श्री दिनेशराय द्विवेदी, जो किसी परिचय के मोहताज नही हैं, आप सभी उनको एक शीर्ष ब्लागर के रूप मे पहचानते हैं। जिनके ब्लाग्स अनवरत और तीसरा खंबा पर वो निरंतरता से लिखते हैं। राजस्थान के कोटा नगर के एक सफ़ल और प्रतिष्ठित वकील हैं। और समाज सेवा और दुखियों की मदद करने मे हमेशा अग्रणी रहते हैं। आप हमारे ताऊ स्टूडियो मे पधारे और हमको एक छोटी सी बातचीत का समय दिया। आपको भी उस बातचीत से रुबरू करवाते हैं। तो आईये द्विवेदी जी आपका ताऊ स्टुडियो में स्वागत है।
श्री द्विवेदी, ताऊ स्टूडियो में ताऊ के साथ बातचीत करते हुये
ताऊ : द्विवेदीजी सबसे पहले तो यह बताईये कि आप कहां के रहने वाले हैं?
श्री दिनेशराय द्विवेदी
ताऊ : तो आप कोटा कब आये?
ताऊ : हमने सुना है कि बचपन में सडक पर कोई लुढकता गर्म लोटा उठाकर आपने हाथ जला लिये थे?
ताऊ : चलिये आपने स्पष्टीकरण पहले ही दे दिया, वर्ना आजकल के जमाने में इस प्रोफ़ेशन के लोगों मे ऐसे लोग कम ही दिखाई देते हैं। अब ये बताईये कि आपको पसंद क्या है?
ताऊ : जी और बताईये।
ताऊ : वाह..! कमाल के लोग हैं आपके शहर के। बिल्कुल आदर्श नागरिक?
ताऊ : अच्छा, यानि बहुत बडा परिवार है आपका?
ताऊ : आप ब्लागिंग का भविष्य कैसा देखते हैं?
ताऊ : आप इसमें कैसे सहयोग करते हैं?
ताऊ : कुछ अपने स्वभाव के बारे मे बताईये?
श्रीमती और श्री दिनेश राय द्विवेदी, पुत्र और पुत्री के साथ
ताऊ : आपकी धर्मपत्नी के बारे मे कुछ बताईये?
ताऊ : ब्लागर्स से मेरा मतलब हिंदी ब्लागर्स से आप कुछ कहना चाहेंगे?
ताऊ : ताऊ साप्ताहिक पत्रिका के बारे में आप क्या सोचते हैं?
जवाब ताऊ का :आपके सवाल के उत्तर में पहले एक सवाल मैं पूछना चाहूंगा कि क्या आप गधे को घोडा बना सकते हैं? आप कहेंगे नही. क्योकि घोडे के लिये उसका पैदायशी घोडा होना जरुरी है फ़िर आप उसको ट्रेनिंग देकर संवार सकते हैं. ठीक इसी तरह ताऊ होने के लिये कुछ पैदायशी ताऊपने के गुण होने चाहिये.
अब आपके सवाल का दूसरा हिस्सा - जहां तक दीक्षा की बात है तो जीवन मे एक से बढकर एक ताऊ मिले हैं और हर ताऊ कुछ ना कुछ सिखा गया. जैसा कि आप भी जानते ही हैं कि यहां ब्लागजगत मे भी मेरे दो गुरु हैं, और ब्लागिंग मे मुझे हर प्रकार की दीक्षा इन दोनों से मिली है. पहले ब्लागिंग कि दीक्षा मिली माननिय गुरुदेव समीरलालजी से और दूसरी दीक्षा मिली आदरणीय गुरुदेव डा. अमरकुमार जी से. इन दोनों का मैं हृदय से आभारी हूं.
तो ये थे हमारे आज के मेहमान दिनेशराय जी द्विवेदी . आपको इनसे मिलकर कैसा लगा? अवश्य बताईयेगा।
ताऊ : द्विवेदीजी सबसे पहले तो यह बताईये कि आप कहां के रहने वाले हैं?
दिनेश जी : राजस्थान के दक्षिण पूर्व में मध्यप्रदेश के गुना, शिवपुरी और श्योपुर जिलों तथा राजस्थान के कोटा और झालावाड़ जिलों से घिरा नगर बाराँ है, जो अब जिला मुख्यालय है वहीं मेरा जन्म हुआ।ताऊ : यानि आपका बचपन वहीं बाराँ में ही बीता?
दिनेश जी : पिता जी अध्यापक, वैद्य और ज्योतिषी, और दादा जी ज्योतिषी, कथावाचक और नगर के एक प्रमुख मंदिर के पुजारी थे। बचपन और किशोरावस्था दादा जी के सानिध्य में मंदिर में ही बीते।
ताऊ : तो आप कोटा कब आये?
दिनेश जी : मैं पहले तो पत्रकार बनना चाहता था। मुंबई पहुँच गया था। लेकिन तब शादी हो चुकी थी। पत्नी को साथ रखना चाहता था। लेकिन लगा कि वहाँ उसे साथ रखने लायक घर लेने की क्षमता पैदा करने में पाँच सात बरस लग लेंगे। मैं छोड़ कर वापस आ गया। साल भर बाराँ में वकालत सीखी और फिर 1979 में कोटा चला आया। तब से यहाँ वकालत में जमा हूँ।
ताऊ : हमने सुना है कि बचपन में सडक पर कोई लुढकता गर्म लोटा उठाकर आपने हाथ जला लिये थे?
