प्रिय बहणों, भाईयो, भतिजियों और भतीजो आप सबका ताऊ साप्ताहिक पत्रिका के २१ वें अंक मे स्वागत है.
ताऊ पहेली – २१ का सही जवाब है बिरला म्युजियम पिलानी. जिसके बारे मे हमेशा की तरह आज के अंक मे विशेष जानकारी दे रही हैं सुश्री अल्पना वर्मा.
आज ऊडनतश्तरी ब्लाग पर श्री समीरलाल ने ३०० वीं पोस्ट लिखी है. उनको ताऊ साप्ताहिक पत्रिका के संपादक मंडल की तरफ़ से बहुत बधाई और शुभकामनाएं. उनसे निवेदन है और उम्मीद है कि वो इसी तरह सक्रिय रहते हुये ब्लाग जगत मे उत्साह वर्धन करते रहेंगे और यह जो मातृभाषा को समृद्ध करने का बीडा ऊठाया हुआ है इसमे सतत अग्रगामी बने रहेंगे. बहुत बधाईयां उनको.
कल हमने आपको माननिया MIRED MIRAGE की एक टिपणी के बारे में बताया था. यहां हम उनकी प्रश्न वाली टीपणी भी छाप रहे हैं और उत्तर वाली भी छाप रहे हैं. यहां हम सभी से पुन: कहना कहना चाहेंगे कि इन पहेली अंको मे जो भी आकर किसी भी रुप मे हमारा उत्साह वर्धन करता है उनकी आवक को हम एक नम्बर देकर दर्ज कर लेते हैं. आशा है आपके प्रश्न का उत्तर मिल गया होगा.
उन्होने परसों टीपणी की थी और कापी जंचवाने के लिये कहा था.
May 8, 2009 9:32 PM
हमें अपने पर्चे फिर से जाँच करवाने हैं। यह यह 1 अंक हमारा हो ही नहीं सकता।
घुघूती बासूती
इसके जवाब मे कृपया निम्न टिपणी जो आपने की थी वह पढें. जो आपने ताऊ पहेली प्रथम राऊंड के अंक १० मे की थी.
MIRED MIRAGE
February 21, 2009 4:44 PM आपकी पहेलियां तो हमारे वश की नहीं हैं, कारण कि हम जंगल भटक लेते हैं, दर्शनीय स्थल नहीं। मछली पकड़ने वाला किस्सा बहुत बढ़िया रहा।
घुघूती बासूती
आशा है आपको उत्तर मिल गया होगा. कृपया कापी जंचवाने की फ़ीस के रुप मे ५१ टिपणीयां जमा करवाने की कृपा करें.
आइये अब चलते हैं सु अल्पनाजी के “मेरा पन्ना” की और:-
-ताऊ रामपुरिया
-ताऊ रामपुरिया
भारत देश के राजस्थान प्रदेश के बारे में कौन नहीं जानता इस से पहले भी हम इस प्रदेश से पहेलियाँ पूछ चुके हैं,इस बार हम ने जिस स्थान के बारे में पहेली पूछी है वह भी कम लोकप्रिय जगह नहीं है.
यही जगह प्रसिद्ध उद्योगपति श्री जी.डी.बिरला का जन्मस्थान है. शिक्षा के इस गढ़ में विश्व प्रसिद्ध शिक्षा केंद्र 'बिरला प्रोद्योगिकी एवं विज्ञान संस्थान 'है [इस संस्थान की शाखा यू ऐ ई के शहर दुबई और रास अल खैमाह में भी खुली हुई है.] और पिलानी में ही कई बहुत ही अच्छे बोर्डिंग स्कूल भी हैं.
