आज हम आपको मिलवाते हैं एक ऐसी जिंदादिल शख्स से, जो किशोरवय जैसी चंचलता और प्रोढ जैसी गंभीरता रखती है. जो कहानी भी लिख लेती है, एक भावुक कविता भी लिख सकती है. यानि हास्य व्यंग से लेकर मार्मिक रचनाएं तक आसानी से लिख लेती हैं. तो आईये आपको रुबरू करवाते हैं लहरे ब्लाग वाली पूजा उपाध्याय से. बंगलौर स्थित उनके घर पर नाश्ते के दर्म्यान हमारी यह मुलाकात हुई.
ताऊ : हां तो पूजा जी..
पूजा : ताऊ एक मिनट...पूजा जी नही सिर्फ़ पूजा ..और मुझे भी सिर्फ़ ताऊ कहने दिजिये. ये ज्यादा ठीक रहेगा?
ताऊ : चलिये ये भी ठीक है पूजा. तो अब सबसे पहले अपने बारे ही कुछ बताईये?
पूजा उपाध्याय : हूं...अपने बारे में.....यही की .. सिर्फ़ आजाद ख्यालो वाली मनमौजी हूँ, आसमान में उड़ना पसंद है मगर जमीन से भी जुड़ी हुयी हूँ.
ताऊ : आज के समय मे नारी के बारे मे आपकी सोच क्या है?
पूजा : समाज में लड़की जगह, उसके सपने उसके सवालों को लेकर परेशान रहती हूँ, और अपने तरफ से जो बनता है करने की कोशिश करती हूँ, चाहे वो सिर्फ सवाल करना ही क्यों न हो.
ताऊ : आप दो पंक्तियों मे खुद को कैसे अभिव्यक्त करेंगी?
पूजा : हूं.. भटकना बहुत पसंद है, नयी जगहों और पुरानी यादों में. बचपन से लिखने का शौक़ रहा, जैसी हूँ वैसी दिखती हूँ, वैसा लिखती हूँ...कतरब्योंत करना नहीं आया. शकल भी ऐसी है कि सारे भाव नज़र आ जाते हैं. बहुत ही unpredictable लड़की के रूप में जानते हैं दोस्त मुझे, कभी भी कुछ भी कर सकती है types (हंसते हुये..)
ताऊ : आप कहां की रहने वाली हैं?
पूजा : कहा से हूँ ये थोड़ा मुश्किल सवाल है, खास तौर से बिहार झारखण्ड अलग हो जाने के कारण...बहुत बार समझ में नहीं आता कहाँ की हूँ...दोनों राज्यों का बराबर हक है मुझपर. देवघर, झारखण्ड में स्कूल की पढाई पूरी की, कॉलेज पटना में ६ साल के दौरान और फिर पोस्ट graduation के लिए दिल्ली गयी तो लगा कि यहीं की हूँ.
ताऊ : ये तो आपने पूरा इतिहास बता दिया. एक शब्द मे आप किस राज्य से हैं?
पूजा : वैसे बोल चाल में अपने को ठेठ बिहारी कहते हैं और मानते भी हैं.
ताऊ : हां ये हुई ना बात. अब आप अपनी जिंदगी का कौन सा दिन सबसे खुबसूरत मानती हैं?
पूजा : कॉलेज से graduation के बाद तीन जगहों के फॉर्म भरे थे आगे पोस्ट graduation के लिए, इसमें दो जगह का रिजल्ट आ चुका था और नहीं हुआ था, तो परेशान थी, इसी बीच भाई का भी इंजीनियरिंग का रिजल्ट आने वाला था, एक रिजल्ट उसका भी ख़राब आया था बहुत चिंता हो रही थी कि क्या होगा?
ताऊ : अच्छा फ़िर आगे क्या हुआ?
पूजा : फिर १३ जुलाई को सुबह झारखण्ड इंजीनियरिंग का रिजल्ट आया, जिमी (मेरा भाई) की बहुत अच्छी रैंक आई थी..उसी दिन दोपहर में मेरा भी रिजल्ट आ गया...मेरा admission हो गया था IIMC में. वो दिन मेरी जिंदगी का सबसे खूबसूरत दिन था.
ताऊ : आपके शौक क्या क्या हैं?
पूजा : कविता लिखना, किताबें पढना, गाने गाना-सुनना, घूमना...खास तौर से पुरानी जगहें, किले मकबरे वगैरह. तेज़ रफ़्तार गाड़ी चलाना...बारिश में भीगना...पैदल चलना...लोगों से बातें करना...माउथ ओरगन बजाना...पेंटिंग करना, हाट बाज़ारों में खरीददारी करना या ऐसे ही घूमना. फोटोग्राफी.
ताऊ : कुछ ऐसा भी है जो आपको खास नापसंद हो?
पूजा : तानाशाही...नियम. किसी का भी मनमानी करना, चाहे वो समाज हो, पुलिस हो या तथाकथित समाज के ठेकेदार. लोगों का बिन मांगे सलाह देना और उम्मीद करना कि मैं मान लूंगी. stereotypes...किसी ढांचे में बंधना नहीं पसंद है.
ताऊ : यानि अपनी निजता आपको ज्यादा पसंद है?
पूजा : हां ऐसा भी कह सकते हैं आप...अपनी स्वतंत्रता बहुत पसंद है मुझे, और लोग जब मेरे हंसने बोलने, पहनने ओढ़ने में टोका टाकी करते हैं तो बहुत चिढ़ जाती हूँ. किसी के हिसाब से कुछ करना पसंद नहीं है, जब तक मेरा मन ना हो कुछ नहीं करती. नियम तोड़ने में खास मज़ा आता है.
पूजा भाई जिमी को राखी बांधते हुये
ताऊ : आपको विषेष रुप से क्या पसंद है?
पूजा : पापा का सर पे हाथ रखना, मम्मी की चिट्ठियां पढ़ना, जिमी (मेरा छोटा भाई) से बात करना... कुणाल से गप्पें मरना, दोस्तों को कविता सुना कर फ़ोन पर पकाना,
ताऊ : और..
पूजा : ताऊ अभी सुनते जाईये..अभी लिस्ट लंबी है....जेएनयू की गलियां, पुरानी दिल्ली के किले इसके अलावा..पढ़ना...अच्छे लोगों से मिलना...जिंदगी को करीब से देखना, लोगों को हँसाना. डूबता सूरज देखना, ऊंची जगह पर खड़े होकर गहराई देखना. किताबें खरीदना...तेज़ रफ़्तार बाईक के बारे में पढ़ना. अपना ऑफिस, यहाँ के लोग. देवघर का मेरा घर...शीशम के पेड़. पुरानी पीले पन्नो वाली किताबें...मीठा खाना...मेरे दोस्त...मेरा बंगलोर का घर, कई सारी विंड chimes...बहुत कुछ है जो पसंद है, सब कुछ तो नहीं बता सकती ...वर्ना आपका पन्ना कम पड़ जाएगा.
ताऊ : हमारे पाठकों को कुछ कहना चाहेंगी?
पूजा : हां... ब्लाग पर इतने लोग आते हैं, पढ़ते हैं, कमेन्ट करते हैं, बहुत अच्छा लगता है...बस कभी कभी लगता है की कमेन्ट करना कोई बंदिश तो नहीं बन गयी है..मेरे ख्याल से इसकी जरूरत नहीं है...कुछ पढ़ा उसके बाद कुछ कहने का मन करे तो कमेन्ट कीजिये, नहीं करे तो बस पढ़ कर खुश हो जाइए...उतने भर में मेरा लिखना सार्थक होजाता है.
ताऊ : आपके जीवन का कोई यादगार लम्हा?
पूजा : IIMC में १५ अगस्त के प्रोग्राम पर वन्दे मातरम पर ग्रुप डांस किया था हमने. क्लास के बाद बहुत सारे assignments रहते थे उन्हें पूरा करते रोज़ बारह बज जाते थे रात को प्रक्टिस करते थे.
ताऊ : जी..आगे बताईये ?