दिनेश जी : अरे ताऊजी, वो घटना तो तब की है जब मैं सात बरस का था।ताऊ : क्या हुआ था?
दिनेश जी : बचपन में सब ने सिखाया था कि हर किसी की मदद करनी चाहिए। वैसी ही आदत हो गई। मैं अपने निवास के पास के बाजार से निकल रहा था कि एक दुकान से एक पीतल की इमरती (लोटा) छिटक कर सड़क पर लुढ़की। मैं ने सोचा उठा कर दुकानदार को दे दूँ। जैसे ही उसे उठाना चाहा मेरी उंगलियाँ जल गईँ।ताऊ : ये कैसे हो गया?
दिनेश जी : हुआ यह था कि ठठेरा इमरती (लोटे) को तपा रहा था और वह उस की संसी (संडसी) से छूट कर आई थी। मुझे क्या मालूम कि ये गर्म होगी?ताऊ : फ़िर क्या हुआ?
दिनेश जी : होना क्या था? हाथों में बुरी तरह जलन होने लगी, सो घऱ आ कर छत पर रखी खारिज पानी की मटकी में जलन मिटाने को हाथ देता रहा, लेकिन दादी ने देख लिया।ताऊ : फ़िर?
दिनेश जी : बस अपनी मूर्खता की कहानी बतानी पड़ी। तुरंत मामा वैद्य जी के यहाँ जाना पड़ा, मल्हम लाने के लिए। अभी भी वह खब्त गया नहीं है। कभी-कभी उंगलियाँ जल ही जाती हैं।ताऊ : आपके शौक क्या हैं?
दिनेश जी : खूब पढना, अच्छा ललित, अर्धशास्त्रीय और शास्त्रीय संगीत सुनना, बढ़िया स्वादिष्ट भोजन करना और कॉफी पीना, दोस्तों के साथ मटरगश्ती, खूब बातें और बहस करना, सामाजिक मुद्दों पर समाज में सक्रिय भागीदारी निभाना, फोटोग्राफी, लेखन आदि शौक हैं। जब जिस का अवसर मिल जाता है वही कर लेता हूँ। जब से इंटरनेट मिला है, लिखने का शौक खूब पूरा हो रहा है।ताऊ : सख्त ना पसंद क्या है?
दिनेश जी : ये आप ने खूब पूछा, अब क्या बताऊँ? आप हँसेंगे, और जग भी हँसेगा।ताऊ : फ़िर भी बताईये तो सही?
दिनेश जी : मुझे झूठ सख्त नापसंद है। यदि वह किसी को, किसी निरीह को भारी मुसीबत से बचाने के लिए न बोला गया हो। अब आप पूछेंगे कि मैं वकालत कैसे करता हूँ? तो कह रहा हूँ कि सच बोल कर अधिक अच्छी वकालत की जा सकती है।
ताऊ : चलिये आपने स्पष्टीकरण पहले ही दे दिया, वर्ना आजकल के जमाने में इस प्रोफ़ेशन के लोगों मे ऐसे लोग कम ही दिखाई देते हैं। अब ये बताईये कि आपको पसंद क्या है?
दिनेश जी : किसी के हक की लड़ाई लड़ना बहुत पसंद है।ताऊ : आप काफ़ी अनुभवी हैं, तो कोई ऐसी बात जो आप हमारे पाठको से कहना चाहें?
दिनेश जी : पाठकों से यही कहना चाहूँगा कि जो कुछ भी पढ़ें, उस का आनंद लें और सजग हो कर आलोचनात्मक दृष्टिकोण से पढ़ें। लेखन बहुत अच्छा लगे तो उस की तारीफ करें, लेकिन बहुत अधिक नहीं। कुछ खटके तो अवश्य लिखें और संवाद बनाए रखें, उसे तोड़ें नहीं।ताऊ : हमने सुना है आपने विद्यार्थी जीवन मे कोई हाईड्रोजन बम का विस्फ़ोट कर दिया था?
दिनेश जी : अरे ताऊ आप भी क्यों मजे ले रहे हो? अपनी वो मूर्खता भी आपको बता ही देता हूँ।ताऊ : जी बताईये?
दिनेश जी : ग्यारहवीं में रसायन विज्ञान की प्रायोगिक परीक्षा थी। हाईड्रोजन गैस बनाने का उपकरण तैयार कर, जस्ते और सल्फ्युरिक अम्ल के संयोग से हाइड्रोजन बना कर दिखानी थी। उपकरण सही सही तैयार किया। कीप से अम्ल भी डाला। उस ने जस्ते से क्रिया कर के गैस भी बनाई, जो बनती दिखाई भी दे रही थी। पर वह संकलक में नहीं आ रही थी।ताऊ : अच्छा फ़िर क्या हुआ?
