कल ही ललित शर्मा की भैंस की पाडी (केडी या भैंस की काटडी) खो गई और बेचारे परेशान होते रहे ढूंढ ढूंढ कर. इसी चक्कर मे रामप्यारी का सवाल भी चूक गये. वर्ना पक्के से वो ही जीतने वाले थे.
अब क्या है कि शर्माजी ठहरे हरयाणवी...सो हम भी हरयाणवी होने का धर्म निभाते हुये काम धाम छोडकर उनकी भैंस की काटडी को ढूंढने उनके साथ ही चल पडे. बहुत ढूंढने पर एक जगह देखा कि सांडों मे लडाई चल रही थी. वहीं पर ललित शर्मा की भैंस की पाडी भी लडाई का मजा लेरही थी.
सांडों का दंगल और घायल होते लोग
अब वहां पर कई बछडे - बछिया और पाडे - पाडियां घेरा बना कर बैठे थे और सांडों की लडाई का मजा ले रहे थे...वो सांड लडते लडते जब भी किनारे पर पहुंचते कि कई बछडे - बछिया और पाडे - पाडियां घायल हो जाते...कईयों के हाथ पैर टूट गये थे.
शर्मा जी ने जैसे ही उनकी पाडी को देखा - झट से उसके दोनों कान पकड कर, बजा दिये दिये तीन चार कान के नीचे और बोले - तन्नै शर्म कोनी आरी के? जो इण ऊत लोगां की लडाई देखण लागरी सै? अरे जै तेरे हाथ पैर टूट गये त म्ह किसी न मूंह दिखाण काबिल नही रहूंगा..चल उठ खडी हो और घर चल...अब बेचारी पाडी के बोल सकै थी? मन मार के चुपचाप ललित जी कै पाछे पाछे चाल पडी.
और ललित शर्मा तो अपनी काटडी को लेकर घर चले गये और ताऊ का खोटा दिन आया था सो वहीं बैठकर ताऊ सांडों की लडाई का आनंद लेण लागग्या.
अब ताऊ को वहां बैठे देखकर एक सांड कुछ बिचकने लग गया....पता नही उनको ताऊ मे क्या सांडपना नजर आया या हो सकता है कि उनको लगा हो कि सांडपने की उनकी राजगद्दी छिन नही जाये. सो उस सांड ने उसके साथ वाले दो तीन बछडों और काटडों को इशारा किया..और वो सारे ताऊ की तरफ़ सींग निकाल कर मारने दौडे..
ताऊ माजरा भांप गया और सरपट दौड लिया..आगे आगे ताऊ..पीछे पीछे वो सांड और उसके बछडे काटडे...अब ताऊ मे कहां इतना दम कि सांड और काटडों की बराबरी कर पाता? सो उसने मुख्य रास्ता छोड दिया और घने जंगल की और दौड लिया.
ताऊ ठहरा गंवार और अनपढ .. इधर सांड और काटडे ठहरे बिल्कुल मौलिक और अभिजात्य शहरी...सो वो ताऊ को जंगल मे घुसते देख कर समझ गये कि ताऊ अब उनकी सीमा से बाहर चला गया है और जंगल मे घुस गया है तो अब लौट कर क्या आयेगा? वही घने जंगल मे शेरों का शिकार बन जायेगा. यह सोचकर खुश हो लिये और वो वापस आकर अपने लडने लडाने के खेल मे लग गये.
सांड और बछडो के डर से ताऊ भागता भागता घने जंगल मे घुस गया. यहां तक तो सब सही था...ताऊ ने मन ही मन कहा - हे भोलेनाथ जी भगवान..तेरे इन नंदी सांडों से आज प्राण रक्षा होगई सो आते सोमवार को सवा पांच आने का परसाद बाटूंगा....
और बस साहब ..भोलेनाथ जी का परसाद बोलने की सोचते ही माता पार्वती का गुस्सा फ़ूट निकला...तुरंत उनके वाहन शेर की आवाज सुनाई दी...ताऊ की तो सांस ऊपर चढ गई ..और ताऊ तो आंखों पर हाथ रखकर चुपचाप सटकने की तैयारी करने लगा....
शेर के सामने से आंख मींचकर निकलता ताऊ
अब शेर की आवाज आई....ताऊजी...ओ ताऊजी...रामराम...
ताऊ ने शेर को रामराम करते सुना तो कुछ आश्चर्य हुआ पर....जैसे काटडे , सांडों की लडाई देखने और घायल होने के अलावा कुछ नही कर सकते वैसे ही सुनसान घने जंगल मे शेर के आगे एक निहत्था आदमी क्या कर सकता है? सो ताऊ को भी शेर की रामराम का जवाब देना ही पडा. क्या पता रामराम करने से ही जान बच जाये?
