प्रिय बहणों, भाईयो, भतिजियों और भतीजो आप सबका ताऊ साप्ताहिक पत्रिका के 33 वें अंक मे हार्दिक स्वागत है.
अक्सर किसी को अतिशयोक्तिपुर्ण बातें करने पर यह किस्सा सुनाया जाता था कि जब एक आदमी से पूछा गया कि क्या वो आधा सेर तिल खा सकता है? जवाब मे उस आदमी ने पलट कर पूछा कि तिल पौधे सहित खाने हैं या सिर्फ़ तिल खाने हैं? तो तिल खाने के लिये पूछने वाले शख्स ने उससे हाथ जोडकर कहा कि भाई यह तेरे लिये नही है.
उपरोक्त किस्सा बडे बुजुर्गों और हम उम्र दोस्त मे अनेको बार सुना गया है पर हमेशा यही लगा कि ये किस्सा वाकई अतिशयोक्ति पुर्ण ही है. गांव वालों ने फ़ुरसत के क्षणों मे इसे गढ लिया होगा. पर कल के अखबार मे एक खबर देखकर हमारा माथा घूम गया और हमको लगा कि उपरोक्त किस्सा वाकई किसी बहुत ही अनुभवी ताऊ द्वारा रचा गया होगा.
हुआ युं कि होशियारपुर मे एक बैंक के एटीएम को तोडने मे जब बदमाश असफ़ल रहे तो पूरी की पूरी एटीएम मशीन को ही ऊठा लेगये.
दूसरा किस्सा हुआ नीमच/मनासा (म.प्र.) के पास के गांव में बोहरा मस्जिद स्थित एक दरगाह से १५० साल पुरानी तिजोरी को काटकर माल ले उडे. इस तिजोरी (दानपेटी) को साल मे एक बार ही खोला जाता है और यह १३ अगस्त को खोली जानी थी. इस पेटी मे ५/७ लाख रुपया हर साल निकलता है जो मुम्बई स्थित धर्मगुरु सैयदना साहब के प्रधान कार्यालय भेजा जाता है.
चोरों ने वहां रखी तिजोरी ( दानपेटी ) का ताला तोडने मे अपने को असमर्थ पाया तो उस तिजोरी की उपर की चद्दर काट कर माल ले उडे.
उपरोक्त देनों घटनाएं आज यह साफ़ इशारा कर रही हैं कि हम किस दिशा मे जा रहे हैं. समाज मे पैदा होती जारही आर्थिक विसंगतियां शायद किसी खतरनाक भविष्य की तरफ़ इशारा कर रही हैं? क्या आपको नही लगता कि हमको इस विषय पर सोच विचार की आवश्यकता है?
-ताऊ रामपुरिया
सहायक संपादक हीरामन मनोरंजक टिपणियां के साथ.
अब ताऊ साप्ताहिक पत्रिका का यह अंक यहीं समाप्त करने की इजाजत चाहते हैं. अगले सप्ताह फ़िर आपसे मुलाकात होगी. संपादक मंडल के सभी सदस्यों की और से आपके सहयोग के लिये आभार.
संपादक मंडल :-
मुख्य संपादक : ताऊ रामपुरिया
वरिष्ठ संपादक : समीर लाल "समीर"
विशेष संपादक : अल्पना वर्मा
संपादक (तकनीकी) : आशीष खण्डेलवाल
संपादक (प्रबंधन) : Seema Gupta
संस्कृति संपादक : विनीता यशश्वी
सहायक संपादक : मिस. रामप्यारी, बीनू फ़िरंगी एवम हीरामन
स्तम्भकार :-
"नारीलोक" - प्रेमलता एम. सेमलानी
अक्सर किसी को अतिशयोक्तिपुर्ण बातें करने पर यह किस्सा सुनाया जाता था कि जब एक आदमी से पूछा गया कि क्या वो आधा सेर तिल खा सकता है? जवाब मे उस आदमी ने पलट कर पूछा कि तिल पौधे सहित खाने हैं या सिर्फ़ तिल खाने हैं? तो तिल खाने के लिये पूछने वाले शख्स ने उससे हाथ जोडकर कहा कि भाई यह तेरे लिये नही है.
उपरोक्त किस्सा बडे बुजुर्गों और हम उम्र दोस्त मे अनेको बार सुना गया है पर हमेशा यही लगा कि ये किस्सा वाकई अतिशयोक्ति पुर्ण ही है. गांव वालों ने फ़ुरसत के क्षणों मे इसे गढ लिया होगा. पर कल के अखबार मे एक खबर देखकर हमारा माथा घूम गया और हमको लगा कि उपरोक्त किस्सा वाकई किसी बहुत ही अनुभवी ताऊ द्वारा रचा गया होगा.
हुआ युं कि होशियारपुर मे एक बैंक के एटीएम को तोडने मे जब बदमाश असफ़ल रहे तो पूरी की पूरी एटीएम मशीन को ही ऊठा लेगये.
दूसरा किस्सा हुआ नीमच/मनासा (म.प्र.) के पास के गांव में बोहरा मस्जिद स्थित एक दरगाह से १५० साल पुरानी तिजोरी को काटकर माल ले उडे. इस तिजोरी (दानपेटी) को साल मे एक बार ही खोला जाता है और यह १३ अगस्त को खोली जानी थी. इस पेटी मे ५/७ लाख रुपया हर साल निकलता है जो मुम्बई स्थित धर्मगुरु सैयदना साहब के प्रधान कार्यालय भेजा जाता है.
चोरों ने वहां रखी तिजोरी ( दानपेटी ) का ताला तोडने मे अपने को असमर्थ पाया तो उस तिजोरी की उपर की चद्दर काट कर माल ले उडे.