दिनेश जी : मुझे कुछ समझ नहीं आया। फिर जो समझ आया, वह यह था कि उस्ताद तुम बोतल के डट्टों को मोम से सील करना भूल गए।ताऊ : फ़िर क्या किया आपने?
दिनेश जी : किया क्या? हमने झट मोमबत्ती जलाई और लगे टपकाने मोम, डट्टों के जोड़ों पर। पर वहाँ से हाइड्रोजन रिस रही थी। बस क्या था? मोमबत्ती की लौ से संपर्क में आते ही विस्फोट हो गया। धमाके के साथ डट्टा उसमें लगी शीशे की ट्यूबों समेत उड़ा और प्रयोगशाला की छत पर जा चिपका।ताऊ : अरे रामराम..! ये तो बहुत बुरा हुआ? आगे क्या हुआ?
दिनेश जी : सैकंडों में ही दूसरा धमाका हुआ, जो मेरी खोपड़ी के भीतर हुआ था।ताऊ : आपकी खोपडी के भीतर? भई ये क्या हमारी तरह पहेलियां बुझा रहे हैं आप? साफ़-साफ़ बताईये?
दिनेश जी : साफ़-साफ़ ही बता रहा हूं. मुझसे चार फुट दूरी पर ही रसायन विज्ञान के अध्यापक जी खड़े थे। उन्हों ने जोर से सर पर चपत लगाई। उसी चपत का धमाका था, ये दूसरा।ताऊ : ओह.. हम तो डर ही गये थे। फ़िर क्या हुआ?
दिनेश जी : तो अध्यापक जी बोले -मुझे पता था कि ज्यादा होशियार विद्यार्थी जरूर ऐसी बेवकूफियाँ करते हैं, इसलिए पीछे ही खड़ा था। कभी ऐसी बेवकूफी, कहीं काम के दौरान मत कर देना, वर्ना बहुतों की जान ले बेठोगे। तब से किसी भी काम को करने के पहले सावधानियों पर ध्यान देना सीख गया। पर जीवन में फिर भी असावधानियाँ तो होती ही हैं।ताऊ : आपने बताया कि आपका बचपन बाराँ मे बीता। वहां की यादों मे आपको अब क्या दिखाई देता है?
दिनेश जी : ताऊ जी ! आप तो जानते ही हैं कि बचपन की यादें अमिट होती हैं। मैं साफ़ देख पा रहा हूं कि यह बारहमासी छोटी नदी बाणगंगा के किनारे बसा एक छोटा नगर है। जो अपनी अनाज मंडी के लिए प्रसिद्ध है। इस नदी से आधा मील दूर एक और बारहमासी नदी बहती थी। मेरी स्नातक तक की पढ़ाई यहीं हुई।ताऊ : और क्या देख पारहे है इस अतीत में?
दिनेश जी : मैं देख रहा हूं बरसात होते ही बाजारों में पानी तेज नदी की तरह बह रहा है हम बच्चे उस में कागज की नावें छोड़ रहे हैं और उन्हें धार के साथ तेजी से बहते देख खुश हो तालियाँ बजा रहे हैं। जब तक नगर के मुख्य चौराहे पर पाँच-सात फुट पानी न भर जाता, तब तक इस नगर में यह नहीं माना जाता कि इस साल बरसात हुई है।ताऊ : अच्छा..!
दिनेश जी : हां बरसात में दोनों नदियाँ एक हो जाती थीं। जिसे देखने जाया करते थे। नगर के लोग बाढ़ पीड़ितों को सहायता पहुँचाने के लिए सरकार की तरफ न ताकते थे। जब तक पानी न उतरता, और डूब के घरों में खाना न बनता।ताऊ : खाना न बनता? मतलब?
दिनेश जी : मतलब कि उनको खाना शहर वाले ही पहुंचाते थे.ताऊ : वाह! ये तो बहुत गहन भाईचारे की बात हुई? बहुत अच्छा लग रहा है आपके नगर के बारे में जानकर। और बताईये वहां के बारे में।
दिनेश जी : दोनों नदियों के किनारे खूब खजूर के वृक्ष थे, जिन की खजूरें हर तोड़ गिराने वाले के लिए मुफ्त थीं। हर बच्चा स्वतः ही तैरना सीख जाता था। नगर में तीन बड़े मंदिर थे। जिन में से एक में मुझे पन्द्रह साल से अधिक रहने को मिला।
ताऊ : जी और बताईये।
दिनेश जी : अपनी संस्कृति के प्रति नगरवासियों में बहुत अनुराग था। देवशयनी एकादशी से होने वाला यहाँ का डोल मेला खूब प्रसिद्ध है, तो यहाँ के ताजिए भी उतने ही दर्शनीय हैं। दोनों धर्मों के लोग दोनों ही आयोजनों में खूब शरीक होते हैं।ताऊ : यानि काफ़ी सांप्रदायिक सदभाव वाला शहर है वो?
