बहुत तेज गति से चलते हुये ताऊ और रामप्यारी उज्जैन गधा सम्मेलन स्थल तक पहुंच गये हैं. चारों तरफ़ गधे और गधियों की बहार ही बहार आई हुई है. देश विदेश से नाना प्रकार के गधे और गधियां इसमे शिरकत करने आये हुये हैं. कुछ ही समय मे सम्मेलन शुरु होजायेगा.
रामप्यारी को फ़िल्मों का बडा शौक है सो जैसे ही उसको मालूम पडा कि करीना, ऐश्वर्या, रानी आदि भी आई हुई हैं ओ वो तो उनके साथ इंटर्व्यु की जोगाड मे निकल ली और ताऊ सम्मेलन स्थल का मुआयना करने लगा. अभी पंडाल और स्टेज का बनने का काम फ़ायनल हो चुका था.
रामप्यारी एक प्रसिद्ध हिरोइन के बच्चे के साथ खेलते हुये
मिडिया मे भी इसके कवरेज के लिये भारी होड मची है. पूरे देश विदेशों का मिडिया यहां इककठा होगया है. जर्मनी से राज भाटिया आगये कवरेज के लिये. जिनका शानदर जेडोंक सबसे अनूठा लग रहा था. और सभी लोग उसको देखना छूना चाह रहे थे.
राज भाटिया जर्मनी से अपने जेडोंक पर सम्मेलन स्थल पहुंचते हुये
तभी योगिंद्र मोदगिल जी का भी फ़ोन आगया कि ताऊ क्या करुं रास्ते मे नदी पड गई है और कैसे पहुंचू? तो ताऊ ने बताया कि गधे सहित पानी मे घुस जावो आंख मींच कर. भगवान भोले नाथ सब भली करेंगे. और उन्होने ऐसा ही किया
योगिंद्र मोदगिल रास्ते मे क्षिप्रा नदी पार करते हुये
और करीब एक घंटा बाद ताऊ और राज भाटिया के विशेष आग्रह पर अपने गधे पर जगाधरी के घडे लादे हुये, और मुस्कराते हुये योगिंद्र मोदगिल भी आ पहुंचे गधा सम्मेलन के कवरेज के लिये.
योगिंद्र मोदगिल जगाधरी के घडे लादे सम्मेलन स्थल पहुंचते हुये
अब हुआ यह कि ताऊ, राज भाटिया जी और योगिंद्र मोदगिल जी यानि तीन तीन हरयाणवी एक जगह मिल गये तो फ़िर क्या कहने जब जगाधरी के घडे भी साथ हों? यूं भी तीनो काफ़ी दिनों बाद मिले थे सो प्रेम भी काफ़ी उमड घुमड रहा था सो तीनों ने एक ही तंबू मे ठहरना उचित समझा. तो तीनों ने एक साथ ही रहने ठाह्रने की व्यवस्था करली और कवरेज भी साथ साथ ही करने लगे.
जो अतिथी पहुंच चुके हैं उनका रहने ठहरने का माकूल प्रबंध किया गया है. अतिथियों के लिये एक बहुत ही बडी भोजन शाला सम्मेलन स्थल के नजदीक ही बनाई गई है. आईये हम आपको सबसे पहेले इस अथिति शाला के अंदर की झलक आपको दिखलाते हैं.
जैसे ही हम भोजन शाला के गेट पर पहुंचते हैं वहां पर हमारा स्वागत अथितिशाला के मेनेजर श्री संतानंद गर्दभराज करते हैं. और हमने उनसे प्रश्न पूछना शुरु किया.
ताऊ : संतानंद जी साहब आप किस तरह का भोजन अथितियों को परोसते हैं?
संतानंद : जी देखिये, हम बहुत ही उच्च गुणवत्ता वाला भोजन परोसते हैं जिसमे साफ़ सफ़ाई का विशेष ध्यान रखा जाता है. हमारे अधिकतर मेहमान विदेश से भी आते हैं इसलिये हम इस मामले मे कोई कंप्रोमाइज नही कर सकते;
राज भाटिया : संतानंद जी आप ये बताईये कि आपका आज का मेनू क्या है? यानि आप आज गधों को..माफ़ किजिये .. यानि मेहमानों को क्या परोस रहे हैं?