उपरोक्त देनों घटनाएं आज यह साफ़ इशारा कर रही हैं कि हम किस दिशा मे जा रहे हैं. समाज मे पैदा होती जारही आर्थिक विसंगतियां शायद किसी खतरनाक भविष्य की तरफ़ इशारा कर रही हैं? क्या आपको नही लगता कि हमको इस विषय पर सोच विचार की आवश्यकता है?
-ताऊ रामपुरिया
इधर काफी गर्म माहौल हो चला है. पहले भी ऐसे ही विषय पर हल्ला बरपा था. विषय रहा -शील और अश्लील लेखन. क्या शील है और क्या अश्लील-यह तो कतई भी विवाद का विषय ही नहीं है. शीलता और अश्लीलता निर्धारण में प्रमुख मान्यता लेखन के भावों की है और फिर निश्चित ही उद्देश्य आधारित शब्द चयन का महत्वपूर्ण स्थान है. कुछ शब्द, जो सांकेतिक भाषा में इंगित कर उन पर भावों की बानगी, जिसका उद्देश्य उस शब्द का विरोध या उसके इस्तेमाल पर अपने विचार रखना-मात्र उस शब्द के आ जाने से अश्लील नहीं हो जाता. बड़े बड़े लेखकों ने सिर्फ स्थिति का जीवंत चित्रण करने के लिए अक्सर ऐसे शाब्दों का पूरा पूरा प्रयोग भी किया है जिसका शायद अन्यथा इस्तेमाल अश्लील माना जाये किन्तु यहाँ भावों की वजह से साहित्य की श्रेणी को प्राप्त हुआ. थोड़ा अन्तर करना तो सीखना ही होगा. एक चिकित्सा शास्त्र की पुस्तक में इस्तेमाल शब्द अपना अलग उद्देश्य रखता है और उसी का अन्यथा इस्तेमाल अलग. फिर किसी और के द्वारा अश्लील लेखन आपके अश्लील लेखन को सिर्फ इसलिए तो शील नहीं बना देगा क्योंकि उस दूसरे ने भी ऐसा लिखा और उसका विरोध नहीं हुआ. हो सकता है, उसका उद्देश्य अन्य रहा हो. हो सकता है, उस समय किसी का ध्यान उस तरफ न गया हो या हो सकता कि कोई भी अन्य ही वजह रही हो, मगर हर हालातों में वो आपकी अश्लील लेखनी को शील नहीं ही बना सकता है. बिन लादेन ने इतने लोगों को मार दिया. हिटलर इतने निर्दोष लोगों का कत्ल कर गया, इतना साबित कर देने से अन्य कोई कत्ल जायज नहीं हो जाता. आपका अपराध अपनी जगह अलग से दर्ज होता है. उद्देश्य के लिहाज से देश की रक्षा हेतु वीर सैनिकों द्वारा शत्रुओं के सैनिकों को मार गिराना हत्या नहीं, वीरता और कर्तव्य कहलाता है. गंदगी मिटाने के लिए और गंदगी का ढ़ेर लगा दिया जाये, ये बात तो किसी भी हालत में समझ नहीं आयी. आप अपना क्षेत्र साफ रखें और अन्यों को सफाई के लिए प्रोत्साहित करें, प्रेरित करें एवं एक अनुकरणीय उदाहरण बनें. फिर देखिये, सभी जब ऐसा करने लगेंगे, तो अपने आप सब तरफ सफाई ही सफाई होगी और एक सुन्दर माहौल बनेगा कम से कम आपकी अपनी दुनिया का. आशा है मैं अपनी बात कहने में कुछ सफल हो पाया और आप मेरा उद्देश्य समझ कर इस पर अमल करने का प्रयास करेंगे. वैसे तो सभी समझदार हैं, तो फिर आगे अगले हफ्ते. चाँद पर देख आमद कुछ इन्सानी चाँदनी आ मेरे अंगना टहल रही है जबसे बदली है मैने दुनिया अपनी देखता हूं सारी दुनिया बदल रही है. --समीर लाल 'समीर |
मणिपुर ---------- आईये चलें एक नए राज्य की सैर पर..यह राज्य है मणिपुर. मणिपुर नाम से मणिपुरी नृत्य की याद आ जाती है.बनस्थली में मैंने भी यह नृत्य सीखने की कोशिश की थी. जो पूरी नहीं हुई..खैर,उन शिक्षिका के रूप में पहली बार मणिपुर की किसी महिला से मिलना हुआ. वैसे तो महानगरों में मणिपुर राज्य के लोग आप को अक्सर दिखाई दे जायेंगे. इन बातों से हट कर ,इस राज्य के बारे में बताती हूँ.. यह राज्य भारत के पूर्वी सिरे पर स्थित है. इसके पूर्व में म्यांमार (बर्मा) और उत्तर में नागालैंड राज्य हैं , इसके पश्चिम में असम राज्य और दक्षिण में मिजोरम राज्य और म्यामांर हैं.कुल क्षेत्रफल 22,327 वर्ग किलो मीटर है. इस राज्य में ९ जिले हैं. राजधानी इम्फाल है. भाषा मणिपुरी बोली जाती है. मणिपुर में भौतिक रूप से दो भाग हैं, १-पहाडियां और २-घाटी पहाडियों से घिरी मध्य भाग में घाटी है. पहाडियां राज्य के कुल क्षेत्रफल का लगभग 9/10 भाग घेरती हैं! यह पर्वतीय श्रृंखला उत्तर में ऊंची है और धीरे धीरे मणिपुर के दक्षिणी हिस्से में पहुंचने पर इसकी ऊंचाई कम हो जाती है. अधिकारिक site के अनुसार जनसंख्या 2,293,896 है. राज्य की अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार कृषि और संबद्ध गतिविधियां ही हैं लेकिन बढ़ती आबादी के कारण कृषि की हालत भी कमजोर है. राज्य में कृषि के बाद रोजगार की सबसे अधिक संख्या प्रदान करने वाला सबसे बड़ा कुटीर उद्योग हथकरघा उद्योग है.