ताऊ महाराज धृतराष्ट्र और ताई महारानी गांधारी ब्लागपुत्रों/पुत्रियों के झगडे से बहुत क्षुब्ध हो उठे थे. और उदास रहने लगे थे.
एक दिन महाराज ताऊ ने पूछा - हे रामप्यारे, ये "नीरो ही क्यों बाँसुरी बजाता है...?" हम क्यों नही बजा सकते? आखिर हमारा कसूर क्या है? द्वापर मे कृष्ण ने अकेले ही सारी बांसुरी बजा डाली और अब ये रोम को जलवाकर नीरो अकेले बांसुरी बजा रहा है? हे रामप्यारे, जरा तुम्हारी दिव्य दृष्टि से देखो कहीं ये नीरो के रूप में कृष्ण ही तो बांसुरी नही बजा रहा है?
रामप्यारे बोला - हे ताऊओं के ताऊ, हे श्रेष्ठ ब्लागार्य, आप मन छोटा ना करें...महाराज श्री आप अपने हिस्से की संपूर्ण बांसुरी द्वापर में बजा चुके हैं.
ताऊ महाराज - हे रामप्यारे, तुम हमारे जले पर नमक छिडक रहे हो? अरे हमने कब और कौन सी बांसुरी बजाई? किसकी बांसुरी बजाई? हमने तो देखी तक नही बांसुरी कभी?
रामप्यारे - महाराज की जय हो. हे ताऊ श्रेष्ठ, आपने द्वापर में पूरे हस्तिनापुर की बांसुरी तो क्या पुंगी बजवा दी थी. अगर पांच गांव पांडवों को दे दिये होते तो हस्तिनापुर की इतनी बडी बांसुरी नही बजती. आप तो अब आराम से बैठकर नीरो की बांसुरी सुनिये आपके बांसुरी बजाने के दिन द्वापर मे ही खत्म होगये.
रामप्यारे के ऐसे बोल वचन सुनकर महाराज ताऊ श्री अति खिन्न हो गये. ऐसे में रामप्यारे के रूप मे संजय को बहुत चिंता हुई. मन बहलाव के लिये वो उन्हें लेकर मालवा के पठार पर बने पहाडी सैरगाह पर चला गया. वहां की ताजी वायु के सेवन से ताऊ महाराज और ताई महारानी में नवजीवन का संचार होगया. काफ़ी समय वहां बिताने के बाद रामप्यारे ने उनसे अब मुख्य महल में लौट चलने के लिये निवेदन किया क्योंकि अब राजकाज भी देखना जरूरी था.
ताऊ महाराज और ताई महारानी सैरगाह से वापसी में विश्राम करते हुये
रामप्यारे की पूंछ पकडकर वो सैरगाह की ऊंचाईयों से उतरने लगे. बुढापे की वजह से बीच रास्ते मे थकान का अनुभव हुआ तो महाराज और महारानी वहीं एक मुंडेर पर बैठ कर विश्राम करने लगे. रामप्यारे भी वहीं खडा हो गया.
सहज भाव से ताऊ महाराज ने पूछा : हे रामप्यारे, ये तो बताओ कि हमारे ब्लागपुत्रों और पुत्रियों के क्या हाल चाल हैं? सब कुशल तो है ना?
रामप्यारे : हे ताऊश्रेष्ठ महाराज, अब ऊपर ऊपर तो शांति दिखाई देने लगी है पर मुझे कुछ ऐसा आभास हो रहा है कि अंदर किंचित अग्नि सुलग रही है. कभी भी फ़िर विस्फ़ोट हो सकता है.
ऐसा सुनकर महारानी ताई ने किंचित चिंतित स्वर में पूछा - हे रामप्यारे, आखिर ये सब इस तरह लड झगड क्यों रहे हैं? कहीं ये काम उस स्वघोषित ब्लागाचार्य का तो नही है जो इस तरह लडाई झगडे करवा कर हमेशा अपना ऊल्लु सीधा करने की फ़िराक में ही रहता है?
रामप्यारे : हे ताईश्रेष्ठ महारानी, अब मैं आपको क्या कहूं? आप अपनी दिव्य आंखों से तो सब कुछ देख ही लेती हैं. आप क्यों नाहक मेरे मुंह से कहलवाना चाहती है? बात वही है जो आप समझ रही हैं.