ताऊ बोला - शेर जी रामराम जी घणी रामराम....और ताऊ की जान मे जान आई ..जब देखा कि शेर तो पिंजरे के अंदर है. ताऊ अब चैन से पिंजरे के पास जाकर बैठ गया और शेर की बेबसी पर मन ही मन मुस्कराया और शेर से कारण पूछा कि वो पिंजरे में क्या कर रहा है?
शेर बोला - ताऊजी..अब ये मत पूछिये...मेरी किस्मत खराब थी. अभी तीन दिन पहले रात को मधुशाला से जगाधरी खींच खांच कर घर जा रहा था की नशे पते मे और रात के अंधेरे में यह फ़ंदा नही दिखा और फ़ंस गया इन शिकारियों के पिंजरे में...अब तो आप ही मदद कर सकते हो? मुझे निकालो इस पिंजरे से....
और ताऊ को तुरंत रतन सिंह जी शेखावत की बात याद आगई कि इन शेर और बिगडैल सांडों का यकीन मत करना सो ताऊ बोला - शेर सिंह जी ये काम तो मैं नही करुंगा...और कोई काम आप कहो तो कर दूंगा..आप बोलो आपके घर राजी खुशी की खबर पहुंचा दूं? पर आपको पिंजरे से बाहर नही कर सकता.
शेर बडी विनम्रता से बोला - ताऊजी आप भी मजाक करते हो? मैं कहां राजी खुशी हूं? जो आप मेरे घर राजी खुशी की खबर भिजवावोगे? आप तो मुझे इस पिंजरे से आजाद करवा दिजिये..फ़िर घर चल कर आपकी शाही खातिरदारी करुंगा.
और आपको मुंह मांगा इनाम दूंगा.
शेर ने ताऊ को बहुत बहलाया फ़ुसलाया पर ताऊ तैयार नही हुआ. अब शेर बोला - अच्छा ताऊजी आपकी मर्जी...मत निकालो मुझको यहां से....आपकी मर्जी... चार दिन का भूखा प्यासा हूं...खैर आप मुझे खाना तो कहां से खिलावोगे? पर एक तंबाकू की चिलम तो पिला ही सकते हो?
ताऊ बोला - शेरसिंह जी चिलम एक की जगह दो पी लो और ताऊ ने तंबाकू की चिलम सुलगाई और शेर को थमा दी....शेर ने चिलम के कश लेते हुये ताऊ की तरफ़ देखा और बोला - ताऊ............(क्रमश:)
खूंटे पै डाँ.झटका :-
एक दिन ताऊ और ताई दोनों सुबह की चाय पी रहे थे. और ताई अखबार पढ रही थी. अचानक ताई बोली - अरे देखो ये लिखा है कि दारू पीना बहुत खराब होता है. यह इतनी खतरनाक होती है कि इसमें कीडे मकौडे डाल दो तो वो भी मर जाते हैं.
ताऊ बोला - तू बिल्कुल सच कह री सै भागवान. तेरा हुक्म सर माथे पै इब मैं भी इसी से अपने पेट के कीडे मार लिया करुंगा.
शाम को ही राज भाटिया जी आगये. दोनो का प्रोग्राम बना और दोनों अपनी अपनी सायकिल उठाकर पेट के कीडे मारने मधुशाला पहुंच गये और वहां तबियत से दोनों ने जगाधरी खींच खींच कर पेट के कीडे मार लिये. जब पेट के सारे कीडे मर गये और पूरे टनाटन होगये तो दोनों मधुशाला से बाहर निकले.
राज भाटिया जी ने थोडे कम कीडे मारे थे सो वो अपनी सायकिल ऊठाकर चुपचाप निकल लिये. और नशे मे धुत ताऊ ने बीडी सुलगा ली और कश खींचते हुये देवदास स्टाईल मे झूमते हुये पैदल ही घर की और निकल पडा. और गाता जा रहा था "ठगिनी काहे नैना झमकावै"..
ताऊ पूरा प्रेमचंद जी वाला घीसू या मधुआ बना जोर जोर से "ठगिनी काहे नैना झमकावै".. गाता हुआ घर की तरफ़ लडखडाता हुआ चला जारहा था. चलते चलते बहुत देर होगई तो ताऊ ने एक आटो वाले को रोक लिया और बोला - विशालनगर मेरे घर चलो?
आटो वाला थोडा चौंका क्योंकि वो तो ताऊ जिस एडरेस पर जाना चाह रहा था वहीं पर खडे बात कर रहे थे. आटो वा्ले ने देखा कि ताऊ पूरा नशे में टुन्न है सो बोला - देख ताऊ विशाल नगर जाने के पूरे सात सौ रुपये लगेंगे. तू बिल्कुल उल्टी दिशा मे आगया है.