मणिपुरकी साडिया,शोलें बहुत प्रसिद्द हैं.हरथकरघा बुनाई का पारंपरिक कौशल यहां की महिलाओं के लिए न केवल आय का स्त्रोत और प्रतिष्ठा का प्रतीक है बल्कि यह उनके सामाजिक – आर्थिक जीवन का एक अविभाज्य अंग है.सीमा व्यापार को बढ़ावा देने के लिए सीमावर्ती शहर मोरेह में वेयरहाउस, सम्मेलन कक्ष और ठहरने की सुविधा के लिए एक केंद्र भी राज्य सरकार ने स्थापित किया गया है. प्राकृतिक संपदा से भरपूर-- राज्य में घने और खुले वन है, जो राज्य के भौगोलिक क्षेत्र का 77.12 प्रतिशत है! मणिपुर के उखरूल जिले के शिराय गांव के वनो में स्वर्गपुष्प कहे जाने वाले शिराय लिली (लिलियम मैक्लीनी)फूल मिलते है, जो विश्व में किसी भी अन्य स्थान में नहीं होते. इसी प्रकार जूको घाटी में दुलर्भ प्रजाति के जूको लिली (लिलियम चित्रांगद) पाए जाते है। ज्ञात रहे कि मणिपुर अपनी जैव विविधता के लिए प्रसिद्ध है. यहां कई तरह के दुर्लभ पेड़ पौधे और जीव-जंतु भी पाए जाते है. यह ‘संगाई’ हिरण (सेरवस इल्डी इल्डी) का भी निवास स्थान है, जो विश्व की दुर्लभ नस्लो में एक है. यह केबुल लामजाओ के प्राकृतिक अधिवास क्षेत्र में पाया जाता है. 1977 में इस अधिवास को राष्ट्रीय उद्यान घोषित कर दिया गया है-- इसकी अनोखी विशेषता तैरता हुआ पार्क है जिसमें ’फुमडी’ नाम की वनस्पति उगती है. संगाई हिरण इसी वनस्पति पर निर्भर है. इसके अलावा भांगोपोकपी लोकचाओ वन्यप्राणी अभयारण्य को संरक्षित क्षेत्र घोषित किया गया है. और हाँ ..यहाँ के वनों में टेक्सस बकाटा, जिनसेंग जैसे दुर्लभ औषधीय पौधे भी पाए जाते है. जानते हैं इस राज्य के इतिहास के बारे में-- ऐसा माना गया है कि ईसा से पूर्व भी यहाँ का इतिहास बहुत शानदार रहा है.राजवंशों का लिखित इतिहास सन् ३३ [तैतीस]से मिलता है.यह इतिहास पखंगबा के राज्यभिषेक के साथ शुरू होता है और उसके बाद कई राजाओं ने यहाँ राज्य किया.मणिपुर की स्वतंत्रता और संप्रभुता 19वीं सर्दी के शुरू तक बनी रही.मगर उस के बाद (1819 से 1825 तक) बर्मी लोगो ने यहां पर कब्जा करके शासन किया.ब्रिटिश शासन ने १८९१ में इस पर कब्जा किया.1947 में बाकि देश के साथ स्वतंत्र हुआ. 26 जनवरी 1950 को भारतीय संविधान लागू होने पर यह एक मुख्य आयुक्त के अधीन भारतीय संघ में भाग ‘सी’ के राज्य के रूप में शामिल हुआ था. 21 जनवरी, 1972 को मणिपुर को पूर्ण राज्य का दर्जा मिला और उस समय 60 निर्वाचित सदस्यों वाली विधानसभा गठित की गईं. यहाँ मनाये जाने वाले त्यौहार-- कहते हैं मणिपुर में पूरे साल ही कोई न कोई त्यौहार मनाया जाता है.. प्रमुख त्योहार हैं-- लाई हारोबा, रास लीला, चिरओबा, निंगोल चाक-कुबा, रथ यात्रा, ईद-उल-फितर, इमोइनु,गान-नागी, लुई-नगाई-नी, ईद-उल-जुहा, योशांग(होली) दुर्गा पूजा, मेरा होचोंगबा, दिवाली, कुट तथा क्रिसमस आदि मणिपुर कैसे जाएँ?-- १-सड़कें: 3 राष्ट्रीय राजमार्ग - i) रा. रा. - 39, ii) रा. रा - 53 और iii) रा. रा १५० हैं. सभी पडोसी राज्यों से सड़क मार्ग से आवागमन की सुविधा है. २-उड्डयन: इम्फाल हवाई अड्डा पूर्वोत्तर क्षेत्र में राज्य का दूसरा सबसे बड़ा हवाई अड्डा है, जो क्षेत्र के क्षेत्र को आइजोल, गुवाहाटी, कोलकाता, सिल्चर और नई दिल्ली को जोड़ता है. ३-रेलवे: मई 1990 में जिरिबाम तक रेल लाइन पहुंचाने के साथ ही यह राज्य भी देश के रेल-मानचित्र में शामिल हो गया है. यह इंफाल से 225 कि.मी. दूर है. इंफाल से 215 कि.मी. की दूरी पर स्थित दीमापुर निकटतम रेलवे स्टेशन है. क्या देखें??