रामप्यारे का ऐसा उत्तर सुनकर ताऊ महाराज धृतराष्ट्र और महारानी ताई गांधारी को बडा कष्ट पहूंचा, फ़िर उदासी सी छा गई. उदास माहोल भांपकर रामप्यारे ने महाराज और महारानी का ध्यान बंटाने के लिये बात का रूख पलटते हुये कहा - हे ताऊ शिरोमणी महाराज, उन बातों को अब आप वक्त के फ़ैसले पर छोड दिजिये. उनका फ़ैसला तो अब समय ही करेगा. आप तो जो आपके करने योग्य कार्य हैं उन पर ध्यान दिजिये.......
रामप्यारे की बात बीच में काटते हुये महाराज ताऊ ने किंचित तल्ख होकर पूछा - हे गर्दभ शिरोमणी रामप्यारे...तुम हम पर ये लांछन क्यों लगा रहे हो कि हम कार्यच्युत हो गये हैं? लगता है तुम पर भी कलि काल का किंचित प्रभाव पडने लगा है?
रामप्यारे - महाराज ताऊओं के ताऊ की जय हो, महाराज आप मेरी बात को अन्यथा ले रहे हैं. मैं सपने में भी आपका अहित नही सोच सकता. मैं तो आपको सिर्फ़ स्मरण करवा रहा था कि जैसे हमने पिछले साल गधा सम्मेलन करवाया था उसी तरह इस साल भी गधा सम्मेलन करवाने का समय आ पहुंचा है. उसी की तैयारियों के लिये आपसे निर्देश लेने थे. आप आदेश करें तो अगले माह शुभ मुहुर्त निकल रहा है उसी में ये आयोजन करवा लिया जाये. पिछली साल के सम्मेलन मे जो गुलाब जामुन गधों को हमने परोसे थे उसका स्वाद उन्हें अभी तक याद है और इस साल भी वो बेकरारी से गुलाबजामुन खाने का इंतजार कर रहे हैं. और जो जलेबियां खत्म हो गई थी वो भी उन्हें याद है.
पिछले साल के गधा सम्मेलन मे गधे गुलाब जामुन और जलेबी खाते हुये
ताऊ महाराज - ओह रामप्यारे, क्षमा करना, मैं तुम पर ही संदेह करने लगा था, किंचित कलयुग का प्रभाव मुझपर आगया है. इस साल के गधा सम्मेलन का अगले महिने का मुहुर्त निकलवा कर चारों दिशाओं में निमंत्रण भेज दो. और सबको आग्रहपूर्वक बुलवाओ. और इस सम्मेलन में गुलाब जामुन नित्य परोसने का इंतजाम करवाओ. किसी तरह की कमी नही रहनी चाहिये. खजाने के मुंह खोल दिये जायें इस सम्मेलन के लिये. ये हमारा आदेश है.
रामप्यारे - जी ताऊ शिरोमणी, आपने मुझपर यह जिम्मेदारी डालकर जो विश्वास मुझमे व्यक्त किया है मैं उस पर खरा उतरूंगा. मैं आज ही ब्लागपंडित से मुहुर्त निकलवाकर चारों दिशाओं में निमंत्रण भिजवा देता हूं. अब हमे महल को लौट चलना चाहिये महाराज....गधा सम्मेलन में समय काफ़ी कम रह गया है और निमंत्रण पत्र और सम्मेलन का एजेंडा भी तैयार करना है....
महाराज और महारानी ने रामप्यारे की पूंछ पकडी और महल की तरफ़ रवाना हो गये. महल पहूंचकर ताऊ महाराज और ताई महारानी अपने कक्ष में विश्राम करने चले गये. रामप्यारे वहां से शीघ्रता पूर्वक ब्लाग पंडित के निवास की तरफ़ दुल्लतियां झाडते हुये दौड चला ...आखिर आज ही ब्लागपंडित से मुहुर्त और गधा सम्मेलन का एजेंडा जो तय करवाना था.
(क्रमश:)
एक दिन महाराज ताऊ ने पूछा - हे रामप्यारे, ये "नीरो ही क्यों बाँसुरी बजाता है...?" हम क्यों नही बजा सकते? आखिर हमारा कसूर क्या है? द्वापर मे कृष्ण ने अकेले ही सारी बांसुरी बजा डाली और अब ये रोम को जलवाकर नीरो अकेले बांसुरी बजा रहा है? हे रामप्यारे, जरा तुम्हारी दिव्य दृष्टि से देखो कहीं ये नीरो के रूप में कृष्ण ही तो बांसुरी नही बजा रहा है?
रामप्यारे बोला - हे ताऊओं के ताऊ, हे श्रेष्ठ ब्लागार्य, आप मन छोटा ना करें...महाराज श्री आप अपने हिस्से की संपूर्ण बांसुरी द्वापर में बजा चुके हैं.