ताऊ बोला - चल भाई इब क्या करें? घर तो जाणा ही सै. और ताऊ आटो मे बैठ लिया. आटो वाले ने आटो स्टार्ट कर लिया और आटो को न्युट्रल गियर मे डाल कर जोर जोर से एक्सीलेटर दबा कर रेस देने लगा और दो मिनट बाद ही इंजन बंद करके बोला - ले ताऊ इब उतर ले.. तेरा घर आगया..और काढ सात सौ रपिये.. ..
ताऊ ने बिना हीला हवाला किये जेब मे हाथ डाला और एक कागज सा निकाल कर ड्राईवर को पकडाते हुये नीचे उतर कर बोला - अरे बावली बूच...आईंदा इत्ती तेज आटो मत चलाईये ....जरा धीरे चलाया कर....एक दम तूफ़ान मेल की तरह चलाता है...
अब आटो वाला बोला - ताऊ मजाक मत कर..रपिये काढ..रपिये वो लोट (नोट) वाले..
ताऊ बोला - अबे दे तो दिया तेरे को एक हजार का नोट..अब बाकी के तीन सौ मेरे को वापस कर...
आटो वाला बोला - ताऊ, तूने मुझको ये एक्सपायर्ड लाटरी का टिकट पकडाया है...लोट (नोट) कोनी दिया..अब सीधी तरियां पिस्से निकाल मेरे..तेरे जैसे ताऊ मुझको दिन मे तीन सौ साठ मिलते हैं..और दोनों झगडने लगे.
बाहर हल्ला सुनकर ताई अपना मेड-इन-जर्मन लठ्ठ उठाकर बाहर आई और माजरा समझने लगी. और उसने जोर से लठ्ठ को जमीन पर दे मारा और जोर से चिल्लाई...यो के होरया सै?
ताऊ बोला - अर भागवान..मैंने इस आटो वाले को एक हजार का नोट दिया था और अब किराया काटकर बाकी के तीन सौ रपिये, ये आटो वाला वापस कोनी कर रया सै.
ताई की आवाज सुनकर और लठ्ठ हाथ मे देखकर आटो वाले के तो होश गुम होगये और उसने सोच लिया कि अगर मैने रुपये ऐंठने वाली बात की तो आज ताई बहुत मारेगी सो उसने तुरंत अपना दिमाग बदल लिया.
आटो वाला बोला - ताई यो देख ..यो ताऊ के करण लाग रया सै? या देख ..लाटरी की पुरानी टिकट गोज (जेब) मे से काढ कर (निकालकर) मेरे को देदी और इब नु कहरया सै कि मुझको एक हजार का नोट दिया सै...और बोलरया सै कि सात सौ तू किराया के रखले और तीन सौ मेरे को दे दे. जबकी मैं तो दो घंटे से यहीं खडा हूं. लगता है आज ताऊ नै किम्मै घणी ई खींच राखी सै?
सारा माजरा समझ कै ताई ने दो लठ्ठ दिये ताऊ को और गर्दन से पकड कर घसीटती हुई घर के अंदर ले जाती हुई बोली - तू चल आज ..घर के अंदर..तेरे सारे पेट के कीडे इत ई मार डालूंगी. फ़ेर कदे तन्नै जरुरत ना पडैगी कीडे मारण आली दवाई पीण की.
अब घर के अंदर ले जाकर ताऊ की कैसी सेवा पूजा ताई ने की होगी उसका अंदाजा तो अंदर से आती चीख पुकार से ही लगा लिजिये.
bahut achchha laga.
ReplyDeleteताऊ यो ताई के मेड इन जर्मन लठ्ठ से तो अपनी भी ढिबरी टाईट हो गई है...
ReplyDeleteहा... हा.. हा..
बहुत अच्छी, मनोरंजनात्मक और गुदगुदाती हुयी पोस्ट....
मीत
raam raam taau .... ib khoonte waali baat asal ki hai ya mazaak hai ... mhaare ghar ma bhi ek jaatni se aur kadi vo n padh le ye khoonta ....
ReplyDeleteश्री राम, श्री राम (:(:(:
ReplyDeleteवाह ताऊ जी ! आज तो पढके मजा आ गया ! और हाँ शेर सिंह को चिलम देने तक तो ठीक है पर आगे ध्यान रखना |
ReplyDeleteवैसे भी बुजुर्ग सिखा गये हैं कि सांड़ों की लड़ाई से दूर रहना चाहिये- बाड़े पार. :)
ReplyDeleteहमें तो इन्तजार है कि चिलम से सुट्टा लगाने के बाद शेर ने क्या किया...
बछड़ों के हताहत होने का अफसोस तो खैर है ही-जब बुजुर्गों की बात नहीं मानेंगे तो घायल तो होना ही है.