- मुख्य पर्यटन केंद्र हैं-— कांगला, श्री श्री गोविंदाजी मंदिर[जिसे हमने मुख्य पहेली में पूछा था.], ख्वाराम्बंद बाजार (इमाकिथेल), युद्ध स्मारक, शहीद मीनार, नूपी लेन (स्त्रियो का युद्ध) स्मारक परिसर, खोगंमपट्ट उद्यान, विष्णु मंदिर, सेंदरा, मारह, सिरोय गांव सिरोय पहाडिया, ड्यूको घाटी, राज्य संग्रहालय, केनिया पर्यटक आवास, खोग्जोम युद्ध स्मारक परिसर आदि. ''सम्बन्लेई सेकपिल''[sambanlei ] इम्फाल में ही तीन किलोमीटर दूर गिनिस बुक ऑफ़ रिकॉर्ड में दर्ज दुनिया का सब से लंबा पौधा ..Duranta repens Linn.-नीलकंठ के फूल का है.जो आम तौर पर २० फीट से ऊँचा नहीं बढ़ता. ' ''सम्बन ली सेकपिल 'नाम का यह अनोखा पौधा आसमान को जाने वाली सीढ़ी के नाम से भी मशहूर है.इस समय इस की ऊँचाई ६१ फीट है और इसमें ४४ पायदान बनायी गयी हैं. Shri Moiranthem Okendra Kumbi ने इसे उगाया है और वही इस को इस तरह से बढा कर रहे हैं.विस्तार से पढने के लिए यहाँ क्लिक करें-http://imphalwest.nic.in/sambanlei.html पश्चिमी इम्फाल में आप गोविन्द जी का मंदिर देखने जाएँ तो इसे भी देखना न भूलें. अब मैं आप को इम्फाल के श्री श्री गोविन्दजी के मंदिर के बारे में बताती हूँ-- यह मंदिर १८ वि शताब्दी में राज्यश्री भाग्यचन्द्र के शासन काल में बनवाया गया था. इस मंदिर का खासा ऐतिहासिक महत्व बताया जाता है. यह मणिपुर के पूर्व शासकों के महल के पास ही बनवाया गया था. इस मंदिर के ऊपर दो खूबसूरत सुनहरे गुम्बद हैं.और बाहर लगी है एक बहुत बड़ी घंटी.मंदिर में मुख्य रूप से विष्णु जी की मूर्ति है जिस के एक तरफ राधा -गोविन्द ,बलराम ,और कृष्ण की मूर्ति हैं उनके दूसरी तरह जनन्नाथ ,बालभद्र और सुभद्रा की मूर्तियाँ लगी हुई हैं. त्योहारों के समय इस मंदिर की रौनक देखते ही बनती है. होली[दोलिजात्रा ] के समय यहाँ पांच दिन ख़ास आयोजन होते हैं.वह समय यहाँ आने के लिए सर्वश्रेष्ठ है.उन दिनों सारी रात लड़के लड़कियां यहाँ का लोक नृत्य' थाबल चंग्बा 'करते हैं. देखीये इसी अवसर के कुछ अन्य चित्र -
इस राज्य के बाद आप को ले चलेंगे किसी ओर राज्य की सैर पर अगले हफ्ते...तब तक के लिए नमस्कार. |
कल मित्रता दिवस था। इस अवसर पर मुझे दुनिया की पौराणिक कथाओं मे वर्णित अमर मित्रताओं की एक झलक को संजोने का अवसर मिला और यह कल एक समाचार-पत्र में प्रकाशित हुई। अगले हफ्ते फिर मुलाकात होगी.. तब तक के लिए हैपी ब्लॉगिंग :) |
दो दोस्त एक जंगल से गुजर रहे थे , उनकी यात्रा के दोरान किसी विषय पर विचार विमर्श करते करते उन दोनों में आपस में बहस हो गयी और गुस्से में आकर एक मित्र के चेहरे पर दूसरे मित्र ने थप्पड़ मार दिया. जिसको थप्पड़ लगा उसे बहुत ही दुःख हुआ और उसने बिना कुछ भी कहे रेत पर लिखा " आज मेरे प्रिय मित्र ने मेरे चेहरे पर थप्पड़ मारा. " वे दोनों चलते रहे , जब तक उन्हें एक दरिया नहीं दिखाई दिया., दरिया दीखते ही दोनों ने नहाने पर सहमती बनाई. नहाते हुए अचानक जिसको थप्पड़ लगा था वह व्यक्ति डूबने लगा...उसे डूबता देख कर उसके मित्र ने उसकी जान बचाई और उसे दरिया से बाहर निकाल लाया. जब डूबने वाले व्यक्ति ने अपनी घबराहट और डर पर काबू पा लिया तब उसने एक पत्थर पर लिखा " आज मेरे प्रिय मित्र ने मेरी जान बचाई". जिस मित्र ने जान बचाई और पहले थप्पड़ मारा था वह बोला " जब मैंने थप्पड़ मारा और तुम्हे दुखी किया तब तुमने रेत पर लिखा और अब जब मैंने तुम्हे डूबने से बचाया तो तुमने पत्थर पर लिखा...ऐसा क्यूँ???" तब दूसरा मित्र मुस्कुराया और बोला , जब हमे कोई दोस्त दुखी करता है तब हमे रेत पर लिखना चाइये ताकि माफ़ी की हवाए उसे मिटाने को चलने लगे और जब कोई मित्र हमारे लिए कुछ नायाब करे या हमारी जान बचाए तब हमे दिल की स्मृति के पत्थर में जहां कोई हवा उसे ना मिटा सके वहां नक़्क़ाशी करना चाहिए ." कहानी का नैतिक मूल्य हमें रेत में लिखने के लिए सीखना चाहिए |