अब जानते हैं पिलानी के बारे में थोडा और विस्तार से-
यह जगह शेखावाटी क्षेत्र के अर्न्तगत आती है.शेखावटी का अर्थ है ' शेखा वंशजों की भूमि'। शेखावटी का नाम 15 वीं शताब्दी में हुए वीर शेखाजी (1433-1488) के नाम पर पड़ा। ये आमेर के कछवाहों के रिश्तेदार थे। आरंभ में रहे पूर्व जयपुर राज्य के इस हिस्से में अब झुन्झुनु और सीकर जिले समाविष्ट हैं।
शेखावटी क्षेत्र -
रेगिस्तानी मध्ययुगीन क्षेत्र, रंगो से भरा एक स्वप्न चित्र है, जिसके पास वशीभूत करने की एक आलौकिक क्षमता है। हवादार कलात्मक दीर्घा के नाम से प्रसिद्ध यह क्षेत्र चित्रित हवेलियों के कारण प्रसिद्ध है जो इस प्रांत की समृद्ध कलात्मक संस्कृति की प्रशंसनीय कलाकृतियाँ हैं।प्रांत के धनी व्यापारियों द्वारा निर्मित शेखावटी की भव्य हवेलियाँ एक अनोखी वास्तुकला की शैली को प्रदर्शित करती हैं जो उसके प्रांगणों में व्यक्त होता है, जो स्त्रियों की सुरक्षा, एकांत, तंबी व कड़ी ग्रीष्म की तपन से उन्हें बचाने के लिए बने थे।
शेखावटी की राजधानी है झुंझनु—:
राजस्थान के उत्तरी-पूर्वी भाग में 'अरावली पर्वत श्रृंखला के प्राकृतिक सौन्दर्य और भू-गर्भीय वैभव से महिमा मंडित शेखावाटी का सिरमौर जिला 'झुंझुनूं 'है इस के पूर्व में हरियाणा राज्य की सीमा है.इसी जिले में है-पिलानी शहर.
यह झुंझुनूं से 45 किमी. दूर स्थित है.
पिलानी का नाम पिलानी क्यों पड़ा इस के पीछे भी एक कथा है-कहते हैं-
इतिहास-
१७९४ में ठाकुर नवल सिंह ने झुंझनु जिले में नवलगढ़ कि स्थापना की थी.ठाकुर नवल सिंह ने अपने चोथे बेटे कुंवर दलेल सिंह के लिए एक किला बनवाया जिसका नाम दलेलगढ़ था.उन्हें १२ गाँव की हुकूमत सोंपी गयी .यही जगह अब पिलानी है. पहले पिलानी गाँव में केवल १५०० लोग रहते थे.वैश्य में मुख्यत अग्रवाल के लगभग १०० और महेश्वरी के १५ परिवारों के अलावा बिरला का एक ही परिवार था.दलेलगढ़ में ही एक बाल निकेतन भी है जिसे यहाँ के लोग 'गढ़ विद्यालय ' भी कहते हैं. शिक्षा-दर—:
२००१ के सर्वे के अनुसार यहाँ शिक्षा का प्रतिशत पुरुषों में ७९% और महिलाओं में ५७% है. मौसम-
यहाँ का मौसम गर्मियों जहाँ सब से अधिक ५० डिग्री तक पहुँच जाता है वहीँ सर्दियों में कई बार जीरो से भी नीचे चला जाता है.
पिलानी के दर्शनीय स्थल-
बिरला इंस्टिटचूट ऑफ टेक्नोलॉजी एण्ड साईंस (तकनीकी एवं विज्ञान संस्थान) जिसका विशाल अहाता है जिसमें सरस्वती मंदिर, शिव गंगा , और बिरला इंस्टिटचूट ऑफ टेक्नोलॉजी एण्ड साईंस का संग्रहालय है . पंचवटी व बिरला हवेली [?]संग्रहालय भी दर्शनीय है.[पिलानी का बिरला म्यूजिम एशिया के अग्रणी संग्रहालयों में अपना स्थान रखता हैं.]
पिलानी के अतिरिक्त झुंझनु में अन्य दर्शनीय स्थल भी देखते जाईये.-
१-मंडावा (25 कि. मी.)