ताऊ महाराज - हे रामप्यारे, तुम हमारे जले पर नमक छिडक रहे हो? अरे हमने कब और कौन सी बांसुरी बजाई? किसकी बांसुरी बजाई? हमने तो देखी तक नही बांसुरी कभी?
रामप्यारे - महाराज की जय हो. हे ताऊ श्रेष्ठ, आपने द्वापर में पूरे हस्तिनापुर की बांसुरी तो क्या पुंगी बजवा दी थी. अगर पांच गांव पांडवों को दे दिये होते तो हस्तिनापुर की इतनी बडी बांसुरी नही बजती. आप तो अब आराम से बैठकर नीरो की बांसुरी सुनिये आपके बांसुरी बजाने के दिन द्वापर मे ही खत्म होगये.
रामप्यारे के ऐसे बोल वचन सुनकर महाराज ताऊ श्री अति खिन्न हो गये. ऐसे में रामप्यारे के रूप मे संजय को बहुत चिंता हुई. मन बहलाव के लिये वो उन्हें लेकर मालवा के पठार पर बने पहाडी सैरगाह पर चला गया. वहां की ताजी वायु के सेवन से ताऊ महाराज और ताई महारानी में नवजीवन का संचार होगया. काफ़ी समय वहां बिताने के बाद रामप्यारे ने उनसे अब मुख्य महल में लौट चलने के लिये निवेदन किया क्योंकि अब राजकाज भी देखना जरूरी था.
रामप्यारे की पूंछ पकडकर वो सैरगाह की ऊंचाईयों से उतरने लगे. बुढापे की वजह से बीच रास्ते मे थकान का अनुभव हुआ तो महाराज और महारानी वहीं एक मुंडेर पर बैठ कर विश्राम करने लगे. रामप्यारे भी वहीं खडा हो गया.
सहज भाव से ताऊ महाराज ने पूछा : हे रामप्यारे, ये तो बताओ कि हमारे ब्लागपुत्रों और पुत्रियों के क्या हाल चाल हैं? सब कुशल तो है ना?
रामप्यारे : हे ताऊश्रेष्ठ महाराज, अब ऊपर ऊपर तो शांति दिखाई देने लगी है पर मुझे कुछ ऐसा आभास हो रहा है कि अंदर किंचित अग्नि सुलग रही है. कभी भी फ़िर विस्फ़ोट हो सकता है.
ऐसा सुनकर महारानी ताई ने किंचित चिंतित स्वर में पूछा - हे रामप्यारे, आखिर ये सब इस तरह लड झगड क्यों रहे हैं? कहीं ये काम उस स्वघोषित ब्लागाचार्य का तो नही है जो इस तरह लडाई झगडे करवा कर हमेशा अपना ऊल्लु सीधा करने की फ़िराक में ही रहता है?
रामप्यारे : हे ताईश्रेष्ठ महारानी, अब मैं आपको क्या कहूं? आप अपनी दिव्य आंखों से तो सब कुछ देख ही लेती हैं. आप क्यों नाहक मेरे मुंह से कहलवाना चाहती है? बात वही है जो आप समझ रही हैं.
रामप्यारे का ऐसा उत्तर सुनकर ताऊ महाराज धृतराष्ट्र और महारानी ताई गांधारी को बडा कष्ट पहूंचा, फ़िर उदासी सी छा गई. उदास माहोल भांपकर रामप्यारे ने महाराज और महारानी का ध्यान बंटाने के लिये बात का रूख पलटते हुये कहा - हे ताऊ शिरोमणी महाराज, उन बातों को अब आप वक्त के फ़ैसले पर छोड दिजिये. उनका फ़ैसला तो अब समय ही करेगा. आप तो जो आपके करने योग्य कार्य हैं उन पर ध्यान दिजिये.......
रामप्यारे की बात बीच में काटते हुये महाराज ताऊ ने किंचित तल्ख होकर पूछा - हे गर्दभ शिरोमणी रामप्यारे...तुम हम पर ये लांछन क्यों लगा रहे हो कि हम कार्यच्युत हो गये हैं? लगता है तुम पर भी कलि काल का किंचित प्रभाव पडने लगा है?