नैनीताल की शान माने जाने वाला रोपवे जो आज नैनीताल के पर्यटन में अपना विशेष स्थान रखता है। इसकी शुरूआत 16 मई 1985 को की गई थी। इस रोपवे का उदघाटन उस समय उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे नारायण दत्त तिवारी ने किया था। इस इस रोपवे को नैनी त्रिवेणी इलाहाबाद और वैस्ट अल्पाइन कम्पनी अस्ट्रीया के द्वारा बनवाया गया था। इसमें 800 किग्रा. का वजन एक बार में ले जाया जा सकता है। यह मल्लीताल रिक्शा स्टेंड से स्नोव्यू तक जाती है। इसकी अधिकतम गति 6 मीटर प्रति सेकेण्ड है और यह 700 मीटर की दूरी को लगभग 5 मिनट में तय कर लेती है। यह दूरी सड़क द्वारा 2.5 किलोमीटर की है। इसे बनाने का मकसद सिर्फ पर्यटकों को एक अच्छा मनोरंजन उपलब्ध करवाना है जो यह आज भी कर रही है। इस रोपवे का वार्षिक टर्नओवर लगभग 1 करोड़ का है और यह 30 प्रतिशत मनोरंजन कर सरकार को देती है। |
गोविन्द गट्टा राजस्थान के स्वादिष्ट खाने मे आज हम गोविन्द गट्टा की सब्जी बनाऐगे। वैसे तो कुछ किलोमीटर के अन्तराल मे भाषा, पहनावा, रितरिवाज बदल जाते उसी तरह खाना बनाने कि विधि मे भी थोडा सा तरीका बदल जाता है। जयपुर एवम उसके आस-पास गट्टे की सब्जी मे बेसन के गोल आकार मे गट्टे ( गुलाबजामुन के आकार मे ) बनाकर ग्रेवी मे डाले जाते है। तो मारवाड (जोधपुर) मे पतले रोल बनाकर उसे छोटे-छोटे चार-पॉच टूकडे मे काटकर मिलाया जाता है। मैने विधि लिखने के पुर्व घर पर दोनो प्रकार के गट्टे बनाए है। और दोनो ही स्वादिष्ट बने। सामग्री:- 200 gm. बेसन, 30 ml. (मिलीलीटर) तेल, 50 gm. दही, 10 gm. लहसुन (ईच्छानुसार) 5 gm. साबूत धनिया, 3 gm. जीरा, 3 gm. अजवाईन, 5 gm. हल्दी पाउडर, 5 gm. सरसो, लालमिर्च पाउडर, नमक स्वाद अनुरुप, एवम थोडी सी कटी धनियापत्ती। विधि:- एक बरतन मे बेसन ले। बडा चम्मच दही, साबूत धनिया, अजवाईन,जीरा, तेल,नमक, मिलाईये। आवश्यकता अनुसार पानी डालकर कडा बेसन गून्ध ले। कुकर या पतीले मे एक से डेढ गिलास पानी ले। गून्ध हुए बेसन के गोल आकार मे गट्टे (गुलाबजामुन के आकार मे ) बनाकर कुकर या पतीले मे रख कर स्टीम करे। ग्रेवी के लिए:- पैन मे तेल गरम करे। जीरा,अजवाईन, व स्वादानुसार नमक डाले। थोडीलाल मिर्च पाउडर एवम बाकी दही डाले । अच्छी तरह मिलाईये। इस ग्रेवी मे उबले हुए बेसन के गट्टे डाले। अब इसे अच्छी तरह पकाये। धनियापत्ती से सजाये। सादा रोटी, बाजरे की रोटी या बाटी के साथ सर्व करे। नोट-: कही कही गोविन्द गट्टे के अन्दर मावा और ड्राई फ्रुट भी भरे जाते है। ***** Mr.Garlic............. गोविन्द गट्टे बनाने थे. समान लाने सब्जी मन्डी गई थी. पीछे से कोई जोर जोर से चिल्ला रहा था, बहिनजी....बहिनजी! मुडकर देखा तो तो सब्जी के टोकरे से लहसुन मुझे देख मुस्करा रहा था। "प्रेमा बहनजी! कैसे है ? मै जानता हू आप जैन है, और चातुर्मासकाल (चार महीना)मे ना आप मुझे घर लेकर जाते है और ना ही खाते है.......... पर!" "पर... क्या ? बोल!" सुना है आजकल आपने "ताऊ डाट ईन" पर 'भिन्डा-भिन्डी' की खुब तारीफ़ कर दी है. तब से भिन्डी अपने आपको एश्वर्या राय समझने लगी है। कभी हमारा भी 'ताऊ डाट ईन' मे फ़ोटु छपवा दो ना!". "ठीक है ठीक है... लहसून! पर तेरे मे क्या विशेषता है जो ताऊ के पाठको को तेरे बारे मे बताऊ ? " "प्रेमा बहीन! तो सुनो मेरी विशेषताओ से भरे गुणो को।" * लहसून- "प्राचीन शास्त्रो के आधार पर मेरी उत्पत्ति के सन्दर्भ मे एक रोचक किदवन्ति प्रचलित है. कहा जाता है कि जब गरुड ने भगवान इन्द्र से अमृत का हरण किया इसी बीच अमृत की एक बुन्द भूमि पर गिर पडी। वह बुन्द एक पोधा को जन्म देती है. जो "रसोन" सज्ञा से प्रख्यात हुआ है।" * हिन्दी मे 'लहसून' नाम से विश्रुत हू एवम सस्कृत मे वैदो ने मुझको ‘रसोन‘ नाम से घोषित किया है. * मेरा आयुर्वेद ने षट रसो मे प्रतिपादन किया है।" * मै अमृत समकक्ष हू।" * लहसून-" मुझे एवम अमचूर दोनो को सम मात्रा मे पीसकर