संतानंद : हां ये आपने अति उत्तम सवाल किया है. देखिये आज हम सबसे पहले तो उज्जैनी दाल बाफ़ला परोस रहे हैं और उसके साथ लड्डू तो है ही.
योगिंद्र मोदगिल : और स्वीट डिश मे क्या परोसेंगे आज?
संतानंद : देखिये युं तो लड्डू अपने आप मे दाल बाफ़लों के साथ स्वीट डिश होता है पर मेहमानों की पसंद का खयाल रखते हुये आज विषेष रुप से केशरिया जलेबी और गुलाब जामुन भी परोसा जा रहा है. आईये आपको दिखाता हूं.
मेहमान दाल बाफ़ले, जलेबी और गुलाब जामुन खाते हुये
तीनों बडे खुश होते हैं और संतानंद जी के प्रबंध की बडी तारीफ़ करते हैं और उनकी इस खान पान की बहुत बढिया रिपोर्टिंग करने का आश्वासन देते हैं. उसके बाद तीनों को भोजन शाला मे दाल बाफ़ले खिलाये जाते हैं. और तीनों बडे मस्त होकर संतानंद जी तारीफ़ करते हैं.
ताऊ : संतानंद जी आपने हमें सिर्फ़ जलेबियां ही खिलाई पर गुलाब जामुन तो खिलाये ही नही?
संतानंद : देखिये..गुलाब जामुन सिर्फ़ गधों के खाने के लिये हैं आप तो गधे नही हैं?
ताउ : अरे संतानंद जी, गोली मारिये. ये तो कहने की बातें हैं कि गुलाबजामुन गधों के खाने के लिये हैं? अरे इतने सुंदर गुलाब जामुन हैं कि मुंह मे पानी आरहा है. आप ओ खिलवाईये हमको भी. लोग तो गुलाब जामुन खाने के लिये गधे को बाप बना लेते हैं फ़िर क्या गुलाब जामुन खाने के लिये हम खुद गधे नही बन सकते क्या?
संतानंद : जी बिल्कुल ताऊ, आप तो लगते भी पैदायशी गधे हैं. और संतानंद आवाज लगाता है और एक गधेडी आती है. संतानंद उसको इनके लिये गुलाब जामुन लाने के लिये कहता है. पर वो बताती है कि अभी खत्म होगये हैं. अब एक घंटे बाद ही तैयार हो पायेंगे.
संतानंद उन तीनों को आश्वस्त करता है कि शाम को गुलाब जामुन आपके तंबू पर पहुंच जायेंगे. ये तीनों भी सोचते हैं कि ये अच्छा रहेगा..अभी तो दाल बाफ़ले से पेट भी फ़ुल है..शाम को तबियत से दबाकर गुलाब जामुन खायेंगे और आकर अपने तंबू मे सो जाते हैं.
आगे का हाल खूंटे पै पढो.
इब खूंटे पै पढो:-
ताऊ, राज भाटिया और योगिंद्र मोदगिल दाल बाफ़ले खाकर सोने के बाद ऊठे तो देखा कि गुलाब जामुन अभी तक नही आये हैं. संतानंद जी को फ़ोन किया तो उन्होने कहा कि गुलाब जामुन भिजवा दिये हैं बस पहुंचते ही होंगे.
थोडी देर बाद एक कंटेनर आधा किलो गुलाब जामुन का एक आदमी देकर गया.
ताऊ बोला - यार भाटिया जी इत्ते से क्या होगा? इससे तो मेरा ही पेट नही भरेगा तो तीनों का तो कोई सवाल ही नही है.
भाटिया जी और मोदगिल जी बोले बात तो एकदम ठीक है, पर एक काम करिये इनको बांट कर खा लेते हैं..बहुत ही जोरदर लग रहे हैं देखने में तो?
