जब बोफ़ोर्स कांड हुआ था तब साईज में छोटा होते हुये भी उस समय के मान से बहुत बडा घोटाला था. ताऊ के रामप्यारे को आखिर तक बोफ़ोर्स का मतलब ही नही समझ आया. रामप्यारे के लिये बोफ़ोर्स कांड का मतलब घोटाला ना होकर कोई अन्होनी दुखद घटना जैसी बात थी. आज तक कहीं कोई दुख या संवेदनात्मक घटना हो तो रामप्यारे बस यही कहता है कि ताऊ आज तो बोफ़ोर्स हो गया...कितनी ही बार समझाया पर उसके लिये तो बोफ़ोर्स के अपने ही मायने थे.
ताऊ अभी दो सप्ताह की जेल (ससुराल) यात्रा पर (जयपुर - दिल्ली) गया था और पीछे से ये डायचा वाला कांड हो गया. वापस लौटने पर रामप्यारे ने बताया कि ताऊ तुमको तो जेल यात्रा करने से फ़ुरसत नही है और यहां पीछे से बोफ़ोर्स कांड जैसा ही डायचा वाला कांड हो गया. ताऊ की समझ में कुछ आया नही. जेल यात्रा के दरम्यान ही मोबाईल पर इससे संबंधित कुछ पोस्ट देखी थी पर उन पर कुछ ज्यादा ध्यान नही दिया.
आज अरविंद मिश्र जी की पोस्ट एवम खुशदीप जी की पोस्ट से डायचा वाला कांड का माजरा समझने की कोशीश ताऊ कर रहा था कि इतनी ही देर में रामप्यारे आ टपका.. और आते ही बोला - ताऊ, डायचा वाला कांड तो अब बोफ़ोर्स से भी बडा हो गया.
ताऊ ने उसे डांटते हुये कहा - अरे निपट मूर्ख...कहीं के...मैने गलती की जो तेरा नाम रामप्यारे रख दिया..तेरा नाम तो अक्ल मारे रखना था.
रामप्यारे नाराज होते हुये बोला - ताऊ, आखिर मैने इसमे कौन सी गलती कर दी? अगर डायचा वाला कांड हुआ है और मैं जोर लगाकर आपको बता रहा हूं तो आप मुझे शाबासी देने की बजाय लतिया रहे हैं? ये भी भला कोई बात हुई?
ताऊ बोला - रामप्यारे...अगर तू चाहता तो तू खुद भी ये कांड कर सकता था...पर तुझे तो रेंकने से ही फ़ुरसत नही मिलती तो कांड कहां से करेगा? इसमें कौन सी बडी बात थी? अगर तू इधर उधर रेंकने की बजाये अपनी नजर ताजा तरीन हालातों पर रखता तो आज हम इस कांड के हीरो होते...पर तूने तो मेरा नाम ही मिट्टी में मिला दिया...नामाकूल कहीं का...
रामप्यारे मुंह लटका कर बोला - ताऊ मैं कितना तो पढता रहता हूं...सारे दिन मोबाईल से भी नेट-सर्फ़िंग में लगा रहता हूं...और आप मुझे इस तरह डांट रहे हैं....
ताऊ बोला - अबे उल्लू के चर्खे.....तू नेट पर क्या सर्फ़िंग करता है यह मुझे मालूम है...तू तो बस जवान रामप्यारियो (गधियों) से नैन मटक्का करता है...अब मेरा मुंह मत खुलवा...तू जो नेट पर पढता है वह सब मुझे मालूम है. अगर तू काम की बात पढता होता तो हमारे लिये डायचा वाला कांड जीतना कोई मुश्किल थोडी होता
रामप्यारे ने आश्चर्य से पूछा - ताऊ, मानता हूं कि मैं थोडा बहुत नैन मटक्का कर लेता हूं और इधर उधर के गुरू घंटालों का साहित्य भी पढ लेता हूं...पर मैं यह कांड कैसे कर सकता था?
ताऊ ने कहा - तू सक्षम था रामप्यारे इस कांड को अंजाम देने में...पर सोये हुये की घोडी तो भैंस का पाडा ही देती है....सो भुगत अब इस भैंस के पाडे को.....
