"हम हैं दबंग रीमेक आफ़ ताऊ के शोले"
(भाग -2)
एपीसोड लेखक : ताऊ रामपुरिया
सहयोगी लेखक : सुश्री सुमन
हमने पिछले भाग -1 में पूछा था कि गब्बर जेल से भागकर सीधा कहां पहुंचेगा? इसका सही अंदाजा जिन्होने लगाया है उनका नाम आज के भाग -2 में सहयोगी लेखक के रूप मे दिया जा रहा है. जो भी पाठक इस धारावाहिक के सवालों का सही अंदाजा लगायेगा उनका नाम जब भी यह उपन्यास के रूप में छपेगा तब उनके नाम भी सहयोगी लेखकों के रूप में छापकर उनको भी श्रेय दिया जायेगा.
इस धारावाहिक की लेखन प्रक्रिया में कोई भी पाठक सहयोग कर सकता है. चाहे तो स्वतंत्र रूप से कोई सा भाग लिख सकता है या मिलजुल कर भी. इसके लिये taau@taau.in पर संपर्क किया जा सकता है.
भाग -1 में जिन्होंने सही अंदाजा लगाया उनके नाम इस प्रकार हैं. सभी को हार्दिक बधाईयां!
अभी तक भाग - 1 में आपने पढा कि सीधा साधा अबोध बालक गणेश किन हालातों में एक खतरनाक डाकू गब्बर सिंह बन गया. रामगढ के पिछले जन्म के लाला सुखीराम ने घोडे के रूप में जन्म लेकर गब्बर को पुलिस के हाथों गिरफ़्तार करवा दिया. इसके बाद गब्बर जेल तोड कर फ़रार हो गया.....अब आगे.
आधी रात के समय गब्बर सिंह किसी तरह जेल से भागने में तो सफ़ल हो गया. लेकिन उसका मन कर रहा था कि अभी जाकर उस घोडे का (पिछले जन्म के लाला सुखीराम) टेटूआ दबा दे जिसने जान बूझकर उसे गिरफ़्तार करवा दिया था. गब्बर को इस बात का इतना ताप...इतना ताप चढा था कि इस समय कोई उसके शरीर को भी छू ले तो भस्म हो जाये.
रात का सन्नाटा...निहत्था गब्बर सिंह तेजी से जंगल की तरफ़ बढा जा रहा था...मन में सिर्फ़ और सिर्फ़ उस घोडे का ख्याल...आखिर कहां मिलेगा वो पुलिस का खबरी घोडा?
अचानक भानगढ के खंडहरों से गुजरते हुये गब्बर को कुछ आवाजे सुनाई दी...उसके कान कुछ चौकन्ने हो गये. उसने हालात का जायजा लिया. आवाजे कुछ ऐसी लग रही थी जैसे चुडैले नाच रही हों...एक बार गब्बर ठिठका...सोचा कहीं सचमुच की चुडैले हुई तो.....और पास में गया तो चट्टान की आड से उसे अंधेरे में एक घोडा दिखाई दिया.....गब्बर की बांछे खिल गई. यह तो वही घोडा था जो अपने साथी संगियों को गब्बर को गिरफ़तार करवाने की दास्तान सूरमा भोपाली स्टाईल में सुना रहा था....
गब्बर निहत्था था...इस घोडे सुखीराम को सजा देने के लिये वह अंधेरे में ही इधर उधर कोई हथियार तलाशने लगा. आखिर उसे एक लठ्ठ मिल ही गया. लठ्ठ हाथ में लेकर वो चट्टान के और पास खिसक कर कान लगाकर सुनने लगा क्योंकि अभी अंधेरे में कुछ दिखाई नही दे रहा था. उसे अभी दिन निकलने तक इंतजार भी करना था.
लाला सुखीराम (घोडा) डींग हांकता हुआ और गब्बर सिंह लठ्ठ लिये चट्टान के पीछे
उधर घोडा बना लाला सुखी राम हिनहिनाते हुये डींगे हांक रहा था कि कैसे उसने गब्बर को गिराया और उसकी टांग को दबाकर बैठ गया था. गब्बर तो पकडा गया था पर इस गिरने के खेल में लाला सुखीराम की टांग भी टूट चुकी थी और वो इसी मारे यहां भानगढ के खंडहरों में आ छुपा था जहां भूत प्रेतों के डर से कोई आता भी नही था. उसे गब्बर का भी डर तो था कि यदि वो जेल से भाग निकला तो उसका क्या हाल करेगा?