-मंडावा किला[अब हेरिटेज होटल है],चौखानी गोयनका और लाडियां हवेलियां ,सर्राफों की हवेलियो,चट्टानी स्फटिक के लिंग का शिव मंदिर देखने योग्य है।
२-डूंडलोद (32 कि. मी.) -यहाँ का किला और गोयनका परिवार की हवेलियाँ दर्शनीय हैं.
३-नवलगढ़ (40 कि.मी.) - यहाँ शेखावटी के बेहतरीन भित्ति चित्र हैं.पोद्दार, भगत और डंगाइच की मुख्य हवेलियां,दो पुराने किले और एक महल है.
४- बगड़ (15 कि.मी.) - यहाँ ओझा परिवार द्वार निर्मित एक तालाब दर्शनीय है.
५-बिसाऊ (40 कि.मी.) - ठाकुरों की छतरी ,कई भव्य हवेलियां जैसे- खोमका, टिबरीवाल और केडिया तथा सिंगतियों की कई परिष्कृत ढ़ंग से चित्रित हवेलियां देखने लायक स्थान हैं.
६-महनसर (45 कि.मी.) - सोने-चांदी की हवेली और बीकानेर कला शैली के अनुरूप सुन्दर चित्रों से सुसज्जित रघुनाथ मंदिर देखने योग्य है.
कब जाएँ-
वर्षपर्यंत.मगर सुहाना मौसम अक्टूबर से दिसम्बर,जनवरी से मार्च तक रहता है.
कैसे जाएँ-
पिलानी के लिए दिल्ली और जयपुर से बस सेवाएं है
क्या खरीदें-
राजस्थान प्रदेश की हस्तशिल्प की वस्तुएँ, बंधेज का कपड़ा व साजो-सामान यहाँ से यादगार के रूप में ले जा सकते हैं. |
क्या आप साबित कर सकते हैं कि कोई इंसान खुद का नाना भी हो सकता है ? अगर नहीं, तो आपको यह पोस्ट पूरी पढ़ने की जरूरत है। रिश्तों की बात भी निराली है। कभी-कभी ये आपस में इतने उलझ जाते हैं कि दिमाग भी काम करना बंद कर देता है। अब चीन की ही इस घटना को लीजिए। दो हमशक्ल भाइयों ने दो हमशक्ल बहनों से शादी कर ली। अब रिश्तों की मगजपच्ची तो आप आराम से कर ही सकते हैं। एक तो रिश्ते उलझेंगे, ऊपर से एक जैसी शक्ल होने की वजह से गफलत पैदा होगी। बहनों के बच्चे उन्हें चाची कहेंगे या मौसी। इसी तरह भाइयों को चाचा कहेंगे या मौसा। खैर जो भी हो.. आपको इन जोड़ियों की दास्तां सुनाते हैं। चीन के बिन्हाई कस्बे के यांग कांग (23) और झांग लेक्सियांग के बीच प्रेम पनपा औऱ मामला शादी तक जा पहुंचा। सगाई के समारोह में जब यांग के हमशक्ल भाई ने झांग की हमशक्ल बहन को देखा तो पहली नजर में ही दिल दे बैठे। फिर क्या था, दोनों की भी उसी समारोह में सगाई कर दी गई। अब पढ़िए एक ऐसे पुरुष की कथा, जिसे जब यह पता चला कि वह खुद का ही नाना है तो उसके होश उड़ गए- मैंने एक विधवा महिला से शादी की, जिसकी एक जवान बेटी थी। मेरे पिता उसके प्रति आकर्षित हुए और उन्होंने उसके साथ विवाह रचा लिया। इस तरह मेरे पिता मेरे दामाद (मेरी सौतेली बेटी के पति) बन गए और मेरी सौतेली बेटी मेरी सौतेली मां (पिता की पत्नी) बनी। इसके बाद मेरी बीवी के एक बेटा हुआ। वह मेरे पिता का साला (पत्नी का भाई) लगा और मेरा मामा (मेरी सौतेली मां का भाई)। मेरे पिता की पत्नी यानी मेरी सौतेली मां के भी एक बेटा हुआ। वह मेराभाई लगा (पिता का बेटा) और साथ ही वह मेरा नाती (मेरी सौतेली बेटी का बेटा) भी हुआ। अब मेरी बीवी मेरी नानीलगी, क्योंकि वह मेरी सौतेली मां की मां है। अब मैं मेरी बीवी का पति हूं और मेरी बीवी (जो मेरी नानी भी है) का पति मेरा नाना लगा। यानी मैं खुद का ही नाना हूं। अगले हफ्ते तक के लिए इजाज़त। आपका सप्ताह शुभ हो.. |
एक दिन एक शेर जंगल मे शिकार पर निकला. खोजते खोजते एक लोमडी उसके हाथ लग गयी. अब लोमडी की किस्मत मौत के सिवाए कुछ भी नही था.