लगाने से बिच्छू का विष उतर जाता है।" * लहसून-"मेरा पाक बनाकर खाने से पक्षघात की शिकायत मे लाभ होता है।" * लहसून- "मेरा रस गर्म पानी के साथ सेवन करने से दमे कि बिमारी ठीक हो सकती है।" * लहसून-"जो प्रतिदिन मेरी एक कली को खा ले तो उसका रक्त साफ और पतला हो जाएगा." एवम कभी बुखार नही सताऐगा। * लहसून- "आधुनिक शोध ग्रन्थो के आधार पर रासायनिक प्रक्रियाओ द्वारा बेक्टीरिया नाशक तरल प्रदार्थ "एहत्रीसिन" एवम "जैतिकी" तत्व "एहत्रीसेन प्रथम एवम द्वितीय" मेरे मे पाऎ जाते है, ये अन्तिम दोनो ही प्रदार्थ"एन्टीबायोटिक" है. लहसून शर्माते हुए - "बहिनजी! देखो, और यह किताब पढो. विदेशो मे भी अपुन के चर्चे है." हु!" आप भी पढे- Mr.Garlic पहुचा इग्लेण्ड!!!! * इग्लेण्ड के प्रसिद्ध डॉ.एम डब्लू मेकडाफ़ का कथन है-"1082 क्षय रोग के शिकार व्यक्तियो के उपर विभिन्न 56 जाति के प्रयोग किये। बकायदा परिणामो का रिकार्ड रखा गया है। प्रयोग मे क्षय के कीटाणुओ और उसकी वजह से उत्पन्न विभिन्न रोगो पर विश्वनिय रुप से प्रभाव डालने वाली मात्र दो ही औषधिया प्राप्त हुई है। वनस्पति वर्ग मे लहसून और खनिज वर्ग मे पारा है। * एक जवान पैर और पन्जे की हड्डी के क्षय रोग से आक्रान्त था। चिकित्सार्थ वह मेरे पास आया। मैने पैर कटवाने की सलाह दी। रोगी ने पैर कटवाने की बात को नही माना। वह रोगी छ: महिने बाद बिल्कुल तन्दुरस्त हालात मे मुझे मिला। डॉ. से रहा नही गया और पुछ ही लिया-"पैर ठीक कैसे हुआ?" डाक्टरसाहब! मैने लहसुन एवम नमक दोनो को सम मात्रा मे पानी के साथ बारीक पीस कर नियमित रुप से लेप किया. इस लेप का ही चमत्कार है आज मे अपने पैरो पर खडा हू। * जब भी आप घुमने काश्मीर जाए, वहॉ से काश्मीरी छोटी गोल "एक कली लहसून"अवश्य साथ लाऐ। उसे छील कर नित्य भोजन के साथ खाने से हृदय रोग की सम्भावना ना के बराबर हो जाएगी। नोट-: लहसून बहूत तीव्र जलन पैदा करने वाली एवम चर्म दाहक वस्तू है इसके लेप मे सावधानी बरते खासकर बच्चो मे। अब मुझे आज्ञा दीजिए, अगले सप्ताह नई बात अन्य प्रदेश के खाने के साथ.नमस्कार! ( स्तोत्रः स्वास्थ-सजीवनी पुस्तक साध्वी श्री फुलकुमारीजी ) प्रेमलता एम. सेमलानी |
सहायक संपादक हीरामन मनोरंजक टिपणियां के साथ.
अरे हीरू….बोल पीरु पेलवान.. अरे देख ..देख..वो नीरज जाट अंकल का एडमिशन नही हुआ रामप्यारी के स्कूल मे फ़िर..अरे फ़िर क्या…जाट अंकल ने धमकी देदी है.. ला दिखा मेरे को? ले देख ले भिया
अरे वाह…पर यार चल..अब इस बरसात के मौसम मे घूम फ़िर कर आते हैं…यहा घर बैठ कर क्या करेंगे?
हां हां चल.. |
अब ताऊ साप्ताहिक पत्रिका का यह अंक यहीं समाप्त करने की इजाजत चाहते हैं. अगले सप्ताह फ़िर आपसे मुलाकात होगी. संपादक मंडल के सभी सदस्यों की और से आपके सहयोग के लिये आभार.
संपादक मंडल :-
मुख्य संपादक : ताऊ रामपुरिया
वरिष्ठ संपादक : समीर लाल "समीर"
विशेष संपादक : अल्पना वर्मा
संपादक (तकनीकी) : आशीष खण्डेलवाल
संपादक (प्रबंधन) : Seema Gupta
संस्कृति संपादक : विनीता यशश्वी
सहायक संपादक : मिस. रामप्यारी, बीनू फ़िरंगी एवम हीरामन
स्तम्भकार :-
"नारीलोक" - प्रेमलता एम. सेमलानी
ताऊ जी सम्पादकीय अच्छी रही और बाकी के स्तम्भ मनभावन !!!!
ReplyDeletedekha
ReplyDeletepadhaa
anubhav kiya
_____________kuchh le kar jaa raha hoon
dhnyavaad tau ji !
dhnyavaad sameer ji !
dhnyavaad aashish ji !
____man halka ho gaya
abhinandan aapka ................
एक औऱ संग्रहणीय अंक.. हैपी ब्लॉगिंग :)
ReplyDeleteवाह सभी स्तम्भ एक से बढ़कर एक -समीर जी की व्यथा ,अल्पना जी की कथा ,खंडेलवाल jee की मित्रकथा ,सीमा जी की बोध कथा -और नारीलोक का व्यंजन सभी कुछ तो !
ReplyDeleteजानकारी से भरपूर अंक
ReplyDeletewaah ek aur rangbirangi gyanwardhak ank,bahut khub raha.
ReplyDeleteहमेशा की तरह ज्ञानवर्धक और सराहनीय पोस्ट।
ReplyDeleteबधाई!