-
ताई ने सही लट्ठ जमाये. खूब हंसी आई सुबह सुबह खूंटे पर.. :)
हूँ ,तो अब गधो के बाद बैल ,आई मीन एक और बकलोल/बकलेल जंतु -अब आगे किसे लोगे वनमानुष श्रेष्ठ !
ReplyDeleteहा हा बढ़िया कहा ताऊ।
ReplyDeletebahut achha...
ReplyDeletetai ne jo sewa ki hai uski cheekh pukar to yaha tak bhi aa rahi hai...
आज की पोस्ट पढ़कर तो मजा आ गया।
ReplyDeleteचिलम से सुट्टा लगाने के बाद शेर ने ताऊ को तो नही खाया यह बात पक्की, क्योकि ताऊ को तो ताई ने अच्छा तडका लगा दिया, ओर जी यह तो ताऊ ओर ताई का रोज का मामला है, हम बीच मै क्यो फ़ंसे इस लिये हम पहले ही वहा से खिसक गये... ओर विडियो केमरे से सरी ढुकाई की फ़िल्म बना ली
ReplyDelete"दोनों अपनी अपनी सायकिल उठाकर पेट के कीडे मारने मधुशाला पहुंच गये"
ReplyDeleteताऊ जिब गये दोनों अपनी अपनी साईकिल पै थे तो फिर आते टैम साईकिल कित छोड आया :)
यो बात घ्णी खरी कही कि साँडों की लडाई मैंह तो बछडेयाँ नैं तो दूर ही रहना चहिए....पर उण बछडेयाँ नैं याह बात कोणी समझ मैंह आन्दी, जिन्हाँ नैंह बिना बात कै आपणी लात फसांवण की आदत हो ज्यै :)
accha manoranjan kar daalte hain aap...
ReplyDeleteशेर ने ताऊ को बहुत बहलाया फ़ुसलाया पर ताऊ तैयार नही हुआ. अब शेर बोला - अच्छा ताऊजी आपकी मर्जी...मत निकालो मुझको यहां से....आपकी मर्जी... चार दिन का भूखा प्यासा हूं...खैर आप मुझे खाना तो कहां से खिलावोगे? पर एक तंबाकू की चिलम तो पिला ही सकते हो?
ReplyDeleteवाह ताऊ शेर को भी चिलम पिलादी? पर आगे की कहानी रोक क्योंदी?
सारा माजरा समझ कै ताई ने दो लठ्ठ दिये ताऊ को और गर्दन से पकड कर घसीटती हुई घर के अंदर ले जाती हुई बोली - तू चल आज ..घर के अंदर..तेरे सारे पेट के कीडे इत ई मार डालूंगी. फ़ेर कदे तन्नै जरुरत ना पडैगी कीडे मारण आली दवाई पीण की.
ReplyDeleteये सबसे भला काम किया ताई ने. धन्यवाद ताई को.:)
बहुत जोरदार ताऊ. मजा आगया.
ReplyDeleteरामराम.
ताउजी..आप ताई के इतने लठ्ठ खाकर भी सुधरोगे नही कभी?:)
ReplyDeleteताउजी..आप ताई के इतने लठ्ठ खाकर भी सुधरोगे नही कभी?:)
ReplyDeleteखुंटे पर तो गजब कर दिया ताऊ.मजा आगया.
ReplyDeleteमै तो कीड़े मार-मार के थक़ गया न कीड़े खतम हो रहे हैं ना……………………………
ReplyDelete"सांड तो लड अलग भये : बछडे भये उदास"
ReplyDeleteबछड़े उदास नही बिन्दास हो गये हैं।
अब कीडो़ का क्या हाल है? वैसे कहते है कि ये दवा हर रोज लेनी पड़ती है.. क्या है सच है..
ReplyDeleteहे हे. कीड़े मारने की दवा हो गयी ये तो :)
ReplyDeleteवाह ताऊ जी! बहुत बढ़िया लगा और मज़ा आ गया!
ReplyDeleteताऊ जी की आवाजें मेरे कानों तक आ रही है।
ReplyDeleteबहुत अच्छी
ReplyDeleteताऊ मन्ने तो आज बेरा पाट्या के आपने पाडी ढुंढ्ण वाळी बात उरा तक पहुंचा राक्खी सै, पहले तो पाडी ढुंढी फ़ेर थम सांडो के चक्कर मै कद फ़ंस गे मन्ने तो बेरा ही कोनी पाट्या, नही थमने एकला छोड के कोणी आता,राम-राम
ReplyDeleteताई को झूठ मूठ बदनाम कर रहे है ताई के हाथ मे मेड इन जर्मन होता तो आप अब तक सुधर जाते ।
ReplyDelete