ताऊ बोला - अरे भाई ..गधों के गुलाब जामुन देखने मे ही क्या खाने मे भी जोरदार होते हैं. एक काम करो..तीनों को तो इसमे कोई मजा नही आयेगा..और ना ही पेट भरेगा... एक काम करता हूं..मैं तीनों मे बडा हूं तो इनको मैं खा लेता हूं. तुम दोनों को इतना त्याग तो करना ही चाहिये? आखिर भरत और लक्ष्मण ने भी तो किया था?
योगिंद्र मोदगिल जी बोले - भ्राताश्री और तो जो इच्छा हो वो त्याग करवा लो पर गुलाब जामुन वाली बात पर त्याग नही चलेगा और आप दोनों बडे हो तो आप लोगों को यह त्याग मेरे हक मे करना चाहिये. जैसे राम ने भरत के हक मे किया था और तीनों झगडने लगे.
राज भाटिया जी ने सोचा - ये तो छोटे बडे बनकर गुलाब जामुन खा ही जायेंगे. मैं बीच में अच्छा फ़ंसा सो वो बोले - भाई न्याय की बात तो ये है कि इनको रख दो और सो जावो. रात मे जो भी सबसे बढिया सपना देखेगा वो ये गुलाब जामुन सुबह ऊठकर खा लेगा.
इस बात पर तीनों तैयार होगये और सो गये.
अब सुबह तीनो ऊठे और राज भाटिया ने सपना सुनाना शुरु किया. वो बोले भाई रात को अरविंद मिश्रा जी मेरे सपने मे आये और मुझे काशी विश्वनाथ के दर्शन करवा दिये. वाह क्या सुंदर सपना था? इससे सुंदर तो कुछ सपना हो ही नही सकता.
अब योगिंद्र मोदगिल ने सपना सुनाना शुरु किया - अरे भाटिया साहब..आपने तो मुर्ती के दर्शन किये होंगे. मेरे साथ क्या हुआ कि समीरलाल जी अपनी उडनतश्तरी लेके आगये और बोले - चलो कवि महाराज, हम कैलाश पर्वत जा रहे हैं दर्शन करने. आप को भी करवाये देते हैं. ओहो हो..क्या साक्षात भोलेनाथ और मां पार्वती के दर्शन हुये...मैं तो धन्य होगया. और इससे बढिया सपना तो अब ताऊ का भी क्या होगा? अब गुलाब जामुन मैं ही खा लेता हूं. और गुलाब जामुन का कंटेनर हाथ मे ऊठा लिया.
गुलाब जामुन का कंटेनर खाली पडा था..बस थोडी सी चाशनी लगी थी उसमे.
योगिंद्र मोदगिल और राज भाटिया जी ने ताऊ से पूछा तो ताऊ रोते हुये बोला - यारो मेरा सपना सुन लो ...सब कुछ समझ आ जायेगा. अब ताऊ ने बोलना शुरु किया -
भाईयो, रात को सपने मे आपको तो भले आदमी मिल गये और भोले नाथ के दर्शन करवा दिये और मेरे सपने मे सुर्पणखां आगयी. और क्या बताऊं? आते ही लाल आंखे निकाल कर मेरी छाती पर सवार होगई.
भाटिया जी : फ़िर क्या हुआ?
ताऊ - अरे भाटिया साहब होना क्या था? मुझसे कहने लगी की ताऊ जल्दी से ये गुलाब जामुन खा जावो..मुझे इसकी गंध अच्छी नही लगती...वर्ना मैं तुमको खा जाऊंगी और मेरी गर्दन पकड कर ऊपर उठा लिया... और लाल आंखे चुडैल सरीखी दिखाई तो मजबूरी मे डर के मारे मुझे वो गुलाब जामुन खाने पडे.
योगिंद्र मोदगिल बोले - तो उस समय हमको उठाना था ना ..सब बांटकर खा लेते?
ताऊ बोला - अरे भाई..मैने तुम दोनों को बहुत ढूंढा पर तुम तो कैलाश पर्वत गये हुये थे और भाटिया जी वाराणसी गये हुये थे. तो क्या करता? अगर तुम दोनों मुझे अकेला छोडकर नही जाते तो उस सूर्पणखां की इतनी मजाल की मुझे अकेले को गुलाब जामुन खाने को कहने का साहस भी कर पाती?