पूजा : हमको बहुत चिंता हो रही थी कि ठीक से हो पायेगा कि नहीं...इतना टाइम नहीं मिला था कि कपड़े खरीद सकें. तो हमने सफ़ेद सलवार कुरता पहनने का निर्णय लिया था, पूरे हॉस्टल में ढूंढ कर कहीं से कुरता जुगाड़ा तो कहीं से सलवार, किसी का दुपट्टा उधार माँगा...सुबह सुबह जो हंगामा मचा था तैयार होने के समय कि लगता था डांस ही नहीं हो पायेगा.
ताऊ : अच्छा ..फ़िर क्या हुआ?
पूजा : पर डांस के बाद देर तक तालियाँ बजती रहीं, standing ओवेशन मिला था हमें. वो लम्हा जब हम सब स्टेज पर खड़े थे और चारो और से वंस मोर का हल्ला हो रहा था...रोंगटे खड़े हो गए थे पूरे ग्रुप के.
ताऊ : हमने सुना है कि आपने खुराफ़ाते भी बहुत की हैं?
पूजा : हा ताऊ, खुराफातें बहुत की हैं, एक बार छह बजे सुबह साइबर कैफे खुलवा कर प्रिंट निकलवाया है...तो कई बार रात के दस बजे हॉस्टल बंद होने कि डेड लाइन के चलते दौड़ते हुए हॉस्टल तक आये हैं.
ताऊ : कभी रात भर होस्टल से बाहर तडी भी लगाई कि नही?
पूजा : ताऊ बस एक यही अरमान कभी पूरा नहीं हुआ, हॉस्टल कि बालकोनी से कूद कर नाईट आउट मरने का मन था...अफ़सोस कभी मौका ही नहीं आया.
ताऊ : आपका गांव कहां है?
पूजा : मेरा गाँव सुल्तानगंज के पास है, घर से कोई ३ किलोमीटर पर ही गंगा बहती है.
ताऊ : गांव से जुडी बचपन की यादों मे क्या है?
पूजा : बहुत कुछ बल्कि कहुंगी कि सब कुछ याद है....गाँव की यादों में पुआल बिछा कर सोना, रात को आँगन से तारो भरा आसमान देखना, कच्चा आम चुराना, किसी और के खेत से चना का झाड़ उखाड़ कर रास्ते भर चना खाना जैसी यादें हैं.
ताऊ : और क्या क्या याद है?
पूजा : गाँव शुरू होते ही शिवालय है जहाँ दादी हमारा इंतज़ार करती थी होली के करीबी दिनों में... गाँव में एक ही मीठे पानी का कुआँ है जिसको बड़ा इनारा कहते हैं. शादी ब्याह में जब पूरा घर जुटता है तो बड़ा मज़ा आता था, रात भर तकिया की छीना झपटी चलती थी. सुबह सरोता लेकर निकल जाते थे, खजूर की दतवन तोड़ने...सबके लिए दतवन ले के आते थे.
ताऊ : अक्सर मैने देखा है कि हर गांव मे कहीं ना कहीं भूत और डायन जरुर होती है,, क्या आपके गांव मे भी ऐसा कुछ था?
पूजा : अरे वाह ताऊ..ये बढिया याद दिलाया. हमारा गांव अपवाद कैसे हो सकता है? मंदिर के थोड़ा आगे एक पीपल का पेड़ है जिस पर भूत रहता है, और डायन भी इसलिए वहां से गुजरते हुए सुई धागा बोलना जरूरी होता है और पीछे मुड़ कर देखना मना है वरना भूत पकड़ लेगा.
ताऊ : क्या कभी भूत या डायन ने वहां पकडा?
पूजा : मैं बिना सुई धागा बोले वहां से निकली ही नही...तो मुझे वो कैसे पकडते? (हंसते हुये...)
ताऊ : और क्या याद है गांव से जुडी हुई?
पूजा : ताऊ..आज आपने कुरेद दिया तो सिनेमा की रील जैसी यादें चल रही हैं दिमाग मे. इसके अलावा गाँव में एक पुराना संदूक हुआ करता था जिसमें पापा के बचपन की कॉपी वगैरह थी...उसमे से खजाना निकालना बड़ा पसंद था.
ताऊ : क्या आपका संयुक्त परिवार था?
पूजा : नहीं, मेरे परिवार में हम चार लोग थे, पापा, मम्मी मेरा भाई जिमी और मैं...वैसे घर में होली या राम नवमी पर जब सब लोग आते थे तो कभी नहीं लगता था कि संयुक्त परिवार नहीं है...पर चूँकि सब एक जगह नहीं रहते तो परिवार संयुक्त परिवार की श्रेणी में नहीं आता, हालाँकि हमेशा कोई न कोई रहता ही था साथ में.
ताऊ : यानि आपने संयुक्त परिवार को कभी मिस नही किया?
पूजा : सही बात यह है ताऊ कि पहले कभी संयुक्त परिवार पर ध्यान नहीं गया...पर अब मम्मी के नहीं होने के कारण पापा अकेले रह रहे हैं, मैं और भाई दोनों अलग है...अब लगता है कि एक जगह सब रहते तो पापा ऐसे अकेले तो नहीं रहते.
ताऊ : संयुक्त परिवार के बारे मे आपकी राय क्या है?
पूजा : ताऊ, मुझे लगता है कि शादी के दो तीन साल अलग रहना जरूरी है ताकि आपसी समझ विकसित हो सके...उसके बाद बड़ा सा परिवार हो तो जिंदगी बेहतरीन और खुशहाल होती है. पर संयुक्त परिवार में रहना मुश्किल है क्योंकि हर व्यक्ति अलग जगह नौकरी के कारण रहता है.
ताऊ : ब्लागिंग के बारे में क्या कहेंगी?
पूजा : अभी ब्लॉग्गिंग अपने शैशव में ही है, बहुत लोगो के मन में ब्लॉग्गिंग को लेकर गलत धारणाएं हैं...अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को पूरी तरह एक्सेप्ट करने लायक समझ लोगों में अभी नहीं आई है.
ताऊ : यानि?
पूजा : ब्लॉग एक दूसरे तरह का माध्यम है, और इसे समझने में लोगों को वक़्त लगेगा...ब्लॉग्गिंग में सबसे महत्वपूर्ण है कि व्यक्ति जो लिखना चाहे लिख सकता है...इस स्वांत सुखाय धारणा को गलत रंग दिया जाता है. ब्लॉग पर लिखना इसलिए होता है क्योंकि यह सुलभ माध्यम है...अनजाने पाठक ये समझ लेते हैं कि ये उनके लिए लिखा जा रहा है...ऐसा होना नहीं चाहिए.
ताउ : आप क्या उम्मीद करती हैं?
पूजा : उम्मीद है ब्लॉगजगत लेखक की महत्ता को समझेगा...और इसे एक अभिव्यक्ति का जरिया मानेगा.
ताऊ : आप ब्लागिंग मे कब से हैं ?
पूजा : मैं २००५ से ब्लॉग्गिंग में हूँ...IIMC में पढ़ते वक़्त इस नए माध्यम के बारे में पता चला था, थोडी रिसर्च करके अपना ब्लॉग बनाया था...अहसास. उस वक़्त लिखना बस लिखने के लिए होता था, कमेन्ट नहीं आते थे आज की तरह. लिखना अच्छा लगता था तो लिखती थी. मनीष (एक शाम मेरे नाम) का कमेन्ट आता था पहले...लिखना नियमित नहीं था...जब वक़्त मिला लिख लेते थे.
ताऊ : फ़िर नियमित कैसे हुई आप ब्लागिंग में?
पूजा : कॉलेज ख़त्म होने के बाद लहरें पर लिखना शुरू किया, सोचा था इस पर अंग्रेजी में लिखूंगी...या ऐसा कुछ जो कवितानुमा न हो...पर धीरे धीरे इस पर लिखना ज्यादा हो गया.
ताऊ : जी..आगे बताईये.
पूजा : चिट्ठाजगत के बारे में गूगल सर्च से पता चला...अपना रिजल्ट देखने के लिए गूगल में अपना नाम सर्च किया था, तो चिट्ठाजगत के पन्ने खुल गयी... बड़ी ख़ुशी हुयी थी की भैय्या अब तो हमारा भी नाम हो गया, कोई हमें ढूंढेगा तो हम गूगल में मिल जायेंगे.
ताऊ : अब तक का कैसा अनुभव रहा ब्लागिंग में?