जानकारी से भरपूर एक और अच्छा अंक। समीर भाई की बात पर इतना कहना है कि लेखन शब्दों के इस्तेमाल का कमाल है। सही स्थान पर सही शब्दों का प्रयोग कभी अश्लील नहीं होता। जाँच ऐसे होगी कि आप का लिखा क्या प्रभाव पाठकों पर छोड़ रहा है।
ReplyDeleteसमीर जी की बात पसंद आई-
ReplyDeleteचाँद पर देख आमद कुछ इन्सानी
चाँदनी आ मेरे अंगना टहल रही है
जबसे बदली है मैने दुनिया अपनी
देखता हूं सारी दुनिया बदल रही है.
सीमा जी की बात गॉंठ बॉंध ली, याद रखनेवाली बात।
बाकी स्तंभ भी अच्छे हैं। ताऊ जी को मेरा प्रणाम।
बहुत ही सुपर हिट ताऊ जी लगता है इस बार संपादक मंडल के पसीने छूट गये होंगे लिखते लिखते बहुत बदिया पोस्ट बधाई सब को
ReplyDeleteइस पत्रिका को दिन - दूनी रात -चौगुनी शोहरत देने में लगे पूरे सम्पादकीय मंडल को बहुत बहुत धन्यवाद और बधाई..
ReplyDeleteबढ़िया जानकारी दी है ..समीर जी की बातों से सहमत
ReplyDeleteबहुत ही ज्ञानवर्धक एवं सराहनीय अंक।
ReplyDeleteसमीर लाल जी का मशवरा,आशीष जी द्वारा मित्रता के संदर्भ में दी गई कथाएं,अल्पना जी द्वारा मणिपुर के बारे में दी गई जानकारी,सीमा जी की बोधकथा,साथ में नारीलोक में दिए गये स्वादु व्यंजन और आपका सम्पादकीय सब के सब सहेजने लायक्!!
धन्यवाद्!!!
(ताऊ जी, जो होशियारपुर में एटीम वाली डकैती हुए थी, उसके अभियुक्त एक जेलर का लडका ओर भांजा निकले!!)
समीरलाल जी की समझाइश, अल्पना जी का मणिपुर दिग्दर्शन, सीमाजी की नीतिगत कहानी, आशीष खंडेलवाल जी की दोस्ती, विनीताजी का नानिताल रोपवे, प्रेमलता जी का गोविन्द गत्ता, सब कुछ मन को भा गया. वैसे हम थोडा थक भी गए थे परन्तु ग्रेवी थी न.
ReplyDeleteपत्रिका हमेशा की तरह अपने पूरे फ्लेवर के साथ जम रही है !
ReplyDeleteआज इन पंक्तियों के आगे कुछ लिखना बेमानी सा है !
सम्पूर्ण जीवन दर्शन समाया है इनमें :
जबसे बदली है मैने दुनिया अपनी
देखता हूं सारी दुनिया बदल रही है.
आज की आवाज
लहसुन वाकई बहुत उपयोगी है...सच है नकारात्मक अनुभव रेत पर ही लिखे जाने चाहिए...मुश्किल जरुर है ...याराने बढ़िया हैं...मनिपुर घूमना बाकी है ...श्लील अश्लील परिस्थितियां तय करती हैं ...अतिशयोक्ति देखनी हो तो कुछ टिपण्णीयां देखें ...बढ़िया अंक
ReplyDeleteएक बार फिर बेहतरीन प्रस्तुति.. वाहवा...
ReplyDeleteताऊजी! आपने सही कहा है- हमारा यूवा दिग्गभ्रमित हो चुका है। चोरी-डैकेती उनका मुख्य घैय बन चुका है। नैनिकता की कमी ने उन्हे दिशाहीन बना दिया है। आपने आज दो घटनाओ का उलेख किया पढकर मन आक्रोश से भर गया कि यह सभी अपने देश मे क्या हो रहा है ? आपने लोगो को जागृत करने के लिऍ अच्छा प्रयास किया.
ReplyDeleteआभार/शुभमगल
मुम्बई-टाईगर
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समीरभाईजी,-'शील और अश्लील लेखन' विधा के बारे मे जो तार्किक बाते बताई. इस और सभी लेखको को शान्ति पुर्ण गहन चिन्तन करना ही चाहिए। समीरजी ने भी आज लेखन मे नैतिकता पर बल दिया जो उद्देश्यपुर्ण लगा.
ReplyDeleteआभार/शुभमगल
मुम्बई-टाईगर
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अल्पनाजी वर्मा ने मणीपुर राज्य की सम्पुर्ण जानकारी प्रदान कर हम पाठको के ज्ञान मे वृद्धि की। साथ सभी फोटुओ लेख मे चार चॉन्द लग गए।
ReplyDeleteआभार/शुभमगल
मुम्बई-टाईगर
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आशीषजी खण्डेलवाल ने ये दोस्ती हम नही तोडॅगे गाने की याद को ताजा कर दिया। दोस्ती दिवस की शुभकामानाए।
ReplyDeleteआभार/शुभमगल
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समीजी, ने आशिषभाई के याराना जानकारी मे अपनी बात जोड ताऊ पत्रिका के क्रमवारलेखन को और महर्वपुर्ण दिशा प्रदान की । मैने सीमाजी की इन बातो को अपनी डायरी मे नोट करने को प्रेरित किया.
ReplyDelete-"तब दूसरा मित्र मुस्कुराया और बोला , जब हमे कोई दोस्त दुखी करता है तब हमे रेत पर लिखना चाइये ताकि माफ़ी की हवाए उसे मिटाने को चलने लगे और जब कोई मित्र हमारे लिए कुछ नायाब करे या हमारी जान बचाए तब हमे दिल की स्मृति के पत्थर में जहां कोई हवा उसे ना मिटा सके वहां नक़्क़ाशी करना चाहिए ."
