चैन की बांसुरी बजा रही थी कि तभी कहीं से एक ऊंट आगया. बस यहीं से सत्यानाश शुरू होगया.
इस ऊंट्नाथ पार्टी ने सांडनाथ व भैंसानाथ के खिलाफ़ तगडा माहौल बनाकर आखिर पटकनी दे दी. पटकनी क्या दे दी बल्कि आफ़त खडी कर दी. हस्तिनापुर गणतंत्र के चुनाव में सांडनाथ पार्टी बुरी तरह हार गयी. भैंसानाथ सबसे बडी पार्टी तो बनी पर नंबर पूरे नही हो रहे थे लिहाजा सांडनाथ और भैंसानाथ पार्टी ने अंदरूनी तौर पर तय कर लिया कि ऊंटनाथ पार्टी को सत्ता संभलवा दी जाये, फ़िर उसके असफ़ल होने पर दुबारा चुनाव करवा लिये जाये और इस तरह दोनों में से कोई एक फ़िर सत्ता पर काबिज हो जाये.
इसी रणनीति के तहत सांडनाथ पार्टी ने ऊंटनाथ पार्टी, जिसका ऊंट अभी तक बैठा हुआ था उसको समर्थन देकर उंट को खडा कर दिया. ऊंट ने खडा होते ही मस्त ऊंट की तरह उधम मचाना शुरू कर दिया. ना किसी समर्थन देने वाले का लिहाज ना ही किसी विपक्षी पार्टी की गरिमा बाकी रहने दी. आफ़त खडी करदी. सांडनाथ व भैंसानाथ दोनों ही घबरा गये और सोचने लगे कि अब इस ऊंट से कैसे पीछा छुडवाया जाये क्योंकि ऊंट तो अब पूरा हस्तिनापुर ही निगल जाना चाहता था जो खासकर भैंसानाथ पार्टी को मंजूर नही था क्योंकि दस साल तक सांडनाथ ने राज कर लिया था और अब भैंसानाथ की बारी थी.
दोनों ही पार्टियां यानि सांडनाथ और भैंसानाथ संकट के समय ताऊ महाराज से सलाह लेने चली आती थी और ताऊ महाराज अपना हिस्सा ले देकर उनमें सुलह सफ़ाई भी करवा दिया करते थे. इस संकट के समय भी उन्हें ताऊ महाराज की याद आयी और दोनों ही गुपचुप रूप से ताऊ महाराज से सलाह मशविरा लेने चले आये.
सांडनाथ बोले - ताऊ महाराज, आप तो सब जानते हो, राजनीती के पुरोधा हो, इस ऊंट से हमको बचने का रास्ता बताईये वर्ना ये तो हमसे समर्थन लेकर हमारी ही मुख्यमंत्री को अंदर करवाने की चाल चल रहा है. ना इसे कोई अक्ल है, ना राज करने की तमीज, जहां देखो धरना प्रदर्शन और खुद ही पुलिस और खुद ही मुंसिफ़गिरी कर रहे हैं, महाराज ऐसे तो अराजकता फ़ैल जायेगी, कुछ करिये महाराज.
ताऊ महाराज बोले - तुम ये बताओ कि तुमको इस ऊंट को समर्थन देने की क्या जरूरत आ पडी थी? अरे उंट बैठा था तो बैठा रहने देते, खडा क्यों किया उसको? ना समर्थन देते ना ऊंट खडा होता और ना ये बवाल मचता. अब भुगतो.
सांडनाथ और भैंसानाथ बोले - महाराज फ़िर आप किस मर्ज की दवा हैं? आपने इतने युगों तक राज किया है, इस खडे हुये ऊंट को वापस बैठाने का कोई तो उपाय होगा?