और हौसला कर के शेर से बोली - तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई मुझे जान से मारने की सोचने की भी?
लोमडी ने कहा अगर तुमने मुझे मारा तो ये भगवान् की मर्जी के खिलाफ होगा. शेर को हैरान और परेशान देख लोमडी ने बिना देर किये कहा "चलो एक बार इस बात को साबित कर लेते हैं'
जानवरों को भागते देख लोमडी ने घमंड से कहा " क्या इसमें कोई शक है जो मैंने कहा था , क्या वो सच नहीं की भगवान ने मुझे जंगल का राजा बना कर भेजा है"?
अब शेर के पास लोमडी की बात मानने के सिवा कोई भी चारा नहीं था. तो शेर ने सर हिलाकर कहा " हाँ तुम ठीक कह रही हो, तुम्ही जंगल की राजा हो"
इस कहानी से ये शिक्षा मिलती है की : मुसीबत और मुश्किल समय हर किसी के जीवन मे आते हैं. और अगर ऐसे में हम घबरा जाते हैं और संयम खो देते हैं तो हमारा दिमाग काम करना बंद कर देता है.
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बगवाल मेला
कुमाउं के देवीधुरा स्थान में रक्षा बंधन के दिन पत्थर मारने वाला एक मेला मनाया जाता है जिसे बग्वाल कहते हैं। ऐसी मान्यता है कि देवीधुरा के लोग बावन हजार और चौसठ योगनियों के आतंक से बहुत दु:खी रहते थे। उन्होंने मिल कर माँ वाराही से प्रार्थना की कि वह उनको इनसे छुटकारा दिलवायें।
माँ ने भी भक्तों की फरियाद सुनी और उन्हें इस आतंक से छुटकारा दिलाया और साथ ही देवी माँ ने मांग की कि प्रतिवर्ष श्रावणी पूर्णिमा के दिन पत्थरों की मार से एक व्यक्ति के बराबर रक्त निकले जिससे उन्हें तृप्त किया जाये। तभी से हर वर्ष माँ को खुश करने के लिये इस पत्थर मार मेले के आयोजन किया जाता है।
बगवाल परंपरा का निर्वाह करने वाले महर और फत्र्याल जाति के लोग हैं। इनकी अपनी अलग-अलग टोलियाँ होती हैं जो ढोल-नगाड़ों के साथ मंदिर के प्रांगड़ में पहुँचती है। इनके सर पर कपड़ा, हाथ में लट्ठ और एक ढाल होती है जिसे छन्तोली कहते हैं। इसमें भाग लेने वालों को पहले दिन से ही सात्विक व्यवहार करना होता है।
देवी की पूजा का दायित्व विभिन्न जातियों का है। फुलारा कोट के फुलारा मंदिर में फूलों की व्यवस्था करवाते हैं। मनटांडे और ढोलीगाँव के ब्राहम्ण श्रावण की एकादशी के अतिरिक्त सभी पर्वों पर पूजन करवा सकते हैं। भैसिरगाँव के गहड़वाल राजपूत बलि के भैंसों पर पहला प्रहार करते हैं।
बगवाल का एक निश्चित विधान होता है। मेले की पूजा अर्चना लगभग आषाढ़ि कौतिक के रूप में एक माह तक चलती है। बगवाल के लिये एक प्रकार का सांगी पूजन एक विशिष्ठ प्रक्रिया के साथ सम्पन्न किया जाता है जिसे परम्परागत रूप से पूर्व से ही संबंधित चारों खाम गहड़वाल, चम्याल, बालिक और लमगड़िया के द्वारा सम्पन्न किया जाता है। मंदिर में रखा देवी विग्रह एक संदूक में बंद रहता है जिसके सामने यह पूजन होता है। यह लमगड़िया खाम के प्रमुख को सौंप दिया जाता है क्योंकि उन्होंने ही प्राचीन काल में रोहिलों के हाथ से देवी विग्रह को बचाया था।