पूजा : अब तक का ब्लॉग्गिंग का अनुभव बहुत अच्छा रहा, कई अच्छे लोग मिले और बहुत कुछ अच्छा पढने को मिला. ब्लॉग के माध्यम से जिंदगी को करीब से देखने का मौका मिलता है...ऐसे कई लोगों के विचार जाने जिनसे शायद कभी भेंट नहीं होती...या होती भी तो बात नहीं होती.
ताऊ : आप खुद के लेखन को किस दिशा मे पाती हैं?
पूजा : किसी खास दिशा में नहीं पाते हैं...हाल तो वही है...
हम भी दरिया हैं हमें अपना हुनर मालूम है
जिस तरफ भी चल पड़ेंगे रास्ता हो जाएगा.
ताऊ : वाह..वाकई आप जैसे लोग ही आगे बढ पाते हैं. आप ये बताईये कि आप खास क्या लिखना पसंद करती हैं?
पूजा : पहले मेरा लेखन या तो रूमानी होता था या बिलकुल रोजमर्रा की चीज़ें, कविता और ग़ज़ल में खास दिलचस्पी थी और अधिकतर अतुकांत लिखती थी.
ताऊ : पर मैने तो आपको बढिया हास्य भी लिखते देखा है?
पूजा : हां ताऊ, आजकल हास्य लिखने का भी मन करता है और कहानियां भी, मुझे कभी नहीं लगा था कि मैं ऐसा कुछ लिखूंगी जिसे पढ़ कर किसी को भी हँसी आये.
ताऊ : आप किसके लेखन से विशेष रुप से यहां प्रभावित हुई?
पूजा : यहाँ अनूप जी और पल्लवी के लेखन से खास तौर से प्रभावित हुयी...लगा कि काश मैं भी लिख पाती कुछ ऐसा...फिर यूँ ही लिखा, और अब तो कई लोग कहने लगे हैं कि हास्य या गद्य, मेरे कविता से बेहतर है. अब कुछ भी लिख लेने कि स्थिति में पाती हूँ खुद को...जैसा मूड हुआ लिख दिया.
ताऊ : राजनिती के बारे मे क्या कहना चाहेंगी?
पूजा : राजनिती मे रुचि तो बहुत रखते हैं, पर क्या करें हमारा सिस्टम ऐसा है कि इतनी कोशिश करने के बावजूद वोटर लिस्ट में नाम नहीं आया और वोट तक नहीं दे सके. रुचि का आलम ऐसा है कि देश के प्रधान मंत्री को छोड़कर किसी और का नाम भी पता नहीं रहता, बाकी प्रदेशों का तो कहना ही क्या?
ताऊ : यानि आप समझती हैं कि ये आपके बस का रोग नही हैं?
पूजा : हां, पहले ये सब समझ से बाहर लगता था, पर अब जानती हूँ कि कोई भी बदलाव हमसे ही आएगा...राजनीति में सक्रीय तो नहीं, पर कुछ मित्र हैं जो सक्रिय हैं, उनकी मदद जरूर करुँगी.
ताऊ : आप खुद अपने स्वभाव के बारे में क्या कहेंगी?
पूजा : हां मैं मनमौजी स्वभाव की हूं...खुशमिजाज हूँ, बहिर्मुखी...हमेशा बोलने वाली...
ताऊ : वो लग ही रहा है. आप चुप भी बैठ सकती हैं?
पूजा : अरे ताऊ, चुप बैठने का बोलेंगे तो सजा हो जाएगी. जिंदगी को छोटे छोटे लम्हों में जीती हूँ. बस (हंसते हुये...) बाकी तो ब्लॉग से पता चल ही जाता है.
ताऊ : गुस्सा कैसा आता है?
पूजा : गुस्सा कम आता है, पर आता है तो कण्ट्रोल नहीं होता, चीज़ें तोड़ देने का मन करता है, जो हाथ में आता है उठा क सीधे दीवार पे मारती हूँ (हंसते हुये....)
ताऊ : जरा देख कर पूजा..अभी तो सामने मैं बैठा हूं.
पूजा : अरे नही ताऊ...(हंसते हुये...) आपको थोडी मारुंगी? आप तो डरो मत..नाश्ता खत्म करिये आप. इंटर्व्यु आपको जितना लंबा लेना हो लिजिये..मैं थकने वाली नही हूं..आप ही कहोगे कि अब मेरा जाने का समय होगया..
कुणाल और पूजा
ताऊ : कुणाल के बारे और कुछ बताईये?
पूजा : बस...आज के लिए इतना काफी है उसके बारे में लिखने बैठूंगी तो अलग से एक ब्लॉग खोलना पड़ेगा (हंसते हुये....)
ताऊ : हां तो पूजा जी..
पूजा : ताऊ एक मिनट...पूजा जी नही सिर्फ़ पूजा ..और मुझे भी सिर्फ़ ताऊ कहने दिजिये. ये ज्यादा ठीक रहेगा?
ताऊ : चलिये ये भी ठीक है पूजा. तो अब सबसे पहले अपने बारे ही कुछ बताईये?
पूजा उपाध्याय : हूं...अपने बारे में.....यही की .. सिर्फ़ आजाद ख्यालो वाली मनमौजी हूँ, आसमान में उड़ना पसंद है मगर जमीन से भी जुड़ी हुयी हूँ.
ताऊ : आज के समय मे नारी के बारे मे आपकी सोच क्या है?
पूजा : समाज में लड़की जगह, उसके सपने उसके सवालों को लेकर परेशान रहती हूँ, और अपने तरफ से जो बनता है करने की कोशिश करती हूँ, चाहे वो सिर्फ सवाल करना ही क्यों न हो.
ताऊ : आप दो पंक्तियों मे खुद को कैसे अभिव्यक्त करेंगी?
पूजा : हूं.. भटकना बहुत पसंद है, नयी जगहों और पुरानी यादों में. बचपन से लिखने का शौक़ रहा, जैसी हूँ वैसी दिखती हूँ, वैसा लिखती हूँ...कतरब्योंत करना नहीं आया. शकल भी ऐसी है कि सारे भाव नज़र आ जाते हैं. बहुत ही unpredictable लड़की के रूप में जानते हैं दोस्त मुझे, कभी भी कुछ भी कर सकती है types (हंसते हुये..)
ताऊ : आप कहां की रहने वाली हैं?
पूजा : कहा से हूँ ये थोड़ा मुश्किल सवाल है, खास तौर से बिहार झारखण्ड अलग हो जाने के कारण...बहुत बार समझ में नहीं आता कहाँ की हूँ...दोनों राज्यों का बराबर हक है मुझपर. देवघर, झारखण्ड में स्कूल की पढाई पूरी की, कॉलेज पटना में ६ साल के दौरान और फिर पोस्ट graduation के लिए दिल्ली गयी तो लगा कि यहीं की हूँ.
ताऊ : ये तो आपने पूरा इतिहास बता दिया. एक शब्द मे आप किस राज्य से हैं?
पूजा : वैसे बोल चाल में अपने को ठेठ बिहारी कहते हैं और मानते भी हैं.
ताऊ : हां ये हुई ना बात. अब आप अपनी जिंदगी का कौन सा दिन सबसे खुबसूरत मानती हैं?
पूजा : कॉलेज से graduation के बाद तीन जगहों के फॉर्म भरे थे आगे पोस्ट graduation के लिए, इसमें दो जगह का रिजल्ट आ चुका था और नहीं हुआ था, तो परेशान थी, इसी बीच भाई का भी इंजीनियरिंग का रिजल्ट आने वाला था, एक रिजल्ट उसका भी ख़राब आया था बहुत चिंता हो रही थी कि क्या होगा?
ताऊ : अच्छा फ़िर आगे क्या हुआ?
पूजा : फिर १३ जुलाई को सुबह झारखण्ड इंजीनियरिंग का रिजल्ट आया, जिमी (मेरा भाई) की बहुत अच्छी रैंक आई थी..उसी दिन दोपहर में मेरा भी रिजल्ट आ गया...मेरा admission हो गया था IIMC में. वो दिन मेरी जिंदगी का सबसे खूबसूरत दिन था.
ताऊ : आपके शौक क्या क्या हैं?