रामप्यारे ने दांत बाहर निकालते हुये पूछा - ताऊ ये घोडी को भैंस का पाडा कैसे हो सकता है? आखिर ये कांड क्या है? क्या ये भी कोई बडा भैंस की पाडा वाला कांड हुआ था क्या?
ताऊ बोला - रामप्यारे सुन, एक बार हम दिन छिपने के समय घर के बाहर बैठे हुक्का पी रहे थे कि एक शानदार घोडी पर एक आदमी आया. रात को रूकने की इजाजत मांगने लगा क्योंकि अंधेरा हो चुका था और आगे घना जंगल वाला रास्ता था. हमने उसे खाना खिलाया और रूकने के लिये खटिया और बिस्तर दे दिया.
रामप्यारे ने फ़िर बीच में ही पूछा....पर इस कहानी का डायचा वाला से क्या संबंध...?
ताऊ ने नाराज होकर उसे डांटा और कहा--बावलीबूच..कहीं का....बीच में मत बोल..चुपचाप कहानी सुन और इसे गुन, सब समझ जायेगा.
घोडी को खूंटे से बांधकर घुडसवार खटिया पर लेट गया. दिन भर का थका मांदा था सो गहरी नींद में सो गया. और उसके सोते ही हमारी नीयत उसकी खूबसूरत घोडी पर खराब हो गई. हमने सोचा कि इसकी घोडी तो हमारी होनी चाहिये...पर यह संभव नहीं था...फ़िर उसी समय उस घोडी ने एक सुंदर सा बच्चा दे दिया.
बच्चा देखकर हमारी तबियत बाग बाग हो गई कि घोडी ना सही उसका बच्चा ही सही, कुछ दिन में ये भी जवान घोडा बन जायेगा. हमने अपनी ताजा ब्याई हुई भैंस का पाडा उसकी घोडी के पास कर दिया और उसकी घोडी का बच्चा अपनी भैंस के पास कर दिया.
सुबह घुडसवार को यह देखकर आश्चर्य हुआ कि उसकी घोडी ब्याने वाली थी पर ये भैंस का पाडा कैसे दिया? घुडसवार ने ताऊ से पूछा - ताऊ ये पाडा मेरी घोडी का नही है, तुम्हारी नियत खराब हो रही है. लाओ सीधे से मेरी घोडी का बच्चा दो और अपना पाडा संभालो. नही तो मैं पंचायत कराऊंगा.
ताऊ बोला - तू पागल हुआ है क्या? तेरी घोडी ने ही ये पाडा दिया है, पंचायत कराले...सांच को आंच नही. सारा गांव...सारे पंच जानते हैं कि ताऊ कितना शरीफ़ आदमी है. आसपास के गांवों में मेरी शराफ़त और नेकनियति का डंका बजता है.
घुडसवार ने पंचायत बुलवा ली...साम दाम दंड भेद सब आजमा लिये पर पंच, सरपंच,चौधरी, दरोगा तक सबके सब ताऊ के ही आदमी थे सो फ़ैसला आखिर में ताऊ के हक में जाता. कुल मिलाकर घुडसवार अपनी घोडी का बच्चा ताऊ से वापस नही ले सका. थक हार कर उसे भी कुछ कुछ विश्वास होने लगा कि हो सकता है उसकी घोडी ने भैंस का पाडा ही जना हो...वह बोला - ताऊ तूने सरे आम मेरी आंखों में धूल झौंकी या फ़िर सही में मेरी घोडी ने भैंस का पाडा ही जना? मुझे सच सच बता तो दे.
ताऊ बोला - बावलीबूच...सोते हुये आदमी की घोडी तो भैंस का पाडा ही जनेगी.
ताऊ के मुंह से यह शुद्ध तत्व ज्ञान का उपदेश सुनकर घुडसवार तुरंत वहां से यह सोचकर चलता बना कि अभी तो इस तत्वज्ञानी ताऊ ने मेरी घोडी का बच्चा ही हथियाया है अब कहीं समूची घोडी ही ना कब्जा करले...
रामप्यारे बोला - वाह ताऊ वाह...तुमने तो मेरी आंखे ही खोल दी...अब अगले साल ये डायचा वाला कांड मैं ही करूंगा...अब नही सोऊंगा...रोज बिहाने बिहाने ही उठ कर कांड किया करूंगा.