इस बीच अठवार का पूजन भी होता है जिसमें सात बकरे और एक भैंस की बलि दी जाती है। पूजा से पूर्व देवी के मूर्ति को संदूक से बाहर निकाल कर स्नान कराया जाता है जिससे लिये पूजारी की आंखों में पहले पट्टी बांध दी जाती है। ऐसा इसलिये करते हैं क्योंकि मूर्ति को नि:वस्त्र देखना अच्छा नहीं समझा जाता है।
श्रावणी पुर्णिमा को देवी विग्रह का डोला मंदिर के प्रांगण में रखा जाता है और चारों खामों के मुखिया इसका पूजन करते हैं। बगवाल युद्ध में भाग लेने वालों को `द्योके´ कहा जाता है। जिन्हें महिलायें आरती उतार कर और पत्थर हाथ में देकर ढोल नगाड़ों के साथ युद्ध के लिये भेजती हैं। चारों खामों के योद्धाओं के मार्ग पहले से ही सुनिश्चित कर दिये जाते हैं। मैदान में पहँचने के स्थान व दिशा चारों खामों अगल-अलग होती है।
लमगड़िया खाम उत्तर की ओर से, चम्याल खाम दक्षिण की ओर से, बालिक पश्चिम से और गहड़वाल खाम पूर्व की ओर से मैदान में आते हैं। दोपहर तक चारों खाम देवी के मंदिर के उत्तरी द्वार से प्रवेश करती हुई परिक्रमा करती है और मंदिर के पश्चिम द्वार से बाहर निकल जाती है। फिर मंदिर के प्रांगण में अपना-अपना स्थान घेरने लगते हैं। दोपहर में जब सारी भीड़ इकट्ठा हो जाती है तो मंदिर के मुख्य पुजारी बगवाल शुरू करने की घोषणा करते है।
इसके साथ ही चारों खामों के मुखियाओं की अगुवाई में पत्थरों की वर्षा शुरू हो जाती है। जैसे युद्ध अपने चरम पर पहुँचता है ढोल नगाड़ों के स्वर भी ऊंचे हो जाते हैं। प्रत्येक दल के लोग अपनी-अपनी छन्तोली से अपनी सुरक्षा करते हैं। इस बीच जब मुख्य पुजारी को जब यह अहसास हो जाता है कि एक नर के जितना रक्त बह गया होगा तो वह मैदान के बीच में जाकर बगवाल के समाप्त होने की घोषणा करते हैं और उनकी घोषणा के बाद युद्ध को समाप्त मान लिया जाता है। युद्ध समाप्त होने के बाद चारों खामों के लोग आपस में गले मिलते हैं। और प्रांगण से विदा होने लगते हैं।
उसके बाद मंदिर में पूजा होती है। ऐसा कहा जाता है कि इस पत्थर वर्षा में जो लोग घायल होते हैं उनका इलाज मंदिर परिसर में पायी जाने वाली बिच्छू घास से किया जाता है। इसे लगाने के बाद घाव शीघ्र भर जाते हैं।
पहले जो बगवाल होती थी उसमें छन्तोली (छत्री) का प्रयोग नहीं किया जाता था परन्तु सन् 1945 के बाद से इनका प्रयोग किया जाने लगा। बगवाल में निशाना साध कर पत्थर मारना पाप माना जाता है। दूसरे दिन संदूक में रखे देवी विग्रह की डोले के रूप में शोभायात्रा निकाली जाती है। और इस तरह बगवाल मेला सम्पन्न हो जाता है। |
आईये आपको मिलवाते हैं हमारे सहायक संपादक हीरामन से. जो अति मनोरंजक टिपणियां छांट कर लाये हैं आपके लिये.