दिनेश जी : जी, बिल्कुल। कभी कोई वैमनस्यता उत्पन्न करने का प्रयत्न करता है, तो उसे मुहँतोड़ जवाब भी देते हैं। एक ही स्थान पर कल्याणराय जी का मंदिर, उस की पीठ से चिपकी मस्जिद, फिर चौक और चौक के उस पार गुरुद्वारा और उत्तर में दाऊदियों की मस्जिद एक ही स्थान पर हैं। जैसे कोई तीर्थ हो।ताऊ : वाह! यह तो बहुत अनुकरणीय है। यानि सभी एक दूसरे के धर्मों की भी कद्र करने वाले हैं?
दिनेश जी : जी बिल्कुल. मेरे घर रामायण पाठ है, तो शब्बर-मियाँ उस का न्यौता देने सब के यहाँ जा रहे हैं और सारी रात नौजवानों की मंडली के साथ रामायण पाठ में मौजूद हैं। शब्बर मियां के यहाँ कुछ है, तो मेरा भाई आयोजन की सफलता में जुटा है।
ताऊ : वाह..! कमाल के लोग हैं आपके शहर के। बिल्कुल आदर्श नागरिक?
दिनेश जी : जी, यहाँ तक कि, शब्बर मियाँ मेरे यहाँ से वाल्मिकी रामायण अपने अब्बा को पढ़ाने को ले जाते हैं, तो मुझे पढ़ने के लिए क़ुरआन का हिन्दी पाठ ला देते हैं। मुझे तो मेरे इस जन्मस्थान से बड़ा कोई तीर्थ नहीं दीखता।ताऊ : यानि यह बडा सुखद रहा कि आपका बचपन एक बहुत ही शानदार जगह गुजरा? अब भी सब वैसा ही है? खासकर वो नदी..? खजूर के पेड..?
दिनेश जी : ताऊ इसी बात का दुःख होता है. यह सोचते हुए कि दोनों नदियाँ अब बारहमासी तो क्या? नदियाँ ही नहीं रहीं। उन्हों ने नालों की शक्ल अख्तियार कर ली है। खजूरों के वृक्ष तलाश करने पर दीख पड़ते हैं। पर खुशी इस बात की है कि अभी भी डोलयात्रा के विमान और ताजिए उसी तरह निकल रहे हैं।ताऊ : आपका, मेरा मतलब आपके पिताजी का संयुक्त परिवार था?
दिनेश जी : आँख खुली तो संयुक्त परिवार ही देखा। दादा जी, उन के भाई, यहाँ तक की चार पीढ़ी ऊपर के रिश्ते के भाई सब एक साथ रहते।
ताऊ : अच्छा, यानि बहुत बडा परिवार है आपका?
दिनेश जी : पर अब सब नौकरियों पर जा जा कर अलग हो गए। नए जमाने ने और रोजगार ने सब को अलग कर दिया। अब संयुक्त परिवार तो सपना भर रह गया है। बच्चे ही एक-एक दो-दो हैं। संयुक्त परिवार तो हमेशा से ही अच्छा और लाभदायक है, हर संकट पूरा परिवार एक साथ रह कर झेल जाता है। लेकिन वह तभी संभव है जब, सब एक नगर या गांव में रह सकें।
ताऊ : आप ब्लागिंग का भविष्य कैसा देखते हैं?
दिनेश जी : बहुत उज्जवल है। यह एक ऐसा माध्यम विकसित हुआ है, जहाँ हर कोई अपनी अभिव्यक्ति के लिए स्वतंत्र है। कुछ भी अभिव्यक्त कर सकता है। यहाँ अनुशासन भी आ लेगा। क्यों कि जो अभिव्यक्ति सामाजिक नहीं होगी, लोग उसे अस्वीकार कर देंगे और ऐसे लोग स्वतः ही नकार दिए जाने के कारण छंट जाएँगे। फिर भी हर तरह के नए लोग आते-जाते रहेंगे।ताऊ : आप कब से ब्लागिंग मे हैं?
दिनेश जी : मैं अक्टूबर 2007 से ब्लागिंग में हूँ।ताऊ : ब्लागिंग में आना कैसे हुआ?
दिनेश जी : मैं ने नेट पर साहित्य तलाशते हुए हिन्दी ब्लागिंग को देखा और टिप्पणियाँ करने लगा। बस एक दिन अनूप शुक्ला जी से कुछ पूछ बैठा था।ताऊ : और उन्होने आपको उकसा दिया होगा?
दिनेश जी : (हंसते हुये...) ये आपने सही पकडा. उन्हों ने मुझे ब्लागिंग के लिए उकसाया, और मैं तो जैसे उकसने को तैयार ही बैठा था। मेरा लेखन वकालत के व्यवसाय की व्यस्तता ने बंद ही कर दिया था। ब्लागिंग ने ही उसे पुनर्जीवित किया है। मेरा ब्लागरी का अनुभव बहुत अच्छा रहा है।ताऊ : आपका लेखन आप किस दिशा मे पाते हैं?
