ताऊ के पास रुपया कमाने वाली अक्ल तो बहुत ही थोक मे थी पर पढने लिखने वाली अक्ल से ताऊ का पाला नही पडा था. पर ताऊ के लडके मे पढने लिखने की अक्ल कुछ पैदायशी तौर पर ही थी सो वो किम्मै घणा पढ लिख गया.छोरा पढ लिख लिया तो स्वाभाविक रुप से कन्याओं के माता-पिताओं के कान भी खडे होने लग गये. इतना पढा लिखा होनहार लडका और ताऊ जैसे धन्ना सेठ का जैसा खानदानी पैसा वाला घर. और क्या चाहिये किसी कन्या के बाप को?
ताई को भी बडा चाव था बहु का. वो भी सही था. क्योंकि जिंदगी मे पहली बार सास बनने का सुख किसी स्वर्ग के सुख से कम नही होता. और ये तो कोई भुक्तभोगी ही बता सकता है. ताई ने अनेक सुशील संभ्रांत घरानों की लडकियां देखी पर ताऊ ने सबको मना कर दिया. आखिर ताऊ का राज समझ मे आया…ताऊ उसी लडकी से अपने लडके का रिश्ता करना चाहता था जिस लडकी का बाप ताऊ से ऊंची हैसियत रखता हो.
अब ताऊ ने अपना लठ्ठ ऊठाकर और मूंछों पर ताव देते हुये एक चौधरी साहब की बेटी ढूंढ ही ली जिसके बाप के पास अथाह दौलत थी. यानि ताऊ से पांच गुनी हैसियत थी लडकी के बाप की. लडकी बिल्कुल अंगूठा छाप..और रईस बाप की औलाद….ताई ने भी मना किया….लडके ने बहुत मना किया. लडका किसी कीमत पर ही तैयार नही हुआ.
उसे ताऊ ने समझाया – अरे बावलीबूच..क्यों आई लक्ष्मी को ठोकर मारता है? तेरे को कौन सी नौकरी करवाने की जरुरत है? घर ही तो संभालना है. भगवान का दिया सब कुछ है…लडकी सुंदर है..थोडी उज्जड और गंवई है सो यहां रहेगी तो सब फ़रवट हो जायेगी. और फ़िर इस खानदान की लडकी से ब्याह करने को तो बडे बडे लोग भी तरसते हैं.
ताऊ के सामने देवताओं कि नही चली तो ताई और लडके का विरोध ताऊ के सामने क्या चलता? सो ताऊ ने तगडा माल वसुलते हुये धूमधाम से शादी कर दी. अब लडकी अनपढ थी . ससुराल मे सबसे तू तडाक से बात करती थी. ताऊ को सीधे ही..ओ ताऊ..चल रोटे पाड ले..घणी देर तैं ठण्डे हो रे सैं….बात तो ताऊ को चुभती थी..कि ये मुझे पिताजी क्यों नही पुकारती? पर ताऊ बोले तो किसको बोले?
और ताई को पहले ही दिन कुछ युं बुलाया – अरे ओ बुढिया..तैं के बैठी बैठी माला फ़ेरण लाग री सै? चल जल्दी तैं यो भरोटा ( गठ्ठर ) ऊठा और सानी ( पशुओं का चारा ) काट ले. ताई ने उसको समझाया कि बेटी, इस तरह तू तडाक से मत बोला करो. ये अच्छी बात नही है. सबको आप और जी लगा कर बुलाया करो. बहु बोली - जी ठीक सै माताजी. इब इसी तरियां सम्मान पुर्वक ही बुलाऊंगी सबको.
एक दिन पशुओं के बाडे मे से भैंस का पाडा सांकल तुडाकर भीतर घर के आंगन मे आगया. उसके अंदर आते ही बहु जोर से चिल्लाकर बोली – अरे सास जी, देखोजी भैंस जी का पाडा जी खुल कर घर मे आगया जी.
ताई ने आकर भैंस के कटडे को पकडा और बोली – बिनणी, भैंस और पाडे को जी लगाने की जरुरत नही है. समझी?
बहु बोली - जिस्यो सासुजी को लाडोजी, बिस्यो भैंस जी को पाडोजी. तो मैने क्या गलत कहा सासुजी? बहुत बहस के बाद ये बात अनपढ बहु के समझ आयी. और बहु की तेज और ऊंची आवाज से चिढकर ताई बोली – बिनणी, जरा धीरे बोला करो. बहु बेटी को इतनी जोर से चिलाकर बात करना शोभा नही देता. बहु बोली – बिल्कुल सासुजी, इब मैं बिल्कुल दबी जबान मे ही बात किया करुंगी.
अब एक दिन लम्बे चौडे घर मे एक तरफ़ आग लग गई. बहु चुपचाप खडी तमाशा देख रही है. धुंआ जब ज्यादा फ़ैला तब ताई को खबर हुई और वो आकर चिल्लाई – अरे बिनणी, तू इतनी देर से खडी तमाशा देख रही है? जब आग लगी थी तभी चिल्लाकर सबको बुलाना था ना? अब आग कितनी फ़ैल चुकी है?