वाह क्या बात है ताउजी गुलाब जामुन खाने का गजब का तरीका ...
ReplyDeleteरामप्यारी का इंटरव्यू जरूर छापियेगा
vaah taay gulab jamun khaa gaye... kuch to bachaa ke rakhate..
ReplyDeleteवाह ताऊ ......... इब अकेले अकेले ही खा लिए सब गुलाब जामुन ....... कुछ म्हारे धोरे भी भिवा देते ........
ReplyDeleteभाई यो सम्मलेन तो कामयाब हो गया ..... इलाहबाद की तरह .......
ओ हो ताउ जी जद ही काल रात नै मै फ़्रीज से गुलाब जामुन काढ के खा ग्या-थारे बाद वा सुर्पणखा मेरे धोरे आई थी-सबेरे श्रीमति ने पुछ्या के "गुलाम जामण कठे गये"तो मै बोल्या "मन्ने तो नही खाए" इब या बात याद आई "किसी ने कहि्यो ना" नही तो मेरे खिलाफ़ मुकदमा दरज हो जा गा-मामला शुगर का सै- राम-राम
ReplyDeleteवाह... ये स्टोरी भी मजेदार चल रही है... :)
ReplyDeleteजब मैदान जैसा खूटा ही हो जाए तो बस भगवाले ही मालिक हैं ! गधे तो इमरती खाते हैं क्या इलाहबाद की भनक उन्हें भी लग गयी जो जलेबियों की तलब हो आयी ! ये तो अच्छा रहा गधे बेड टी नहीं पीते नहीं तो हलकान हो जाते मेले वाले !
ReplyDeleteबेचारा ताऊ, मजबूरी में सारे गुलाब जामुन खाने पड़ गये अकेले उस चुडैल के कारण....
ReplyDeleteसही रिपोर्टिंग चल रही है ताऊ.
ताऊ जी हंसी रुके तो टिप्पणी करने के लिए सोचे ना फ़िलहाल तो सपने वाली बात पढ़कर हंसी ही नहीं रुक रही |
ReplyDeleteशुरु में तो काफी हंसी आ रही थी, मज़ा आ रहा था, पर बाद में पता नहीं क्यों छोड़िए एक शेर अर्ज़ है ...
ReplyDeleteलोग पक जाते हैं दो-चार गुलाब जामुन पचाने में
तुम्हें मज़ा आता है पूरी की पूरी चट कर जाने में।
गधा सम्मेलन में गुलाब जामुन के साथ आपका शिरकत रोचक लगा. बधाई .
ReplyDeleteमैने तो सुना है कि गधों को खबर मिली कि आदमी आज कल मावे में मिलावट कर रहा है और उन्हों ने गुलाब जामुन खाने से इन्कार कर दिया। सारे उन के मालिकों को खाने पड़े।
ReplyDeleteवाह राज भाटीया जी बड़े जच रहे थे !!! और योगेंद्रजी बड़े ही साहसी निकले गाधराज को नदी के बीचों बिच ले गए अगर गधे का मन लिटने को हो जता तो क्या करते !!!बिचारे ताऊ को मुशीबत में गुलाब जामुन खाने पड़े हे भगवान् ऐसी मुशीबत में मुझे साथ रखा करो ताउजी !!!