पूजा : कविता लिखना, किताबें पढना, गाने गाना-सुनना, घूमना...खास तौर से पुरानी जगहें, किले मकबरे वगैरह. तेज़ रफ़्तार गाड़ी चलाना...बारिश में भीगना...पैदल चलना...लोगों से बातें करना...माउथ ओरगन बजाना...पेंटिंग करना, हाट बाज़ारों में खरीददारी करना या ऐसे ही घूमना. फोटोग्राफी.
ताऊ : कुछ ऐसा भी है जो आपको खास नापसंद हो?
पूजा : तानाशाही...नियम. किसी का भी मनमानी करना, चाहे वो समाज हो, पुलिस हो या तथाकथित समाज के ठेकेदार. लोगों का बिन मांगे सलाह देना और उम्मीद करना कि मैं मान लूंगी. stereotypes...किसी ढांचे में बंधना नहीं पसंद है.
ताऊ : यानि अपनी निजता आपको ज्यादा पसंद है?
पूजा : हां ऐसा भी कह सकते हैं आप...अपनी स्वतंत्रता बहुत पसंद है मुझे, और लोग जब मेरे हंसने बोलने, पहनने ओढ़ने में टोका टाकी करते हैं तो बहुत चिढ़ जाती हूँ. किसी के हिसाब से कुछ करना पसंद नहीं है, जब तक मेरा मन ना हो कुछ नहीं करती. नियम तोड़ने में खास मज़ा आता है.
ताऊ : आपको विषेष रुप से क्या पसंद है?
पूजा : पापा का सर पे हाथ रखना, मम्मी की चिट्ठियां पढ़ना, जिमी (मेरा छोटा भाई) से बात करना... कुणाल से गप्पें मरना, दोस्तों को कविता सुना कर फ़ोन पर पकाना,
ताऊ : और..
पूजा : ताऊ अभी सुनते जाईये..अभी लिस्ट लंबी है....जेएनयू की गलियां, पुरानी दिल्ली के किले इसके अलावा..पढ़ना...अच्छे लोगों से मिलना...जिंदगी को करीब से देखना, लोगों को हँसाना. डूबता सूरज देखना, ऊंची जगह पर खड़े होकर गहराई देखना. किताबें खरीदना...तेज़ रफ़्तार बाईक के बारे में पढ़ना. अपना ऑफिस, यहाँ के लोग. देवघर का मेरा घर...शीशम के पेड़. पुरानी पीले पन्नो वाली किताबें...मीठा खाना...मेरे दोस्त...मेरा बंगलोर का घर, कई सारी विंड chimes...बहुत कुछ है जो पसंद है, सब कुछ तो नहीं बता सकती ...वर्ना आपका पन्ना कम पड़ जाएगा.
ताऊ : हमारे पाठकों को कुछ कहना चाहेंगी?
पूजा : हां... ब्लाग पर इतने लोग आते हैं, पढ़ते हैं, कमेन्ट करते हैं, बहुत अच्छा लगता है...बस कभी कभी लगता है की कमेन्ट करना कोई बंदिश तो नहीं बन गयी है..मेरे ख्याल से इसकी जरूरत नहीं है...कुछ पढ़ा उसके बाद कुछ कहने का मन करे तो कमेन्ट कीजिये, नहीं करे तो बस पढ़ कर खुश हो जाइए...उतने भर में मेरा लिखना सार्थक होजाता है.
ताऊ : आपके जीवन का कोई यादगार लम्हा?
पूजा : IIMC में १५ अगस्त के प्रोग्राम पर वन्दे मातरम पर ग्रुप डांस किया था हमने. क्लास के बाद बहुत सारे assignments रहते थे उन्हें पूरा करते रोज़ बारह बज जाते थे रात को प्रक्टिस करते थे.
ताऊ : जी..आगे बताईये ?
पूजा : हमको बहुत चिंता हो रही थी कि ठीक से हो पायेगा कि नहीं...इतना टाइम नहीं मिला था कि कपड़े खरीद सकें. तो हमने सफ़ेद सलवार कुरता पहनने का निर्णय लिया था, पूरे हॉस्टल में ढूंढ कर कहीं से कुरता जुगाड़ा तो कहीं से सलवार, किसी का दुपट्टा उधार माँगा...सुबह सुबह जो हंगामा मचा था तैयार होने के समय कि लगता था डांस ही नहीं हो पायेगा.
ताऊ : अच्छा ..फ़िर क्या हुआ?
पूजा : पर डांस के बाद देर तक तालियाँ बजती रहीं, standing ओवेशन मिला था हमें. वो लम्हा जब हम सब स्टेज पर खड़े थे और चारो और से वंस मोर का हल्ला हो रहा था...रोंगटे खड़े हो गए थे पूरे ग्रुप के.
ताऊ : हमने सुना है कि आपने खुराफ़ाते भी बहुत की हैं?
पूजा : हा ताऊ, खुराफातें बहुत की हैं, एक बार छह बजे सुबह साइबर कैफे खुलवा कर प्रिंट निकलवाया है...तो कई बार रात के दस बजे हॉस्टल बंद होने कि डेड लाइन के चलते दौड़ते हुए हॉस्टल तक आये हैं.
ताऊ : कभी रात भर होस्टल से बाहर तडी भी लगाई कि नही?
पूजा : ताऊ बस एक यही अरमान कभी पूरा नहीं हुआ, हॉस्टल कि बालकोनी से कूद कर नाईट आउट मरने का मन था...अफ़सोस कभी मौका ही नहीं आया.
ताऊ : आपका गांव कहां है?
पूजा : मेरा गाँव सुल्तानगंज के पास है, घर से कोई ३ किलोमीटर पर ही गंगा बहती है.
ताऊ : गांव से जुडी बचपन की यादों मे क्या है?
पूजा : बहुत कुछ बल्कि कहुंगी कि सब कुछ याद है....गाँव की यादों में पुआल बिछा कर सोना, रात को आँगन से तारो भरा आसमान देखना, कच्चा आम चुराना, किसी और के खेत से चना का झाड़ उखाड़ कर रास्ते भर चना खाना जैसी यादें हैं.
ताऊ : और क्या क्या याद है?
पूजा : गाँव शुरू होते ही शिवालय है जहाँ दादी हमारा इंतज़ार करती थी होली के करीबी दिनों में... गाँव में एक ही मीठे पानी का कुआँ है जिसको बड़ा इनारा कहते हैं. शादी ब्याह में जब पूरा घर जुटता है तो बड़ा मज़ा आता था, रात भर तकिया की छीना झपटी चलती थी. सुबह सरोता लेकर निकल जाते थे, खजूर की दतवन तोड़ने...सबके लिए दतवन ले के आते थे.
ताऊ : अक्सर मैने देखा है कि हर गांव मे कहीं ना कहीं भूत और डायन जरुर होती है,, क्या आपके गांव मे भी ऐसा कुछ था?
पूजा : अरे वाह ताऊ..ये बढिया याद दिलाया. हमारा गांव अपवाद कैसे हो सकता है? मंदिर के थोड़ा आगे एक पीपल का पेड़ है जिस पर भूत रहता है, और डायन भी इसलिए वहां से गुजरते हुए सुई धागा बोलना जरूरी होता है और पीछे मुड़ कर देखना मना है वरना भूत पकड़ लेगा.
ताऊ : क्या कभी भूत या डायन ने वहां पकडा?
पूजा : मैं बिना सुई धागा बोले वहां से निकली ही नही...तो मुझे वो कैसे पकडते? (हंसते हुये...)
ताऊ : और क्या याद है गांव से जुडी हुई?
पूजा : ताऊ..आज आपने कुरेद दिया तो सिनेमा की रील जैसी यादें चल रही हैं दिमाग मे. इसके अलावा गाँव में एक पुराना संदूक हुआ करता था जिसमें पापा के बचपन की कॉपी वगैरह थी...उसमे से खजाना निकालना बड़ा पसंद था.
ताऊ : क्या आपका संयुक्त परिवार था?