बहु बोली - सासुजी, आपने ही तो कहा था कि बहु बेटियों को आहिस्ता २ बोलना चाहिये? मैं कितनी देर से धीरे धीरे बुला रही हूं सबको – कि कोई आजाओ..हमारे यहां आग लगी है. पर कोई सुनता ही नही ? यहां सब कैसे लोग हैं?
ताई ने अपने भाग्य को कोसते हुये कहा - मुर्ख को टका (रुपया) देदेना चाहिये पर अक्ल नही देनी चाहिये.
पंडित जी से बिल्कुल सीधी बातचीत |
कथ्य बहुत रोचक यहाँ ताई ताऊ नेक।
ReplyDeleteऐसी बहू की कामना जो लाखों में एक।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.
"मूर्ख को टका (रुपया) दे देना चाहिये पर अक्ल नही देनी चाहिये।"
ReplyDeleteमूर्ख के लिए उल्टी और बुद्धिमान के लिए सीधी सीख।
राम-राम।
मजा आ गया। इसी तरह की एक कहानी मैंने भी पढ़ी है। लगता है सभी भाषाओं ऐसी कहानियां हैं।
ReplyDeleteवाह ताऊ जी आप के साथ कैसे -कैसे हादसे होते रहतें हैं .
ReplyDeleteएक पहेली पूछ रहा हूँ कोई सही जवाब देगा?
ReplyDeleteइस कहानी में मूरख कौण? ताऊ या बीनणी?
मुर्ख को टका (रुपया) देदेना चाहिये पर अक्ल नही देनी चाहिये.
ReplyDelete-चलो समझ तो आई!!
कल पंडित जी से मुलाकात का इन्तजार है.
द्विवेदी जी !
ReplyDeleteकौनौ नाहीं .
अब तर्क मत पूछीयेगा . वकील नहीं जो तर्क करुँ . सिर्फ अकल और लाठी के जोर से बात मनवाता हूँ .
अपने देश में तो संवाद ऐसे ही चला करे . सनातन परंपरा है अपनी . कोई कल का संविधान थोड़े ही है .
( सन्दर्भ : अभी हाल में संपन्न हुयी , भारत के प्रथम राष्ट्रपति डा. राजेंद्र प्रसाद जी की १२५ वीं जयंती समारोह में लालू ने कायस्थों को अपने साथ जुड़ने का आमंत्रण देते हुए कहा की .........अगर कलम { यानी अक्ल } और लाठी का एका हो जाये तो बिहार में क्रांति कर दे ......... :):):)
राम राम !
" तड़का "
लग गई अक्ल ठिकाने ताऊ?
ReplyDeleteराम राम
सत्य वचन ताऊजी,
ReplyDeleteसत्य वचन!!
ReplyDeleteअब ताऊ तन्ने गड़बड़ की तो सम्हालेगा कौन, सारी मुसीबत पड़ गयी ताई के गले में...बेचारी ताई.
ReplyDeleteकोई इलाज तो ढूंढो :)
@ राजसिंह -
ReplyDeleteबिहार में क्रांति की आशा की जाये!
अक्ल बड़ी या बहू.
ReplyDeleteताऊ या बहु णै मंत्री बणवा दो मायवती सरकार मे . या फ़ैर विदेश मंत्री मनमोहन सरकार मे सही रहैगी.यू सरकार बी तो जिब भारत के मतलब की बात होवे धीरे से बोल्ये अर जिब अमरिका इटली के मतलब की बत होवे जोर जोर से बोल्ये है :)
ReplyDeleteमजा आ गया ताऊ जी
ReplyDeleteबढिया से ताऊ जी... दोनों हाथों में लड्डू कौना मिलते इस दुनिया में.
ReplyDeleteताऊ जी! म्हारी तरफ तै घणी जोरदार बधाई, इस पोस्ट खात्तर........आज तो जम्मीं मन प्रसन्न हो गया. कडै की बात कडै घुमाई!! थारी यो आज आल्ली रचना तो समझो बैस्ट है.
ReplyDeleteसही सीख, किसी को अक्ल देना, अपने लिए मुसीबत मोल लेना।
ReplyDelete-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
ताऊ तेरी लाइफ के किस्से बहुत मजेदार होते हैं....
ReplyDeleteमीत
मजा आ गया ताऊ मजा आ गया गज्ब बहू डूडी ताई के लिये बहुत बडिया कहानी
ReplyDeleteताऊ पैसे कमाने के कोई चांस नही छोडता और अब भुगतने पड रहे हैं ताई को.:)
ReplyDeleteपंडितजी के परिचय का इंतजार है.
ताऊ इबकै आया ऊंट पहाड के नीचे. घणी चोखी बिनणी ल्याया सै. इब भुगत.:)
ReplyDeleteक्योंकि जिंदगी मे पहली बार सास बनने का सुख किसी स्वर्ग के सुख से कम नही होता. और ये तो कोई भुक्तभोगी ही बता सकता है.