ReplyDeleteगुलाब जामुन देखकर तो हमारे मुँह में भी पानी आ गया जी।
ReplyDeleteताऊ जी जगाधरी के घडे देख याद आया गांव के एक ताऊ जी हमें अक्सर एक राष्ट्रपति पुरस्कार प्राप्त मास्टर जी का किस्सा सुनाया करते थे | उन मास्टर जी से में भी सीकर पढाई के दौरान कई बार मिला हूँ वे हिंदी से डबल एम् ए थे और बहुत बढ़िया साहित्यकार इसीलिए उन्हें राष्ट्रपति पुरस्कार मिला था पर वे बात बात में रुठते थे |
ReplyDeleteहमारे गांव वाले उन ताऊ जी के अनुसार वे लोग सीकर से हरियाणा एक बारात में गए थे शादी वाले दोनों पक्ष बहुत धनि व रसूख वाले थे अतः बारात में सीकर के सभी नेता अफसर ,डाक्टर,वकील आदि सम्मिलित थे बारात के लिए एक बहुत बड़ी जगह पर अलग अलग कई सारे तम्बू लगाकर व्यवस्था की गयी थी साथ ही लड़की वालों ने बारातियों को बोल दिया था कि खाने पीने की जो भी फरमाईस होगी हर हाल में पूरी की जायेगी | हमारे वो ताऊ जी और वो डबल एम् ए साहित्यकार मास्टर जी एक ही तम्बू में कुछ और साथियों के साथ रुके थे | पीने के लिए उन लोगो ने वेटर को जब पूछा कि कौन कौन ब्रांड है तब उसने अंग्रेजी के सभी ब्रांडों के साथ जगाधरी का नाम भी लिया मास्टर जी ने जगाधरी का नाम पहली बार सुना था इसलिए उन्होंने सोचा ये बहुत बढ़िया शराब होगी और वेटर को जगाधरी लाने का ऑर्डर दे दिया लेकिन पीने के बाद उन्हें पता चला कि वह तो देशी दारु है उसी बीच जब मास्टर जी पेशाब करने गए तो रास्ते के तम्बुओं में डाक्टरों व अन्य सरकारी अफसरों को अंग्रेजी दारू पीते देख हर बात पर रूठने वाले मास्टर जी भड़क गए कि हमें बेवकूफ समझ रखा है जो देशी ठर्रा पकडा गए और इस जगाधरी के चलते रूठे मास्टर जी इतने बढ़िया अरेंजमेंट में भी बारात से भूखे आये |
भाटिया जी वाला गधा तो ऎसा लगे है कि जैसे स्पैशल आर्डर देकर बनवाया गया हो :)
ReplyDeleteताऊ, इस गधा सम्मेलन का अध्यक्ष भी कोई साहित्यकार ही तो नहीं :)
खूंटा गड़ा देखकर बोत अच्छा लगा। हमारा खूंटा तो हम चिठ्ठाचरचा पर रख कर आये थे, वो उनने उखाड़ दिया। अब वो वाला खूंटा हम अपने दरवाजे पर लगायेंगे।
ReplyDeleteइस सम्मेलन मे मठाधीशो को पैसे देकर नही बुलवाया गया क्या?
इतने सारे डिज़ाएन के गधे पहली बार देखे जी:)
ReplyDeleteवाह क्या बात है....??
ReplyDeleteआम आदमी को तो दाल सब्जी भी
महँगी पड़ रही है और यहाँ तो गधे
लड्डू और मिठाई खा रहे हैं।
गधों को मिठाई नही घास चाहिए।
आज मेरे देश को सुभाष चाहिए।।
भाई हम तो दिनेश जी की बात से सहमत है, वेसे दिनेश जी ने हमे सपने मै आ कर बता दिया था कि यह खोया नकली है जिस से गुलाब जामुन बने है. बाकी कहनी बहुत सुंदर लगी, फ़ोटू उसे से भी सुंदर
ReplyDeletetauji aaj to bahut jordar post likhi hai.
ReplyDeleteएक काम करता हूं..मैं तीनों मे बडा हूं तो इनको मैं खा लेता हूं. तुम दोनों को इतना त्याग तो करना ही चाहिये? आखिर भरत और लक्ष्मण ने भी तो किया था?