रामप्यारे - महाराज ताऊओं के ताऊ की जय हो, महाराज आप मेरी बात को अन्यथा ले रहे हैं. मैं सपने में भी आपका अहित नही सोच सकता. मैं तो आपको सिर्फ़ स्मरण करवा रहा था कि जैसे हमने पिछले साल गधा सम्मेलन करवाया था उसी तरह इस साल भी गधा सम्मेलन करवाने का समय आ पहुंचा है. उसी की तैयारियों के लिये आपसे निर्देश लेने थे. आप आदेश करें तो अगले माह शुभ मुहुर्त निकल रहा है उसी में ये आयोजन करवा लिया जाये. पिछली साल के सम्मेलन मे जो गुलाब जामुन गधों को हमने परोसे थे उसका स्वाद उन्हें अभी तक याद है और इस साल भी वो बेकरारी से गुलाबजामुन खाने का इंतजार कर रहे हैं. और जो जलेबियां खत्म हो गई थी वो भी उन्हें याद है.
ताऊ महाराज - ओह रामप्यारे, क्षमा करना, मैं तुम पर ही संदेह करने लगा था, किंचित कलयुग का प्रभाव मुझपर आगया है. इस साल के गधा सम्मेलन का अगले महिने का मुहुर्त निकलवा कर चारों दिशाओं में निमंत्रण भेज दो. और सबको आग्रहपूर्वक बुलवाओ. और इस सम्मेलन में गुलाब जामुन नित्य परोसने का इंतजाम करवाओ. किसी तरह की कमी नही रहनी चाहिये. खजाने के मुंह खोल दिये जायें इस सम्मेलन के लिये. ये हमारा आदेश है.
रामप्यारे - जी ताऊ शिरोमणी, आपने मुझपर यह जिम्मेदारी डालकर जो विश्वास मुझमे व्यक्त किया है मैं उस पर खरा उतरूंगा. मैं आज ही ब्लागपंडित से मुहुर्त निकलवाकर चारों दिशाओं में निमंत्रण भिजवा देता हूं. अब हमे महल को लौट चलना चाहिये महाराज....गधा सम्मेलन में समय काफ़ी कम रह गया है और निमंत्रण पत्र और सम्मेलन का एजेंडा भी तैयार करना है....
महाराज और महारानी ने रामप्यारे की पूंछ पकडी और महल की तरफ़ रवाना हो गये. महल पहूंचकर ताऊ महाराज और ताई महारानी अपने कक्ष में विश्राम करने चले गये. रामप्यारे वहां से शीघ्रता पूर्वक ब्लाग पंडित के निवास की तरफ़ दुल्लतियां झाडते हुये दौड चला ...आखिर आज ही ब्लागपंडित से मुहुर्त और गधा सम्मेलन का एजेंडा जो तय करवाना था.
(क्रमश:)
रामप्यारों की दुनिया को राम राम. कुछ नाम के रामप्यारे हैं तो बाक़ी काम के रामप्यारे. ज़रूर रामप्यारे सबसे धांसू ब्लागपंडित लाता ही होगा :)
ReplyDeleteताऊश्रेष्ठ की जै हो। गधा सम्मेलन के गुलाबजामुन की बात सुन इस गधे के मुंह में भी पानी चला आया..
ReplyDeleteवाह ! बढ़िया ब्लोगभारत चल रहा है :)
ReplyDeleteपहेली से परेशान राजा और बुद्धिमान ताऊ |
ताऊ अभी तो बहुत काम करने हैं ,निमन्त्रितों की सूची ..कोई ग ...धा छूटने ना पाए ,निमंत्रण का मजमून ..ई सब का इंतज़ार है !
ReplyDeleteमेरे लिये एक सीट रिजर्व रखियेगा....
ReplyDeleteबहुत बढ़िया और दिलचस्प पोस्ट! खासकर गधों की तस्वीर जो खूब मज़े से गुलाबजामुन और जलेबी खा रहे हैं बड़ा मज़ेदार लगा! बेहतरीन प्रस्तुती!
ReplyDeleteहम तो चैन से बांसुरी ही बजाते हैं और कहीं धुँआ भी दिखायी नहीं देता। लेकिन फिर भी कुछ लोग कहते हैं कि कहीं आग लगी है तो मान लेते हैं कि लगी होगी। हमने नहीं लगायी और ना ही हमें दिखी तो हम क्यों टेंशन लें? गधा सम्मेलन कराइए, सारे ही गुलाबजामुन खाने पहुँच तो जाएंगे लेकिन क्या गधे गुलाबजामुन खाते हैं? इस बात की पड़ताल लगवा लीजिए। एक दिन गधों के मेले में एक टन गुलाबजामुन लेकर पहुँच जाना और परीक्षण कर लेना। हा हा हाहा। बढिया पोस्ट।
ReplyDeleteकई लोंग अपने दिव्य चक्षु से सब देख ही लेते हैं ....