ताऊ महाराज बोले - देखो भई, खडे ऊंट का कोई भरोसा नही होता, उसकी मर्जी का क्या पता? यदि ऊंट बैठा हुआ हो तो पक्का है कि वह खडा ही होगा तो खडे होने तक उसकी चाल समझ में आती है, पर तुमने खुद ऊंट को खडा कर दिया है तो खडे ऊंट का क्या भरोसा कि वो भाग जायेगा या वापस बैठ जायेगा? अब ये तो ऊंट पर ही निर्भर करता है कि वो क्या करता है? अपनी करनी से वापस बैठ जायेगा या खडा रहेगा या भाग जायेगा?
सांडनाथ व भैंसानाथ दोनों ही ताऊ महाराज की बात सुनकर गहन विचार मंथन में डूब गये और अपनी अपनी पार्टियों कि राजनैतिक विचार मंथन कमेटी की मीटिंग आहूत करने का आदेश दे दिया.
ताऊ महाराज के हाथ से सत्ता का हस्तांतरण सीधे "सांडनाथ पार्टी" को हुआ. सांडनाथ पार्टी जिसने गणतंत्र के लिये ताऊ महाराज से वर्षों तक संघर्ष किया था, जिसने प्रजा को ताऊ राज से मुक्ति दिलाने और रामराज्य देने का वादा किया था, को ताऊ महाराज ने ना चाहते हुये भी मजबूरन सत्ता सौंप दी.
ताऊ महाराज भी कोई कम खेले खाये हुये नही थे, युगों तक सारी दुनियां पर राज किया था सो हस्तिनापुर के भी दो टुकडे करवा कर दो अलग अलग राष्ट्रों में बंटवारा करके सत्ता सौंप दी. खुद ताऊ महाराज अब नाम के ताऊ महाराज रह गये और दूर से ही मजे लेने लगे. जिस सांडनाथ पार्टी को हस्तिनापुर की सत्ता सौंपी गयी थी उस सांडनाथ पार्टी में सत्ता आते ही काफ़ी जूतमपैजार हुई और आखिर में जिसका बहुमत उसकी जीत के आधार पर कई सालों तक सांडनाथ पार्टी राज करती रही.
सत्ता के मद में चूर होकर सांडनाथ पार्टी अपने हिसाब से हस्तिनापुर का राजकाज चलाने लगी. पार्टी में सारे चाटुकार और भाट इकठ्ठे हो गये. जनता के सामने नया नारा आया "सांडनाथ इज हस्तिनापुर - हस्तिनापुर इज सांडनाथ". इस नये नारे के साथ ही प्रजातंत्र की धज्जियां उडने लगी, मनमानी और लूट खसोट भ्रष्टाचार अपनी चरम सीमा तक जा पहुंचा. जो भी लूट खसोट का विरोध करता उसे आपातकाल के नाम पर जेलों में ठूंस दिया जाता. प्रजा भयभीत रहने लगी.
आखिर सांडनाथ पार्टी का मुकाबला करने अब एक जनता की पार्टी खडी होगई जिसने सांडनाथ पार्टी को जबरदस्त पटकनी देते हुये सत्ता हथिया ली, पर इस जनता की पार्टी के दो अढाई साल में ही कई टुकडे हो गये, इनमें से कई क्षेत्रिय दलों के रूप में उभरे और इन सबमें एक बडी पार्टी का उदय हुआ जिसका नाम था "भैंसानाथ पार्टी"
हस्तिनापुर की सत्ता में अब सांडनाथ और भैंसानाथ नाम की दो ही पार्टियां रह गयी, जो छोटी मोटी बिच्छु पार्टी, सांप पार्टी, नेवला पार्टी, गिरगिट पार्टी....इत्यादि पार्टियां इनके ही किसी गठबंधन में शामिल हो गयी.
अब जनता के गाढे खून पसीने की कमाई को इन दोनों पार्टियों ने लूटना शुरू कर दिया, इतनी लूट तो ताऊ महाराज धृतराष्ट्र के राज में भी नही थी.