ReplyDeleteवाह ताऊ, यहा भी नही छोडा?:)
वाह ताऊजी गधो को गुलाब जामुन खिला दिये और खुद भी खागये. बेचारे भाटियाजी और मोदगिल जी रह गये तो हमारा नंबर कहां से आयेगा?:)
ReplyDeleteवाह ताऊजी गधो को गुलाब जामुन खिला दिये और खुद भी खागये. बेचारे भाटियाजी और मोदगिल जी रह गये तो हमारा नंबर कहां से आयेगा?:)
ReplyDeletebahut jordar post taauji
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ReplyDeleteजय ब्लोगिग विजय ब्लोगिग
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वाह ताऊ ...........वाह ताऊ ..........वाह ताऊ .....वाह ताऊ
वाह ताऊ ...........वाह ताऊ ..........वाह ताऊ .....वाह ताऊ
वाह ताऊ ...........वाह ताऊ ..........वाह ताऊ .....वाह ताऊ
वाह ताऊ ...........वाह ताऊ ..........वाह ताऊ .....वाह ताऊ
वाह ताऊ ...........वाह ताऊ ..........वाह ताऊ .....वाह ताऊ
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पहेली मे भाग लेने के लिऎ निचे चटका लगाऎ
कोन चिठाकार है जो समुन्द्र के किनारे ठ्हल रहे है
अणुव्रत प्रवर्तक आचार्य तुलसी
आपके जीवन की डोर, मुनीरखान की १५६०० रुपयो की बोतल मे
ताऊ गुलाब जामुन नही तो जगाधरी के एक आध मटका ही भिजवा देते ?:)
ReplyDeletebahut lajavab likha taauji
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ReplyDeleteजय ब्लोगिग विजय ब्लोगिग
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♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ताऊ गधो की तो निकल पडी है
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उफ़्फ़ गजब गजब के गधे दिखा दिये ताऊ ..ये सम्मेलन ..गधों के इतिहास में एक अध्याय लिख गया है ..और सबसे अच्छी बात तो ये रही कि सवारी को चाहे जो भी मिला हो खाने पीनो ...सुनते हैं कि अक्सर सम्मेलनों में खाना खजाना नहीं मिलता ..मगर गधों को गुलाबजामुन खाते देख मन में संतोष हो गया कि टेस्ट के मामले में भी ये हमारे जैसे ही हैं ...
ReplyDeleteताऊ बिल्लन न दीख रही..वा भी किसी गधी की सवारी का मजा ले रही है के....कैमरा उसी के हाथ धरा दीखे है मन्ने तो..आगे की रपटों का इंतजार रहेगा मन्ने..
ताऊ ...चीनी 45रूपये किलो हो गयी है ...डायबिटीज होने का खतरा और है ... अपने हिलते दांतों पर तरस खाओ ...मिठाई देख समझ कर खाओ ...!!
ReplyDeleteबेचारे भाटियाजी और मोदगिल जी रह गये :)
ReplyDeleteha ha ha ha ha ha ha
वाह वाह...सब चले हैं सज धज के .... ओहो गुलाबजामुन ..मेरी भी कमजोरी है...पर इतने नहीं खा पाउंगी :)मजेदार रिपोर्टिंग रही !!
ReplyDeleteसटीक रिपोर्ट और गुलाबजामुन कांड का खुलासा भी शानदार तरीके से किया गया।
ReplyDeleteबड़ा ही सुंदर और मज़ेदार पोस्ट है! गधों को इतने तरह तरह के मिठाई खाते देखकर बहुत हँसी आया! ताऊ जी आप तो अकेले ही गुलाबजामुन खा लिए! मेरा तो सबसे पसंदीदार मिठाई है गुलाबजामुन!
ReplyDeleteरात को सपने मे आपको तो भले आदमी मिल गये और भोले नाथ के दर्शन करवा दिये और मेरे सपने मे ब्लाग सुर्पणखां आगयी. और क्या बताऊं? आते ही लाल आंखे निकाल कर मेरी छाती पर सवार होगई.
ReplyDeleteताऊ अब ये ब्लाग सुर्पणखां कहां से आ गई? इसका खुलासा करो। जिससे सब सावधान हो जायें।
ताऊ ये बडी गलत बात है । आप इशारे इशारे में किसे ब्लाग सूर्पनखा के खिताब से नवाज रहे हैं । ब्लाग सूर्पनखा नाम के बारे में कृ्पया स्पष्ट करें....साथ ही ये भी स्पष्ट किया जाए कि आपने किस आधार पर उन्हे सूर्पनखा जैसे शब्द से संबोधित किया । अन्यथा "ब्लाग नारी मुक्ति संस्थान" आपके खिलाफ मोर्चा निकालने को विवश होगा ।
ReplyDeleteराज भाटियाजी को जेब्रगधे का शौक कब से हो गया !!!हा..हा..