इसी बीच दिन निकलने को था...सब कुछ साफ़ साफ़ दिखाई देने लगा. गब्बर ने देखा कि लाला सुखीराम के आस पास चार पांच लोग और भी बैठे थे. वो कौन थे? क्या वो भूत प्रेत थे? घोडा बना सुखीराम उनके साथ मनुष्यों की भाषा में बात कर रहा था. एक बार तो गब्बर डरा...लेकिन गब्बर अपना नाम मिट्टी में नही मिलाना चाहता था सो वह लठ्ठ फ़टकारता हुआ कूदकर घोडे के सामने आया और बिना अक्ल इस्तेमाल करते हुये तडातड आठ दस लठ्ठ तो घोडे को लगाये और वहां बैठे आदमियों को भी पिनपिना दिया.
लाला सुखी गब्बर को देखते ही गश खाने लगा क्योंकि वह गब्बर की क्रूरता उसके साथ रहते हुये देख चुका था. गब्बर ने उसकी टूटी टांग पर भी लठ्ठ मारे थे सो वह दर्द के मारे बैचेन हो रहा था....वह रहम की भीख मांगने लगा.
गब्बर सिंह बोला - तू...तू...किस मुंह से रहम की भीख मांगता है बे? हमरे साथ गद्दारी की सजा यही है कि अब गोली खा......पर हमरे पास इस समय ना बंदूक है... ना ही गोली? गब्बर ने वहां थर थर कांप रहे घोडे के साथ वाले आदमियों पर नजर डाली. वो हाथ बांधे नजर झुकाये खडे रहम की भीख मांग रहे थे.
उन लोगों ने कहा - सरदार, हमको छोड दो...तुम्हारे पांव पडते हैं. हमें तो इस लाला सुखीराम ने ही तुम्हारे बारे में डींग हांकते हुये कहानियां सुनाई थी. हम भी गांव के साहुकार से बचकर भागे लोग हैं और यहां रहते हैं. एक दिन यह घोडा आकर हमको मनुष्यों की भाषा में बोलने लगा तो हमने चमत्कारी घोडा समझकर इसकी सेवा पानी करनी शुरू कर दी.
सारे हालातों का जायजा लेने के बाद गब्बर इस नतीजे पर पहुंचा कि ये भानगढ के खंडहर नया अड्डा बनाने के लिये सबसे उपयुक्त रहेंगे. क्योंकि यहां भूत प्रेतों के डर से कोई आता जाता भी नही है. गब्बर ने वहां मौजूद आदमियों से सलाह मशविरा किया और उनको अपनी नई गैंग में शामिल करने का फ़ैसला कर लिया. आखिर गब्बर को नई शुरूआत तो करनी ही थी. वो लोग भी समाज के सताए हुये थे, उन्होंने तुरंत गब्बर को अपना सरदार मान लिया और गब्बर ने एक कांटे से अपनी अंगुली से खून निकाल कर उनको खून का टीका लगाते हुये अपना चेला बना लिया. गब्बर ने उनको कुछ गोली बारूद का इंतजाम करने को कहा. दो लोग उसी समय निकल गये.
हथियार उस समय कोई था नही. घोडे को जिंदा छोडना भविष्य के लिए एक बेवकूफ़ी होती. गब्बर घोडे को लठ्ठ मार मार कर थक गया पर घोडा बिना गोली के मर नही सकता था.
थोडी ही देर में वो दो लोग एक बंदूक और कुछ गोलियां लेकर आ गये. अब गब्बर ने घोडे पर बंदूक तान दी और बोला - अब तू मरने के लिये तैयार हो जा....तूने...गब्बर के साथ....डाकू गब्बर सिंह के साथ गद्दारी की है....जिस गब्बर के नाम से बच्चे पढ पढ कर अफ़सर..नेता बन बन कर देश को लूटने लगे....उस गब्बर के साथ गद्दारी.....? तुझे तो मैं तडपा तडपा कर मारूंगा....
गब्बर सिंह बंदूक की लिबलिबी दबाने ही वाला था कि घोडा बने लाला सुखी राम ने कहा - गब्बर ठहर जा...ठहर जा....वर्ना बहुत पछतायेगा. यदि तू मेरी जान बख्स दे और मेरी टूटी टांग का आपरेशन करवाकर प्लास्टर करवाने का वादा करे तो मैं तुझे एक ऐसी राज की बात बता सकता हूं...जिसे कोई नही जानता और तेरे लिये ये जानना बेहद जरूरी है.....देख ले गब्बर....
गब्बर सोच में पड गया कि आखिर इसके पास वो कौन सा राज है? जिसे जानना उसके लिये बहुत जरूरी है? गब्बर ने लिबलिबी से अपनी अंगूली हटा ली और सोच में पड गया.....गब्बर सोच रहा था कि ये घोडा होकर भी मनुष्यों की भाषा में बात करता है.... ये तिलस्मी घोडे जैसा लगता है.... जरूर कुछ चमत्कारी राज इसके पास होगा....क्या किया जाये?