दोनों ही पार्टियां जनता के सामने एक दूसरे को जमकर गालियां देती रहती, जनता समझती हुई भी नासमझ बनी रहती. सता में चाहे सांडनाथ हों या भैसानाथ. सबका हिस्सा बराबर था. एक तरफ़ इनकी सरकार दूसरी तरफ़ उनकी सरकार, यानि नंबर लगता रहता था शासन करने का. अंदर से दोनों ही पार्टियां मिली हुई थी. जिसकी भी सरकार होती वो ऊपर से तो विपक्षी की जांच करवाने और जेल में डाल देने की धमकियां देती पर अंदर से मामला सेट रहता, किसी का कुछ नही बिगडता था, बंदर बांट का हिस्सा सबको स्विस बैंक के माध्यम से मिल जाता था. दोनों पार्टियां ही अमन चैन की बांसुरी बजा रही थी कि तभी कहीं से एक ऊंट आगया. बस यहीं से सत्यानाश शुरू होगया.
इस ऊंट्नाथ पार्टी ने सांडनाथ व भैंसानाथ के खिलाफ़ तगडा माहौल बनाकर आखिर पटकनी दे दी. पटकनी क्या दे दी बल्कि आफ़त खडी कर दी. हस्तिनापुर गणतंत्र के चुनाव में सांडनाथ पार्टी बुरी तरह हार गयी. भैंसानाथ सबसे बडी पार्टी तो बनी पर नंबर पूरे नही हो रहे थे लिहाजा सांडनाथ और भैंसानाथ पार्टी ने अंदरूनी तौर पर तय कर लिया कि ऊंटनाथ पार्टी को सत्ता संभलवा दी जाये, फ़िर उसके असफ़ल होने पर दुबारा चुनाव करवा लिये जाये और इस तरह दोनों में से कोई एक फ़िर सत्ता पर काबिज हो जाये.
इसी रणनीति के तहत सांडनाथ पार्टी ने ऊंटनाथ पार्टी, जिसका ऊंट अभी तक बैठा हुआ था उसको समर्थन देकर उंट को खडा कर दिया. ऊंट ने खडा होते ही मस्त ऊंट की तरह उधम मचाना शुरू कर दिया. ना किसी समर्थन देने वाले का लिहाज ना ही किसी विपक्षी पार्टी की गरिमा बाकी रहने दी. आफ़त खडी करदी. सांडनाथ व भैंसानाथ दोनों ही घबरा गये और सोचने लगे कि अब इस ऊंट से कैसे पीछा छुडवाया जाये क्योंकि ऊंट तो अब पूरा हस्तिनापुर ही निगल जाना चाहता था जो खासकर भैंसानाथ पार्टी को मंजूर नही था क्योंकि दस साल तक सांडनाथ ने राज कर लिया था और अब भैंसानाथ की बारी थी.
दोनों ही पार्टियां यानि सांडनाथ और भैंसानाथ संकट के समय ताऊ महाराज से सलाह लेने चली आती थी और ताऊ महाराज अपना हिस्सा ले देकर उनमें सुलह सफ़ाई भी करवा दिया करते थे. इस संकट के समय भी उन्हें ताऊ महाराज की याद आयी और दोनों ही गुपचुप रूप से ताऊ महाराज से सलाह मशविरा लेने चले आये.
सांडनाथ बोले - ताऊ महाराज, आप तो सब जानते हो, राजनीती के पुरोधा हो, इस ऊंट से हमको बचने का रास्ता बताईये वर्ना ये तो हमसे समर्थन लेकर हमारी ही मुख्यमंत्री को अंदर करवाने की चाल चल रहा है. ना इसे कोई अक्ल है, ना राज करने की तमीज, जहां देखो धरना प्रदर्शन और खुद ही पुलिस और खुद ही मुंसिफ़गिरी कर रहे हैं, महाराज ऐसे तो अराजकता फ़ैल जायेगी, कुछ करिये महाराज.
ताऊ महाराज बोले - तुम ये बताओ कि तुमको इस ऊंट को समर्थन देने की क्या जरूरत आ पडी थी? अरे उंट बैठा था तो बैठा रहने देते, खडा क्यों किया उसको? ना समर्थन देते ना ऊंट खडा होता और ना ये बवाल मचता. अब भुगतो.