पूजा : नहीं, मेरे परिवार में हम चार लोग थे, पापा, मम्मी मेरा भाई जिमी और मैं...वैसे घर में होली या राम नवमी पर जब सब लोग आते थे तो कभी नहीं लगता था कि संयुक्त परिवार नहीं है...पर चूँकि सब एक जगह नहीं रहते तो परिवार संयुक्त परिवार की श्रेणी में नहीं आता, हालाँकि हमेशा कोई न कोई रहता ही था साथ में.
ताऊ : यानि आपने संयुक्त परिवार को कभी मिस नही किया?
पूजा : सही बात यह है ताऊ कि पहले कभी संयुक्त परिवार पर ध्यान नहीं गया...पर अब मम्मी के नहीं होने के कारण पापा अकेले रह रहे हैं, मैं और भाई दोनों अलग है...अब लगता है कि एक जगह सब रहते तो पापा ऐसे अकेले तो नहीं रहते.
ताऊ : संयुक्त परिवार के बारे मे आपकी राय क्या है?
पूजा : ताऊ, मुझे लगता है कि शादी के दो तीन साल अलग रहना जरूरी है ताकि आपसी समझ विकसित हो सके...उसके बाद बड़ा सा परिवार हो तो जिंदगी बेहतरीन और खुशहाल होती है. पर संयुक्त परिवार में रहना मुश्किल है क्योंकि हर व्यक्ति अलग जगह नौकरी के कारण रहता है.
ताऊ : ब्लागिंग के बारे में क्या कहेंगी?
पूजा : अभी ब्लॉग्गिंग अपने शैशव में ही है, बहुत लोगो के मन में ब्लॉग्गिंग को लेकर गलत धारणाएं हैं...अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को पूरी तरह एक्सेप्ट करने लायक समझ लोगों में अभी नहीं आई है.
ताऊ : यानि?
पूजा : ब्लॉग एक दूसरे तरह का माध्यम है, और इसे समझने में लोगों को वक़्त लगेगा...ब्लॉग्गिंग में सबसे महत्वपूर्ण है कि व्यक्ति जो लिखना चाहे लिख सकता है...इस स्वांत सुखाय धारणा को गलत रंग दिया जाता है. ब्लॉग पर लिखना इसलिए होता है क्योंकि यह सुलभ माध्यम है...अनजाने पाठक ये समझ लेते हैं कि ये उनके लिए लिखा जा रहा है...ऐसा होना नहीं चाहिए.
ताउ : आप क्या उम्मीद करती हैं?
पूजा : उम्मीद है ब्लॉगजगत लेखक की महत्ता को समझेगा...और इसे एक अभिव्यक्ति का जरिया मानेगा.
ताऊ : आप ब्लागिंग मे कब से हैं ?
पूजा : मैं २००५ से ब्लॉग्गिंग में हूँ...IIMC में पढ़ते वक़्त इस नए माध्यम के बारे में पता चला था, थोडी रिसर्च करके अपना ब्लॉग बनाया था...अहसास. उस वक़्त लिखना बस लिखने के लिए होता था, कमेन्ट नहीं आते थे आज की तरह. लिखना अच्छा लगता था तो लिखती थी. मनीष (एक शाम मेरे नाम) का कमेन्ट आता था पहले...लिखना नियमित नहीं था...जब वक़्त मिला लिख लेते थे.
ताऊ : फ़िर नियमित कैसे हुई आप ब्लागिंग में?
पूजा : कॉलेज ख़त्म होने के बाद लहरें पर लिखना शुरू किया, सोचा था इस पर अंग्रेजी में लिखूंगी...या ऐसा कुछ जो कवितानुमा न हो...पर धीरे धीरे इस पर लिखना ज्यादा हो गया.
ताऊ : जी..आगे बताईये.
पूजा : चिट्ठाजगत के बारे में गूगल सर्च से पता चला...अपना रिजल्ट देखने के लिए गूगल में अपना नाम सर्च किया था, तो चिट्ठाजगत के पन्ने खुल गयी... बड़ी ख़ुशी हुयी थी की भैय्या अब तो हमारा भी नाम हो गया, कोई हमें ढूंढेगा तो हम गूगल में मिल जायेंगे.
ताऊ : अब तक का कैसा अनुभव रहा ब्लागिंग में?
पूजा : अब तक का ब्लॉग्गिंग का अनुभव बहुत अच्छा रहा, कई अच्छे लोग मिले और बहुत कुछ अच्छा पढने को मिला. ब्लॉग के माध्यम से जिंदगी को करीब से देखने का मौका मिलता है...ऐसे कई लोगों के विचार जाने जिनसे शायद कभी भेंट नहीं होती...या होती भी तो बात नहीं होती.
ताऊ : आप खुद के लेखन को किस दिशा मे पाती हैं?
पूजा : किसी खास दिशा में नहीं पाते हैं...हाल तो वही है...
हम भी दरिया हैं हमें अपना हुनर मालूम है
जिस तरफ भी चल पड़ेंगे रास्ता हो जाएगा.
ताऊ : वाह..वाकई आप जैसे लोग ही आगे बढ पाते हैं. आप ये बताईये कि आप खास क्या लिखना पसंद करती हैं?
पूजा : पहले मेरा लेखन या तो रूमानी होता था या बिलकुल रोजमर्रा की चीज़ें, कविता और ग़ज़ल में खास दिलचस्पी थी और अधिकतर अतुकांत लिखती थी.
ताऊ : पर मैने तो आपको बढिया हास्य भी लिखते देखा है?
पूजा : हां ताऊ, आजकल हास्य लिखने का भी मन करता है और कहानियां भी, मुझे कभी नहीं लगा था कि मैं ऐसा कुछ लिखूंगी जिसे पढ़ कर किसी को भी हँसी आये.
ताऊ : आप किसके लेखन से विशेष रुप से यहां प्रभावित हुई?
पूजा : यहाँ अनूप जी और पल्लवी के लेखन से खास तौर से प्रभावित हुयी...लगा कि काश मैं भी लिख पाती कुछ ऐसा...फिर यूँ ही लिखा, और अब तो कई लोग कहने लगे हैं कि हास्य या गद्य, मेरे कविता से बेहतर है. अब कुछ भी लिख लेने कि स्थिति में पाती हूँ खुद को...जैसा मूड हुआ लिख दिया.
ताऊ : राजनिती के बारे मे क्या कहना चाहेंगी?
पूजा : राजनिती मे रुचि तो बहुत रखते हैं, पर क्या करें हमारा सिस्टम ऐसा है कि इतनी कोशिश करने के बावजूद वोटर लिस्ट में नाम नहीं आया और वोट तक नहीं दे सके. रुचि का आलम ऐसा है कि देश के प्रधान मंत्री को छोड़कर किसी और का नाम भी पता नहीं रहता, बाकी प्रदेशों का तो कहना ही क्या?
ताऊ : यानि आप समझती हैं कि ये आपके बस का रोग नही हैं?
पूजा : हां, पहले ये सब समझ से बाहर लगता था, पर अब जानती हूँ कि कोई भी बदलाव हमसे ही आएगा...राजनीति में सक्रीय तो नहीं, पर कुछ मित्र हैं जो सक्रिय हैं, उनकी मदद जरूर करुँगी.
ताऊ : आप खुद अपने स्वभाव के बारे में क्या कहेंगी?
पूजा : हां मैं मनमौजी स्वभाव की हूं...खुशमिजाज हूँ, बहिर्मुखी...हमेशा बोलने वाली...
ताऊ : वो लग ही रहा है. आप चुप भी बैठ सकती हैं?
पूजा : अरे ताऊ, चुप बैठने का बोलेंगे तो सजा हो जाएगी. जिंदगी को छोटे छोटे लम्हों में जीती हूँ. बस (हंसते हुये...) बाकी तो ब्लॉग से पता चल ही जाता है.
ताऊ : गुस्सा कैसा आता है?
पूजा : गुस्सा कम आता है, पर आता है तो कण्ट्रोल नहीं होता, चीज़ें तोड़ देने का मन करता है, जो हाथ में आता है उठा क सीधे दीवार पे मारती हूँ (हंसते हुये....)
ताऊ : जरा देख कर पूजा..अभी तो सामने मैं बैठा हूं.
पूजा : अरे नही ताऊ...(हंसते हुये...) आपको थोडी मारुंगी? आप तो डरो मत..नाश्ता खत्म करिये आप. इंटर्व्यु आपको जितना लंबा लेना हो लिजिये..मैं थकने वाली नही हूं..आप ही कहोगे कि अब मेरा जाने का समय होगया..