दिनेश जी : बिलकुल सही दिशा है। मनुष्य ने समाज के विकास की अनेक मंजिलें तय की हैं। वह अगली मंजिल की तलाश में है। उस के पास उस के बहुत से मानचित्र हैं, पर अभी कोई अन्तिम नहीं हो रहा है। अभी प्रयोग चल रहे हैं। जिस दिन सही मानचित्र मिल जाएगा, उसी दिन वह विकास की अगली मंजिल में प्रवेश कर जाएगा। सब सक्रिय और ईमानदार लोग उसी की तलाश में हैं। मानचित्र के लिए सब खूब लड़ते हैं, झगड़ते हैं, लेकिन मंजिल एक ही है। जब सही मानचित्र मिल लेगा, तो ये उस पर मकान बनाने के लिए एक साथ जुटे होंगे।ताऊ : क्या राजनीति में भी आप रुचि रखते हैं?
दिनेश जी : जी हाँ, राजनीति में बहुत रुचि है। किशोरावस्था में ही खूब बहसें किया करता था। वास्तव में समाज में कोई भी बड़ा बदलाव राजनीति के बिना ला पाना संभव नहीं है। मनुष्य का कोई भी सामाजिक क्रियाकलाप राजनीति से परे नहीं होता।
ताऊ : आप इसमें कैसे सहयोग करते हैं?
दिनेश जी : मुझे लोगों को संगठित करना और उन के हकों की लड़ाई लड़ाना अच्छा लगता है। वर्तमान की सारी दलदगत राजनीति मौजूदा सत्ता की राजनीति है।ताऊ : इसमे जनता का क्या रोल है?
दिनेश जी : बहुत ज्यादा, बल्कि कहना चाहिये कि मुख्य रोल ही जनता का है। जनता खुद अपने संगठनों में संगठित नहीं है। जब वह अपने संगठनों में संगठित हो लेगी, और अपने निर्णय अपने सामूहिक हितों को देख कर लेने लगेगी, तो नई और सही राजनीति विकसित होगी। आज ही मुझे एक मेल मिला है जिस में दिल्ली में किसी एक वार्ड को अनेक भागों में बाँट कर वहाँ के मतदाताओं को संगठित करने के प्रयास का उल्लेख है। यह सही राजनीति है। ऐसा ही करने को मैं भी अपने मित्रों के साथ प्रयत्नशील रहा हूँ और अनेक संगठन बनाए हैं। लेकिन मूलतः प्रवृत्ति सांस्कृतिक होने से सांस्कृतिक संगठनों में सक्रिय रह पाता हूँ।
ताऊ : कुछ अपने स्वभाव के बारे मे बताईये?
दिनेश जी : सामान्यतः शांत और सहयोगी हूँ और कुछ मजाहिया भी, पर सब की मजाक करने के पहले खुद की मजाक बनानी पड़ती है। लोग कहते हैं, मुझे कभी कभी जोर गुस्सा का आता है, लेकिन केवल मिनटों के लिए। मेरे एक दिवंगत बुजुर्ग वकील साथी शरीफ मोहम्मद जी तो अक्सर कहते थे -आप को गुस्से में देखे बहुत दिन हो गए। और मैं कहता क्या मुझे गुस्सा भी आता है? वे कहते -देखने लायक होता है।
ताऊ : आपकी धर्मपत्नी के बारे मे कुछ बताईये?
दिनेश जी : मेरी पत्नी 'शोभा', बहुत अच्छी गृहणी हैं। जिन्हों ने हर कष्ट और खुशी में मेरा साथ दिया है। हमारे घर, परिवार को संवारा है। मुझे एक पुत्री और पुत्र का पिता बनने का सौभाग्य दिया है। दोनों बच्चों को भले संस्कार दिए हैं,उन्हें योग्यतम बनाने और अपने पैरों पर खड़ा करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। हर किसी की, हर संभव मदद करने को तैयार रहती हैं।
ताऊ : ब्लागर्स से मेरा मतलब हिंदी ब्लागर्स से आप कुछ कहना चाहेंगे?
दिनेश जी : मैं तो यही कहना चाहता हूँ कि यदि आप बेईमान हैं और किसी खास इरादे से ब्लागरी में ब्लागर या पाठक के रूप में मौजूद हैं तो मुझे कुछ नहीं कहना है। लेकिन यदि मानव समाज को बेहतर मंजिल में ले जाना हमारा ईमानदार उद्देश्य है, तो उस के लिए ईमानदारी से कृतियों का सृजन करें। सब को मित्र समझें। वाद-विवाद अवश्य करें लेकिन आपस में वैमनस्य न बढ़ाएँ। भाषा को ऐसा बनाए रखें कि उस के कारण कोई अपमानित न हो, न महसूस करे।ताऊ : ताऊ पहेली के बारे मे आप क्या कहना चाहेंगे?
दिनेश जी : अरे! बहुत मजेदार है, और लोगों का ज्ञान बढ़ा रही है। बस इस में ये टाइम वाला लोचा है। हम अक्सर उसी में पिछड़ जाते हैं। पर लोचा ठीक है किसी तरह तो प्रथम का चुनाव करना पड़ेगा। हमें रामप्यारी की पहेलियाँ भी खूब पसंद हैं। गणित के सवाल करने में तो बहुत मजा आता है।ताऊ : अक्सर पूछा जाता है कि ताऊ कौन? आप क्या कहना चाहेंगे?