:):) बोफोर्स जैसा कांड हो गया :):) रोचक ।
ReplyDelete.रोचक प्रस्तुति बहुत बहुत शुभकामनायें नारी का ये भी रूप -लघु कथा .महिला ब्लोगर्स के लिए एक नयी सौगात आज ही जुड़ें WOMAN ABOUT MANजाने संविधान में कैसे है संपत्ति का अधिकार-2
ReplyDeleteआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि-
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टी की चर्चा आज शनिवार (20-04-2013) के धूम , जयकार , झगडे , प्यार और मनुहार के साथ (मयंक का कोना) पर भी होगी!
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ!
सूचनार्थ...सादर!
हा हा हा .........शानदार आलेख !
ReplyDeleteसही बात ताऊ, घुड़सवार की तरह पहले हिंदी ब्लोगर भी सोते रहे तो अब भुगते पाडा :)
ताऊ राम राम. कहावतें झूट पर आधारित थोड़े ही होती हैं. सोते की थोड़ी भैंस का पाड़ा ही जनती है.
ReplyDeleteबात तो सही है ....
ReplyDeleteलगता है हम तो रामप्यारे से भी गए बीते निकले. अकल ढेर हो गई
ReplyDeleteताजे हालातों पर सटीक पोस्ट :)
ReplyDeleteहा-हा-हा
ReplyDeleteतत्त्वज्ञान पा कर कृतार्थ हुये
प्रणाम
वाह! वाह! अब बात समझ में आ ही गई होगी रामप्यारे मेरा मतलब अकलमारे को।
ReplyDeleteभैंस और घोड़ी के विषय में काफी ज्ञानवर्धन हुआ।
ReplyDeleteबाकि कांड तो अपनी भी समझ से बाहर ही है , लेकिन समझ कर भी क्या करेंगे ! :)
@बावलीबूच...सोते हुये आदमी की घोडी तो भैंस का पाडा ही जनेगी.
ReplyDeleteबिलकुल घुमा के मारा है ताऊ महाराज ने..
पर यहाँ के बावलीबूच न कभी समझे हैं न समझेंगे...
बहुत कुछ कह गई.बहुत कुछ समझा गई अपने ताऊ की ये रोचक कहानी....
ReplyDeleteशुभकामनायें!
आज की ताज़ा तरीन स्थिति पर यह मुहावरा सटीक बैठता है.रामप्यारे अब आँखें खुली रखना.
ReplyDeleteवैसे रामप्यारे अपने इनामों की सिरीज़ निकलवा सकता है.यह भी उसी प्रकार कमाई का अच्छा ज़रिया है जैसे पुस्तक प्रकाशन का.अनगिनत लिखने वाले हैं जिन्हें सामने लाईम लाईट में आने की ललक है.
रामप्यारे जी,गौर करें.ईनाम देने वालों में भी अच्छी प्रतियोगिता हो तो बात ही क्या है.
ब्लॉग जगत का बोफोर्स काण्ड ,,,
ReplyDeleteRECENT POST : प्यार में दर्द है,
ताउ इंदोर मे तन्ने खूब खोजा पता चला टेलिफ़ोन पे ससुराल जैसी जेल का पता बता देते जेल की दीवार तुड़वा के निकाल लाते पर तुम हौ के खैर "डोयिचे वेले बनाम सोते की भैंस का पाडा." मज़ेदार ह्वै..
ReplyDeleteमतलब की कांड तो हो ही गया ...
ReplyDeleteअब देखो सी बी आई क्या रिपोर्ट देती है ...
ताउ चैनल का खबरिया भोत देरी से खबर देवे है। ध्यान राखियो इसका।
ReplyDeleteअब भला यह नाम क्या है - डायचे वेले? वेला किसे कहते हैं यह तो आप सब जानते ही है और गाँवों में दहेज को डायचा कहा जाता है। अर्थात वेले का डायचा। अब ईनाम जर्मनी में बंटे या हिन्दुस्थान में, हमें तो सभी प्रकार के डायचे से परहेज है जी।
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ReplyDeleteताऊ ये किसके मुंह पर भिगो कर मारा है? कई कई बातें दिमाग में उभर रही हैं!