तभी जो आदमी बंदूक लेकर आया था वह बोला - सरदार...इसे अभी मारने की क्या जल्दी है? इसकी टांग तो टूटी पडी है ये चल फ़िर भी नही सकता, यहीं एक जगह पडा लीद करता रहता है. पहले इससे वो राज की बात पूछ लो...फ़िर गोली मार देना...ये कहां भागकर जायेगा?
गब्बर को उसकी बात पसंद आई. उसने खुश होकर पूछा - तेरा नाम क्या है रे कालिया? तू तो बहुत समझदार लगता है?
वो आदमी बोला - सरदार नाम से क्या फ़र्क पडता है? आपने मुझे कालिया कह कर बुलाया तो आज से मेरा नाम कालिया ही समझ लिजिये.
कालिया की बात से गब्बर खुश हो गया और उसको कहा - जाओ हमारे लिये खाने पीने का इंतजाम करो...हमें बहुत भूख लगी है. कालिया अपने साथ एक आदमी को लेकर बाहर निकल गया.
आप यह अंदाजा लगाकर बताईये कि घोडा बने लाला सुखीराम के पास ऐसा कौन सा राज है जो वो गब्बर को बताने के एवज में अपनी जान बचाना चाहता है?
रानी रत्नावती और उसके खजाने के बारे में कुछ बात हो सकती है.
ReplyDeleteरानी रत्नावती और उसके खजाने के बारे में कुछ बात हो सकती है.
ReplyDeleteमजेदार चल रही है गब्बर सिंह की स्टोरी.
ReplyDeleteकहानी रोचक मोड़ ले रही है ताऊ जी,
ReplyDeleteसबके क्रियेटिविटी को एक अच्छा मौका दे रहे है आप ...यह बात मुझे बहुत पसंद आई जल्द से जल्द पढ़कर टिप्पणी कर के भागने का मौका हमसे छीन रहे है, मानना पड़ेगा आपकी सोच को ! लेकिन इस बार सच में मै जवाब देने में असमर्थ हूँ ...आभार सम्मान के लिए :)
घना दिमाग लगाया.. पर कुछ समझ न आया , संगीता जी से पूंछ कर बताता हूँ अब उन्ही का भरोसा है ...
ReplyDeleteकमाल की खोपड़ी!
ReplyDeleteखजाने वाली बात..
ReplyDeleteगब्बर भानगढ़ पहुंच गया। इब के होवेगा?
ReplyDeleteसटीक ,कंप्यूटर आकृति विज्ञान(रूप विरूपण /परिवर्तन )का ज़वाब नहीं .
ReplyDeleteअब का है भानगढ़ में रत्नावली भूतनिया दिखेगी दूबरे पतरे गब्बर सिंह जी को ....
ReplyDeleteइब के होने वाला है ... खैर हो गब्बर की ...
ReplyDeleteइस चंद्रकांता संतति को संभालना अब सलीम जावेद के बस का भी नहीं है...
ReplyDeleteखूब.... टीम तो ज़बरदस्त है.... :)
ReplyDeleteमुझे तो भानगढ़ के टूटने का जिम्मेदार गब्बर ही लगता है शायद गड़े धन को निकालने के चक्कर में गब्बर ने महल को जगह जगह से खुदवा कर तौड़ डाला !! और खंडहर में रहने लगा !!
ReplyDeleteपिछली बार गलत जवाब था...अब अटेम्प्ट ही नहीं करते..क्या पता नेगेटिव मार्किंग हो :-)
ReplyDeleteसादर
अनु
शुक्रिया ताऊ सा आपकी टिप्पणियों का .प्रस्तुति आपकी लाज़वाब व्यंग्य विनोद और morphs लिए है .
ReplyDeleteरोचक!
ReplyDeleteउपन्यास की प्रति अभी से बुक करवा लेते हैं.
बाकि...सवाल का जवाब तो कुछ सूझ नहीं रहा!
ReplyDeleteजम गया है मामला -लोकेशन तो जबरदस्त है ! फिल्म कब बनेगी ?
ReplyDeleteआज से नियमित पढ़ना शुरु...कल शाम को पीछे के सारे छुट गये पढ़कर प्रतिक्रिया की जायेगी...यह सूचना है. :)
ReplyDeleteजिसका स्वमान हनू हो वह हनू -मान होता है .जो मान(अहंकार ,अभिमान का मर्दन कर चुका है सदैव ही आज्ञा कारी है वह हनू -मान है .जो हर काम राम से पूँछ के करे इसीलिए पूंछ लिए है वह हनू -मान है .बढ़िया प्रस्तुति हनुमान जयंती पर . शुक्रिया ताऊ सा .हनुमान जयंती मुबारक .
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