ReplyDeleteगधा विवाद में नहीं पड़ता
ReplyDeleteकई बार मुझे ‘भाई लोगों’ की बात पर बहुत ग़ुस्सा आता है। जब भी उनकी खोपड़ी घूमती है, किसी को भी गधा करार दे देते हैं। जैसे गधा, गधा न होकर दुनिया की सबसे मूर्ख श़िख्सयत हो। अरे भई, गधे की भी अपनी इमेज होती है। उसकी भी कोई बिरादरी होती है, जहां उसने मुंह दिखाना होता है। उसके भी अपने ‘इमोशंज’ होते हैं। अब क्या हुआ, जो गधा सबके सामने हंसता नहीं है, रोता नहीं है, मुस्कुराता नहीं है, ईष्र्याता नहीं है, घिघियाता नहीं है और न ही आंखें तरेरकर देखता है। अपनी भावनाओं पर क़ाबू रखने में गधे का क्या कोई सानी है। तो फिर गधे को इतना जलील क्यों किया जाता है कि हर ऐरे-गैरे नत्थू-खैरे की तुलना उससे कर दी जाती है।
भाई लोग, मेरी इस साफ़गोई का भले ही बुरा मानें, लेकिन मैं तो गधे के लिए अपने दिल में साफ्ट-कॉर्नर रखता हूं। उसकी इज्ज़त करता हूं। गधे को मैंने बहुत क़रीब से देखा है, जाना है। गधा एक ऐसा प्राणी है, जिसका इस समाज को अनुसरण करना चाहिए। उसके पदचिन्हों पर चलना चाहिए। अब देखो न, गधा हमेशा अपने स्टैंड पर क़ायम रहता है। आस्थाएं भी नहीं बदलता। जिसके साथ खड़ा हो गया, दिलोजान से उसके साथ चलेगा। धांधलियों की शिकायत करने भी नहीं जाता। खोखले वायदे भी नहीं करता। नारे भी नहीं लगाता। उस पर सवार होकर कोई कितना भी क्यों न चीख़-चिल्ला ले, गधे पर कोई असर नहीं पड़ता। उसकी सहनशक्ति गजब की है। क्या हम में से कोई इतनी सहनशक्ति का मालिक है?
आप गधे पर कोई भी निर्णय थोप दो। गधा कभी रिएक्ट नहीं करेगा। गधा चुपचाप अपना ग़ुस्सा पी जाएगा, लेकिन विवाद खड़ा नहीं करेगा। वैसे भी विवाद खड़ा करके चर्चा में बने रहना गधे की आदतों में शुमार नहीं है।गधा कभी भी किसी बात को स्टेटस सिंबल नहीं बनाता। उसे आप किसी भी दिशा में धकेल दो, वह उसी तरफ़ चल देगा और कभी यह नहीं कहेगा कि उसे दक्षिण दिशा में मत मोड़ों, क्योंकि दक्षिणपंथी विचारधारा उसे रास नहीं आती। गधे के ऊपर आप किसी भी विचारधारा का बैनर लटका दो, गधा कभी नाक-भौं नहीं सिकोड़ेगा। गधे के ऊपर आप किसी को भी बिठा दो, गधा कभी खुद को जलील महसूस नहीं करेगा। गधा उसी अलमस्त अंदाज़ में चलेगा, जो अंदाÊा उसे पूर्वजों से विरासत में मिला है।