ताऊ : आपके जीवन साथी के बारे मे कुछ बताईये?
पूजा : मेरे जीवन साथी का नाम कुणाल किसलय है, किस किस जीवन के साथी हैं ये तो पता नहीं, पर कम से कम कुछेक जन्मों पुराना रिश्ता तो जरूर रहा है ( हंसते हुये...) कोई किसी के लिए इस तरह से customise हो सकता है कभी सोचा नहीं था. यूँ तो हमेशा ही परी कथाओं वाले राजकुमार में यकीं रहा था मेरा पर अपने राजकुमार से मिलूंगी ऐसा नहीं लगा था.
पूजा : मेरे जीवन साथी का नाम कुणाल किसलय है, किस किस जीवन के साथी हैं ये तो पता नहीं, पर कम से कम कुछेक जन्मों पुराना रिश्ता तो जरूर रहा है ( हंसते हुये...) कोई किसी के लिए इस तरह से customise हो सकता है कभी सोचा नहीं था. यूँ तो हमेशा ही परी कथाओं वाले राजकुमार में यकीं रहा था मेरा पर अपने राजकुमार से मिलूंगी ऐसा नहीं लगा था.
ताऊ : आप लोगों की मुलाकात कैसे हुई?
पूजा : स्कूल में वो मुझसे एक साल सीनियर था...बाद में कविताओं में रुचि होने के कारण बात होने लगी...
ताऊ : यानि बचपन का ही साथ था?
पूजा : एक तरह से ... पर हम वापस मिले .. स्कूल से निकलने के कई साल बाद... दिल्ली में मिले हम...पहली मुलाकात के बाद सिलसिला थमा ही नहीं कभी. और मन में ये सवाल भी था की IITian कैसे होते हैं.
ताऊ : कुणाल क्या करते हैं?
पूजा : कुणाल की अपनी खुद की कंपनी है, सॉफ्टवेर की...जो उसने अपने कुछ दोस्तों के साथ मिल कर खोली है.
पूजा : स्कूल में वो मुझसे एक साल सीनियर था...बाद में कविताओं में रुचि होने के कारण बात होने लगी...
ताऊ : यानि बचपन का ही साथ था?
पूजा : एक तरह से ... पर हम वापस मिले .. स्कूल से निकलने के कई साल बाद... दिल्ली में मिले हम...पहली मुलाकात के बाद सिलसिला थमा ही नहीं कभी. और मन में ये सवाल भी था की IITian कैसे होते हैं.
ताऊ : कुणाल क्या करते हैं?
पूजा : कुणाल की अपनी खुद की कंपनी है, सॉफ्टवेर की...जो उसने अपने कुछ दोस्तों के साथ मिल कर खोली है.
पूजा : बस...आज के लिए इतना काफी है उसके बारे में लिखने बैठूंगी तो अलग से एक ब्लॉग खोलना पड़ेगा (हंसते हुये....)
ताऊ : ताऊ कौन? आप क्या कहना चाहेंगी?
पूजा : ताऊ बोले तो फुल टाइम entertainer...ताऊ माने हर समस्या का हल निकालने वाला, मुसीबत से छुटकारा दिलाने वाला...बेहद चतुर प्राणी होता है ये ताऊ...आसानी से सामने नहीं आता. कुछ कुछ छुपा रुस्तम टाइप की चीज़ होता है...और बहुत ही दुर्लभ किस्म का प्राणी होता है ये ताऊ...ब्लॉगजगत में तभी तो ताऊ जैसा कोई नहीं. भाई हम किस्मत वाले हैं की ताऊ से मिले और ताई के हाथ का कलेवा खा रहे हैं.
ताऊ : ताऊ साप्ताहिक पत्रिका के बारे मे आप क्या कहना चाहेंगी?
पूजा : इतने सारे स्तंभों के कारण बेहद दिलचस्प लगती है...एक ही जगह इतनी सारी जानकारी वाली चीज़ें मिलती हैं की दिल खुश हो जाता है. भारत में कई सारी घूमने लायक जगहें हैं...उनके बारे में इतना विस्तार से लिखा होता है की लगता है घूम कर ही आ रहे हैं. इतनी सारी मेहनत लगती है उसके लिए बधाई पूरी टीम को ताऊ.
ताऊ : ताऊ पहेली के बारे मे क्या कहेंगी?
पूजा : आदत सी हो गयी है, किसी शनिवार अगर नहीं देखी तो लगता ही नहीं की आज शनिवार है...भले ही मुश्किल सवाल देख कर बहुत बार फूट लिए हैं (हंसते हुये...) और कई सारी जगहों के बारे में जानकारी मिल जाती है तो बड़ा अच्छा लगता है.
ताऊ : आपको अगर फ़िल्म सेंसर बोर्ड की अध्यक्षा बना दिया जाये?
पूजा : बहुत सारी सड़ी हुयी फिल्में रिलीज़ नहीं होंगी...जिनको देखना मेंटल टॉर्चर है (हंसते हुये...)
फिल्मों में हिंसा और गाली गलोज थोड़ा रोक दूँगी...और एक नयी कैटेगरी introduce करुँगी...फिल्म परिवार के साथ बैठ के देखने लायक है की नहीं.
ताऊ : और आप क्या कहना चाहेंगी?
पूजा : कितनी तो बातें करली ताऊ?...और अब तो आपका नाश्ता भी ख़तम हो गया (हंसते हुये...) फ़िर भी यह कहना चाहुंगी कि हिंदी ब्लॉगर अभी भी संख्या में बहुत कम हैं इसलिए एक रिश्ता सा बन जाता है किसी को अरसे से पढ़ते पढ़ते...अच्छा लगता है, आभासी दुनिया में मौजूद होना.
ताऊ : अच्छा अब अंत मे आपकी पसंद की कोई कविता सुना दिजिये वर्ना हमारे पाठक हमसे नाराज हो जायेंगे.
पूजा : जी जरुर...सुनिये...
देखती हूँ तुम्हें
जाने किनसे बात करते हुए
खिलखिलाते रहते हो जाने किस बात पर
दिल चाहता है एक वैसा लम्हा चुरा लूँ
जब तुम नींद में मुस्कुराते हो
और जाग कर कुछ याद नहीं रहता
कुछ टूटा टूटा सा बताते हो
सोचती हूँ उस मुस्कराहट को काश
किसी डिब्बी में बंद कर रख सकती
क्रिकेट देखते समय खाना भूल जाते हो
एक एक कौर तुम्हें खिला देने का मन करता है
चुपचाप थाली में पांचवां पराठा दाल देती हूँ
और जब तुम देखते हो गिनती पर झगड़ती हूँ
वो झगड़े प्यार से मीठे होते हैं...
ताऊ : वाह वाह...बहुत खूबसूरत.
अंत मे एक सवाल ताऊ से
सवाल पूजा का : ताऊ इत्ती वड्डी पत्रिका निकलते हो, दिन भर ब्लॉग्गिंग करते रहते हो...सच्च सच्च बताओ, ताई ने अब तक कित्ती बार लट्ठ मारे है आपको, या आपके कंप्यूटर को.
जवाब ताऊ का : अब आप तो ताई से मिल ही ली है तो यह सवाल उसी से पूछ लेती तो बेहतर जवाब मिलता. हो सकता है आप ये सोच रही हों कि वो सही जवाब नही देती..तो चलिये सही जवाब मैं देदेता हूं.
ताई गलती से भी मेरे लेपटोप को लठ्ठ नही मारती...वो पक्की अर्थशाश्त्री है... उसे मालूम है लेपटोप की रिपेयर बहुत महंगी है..तो जब भी गुस्सा होती है तो मुझ पर ही लठ्ठ मार कर हड्डी तोड देती है..क्योंकी मेरी रिपेयर सस्ती है..यानि पांच हजार मे तो डाक्टर प्लास्टर करके टुटी हड्डी जोड देता है.
तो यह थी हमारी आज की मेहमान पूजा उपाध्याय. आपको इनसे मिलकर कैसा लगा? अवश्य बताईयेगा.