दिनेश जी : वो तो हम जानते हैं, लेकिन बताएँगे नहीं। वरना सारा मजा चला जाएगा। वैसे ताऊ वो, जो बिना बात भी मजमा लगा ले!
ताऊ : ताऊ साप्ताहिक पत्रिका के बारे में आप क्या सोचते हैं?
दिनेश जी : बहुत सुंदर पत्रिका है। पढ़ने को समय चाहती है। ब्लाग पाठक अधिक देर रुकता नहीं है। मैं तो फुरसत में पढ़ता हूँ उसे।ताऊ : अगर आपको भारत का कानून मंत्री बना दिया जाये तो आप क्या करना चाहेंगे?
दिनेश जी : बहुत मजाहिया सवाल है। आप वो पूछ रहे हैं जो हो नहीं सकता। फिर भी ऐसा हो जाए तो सब से पहले प्रधानमंत्री को कहूँगा कि सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट में जजों की संख्या दुगनी करने के लिए पंचवर्षीय योजना बनाइए। योजना बन जाने पर उसे तत्परता से लागू करने का प्रयत्न करूंगा। राज्यों के मुख्यमंत्रियों को बुला कर कहूँगा कि वे भी पाँच सालों में अधीनस्थ न्यायालयों की संख्या कम से कम चार गुना करने की पंचवर्षीय योजना बनाएँ और उसे हर हालत में लागू करें। ऐसी हालत हो कि कोई भी मुकदमा दो वर्ष से अधिक किसी अदालत में लम्बित नहीं रहे। मुकदमों के निपटारे में देरी से देश में अराजकता फैल रही है और राज्य और उस के न्याय पर से विश्वास उठ जाने के कारण आतंकवाद, नक्सलवाद और विभाजनवाद को पनपने का अवसर प्राप्त होता है। साथ ही देश में अपराध तेजी से बढ़ते जा रहे हैं। इन सब को रोकने में इस से मदद मिलेगी।अंत मे " एक सवाल ताऊ से"....
सवाल दिनेश जी का : मुझे तो एक बात बता दीजिए कि आप पैदायशी ताऊ हैं या ताऊपने की किसी से दीक्षा ली है? दीक्षा ली तो वो गुरू कौन है?
जवाब ताऊ का :आपके सवाल के उत्तर में पहले एक सवाल मैं पूछना चाहूंगा कि क्या आप गधे को घोडा बना सकते हैं? आप कहेंगे नही. क्योकि घोडे के लिये उसका पैदायशी घोडा होना जरुरी है फ़िर आप उसको ट्रेनिंग देकर संवार सकते हैं. ठीक इसी तरह ताऊ होने के लिये कुछ पैदायशी ताऊपने के गुण होने चाहिये.
अब आपके सवाल का दूसरा हिस्सा - जहां तक दीक्षा की बात है तो जीवन मे एक से बढकर एक ताऊ मिले हैं और हर ताऊ कुछ ना कुछ सिखा गया. जैसा कि आप भी जानते ही हैं कि यहां ब्लागजगत मे भी मेरे दो गुरु हैं, और ब्लागिंग मे मुझे हर प्रकार की दीक्षा इन दोनों से मिली है. पहले ब्लागिंग कि दीक्षा मिली माननिय गुरुदेव समीरलालजी से और दूसरी दीक्षा मिली आदरणीय गुरुदेव डा. अमरकुमार जी से. इन दोनों का मैं हृदय से आभारी हूं.
तो ये थे हमारे आज के मेहमान दिनेशराय जी द्विवेदी . आपको इनसे मिलकर कैसा लगा? अवश्य बताईयेगा।
Bahut Badhiya laga..dinesh ji ke bare me jaankar..unaki lekhani,vichar dhara hamesha logo ka margdarshan karati rahati hai..
ReplyDeletebadhayi ho aise helpful shaks ko..
badhayi..
दो धमाकों वाली बात मजेदार रही. धड़ाम से मजा आया:)
ReplyDeleteचलिये बहुत दिनों से इनके बारे में उत्सुकता थी, काफी कुछ जान लिया. आपका आभार.
वैसे वकील को झूठ से नफरत!! हा हा हा हा
हो भी सकती है जी. फोटो दो चार और होनी चाहिए....
बहुत अच्छा लगा द्विवेदी जी के बारे में जानकर। बधाई।
ReplyDeleteदिनेश जी के बारे में बकलमखुद में भी पढ़ रहे थे ..यहाँ उनके बारे में जान कर और भी अच्छा लगा .शुक्रिया
ReplyDeleteBAHOOT HI ACHHA LAGA DINESH RAY JI SE MIL KAR AUR UNKE BAARE MEIN JAAN KAR ... KARMATH AUR SAFAL INSAAN SE MIL KAR, UNKE JEEVAN KO JAAN KAR BAHOOT KUCH SEEKHA JAA SAKTA HAI ....
ReplyDeleteगर्म लौटे से हाथ जलाने वाली बात का अभी से संबंध जोडना वकील साहब की सहृदयता को उजागर करता है. बहुत बधाई.