गधे की एक और ख़ूबी यह भी है कि उसे दुनिया के किसी भी मसले से कोई लेना-देना नहीं है और न ही वह किसी मसले में अपनी टांग अड़ाता है। वह अमरीका की तरह किन्हीं दो मुल्कों के पचड़े में नहीं पड़ता। न किसी की पीठ थपथपाता है और न किसी को धमकाता है। भारतीय क्रिकेट टीम की कमान किस को सौंपी गई है और किस प्रांत के खिलाड़ी को बाहर बिठाया गया है, गधे को इससे भी कोई लेना-देना नहीं है। गधा तो कभी यह राय भी Êाहिर नहीं करता कि फलां खिलाड़ी लंबे अरसे से आऊट ऑफ फॉर्म चल रहा है। उसे टीम में क्यों ढोया जा रहा है? अगर मुल्क की टीम लगातार जीत रही हो, तो गधा ख़ुशी से बलियां नहीं उछलता। अगर टीम लगातार पिट रही हो, तो गधा मैदान में पहुंचकर न तो मैच में विघ्न डालता है, न ख़ाली बोतलें फैंकता है। गधा तो यह शिकायत भी नहीं करता कि अंपायर ने किसी खिलाड़ी को ग़लत आऊट दे दिया है, लिहाÊा अंपायर को बाहर भेजा जाए और नया अंपायर लगाया जाए।
गधा न तो धर्मांध है और न ही सांप्रादायिक। वह किसी मज़हब विशेष का राग भी नहीं अलापता। वह क्षेत्रवाद का हिमायती भी नहीं है। उसके लिए सारी धरा की घास बराबर है। गधे की इच्छाओं का संसार भी बहुत बड़ा नहीं है। उसे न तो मोबाइल चाहिए, न टैलिविजन, न गाड़ी-बंगला, न गनमैन और न ही किसी क्लब की मैंबरशिप। गधा पैग भी नहीं लगाता। उसे तो दो जून का चारा मिल जाए, तो उसी में ख़ुश रहता है। गधे में आपको और क्या-क्या ख़ासियत चाहिएं?
गधा कभी-कभार दुलत्ती तो मारता है, लेकिन किसी को गोली नहीं मारता, बम नहीं फोड़ता। डकैती नहीं डालता, रिश्वत नहीं लेता। बूथ कैप्चरिंग नहीं करता, घोटाले नहीं करता, रात के अंधेरे में कोई ऐसे-वैसे काम भी नहीं करता। फिर गधे को इतना प्रताड़ित क्यों किया जाता है?
गधे पर मैंने कोई फोकट में रिसर्च नहीं की। कितने ही गधों की संगत करने के बाद मैं इस नतीजे पर पहुंचा हूं कि गधा अनुकरणीय तो है ही, प्रात: स्मरणीय भी है। गधे के अपने आदर्श हैं, अपनी फिलॉसफी है। जिंदगी के अपने कुछ मापदंड हैं। गधे को संगत देकर, उसका अनुसरण कर हम एक सभ्य समाज की परिकल्पना को साकार कर सकते हैं। हमारे इस क़दम का गधा कतई बुरा नहीं मानेगा। जब तक गधे को महज़ गधा ही आंका जाएगा, तब तक न तो समाज का भला होने वाला है, न देश का, न दुनिया का और न ‘भाई लोगों’ का।
प्रस्तुति-गुरमीत बेदी
ताऊजी आप के फोटो कोलाज देखकर , मैं हैरान हूँ -- गज़ब करते हैं आप तो
ReplyDeleteगुलाब जामुन कहाँ से मंगवाए गए थे
ये भी बतलाएं
स्नेह,
- लावण्या
मज़ेदार
ReplyDeleteबड़ा बुरा हुआ...ये श्रूपनखा तो गधों की दुश्मन निकली ...बेचारे गधे तो भूखे मर गए होंगे.
ReplyDeleteग़धा तो एक बहाना है.........
ReplyDeleteदेर से पढ़ पाई हूँ...रोचक ,मजेदार पोस्ट.
ReplyDeleteतस्वीरें बहुत ही मजेदार हैं..रामप्यारी तो बहुत ही अच्छी लग रही है.
गुलाब जामुन खाते गधे! हा हा हा!
मनोरंजक!
जो भी ये तस्वीरें बना रहा है उसे शाबाशी..
क्या कलाकारी और कल्पना है!हा हाहा!