पूजा : ताऊ बोले तो फुल टाइम entertainer...ताऊ माने हर समस्या का हल निकालने वाला, मुसीबत से छुटकारा दिलाने वाला...बेहद चतुर प्राणी होता है ये ताऊ...आसानी से सामने नहीं आता. कुछ कुछ छुपा रुस्तम टाइप की चीज़ होता है...और बहुत ही दुर्लभ किस्म का प्राणी होता है ये ताऊ...ब्लॉगजगत में तभी तो ताऊ जैसा कोई नहीं. भाई हम किस्मत वाले हैं की ताऊ से मिले और ताई के हाथ का कलेवा खा रहे हैं.
ताऊ : ताऊ साप्ताहिक पत्रिका के बारे मे आप क्या कहना चाहेंगी?
पूजा : इतने सारे स्तंभों के कारण बेहद दिलचस्प लगती है...एक ही जगह इतनी सारी जानकारी वाली चीज़ें मिलती हैं की दिल खुश हो जाता है. भारत में कई सारी घूमने लायक जगहें हैं...उनके बारे में इतना विस्तार से लिखा होता है की लगता है घूम कर ही आ रहे हैं. इतनी सारी मेहनत लगती है उसके लिए बधाई पूरी टीम को ताऊ.
ताऊ : ताऊ पहेली के बारे मे क्या कहेंगी?
पूजा : आदत सी हो गयी है, किसी शनिवार अगर नहीं देखी तो लगता ही नहीं की आज शनिवार है...भले ही मुश्किल सवाल देख कर बहुत बार फूट लिए हैं (हंसते हुये...) और कई सारी जगहों के बारे में जानकारी मिल जाती है तो बड़ा अच्छा लगता है.
ताऊ : आपको अगर फ़िल्म सेंसर बोर्ड की अध्यक्षा बना दिया जाये?
पूजा : बहुत सारी सड़ी हुयी फिल्में रिलीज़ नहीं होंगी...जिनको देखना मेंटल टॉर्चर है (हंसते हुये...)
फिल्मों में हिंसा और गाली गलोज थोड़ा रोक दूँगी...और एक नयी कैटेगरी introduce करुँगी...फिल्म परिवार के साथ बैठ के देखने लायक है की नहीं.
ताऊ : और आप क्या कहना चाहेंगी?
पूजा : कितनी तो बातें करली ताऊ?...और अब तो आपका नाश्ता भी ख़तम हो गया (हंसते हुये...) फ़िर भी यह कहना चाहुंगी कि हिंदी ब्लॉगर अभी भी संख्या में बहुत कम हैं इसलिए एक रिश्ता सा बन जाता है किसी को अरसे से पढ़ते पढ़ते...अच्छा लगता है, आभासी दुनिया में मौजूद होना.
ताऊ : अच्छा अब अंत मे आपकी पसंद की कोई कविता सुना दिजिये वर्ना हमारे पाठक हमसे नाराज हो जायेंगे.
पूजा : जी जरुर...सुनिये...
देखती हूँ तुम्हें
जाने किनसे बात करते हुए
खिलखिलाते रहते हो जाने किस बात पर
दिल चाहता है एक वैसा लम्हा चुरा लूँ
जब तुम नींद में मुस्कुराते हो
और जाग कर कुछ याद नहीं रहता
कुछ टूटा टूटा सा बताते हो
सोचती हूँ उस मुस्कराहट को काश
किसी डिब्बी में बंद कर रख सकती
क्रिकेट देखते समय खाना भूल जाते हो
एक एक कौर तुम्हें खिला देने का मन करता है
चुपचाप थाली में पांचवां पराठा दाल देती हूँ
और जब तुम देखते हो गिनती पर झगड़ती हूँ
वो झगड़े प्यार से मीठे होते हैं...
ताऊ : वाह वाह...बहुत खूबसूरत.
अंत मे एक सवाल ताऊ से
सवाल पूजा का : ताऊ इत्ती वड्डी पत्रिका निकलते हो, दिन भर ब्लॉग्गिंग करते रहते हो...सच्च सच्च बताओ, ताई ने अब तक कित्ती बार लट्ठ मारे है आपको, या आपके कंप्यूटर को.
जवाब ताऊ का : अब आप तो ताई से मिल ही ली है तो यह सवाल उसी से पूछ लेती तो बेहतर जवाब मिलता. हो सकता है आप ये सोच रही हों कि वो सही जवाब नही देती..तो चलिये सही जवाब मैं देदेता हूं.
ताई गलती से भी मेरे लेपटोप को लठ्ठ नही मारती...वो पक्की अर्थशाश्त्री है... उसे मालूम है लेपटोप की रिपेयर बहुत महंगी है..तो जब भी गुस्सा होती है तो मुझ पर ही लठ्ठ मार कर हड्डी तोड देती है..क्योंकी मेरी रिपेयर सस्ती है..यानि पांच हजार मे तो डाक्टर प्लास्टर करके टुटी हड्डी जोड देता है.
तो यह थी हमारी आज की मेहमान पूजा उपाध्याय. आपको इनसे मिलकर कैसा लगा? अवश्य बताईयेगा.
बहुत बढिया .. आपके इस परिचयनामा के कारण सबसे अच्छा परिचय होता जा रहा है .. पूजा उपाध्याय से मिलवाने का शुक्रिया !!
ReplyDeleteपूजा से मिलना
ReplyDeleteएक पूजा ही
हो गई समझिए।
काफी अच्छी कविता
और IIMC दिल्ली
से प्रशिक्षण लेना
इसलिए अच्छा
लगता है क्योंकि
कभी मैंने भी वहां
पर दो अल्पावधि
कोर्स किए हैं।
पर बस मेरे लिखे पर उनकी कोई प्रतिक्रिया नहीं आई आज तक, पर आज पता लग गया कि वे पढ़ती हैं, इतना ही काफी है। यही प्रतिक्रिया तसल्ली देती है।
ताऊजी,
ReplyDeleteराम राम
पूजाजी उपाध्याय के साथ आपकी इन्टरव्यू मजेदार रही । उनके विचारो को जानने का अवसर मिला।
पुजाजी को हार्दीक मगलकामनाऍ।
ताऊ! आपने अन्त मे "ताई गलती से भी मेरे लेपटोप को लठ्ठ नही मारती...वो पक्की अर्थशाश्त्री है... आपका जवाब लाजवाब तो रहा, पर ताई कि लठ्ठ शक्ती से आप जो हम बच्चो को डरा रहे है वो ठीक बात नही है।
एक बार पुनः आप सभी को मेरी तरफ से मगलभावनाओ भरा नमस्कार!
आभार
हे प्रभू यह तेरापन्थ
मुम्बई टाईगर
सलेक्शन & कल्केशन
द फोटू गैलेरी
TAAU .....RAAM RAAM.......LAJAWAAB LAGI AAPKI BAATCHEET........POOJA JI KA BACHPANA, UNKA ALHADPAN, BEETI BAATON KI DAASTAN HAMKO BHI UAAPAS LE GAYEE HAMAARI YAADON KE GALIYAARE MEIN...... KAVITAA KA BHI JAWAAB NAHI .....ACHHAA LAGA POOJA JI SE MIL KAR..
ReplyDeleteबहुत रोचक रहा यह साक्षात्कार. पूजा जी को जानना अच्छा लगा.
ReplyDeleteबहुत रोचक रहा यह साक्षात्कार. पूजा जी को जानना अच्छा लगा.
ReplyDeleteवाह ताऊजी, बहुत लाजवाब रहा यह परिचय नामा. आभार आपका.
ReplyDeleteताऊ इत्ती वड्डी पत्रिका निकलते हो, दिन भर ब्लॉग्गिंग करते रहते हो...सच्च सच्च बताओ, ताई ने अब तक कित्ती बार लट्ठ मारे है आपको, या आपके कंप्यूटर को.
ReplyDeleteपूजा जी को धन्यवाद ये सवाल पूछने के लिये. वाकई हमारी इच्छा थी यह पूछने की पर ताऊ के डर के मारे
कभी पूछ ही नही पाये. जय हो ताई की.
ताऊ इत्ती वड्डी पत्रिका निकलते हो, दिन भर ब्लॉग्गिंग करते रहते हो...सच्च सच्च बताओ, ताई ने अब तक कित्ती बार लट्ठ मारे है आपको, या आपके कंप्यूटर को.