ReplyDeleteधन्य है दिव्य ज्ञान ...महारानी को कैसे प्राप्त हुआ ...क्या तपस्या की उन्होंने ...
बहुत सवाल कुलबुला रहे हैं ...!
दशहरा मैदान में जा कर यह पोस्ट सुनाई तो बहुत सारे प्रतिभागी तैयार हो गए। निमंत्रण अब जब भी दूध लेने जाऊंगा पूछेंगे न्यौता कब आ रहा है?
ReplyDeleteहा हा हा………………काफ़ी मज़ेदार्।
ReplyDeleteवाह वाह ऊपर से शांति दिख रही है ...अन्दर से आग झुलस रही है ,,,, आग बनाम शांति .... हा हा हा हा
ReplyDeleteहम भी चैन की बांसुरी ही बजाते हैं क्यों कि एक तो बरसात मे मिठाइयाँ हम खाते भी नही दूसरे ये निमन्त्रण केवल गधों के लिये ही है। हम जैसी गधियों ने क्या कसूर किया था? ताऊ वेरी बैड। अब आपके किसी सम्मेलन मे हिस्सा नहीं लेंगे। सभी गधियां सुन लो--- अपना आन्दोलन शुरू। बस अपनी राम राम।
ReplyDeleteबहुत बढ़िया चल रही यह नया ताऊभारत कि कथा |
ReplyDelete:) :) बहुत रोचक ..
ReplyDeleteज्यादा कुछ लिखना ठीक नहीं... छिपा कटाक्ष समझने की कोशिश जारी है .
एक टिकट बालकोनी का मुझे भी चाहिए ताऊ श्री !
ReplyDelete"नीरो ही क्यों बाँसुरी बजाता है...?" अरे ताऊ जी अब आप नया बखेडा क्यो खडा करना चाहते है, भाई नीरो को बांसुरी बजाने का ठेका जो मिला है, तो वो ही बजाये, वेसे आप ने सुननी है तो सुनॊ, अभी तो मुफ़त मै है, वो कामन बेल्थ के गेमो मै जो खर्च कम ओर बिल ज्यादा आया अगर उस की भरपाई के लिये इस बांसुरी सुनने वालो पर भी फ़ीस लग गई तो मत कहना... इस लिये अभी से रिकार्ड कर लो यह बांसुरी बाद मै नीरो ही अकड गया तो.......
ReplyDeleteलेकिन यह आग कहां लगी है बाबा यह तो बता दो
वाह :) एक टिकेट हमें भी चाहिए.बालकोनी की .
ReplyDeleteसावधान ! ये कौन है जो मुझे रायल्टी दिए बिना मेरे नाम का उपयोग कर रहा है।
ReplyDeleteइतनी बेहतरीन बांसूरी बज रही है कि सुन कर मगन हुए जा रहे हैं...पक्का!! नीरो ही बजा रहा होगा..लम्बा रियाज है.
ReplyDeleteसम्मेलन के लिए शुभकामनाएँ. सम्मेलन की पूर्व संध्या पर मिस समीरा टेढी का ब्लॉगजगत के नाम संदेश प्रसारित होगा क्या??
एक टिकट मेरे लिए भी ....
ReplyDeleteबहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं!
ReplyDeleteकाव्य प्रयोजन (भाग-८) कला जीवन के लिए, राजभाषा हिन्दी पर मनोज कुमार की प्रस्तुति, पधारें
Taauji Ramram
ReplyDeletepost bahut mazedaar hai ..prastutikaran rochak hai :)
अनुष्का
अच्छी पोस्ट,
ReplyDeleteयहाँ भी पधारें:-
अकेला कलम...
गधों को मिठाई नही घास चाहिए!
ReplyDelete--
कमाल का व्यंग्य है!
--
बधाई!
--
दो दिनों तक नेट खराब रहा! आज कुछ ठीक है।
शाम तक सबके यहाँ हाजिरी लगाने का विचार है!
...गधा संमेलन भी तो होना चाहिए!....ताउ जी मजा आ गया!...यह संमेलन वैसे किस जगह हुआ?
ReplyDeleteताऊ,
ReplyDeleteम्हारी हाजरी पक्की मानिये। घणे दिन हो लिये जलेब खाये।
और ताऊ, ये जो फ़ोटू चेप राख्या सै न, वरिष्ठ और कनिष्ठ आला, वाई-गाड चाला कर राख्या सै।
राम राम।