ReplyDeleteताई से अच्छी तरह कौन बता सकता है?;)
क्योंकि जिंदगी मे पहली बार सास बनने का सुख किसी स्वर्ग के सुख से कम नही होता. और ये तो कोई भुक्तभोगी ही बता सकता है.
ReplyDeleteताई से अच्छी तरह कौन बता सकता है?;)
क्योंकि जिंदगी मे पहली बार सास बनने का सुख किसी स्वर्ग के सुख से कम नही होता. और ये तो कोई भुक्तभोगी ही बता सकता है.
ReplyDeleteताई से अच्छी तरह कौन बता सकता है?;)
ताऊ को सीधे ही..ओ ताऊ..चल रोटे पाड ले..घणी देर तैं ठण्डे हो रे सैं….
ReplyDeleteताऊ अब तुम्हारा इलाज ये बहु ही करेगी. भगवान ने बहुत बढिया किया जो तेरे छोरे के लिये ऐसी बिनणी दी. पर बेचारी सीधी साधी ताई को क्यों परेशान करवा रहा है?
रामराम.
बहुत सही किस्सा सुनाया ताऊ, आखिर पैसे के पीछे भागने वालों का यही हाल होता है.
ReplyDeleteभोत सही सीख दी है. मूर्ख से माथापच्ची बेकार है. पिसा के लालच में ताऊ ने अपने पैर पर कुल्हाड़ी मार ली.
ReplyDelete"जिस्यो सासुजी को लाडोजी, बिस्यो भैंस जी को पाडोजी." हा हा !
ReplyDeleteमुर्ख को टका (रुपया) देदेना चाहिये पर अक्ल नही देनी चाहिये.
ReplyDeleteTai ne ye shekasha achhi di...mai to ise aaj se hi manna shuru karne wali hu...
ताऊ, बात तो आप ने सॊ टके की कही, ओर मजाक मजाक मै बहुत काम की बात कह दी, जिन पर बीतती है वो ही जाने, ऎसे मामलो मै ज्यादा तर लाल्ची लोग फ़ंसते है ,या फ़िर सीधे साधे लोग, बाकी आप दिनेशराय द्विवेदी के सवाल का जबाब जरुर देवें, वेसे यह बहू तो अनपढ थी, पढी लिखी इस से दो क्दम आगे ही होती.
ReplyDeleteधन्यवाद
ताऊ राम राम कैसे हैं आपके ब्लाग के माहौल आज काफी दिनों बाद आने के लिए सभी से माफी मांग रहा हूं
ReplyDeleteलेख पढा मजा आ गया और अंत की लाईन में एक सीख भी मिल गई
ताई ने अपने भाग्य को कोसते हुये कहा - मुर्ख को टका (रुपया) देदेना चाहिये पर अक्ल नही देनी चाहिये.
बेहतरीन लिखा है ताऊ
Waah ! Jabardast seekh deti hui lajawaab rochak katha..
ReplyDeleteAasah hai taau ki halat se log shiksha lenge.
रोचक किस्सा .
ReplyDeleteबढ़िया सीख मिली !
मजा आ गया। आप के साथ कैसे -कैसे हादसे होते रहतें हैं?
ReplyDeleteबहुत रोचक ,मजेदार और ज्ञान वर्धक किस्सा |
ReplyDeleteसत्य वचन ताऊ जी
ReplyDeleteवाह वाह्!! जिन दिनों आप पहेली नही सुना रहे होते उन दिनों हास्य की सेवा करते हैं!! इसे ऐसा ही चलने दें!!
ReplyDelete-- शास्त्री फिलिप
-- बूंद बूंद से घट भरे. आज आपकी एक छोटी सी टिप्पणी, एक छोटा सा प्रोत्साहन, कल हिन्दीजगत को एक बडा सागर बना सकता है. आईये, आज कम से कम दस चिट्ठों पर टिप्पणी देकर उनको प्रोत्साहित करें!!
लाख टके की बात-
ReplyDeleteमुर्ख को टका (रुपया) देदेना चाहिये पर अक्ल नही देनी चाहिये.
जित्ते भी भगवान के अवतार हुये हैं उन सबने घणी मूर्खतायें की हैं। अब बताओ भाई वो क्यों आपको मूर्खों से बचाने लगे?
ReplyDeleteमूरख को समणावते ग्यान गांठ से जाय
ReplyDeleteकोयला होय न ऊजरौ कितनौ उबटन लाय
बहुत रोचक है ताऊ तेरे किस्से ।
ReplyDeleteशिक्षाप्रद मजेदार
ReplyDeleteज्ञान वर्धन के लिए आभार
ReplyDeleteरोचक.....
ReplyDeleteमुर्ख को टका (रुपया) देदेना चाहिये पर अक्ल नही देनी चाहिये.
ReplyDelete....सौ फीसदी सच्ची बात.....
पंडित जी से मुलाक़ात का इन्तेज़ार है.