ReplyDeleteरसायन विज्ञान की प्रयोगशाला का किस्सा बडा मनोरंजक रहा। परिचय करवाने के लिये बहुत बहुत आभार ताऊजी।
ReplyDeleteरसायन विज्ञान की प्रयोगशाला का किस्सा बडा मनोरंजक रहा। परिचय करवाने के लिये बहुत बहुत आभार ताऊजी।
ReplyDeletebahut badhiya raha vakil sahab se milana. abhar.
ReplyDeleteकील साहव बहुत ही सुलझे हुये व्यक्तित्व के धनी लगे. बहुत शुभकामनाएं.
ReplyDeleteकील साहव बहुत ही सुलझे हुये व्यक्तित्व के धनी लगे. बहुत शुभकामनाएं.
ReplyDeleteआनन्द आ गया वकील साहब से आपकी अंतरंग बातचीत सुनकर. बहुत कुछ नया जाना उनके व्यक्तित्व के बारे में.
ReplyDeleteताऊ के गुरु होने से गौरवांवित हैं. :)
द्विवेदीजी से मिलना बडा सुखद लगा. उनको बहुत शुभकामनाएं और आपका बहुत आभार।
ReplyDeleteद्विवेदीजी से मिलना बडा सुखद लगा. उनको बहुत शुभकामनाएं और आपका बहुत आभार।
ReplyDeleteपेशे से अधिवक्ता, लेकिन झूठ से नफरत!
ReplyDelete"श्री दिनेशराय द्विवेदी" से मिल कर अच्छा लगा।
वकील साहब को बधाई।
ताऊ को धन्यवाद!
बहुत अच्छा लगा द्विवेदी जी के बारे में जानकर। इन के बारे इन के लेखो से भी बहुत पता लग जाता है, असल मै यह तो हमारे दिल् मे बसे है, आप के लेख से इन के बारे ज्यादा जानकारी मिली.
ReplyDeleteधन्यवाद
ताऊ श्री !
ReplyDeleteदिनेश जी को पढ़ते तो रहते है पर आज उनसे यहाँ मिलकर बहुत अच्छा लगा ,साथ ही उनका यह सन्देश भी बहुत बढ़िया लगा
दिनेश जी : मैं तो यही कहना चाहता हूँ कि यदि आप बेईमान हैं और किसी खास इरादे से ब्लागरी में ब्लागर या पाठक के रूप में मौजूद हैं तो मुझे कुछ नहीं कहना है। लेकिन यदि मानव समाज को बेहतर मंजिल में ले जाना हमारा ईमानदार उद्देश्य है, तो उस के लिए ईमानदारी से कृतियों का सृजन करें। सब को मित्र समझें। वाद-विवाद अवश्य करें लेकिन आपस में वैमनस्य न बढ़ाएँ। भाषा को ऐसा बनाए रखें कि उस के कारण कोई अपमानित न हो, न महसूस करे।
हमारे भी यही विचार है फिर भी हमने तो इस सलाह की गांठ बांद ली है पूरा अमल करेंगे :)
"मुकदमों के निपटारे में देरी से देश में अराजकता फैल रही है और राज्य और उस के न्याय पर से विश्वास उठ जाने के कारण आतंकवाद, नक्सलवाद और विभाजनवाद को पनपने का अवसर प्राप्त होता है।"
ReplyDeleteबात में बहुत दम है. न्याय में देरी भी एक किस्म का अन्याय ही है. अगर इसके साथ भ्रष्टाचार का खात्मा करने की दिशा में भी कुछ काम हो तो फिर सोने में सुहागा.
वार्ता पढ़कर बहुत अच्छा लगा.
बहुत सुन्दर प्रस्तुति. दिनेश जी हमारे ब्लॉग जगत के कर्णधारों में से हैं. बड़ी ही सुलझी हुई सोच. उनसे सीखने के लिए बहुत कुछ है. आभार
ReplyDeleteद्विवेदीजी से मुलाकात बहुत अच्छी रही। शुक्रिया।
ReplyDeleteद्विवेदी जी मिलकर अच्छा लगा। लोटे वाला और लेब वाला किस्सा मजेदार रहा। और काफी कुछ जान गए द्विवेदी जी के बारें में।
ReplyDeleteबहुत सुलझी सोच लिए हुवे सहृदय व्यक्तित्व
ReplyDelete"श्री दिनेशराय द्विवेदी जी से परिचय का बहुत धन्यवाद !!!
द्विवेदी जी से आपका ये वार्तालाप बहुत बढिया रहा....कुछ कुछ जानने को मिला उनके बारे में,उनके विचारों के बारे में....हमें तो वें उम्दा सोच के धनी व्यक्तित्व लगे!!!!
ReplyDeleteपरिचय्नामा में दिनेश जी को देखकर किंचित आश्चर्य ही हुआ -क्योंकि वे किसी परिचय के मुहताज नहीं है ! हाँ ,ताऊ ने कई नयी जानकारियाँ जरूर उगलवा ली ! लाठी के दर से या अपनी सहज घुड़की से यह तो उभय पक्ष ही जानता होगा !
ReplyDeleteश्री दिनेशराय द्विवेदी जी का परिचय पाकर बहुत अच्छा लगा. प्रसन्नता आैर बढ़ गई यह जानकर कि दिनेश जी सांझी विरासत जीते आए हैं.