सांडनाथ और भैंसानाथ बोले - महाराज फ़िर आप किस मर्ज की दवा हैं? आपने इतने युगों तक राज किया है, इस खडे हुये ऊंट को वापस बैठाने का कोई तो उपाय होगा?
ताऊ महाराज बोले - देखो भई, खडे ऊंट का कोई भरोसा नही होता, उसकी मर्जी का क्या पता? यदि ऊंट बैठा हुआ हो तो पक्का है कि वह खडा ही होगा तो खडे होने तक उसकी चाल समझ में आती है, पर तुमने खुद ऊंट को खडा कर दिया है तो खडे ऊंट का क्या भरोसा कि वो भाग जायेगा या वापस बैठ जायेगा? अब ये तो ऊंट पर ही निर्भर करता है कि वो क्या करता है? अपनी करनी से वापस बैठ जायेगा या खडा रहेगा या भाग जायेगा?
सांडनाथ व भैंसानाथ दोनों ही ताऊ महाराज की बात सुनकर गहन विचार मंथन में डूब गये और अपनी अपनी पार्टियों कि राजनैतिक विचार मंथन कमेटी की मीटिंग आहूत करने का आदेश दे दिया.
मांगी बिजली, मिला बवाल
ReplyDeleteऊंट की दोस्ती जी का जंजाल
हमें तो लग रहा है कि वह भागने के लिये खड़ा हुआ है।
ReplyDeleteबहुत खूब !
ReplyDeleteमन कर रहा है कह ही डालूँ
ये ऊँट मुझको दे दे ताऊ !
और पगलाया ऊँट तो ज्यादा खतरनाक होता है। अब तो भगवान ही मालिक है।
ReplyDeleteताऊ जी, बहुत ही सटीक पोस्ट है !
ReplyDeleteपर मुझे संदेह है जीतनी तेजी से ऊँट उठ कर खड़ा हुआ है,
उतनी ही तेजी से भाग जायेगा या भगा दिया जायेगा :)
मनोरंजनपूर्ण पोस्ट ...!!
ReplyDeleteऊंट का क्या भरोसा किस करवट बैठेगा या भाग जायेगा ...
गहरा विवेचन विश्लेषण .... वैसे हमें भी भागने का ही अंदेशा है
ReplyDeleteरोचक तरीके से बहुत गहन विश्लेषण किया है .
ReplyDeleteआगाज़ यह है तो अंजाम क्या होगा!
शायद लोगों का ध्यान भटकाने को किया गया खेल है.
मीडिया को भी दिन रात खूब मसाला मिल ही रहा है.
हमेशा की तरह सधा हुआ विश्लेषण।
ReplyDelete( ताऊ जी नमस्कार, मैं आपके ब्लॉग के मंच से बाकी ब्लौगर साथियों से अपनी समस्या का समाधान चाहता हूँ। मेरे खोये हुए फोटो को वापस दिलाने में मेरी मदद करें।
'अरे बिरादर' के लिंक http://jitjiten.blogspot.in/ पर मदद के इंतजार में)
हा हा ताऊ .... छक्का लगाया है इस बार ... वैसे तो ऊँट सांड नाथ की करवट बैठ चुका है ... पर वो ऊँट कब तक रहेगा ये पता नहीं ...
ReplyDeleteमहाभारत काल से लेकर भारत काल तक का हाल सुना दिया ! नाथों की जैसी करनी , वैसी भरनी हो गई !
ReplyDeleteगहन विश्लेषण किया है .....बहुत सुन्दर....
ReplyDeleteवाह ! ताऊ महाराज वाह !
ReplyDeleteआपने तो पुरे गणतंत्र का इतिहास ही लिख डाला :)
हा हा हा हा हा ........क्या सटीक व्यंग्य मारा है ताऊ जी ....मज़ा आ गया जी
ReplyDeleteहाँ! उपाय खुद ही बचने के उपाय में है..
ReplyDeleteवाह...बहुत सटीक कटाक्ष...
ReplyDeleteएक अलग सोच ताऊ की
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