आभार/शुभमगल
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-सुश्री विनीताजी यशश्वी नैतिताल के रोपवे से झुडी बातो से हमे अनुग्रहीत किया -आभार
ReplyDelete.........................
-प्रेमलताजी एम. सेमलानी ने गोविन्द गट्टा खिलाकर मन प्रसन्न कर दिया। Mr.Garlic............. से प्रेमलताजी की बाते मजेदार शिक्षाप्रद लगी-आभार
..................
"मैं हूं हीरामन" जी भाई साहब का दरबार मे समीरजी का फोटू देख सोच रहा हू ये समीर भाई कोन कोन सी विधाओ मे माहिर है। हमारे समीर दादा ६४ कलाओ का खजाना लगते है
............
कुल मिलाकर ताऊ डॉट ईन को 100 मे से 100 अक देना चाहता हू।
आभार/शुभमगल
मुम्बई-टाईगर
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मणिपुर के बारे में बहुत अच्छी जानकारी मिली निवेदन है कि पूर्वी राज्यों की पूरी जानकारी प्रदान करें क्योंकि इन राज्यों के बारे में बहुत ही कम लिखा गया है।
ReplyDeleteसमीर जी की बात सही है कि लेखनी में संयम होना चाहिये और शब्दों के चयन में सावधानी बरतनी चाहिये। मैंने अभी थोड़े दिन पहले श्रावण मास स्वाति नक्षत्र और "चातक" के ऊपर एक पोस्ट लिखी थी जिसमें महाकवि कालिदास रचित "मेघदूतम" से एक श्लोक लिया था और उसका तात्पर्य बताया था। इसमें भी बहुत कुछ लिखा है पर शब्दों को संयम से चुना गया है मर्यादा में रखा गया है। शायद इन सस्ते लोकप्रियता वाले लेखकों और चिंदीचोरों को समझ में न आई हो वो क्लिष्ट हिन्दी।
http://kalptaru.blogspot.com/2009/07/blog-post_29.html
वाह ! सतरंगी पत्रिका की बात ही कुछ और है !
ReplyDeleteउड़नतस्तरी जी ने क्या खूब कहा ....
ReplyDeleteजबसे बदली है मैने दुनिया अपनी
देखता हूं सारी दुनिया बदल रही है
अल्पना जी ने मणिपुर की सैर बढ़िया करायी .
आशीष जी का -वो याराना दोस्ती का बेमिसाल नमूना दर्शाती हुयी पोस्ट
सीमा जी के नैतिक मूल्यों को समझाती कहानी उम्दा रही
यशश्वी जी तो नैनीताल की याद ताज़ा करवा देतीं हैं ...अपने बचपन व कॉलेज के दिन याद आ जातें हैं :)
प्रेमलता जी की विधि से बनाया गया..गोविन्द गट्टा ...बहुत स्वादिस्ट बना ,और लहसन इतना गुणकारी है?
हीरामन जी महाराज..
नीरज जी होनहार बालक हैं..स्कूल का नाम रोशन कर देंगे ..देश भर की सैर भी कराएँगे ..सिफारिस कर रही हूँ..कर देना ऐडमिशन दोस्त :))
ताऊ जी
वक्त निकाल कर पत्रिका पढने का आनंद आ जाता है ...बहुत जानकारियों के साथ मनोरंजन करती हुयी सी सुन्दर पत्रिका !!!
धन्यवाद एवं आभार !!
@ मुख्य संपादक महोदय,
ReplyDeleteजब वरिष्ठ संपादक थके हुए हैं उनकी तबियत ठीक नहीं है तो उनसे इतना काम क्यों लिया जा रहा है :)
वैसे सलाह अच्छी देते हैं, मैं सबसे पहले इनकी सलाह ही पढ़ता हूँ .
ये अंदाज बहुत भाया...
ReplyDeleteचाँद पर देख आमद कुछ इन्सानी
चाँदनी आ मेरे अंगना टहल रही है
जबसे बदली है मैने दुनिया अपनी
देखता हूं सारी दुनिया बदल रही है.
और ये बात..
जब हमे कोई दोस्त दुखी करता है तब हमे रेत पर लिखना चाइये ताकि माफ़ी की हवाए उसे मिटाने को चलने लगे और जब कोई मित्र हमारे लिए कुछ नायाब करे या हमारी जान बचाए तब हमे दिल की स्मृति के पत्थर में जहां कोई हवा उसे ना मिटा सके वहां नक़्क़ाशी करना चाहिए ."
बहुत खुब..
गोविन्द गट्टे.. मुँह में पानी आ रहा है..
बहुत अच्छा और ज्ञान वर्धक अंक , पसंग बहुत ही विचार पूर्ण हैं
ReplyDeleteपत्रिका दिन दूनी तरक्की कर रही है ताऊ.......... अब तो इंतज़ार रहता है इसका
ReplyDeleteताऊ इस नौकरी के चक्कर में पहेली में भाग नहीं ले पा रहा ..मगर अलगे में अपनी ऐतेंडेनस पक्की ..पत्रिका का क्या कहूँ..एक दम विशिष्ट ..यादगार..आपका प्रयास कमाल है ..आपसे जुड़ना खुशी की बात है ..एक पाठक के रूप में भी..
ReplyDeleteपत्रिका हमेशा की तरह बहुत ही रोचक और जानकारियों से परिपूर्ण है |
ReplyDeleteek aur safal ank ke liye badhaayee.
ReplyDeleteis baar ki patrika govindmayii ho gayi hai.
premlata ji ke bataye govind gatte banaye hain --feedback agli patrika mein...