ReplyDeleteपूजा जी को धन्यवाद ये सवाल पूछने के लिये. वाकई हमारी इच्छा थी यह पूछने की पर ताऊ के डर के मारे
कभी पूछ ही नही पाये. जय हो ताई की.
sundar parichay karawaya apne.
ReplyDeleteयह काम बहुत अच्छा करते हो ताऊझी आप..एक दुसरे के बारे मे जान कर उनके ज्ञा और अनुभव का अच्छा फ़ायदा मिलता है. आपका ब्लाग हम इसीलिये पढते हैं कि विभिन्न परिवेश के व्यक्तियों के बारे मे आप खुल कर बताते हैं.
ReplyDeleteबहुत बढिया ताऊ..आपका बहुत आभार पूजा जी के बारे मे और उनकी सखशियत के बारे मे बताने के लिये.
ReplyDeleteबहुत बढिया ताऊ..आपका बहुत आभार पूजा जी के बारे मे और उनकी सखशियत के बारे मे बताने के लिये.
ReplyDeleteसच में पूजा जी एक जिंदादिल इंसान है। उनके ब्लोग पर सब कुछ मिलता है। उछलती कूदती बातें, नाचते शब्द, कभी सागर सी गहराई में डूबे अक्षर ,और कभी भावुक करती हुई यादें। अच्छा लगा उनके बारें में पढ़कर।
ReplyDeleteपूजा जी से परिचय बहुत अच्छा लगा और कविता बहुत ही सुन्दर आपका भी बहुत बहुत धन्यवाद्
ReplyDeletebahut hi dilchasp mulakat rahi pooja ji se.chanchal aur gambhir bhi.sunder.
ReplyDeleteबहुत बहुत अच्छा लगा पूजा के बारे में सब कुछ जान कर .शुक्रिया ताऊ जी का .
ReplyDeleteअच्छा लगा परिचयनामा....
ReplyDeleteअच्छा लगा परिचयनामा....
ReplyDeleteaap sab ke sneh aur ashirvad ka hardik dhanyavaad...
ReplyDeleteaur taau aapko bhi vadda wala thank you :)
पूजा से मिलना बहुत अच्छा लगा | ताऊ जी मिलवाने के लिए आभार |
ReplyDeleteबढ़िया बढ़िया, अच्छा लगा पूजा के बारें में जानकार.
ReplyDelete... ताऊ आपके सारे स्तंभ बहुत ही रोचक होते हैं. शोले कब रिलीज हो रही है ?
पूजाजी उपाध्याय के साथ आपका ये साक्षात्कार बहुत ही बढिया रहा ।।।
ReplyDeleteआभार!
पूजा का लेखन सहज, सरल और बिन्दास है।
ReplyDeleteकविता में जिस तरह के भाव पूजा जितनी सहजता से प्रकट कर लेती हैं वैसा मुझे और अभी तक नहीं दिखा। गद्य,हास्य-व्यंग्य में भी पूजा की किस्सागोई और कल्पनाशक्ति गजब की है। इसीलिये तो हम पूजाजी को ब्लाग जगत का पीएचडी वाला डाक्टर साहब कहते हैं।
अपनी शर्तों पर जीवन जीने की आकांक्षा रखने वाले के मन के भाव अगर किसी को देखने हैं तो वो पूजा की शुरुआती पोस्टों में देखने को मिलेंगे जिनमें समाज के प्रति पूजा का आक्रोश भी दिखता है।
बेहतरीन इंटरव्यू! पूजाजी की जय हो, ताऊ जी की भी जय हो संलग्नक के रूप में। भौत मेहनत कर डाली इसलिये।
रोचक. आजकल पूजा कुछ कुछ खोई खोई सी रहती है.
ReplyDeleteपूजा से मिलना? लगा किसी अपने परिवार के सदस्य से मिल रहा हूँ।
ReplyDeleteबहुत बढ़िया रहा पूजा उपाध्याय का परिचयनामा।
ReplyDeleteश्री कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएँ।
ताऊ राम-राम।
बहुत लाजवाब परिचय करवाया ताऊजी. पूजा जी को शुभकामनाएं और आपको धन्यवाद.
ReplyDeleteबहुत लाजवाब परिचय करवाया ताऊजी. पूजा जी को शुभकामनाएं और आपको धन्यवाद.
ReplyDeleteताऊ आज आपकी पोल खुल ही गई लठ्ठ खाने वाली. पूजा जी को धन्यवाद ताऊ के मुंह से यह बात उगलवाने के लिये.
ReplyDeleteताऊ आज आपकी पोल खुल ही गई लठ्ठ खाने वाली. पूजा जी को धन्यवाद ताऊ के मुंह से यह बात उगलवाने के लिये.
ReplyDeleteपूजा जी से मिलना जैसे किसी मासूम चंचल अल्हड से ख्वाबो से मिलना, जैसे बचपन की टेडी पगडंडियों पर खो जाना , उन्मुक्त से आकाश में उड़ जाना.......एक पल को जैसे बचपन से फिर मिल आना....आभार ताऊ जी....और पूजा जी को मेरी तरफ से ढेरो शुभकामनाये......
ReplyDeleteregards
अत्यन्त सुंदर! श्री कृष्ण जनमाष्टमी की हार्दिक शुभकामनायें!
ReplyDeleteपूजा जी जैसी ज़िंदादिल शख़्सियत के बारे में इतना कुछ जानकर बहुत अच्छा लगा.. हैपी ब्लॉगिंग.
ReplyDeleteपूजा से मिलवाने का शुक्रिया.
ReplyDeleteपूजा उपाध्याय से मिलवाने का शुक्रिया
ReplyDeleteअरे वाह का बात है ...ई लहरों में तो एकदम से बह गए..डाक्टर साहिबा तो छुपी रुस्तम निकली..बहुत सुन्दर साक्षात्कार ...ताऊ मजो आ गियो..
ReplyDeleteपूजा के इंटरव्यू के छपने के बारे में यूं तो कल ही पता चल गया था, मगर अबकी ताउ के फीड ने धोखा दे दिया.. अभी तक जब फीड नहीं मिला तो मैं ताउ के ब्लौग पर पहूंचा और देखा कि दो दो पोस्ट आ चुके हैं..
ReplyDeleteवैसे पूजा के बारे में कहूं तो, पूजा मेरे कुछ सबसे अच्छे आभासी मित्रों में से है.. इतना ही काफी है कि मैं उसे सीधा पूजा ही बुलाता हूं, पूजा जी नहीं.. :) और वो भी बिना उसके बोले.. घंटों पूजा के साथ चैट पर हुई बातें और कई बार उससे फोनिया लेने के बाद भी कई ऐसे तथ्य मुझे इस इंटरव्यू में जानने को मिले जिसे मैं जानता नहीं था.. ताउ को इसके लिये धन्यवाद..
और इसकी लेखनी के बारे में क्या कहूं? छोटा मुंह और बड़ी बात हो जायेगी.. "पूजा के लिये, अब मेरा कमेंट पढ़कर ज्यादा फूलने कि जरूरत नहीं है.. और मोटी हो जायेगी.." :P :)
पूजा परिचयनामा के लिए शुक्रिया !
ReplyDeleteइस लौंग और दालचिनी वाली अद्भुत लड़की के बारे में इतना कुछ जानना..अच्छा लगा, बहुत अच्छा लगा।
ReplyDeleteथैंक्यु ताऊ....दिल से!
अभी कल ही पूजा और उनकी कविताओं से मेरी दोस्ती हुई है और आज उनका इंटरव्यू पढ्ने का मौका मिलना अदभुत सँयोग लगा. बधाई ताऊ जी को और चिट्ठाचर्चा को जहाँ से मुझे इस इंटरव्यू की जानकारी मिली.
ReplyDeleteकृष्ण जन्माष्टमी की
ReplyDeleteआपके परिवार को
मेरी ,
हार्दिक शुभकामनाएं
पूजा जी से मिलना ,
सुखकर रहा ताऊ जी
आभार :)
स ~ स्नेह,
- लावण्या
पूजा से मिलना और उनके बारे में जानना अच्छा लगा.
ReplyDelete