ReplyDeleteलोटे वाला किस्सा सुन कर लोटन लागे
ReplyDeleteधड़ाम वाला सुन बजने
वकील वाला सुन सजने
वैसे जब हम मिले थे
तो इतनी बात नहीं कर पाये थे
मिलने से ज्यादा तो अब जान गये
ताऊ जी इसीलिए तो महान हैं
जो इंसान को उसकी संपूर्ण इंसानियत के साथ
पेश कर देते हैं।
ताऊजी आज किसी भी ब्लाग पर नहीं आ पायी मेल देखने के लिये अभी कम्प्यूटर खोला तो पता नहीं कैसे आपके ब्लाग पर ही पहुँच गयी यहां दिवेदी जी को देखा तो बिना कम्मेण्ट दिये कैसे जा सकती थी। इनका मैं सब से अधिक सम्मान करती हूँ। इनका अनवरत पीछे से पूरा पढा शब्द नहीं हैं मेरे पास उनकी तारीफ के लिये अब बकलम्खुद पढ रही हूँ । और हैरान हूँ इनकी लेखन प्रतिभा पर । बहुत अच्छा लगा इनका पूरा परिचय। देवेदी जी को शुभकामनायें और आपका आभार्
ReplyDeleteद्विवेदी जी का एक और पक्ष आज पढने देखने को मिला..बहुत सी नयी बातें भी पता चली...लोटा गरम गरम पकड लिया था बचपन में...ब्लोग्गिंग की शुरूआत बिल्कुल उसी समय की थी जब हमने की थी..इस लिहाज़ से तो ब्लोग फ़ेलो हुए हमारे...और वैसे भी वकील हैं और हम कोर्ट वाले..तो कलीग भी हो गये..ताऊ..आपके इस साक्षात्कार से कितनी ही विभूतियां इतिहास में दर्ज़ हो रही हैं...
ReplyDelete-दिवेदी जी का साक्षात्कार पढ़ा उनके बारे में जाना.
ReplyDeleteकानूनी जानकारी देने वाला उनका ब्लॉग हिंदी ब्लॉग जगत में अपने आप में एक मिसाल है.
उनके शहर और वहां के आपसी भाईचारे से मिल कर rahne wali बात प्रशंसनीय है.
-चित्र dwara उनके परिवार से भी परिचय हुआ.
-आभार.
-[ताऊ जी के स्टूडियो की तस्वीर जबरदस्त है]
'आपको इनसे मिलकर कैसा लगा? अवश्य बताईयेगा।' अब आजकी मुलाकात में भी ये बताने की जरुरत है क्या?
ReplyDeleteवैसे देखा जाये तो हर ब्लोगर का एक उद्देश्य ये तो होता ही है, कि वह अपने फ़न का मुज़ाहिरा कर सके नेट के सहारे, जहां कोई रेजेक्शन नहीं सभी सेलेक्शन होता है.
ReplyDeleteमगर ये भी समाज, साहित्य और देश की प्रगति का एक हिस्सा ही तो है.
Dineshji ka blog to mai aksar dekhti rahti hu par aaj unke baare mai jaan ke achha laga...
ReplyDeleteDinesh ka blog to aksar dekhti rahti hu...per aaj unke baare mai janna achha laga...
ReplyDeleteउनसे मुलाकात हो चुकी है और वैसा ही पाया था जैसा आज आपने बताया है।बहुत सीधे,सरल और सच्चे इंसान,वकील बाद मे।
ReplyDeleteदिनेश जी को करीब से जानना अच्छा लगा....
ReplyDeleteबहुत अच्छा लगा द्विवेदी जी के बारे में जानकर। बधाई।
ReplyDeleteदिनेशजी राय द्विवेदी जैसे व्यक्तित्व से आपके ब्लॉग के माध्यम से मिलकर बहुत अच्छा लगा..जैसा सौम्य गंभीर लिखते है..वैसा ही इनका चरित्र भी है..बारां शहर के साम्रदायिक सौहार्द्र से भरे माहौल के बारे में जानना सुखद रहा.. साक्षात्कार रोचक रहा..ताऊ का बहुत आभार..!!
ReplyDeleteदिनेश जी के बारे में बहुत कुछ जानने को मिला! बहुत बढ़िया पोस्ट! दिनेश जी और आपको शुभकामनायें!
ReplyDeleteद्विवेदी जी मिलकर अच्छा लगा।....
ReplyDeleteद्विवेदी जी से संबंधित कुछ और बातों से परिचित कराया आपने।
ReplyDeleteआभार
बी एस पाबला
आदरणीय द्विवेदी जी के बारे में जानकारी बेहद रोचक रही, उनका परिचय और उनका व्यक्तित्व आदरणीय और सम्मानजनक है उन्हें और उनके परिवार को बहुत शुभकामनाएं
ReplyDeleteregards
वाह भई!!! यह है कुछ जानी-अनजानी सी बातें...
ReplyDeleteअच्छी है यह मुलाकात...
मीत
बढ़िया मुलाकात रही।
ReplyDeleteघुघूती बासूती