दोस्तों नमस्कार ,
मैं अभी वापस अपने विदेश टूर का प्रोग्राम बना ही रहा था कि अमेरिका से मेरे दोस्त पीटर ने मुझे अभी विदेश भ्रमण के लिए मना कर दिया. उस ने कहा कि नये किस्म का बुखार 'स्वाइन फ्लू' मेक्सिको में फैला हुआ है और भी ऐसी ही खबरें अन्य देशों से आ रही हैं. इस लिए सभी को स्वास्थ्य सम्बन्धी सावधानी बरतनी चाहिये. आप सब भी अपना पूरा ख्याल रखिये.
पीटर ने कहा की यार हीरामन मैं ही तेरे पास आजाता हूं. और इधर मुझे ताऊ ने भी मना कर दिया अमेरिका जाने के लिये. क्योंकि बीनू भैया तो सैम भैया के साथ स्विटरजरलैंड चले गये चुनाव की थकान मिटाने. तो ताऊ ने मुझे कहा कि जब तक बीनू नही आजाता तब तक तुम ही रिजल्ट वाला काम भी संभालों.
मैने ताऊ को कहा कि रामप्यारी से करवा लिजिये तो ताऊ बोला – अरे हीरामन..वो बस फ़ांकालोजी बडों जैसे करती है पर उसका भरोसा नही की वो कोई काम समय पर कर देगी. और फ़िर डाकटर व्यास भी आने वाले हैं और ताई उसकी प्लास्टिक सर्जरी भी करवाने का बोल रही थी. ऐसे मे मैं अकेला इतनी बडी जिम्मेदारी कैसे संभालूंगा.
अब आप रामप्यारी की प्लास्टिक सर्जरी की बात उससे ही सुन लेना..मैं नही बताता..उसके पेट मे तो कोई बात पचती ही नही है. आप नही भी पूछेंगे तो भी वो बता ही देगी.
तो अब मेरा दोस्त पीटर भी आगया है. अब ये और मैं मिलकर ताऊ का काम संभालेंगे. सबसे पहले मिलिये मेरे दोस्त पीटर से. जो प्यार से मुझे हीरू पुकारता है और मैं उसे प्यार से पीरू बुलाता हूं. पूरे अमेरिका मे जहां हम पढते थे वहां हम दोनों की जोडी हीरु और पीरू के नाम से प्रसिद्ध थी.
और देखते हैं आज किस किस ने अपने शब्दों से मुस्कुराहटें बिखेरी?
हीरामन : अरे मित्र पीटर…पीरु …तू ही देख यार कौन सी टीपणी तुझको आज ज्यादा मजेदार लग रही है?
पीटर : अरे हीरू…यार हमको…हिंदी इतना अच्छा नही आटा..पर हम इधर..टेरे पास हिंदी को सीखने आया..मैन….यू नो..? मैं सोचटा की…ये शाष्त्री अंकल की टीपणी बडी मजेदार लगती हमको..
हीरामन : अरे वाह यार पीरू, तू तो एक ही दिन हिंदी बोलने लग गया? हां यार ये बडी मजेदार लगी…चल अब तू कह रहा है तो आज का पहला खिताब इनको ही दे देते हैं.
तो ये हैं प्रथम विजेता : SHASTRI अंकल
ताऊजी नमस्कार !! अभी अभी एक शादी से निपट कर आया हूँ और आराम से कुर्सी पर बैठा ही था कि हवाई जहाज देख कर घिग्गी बंध गई. पिछली बार आप ने हमें काले पानी पर भेज दिया था, इस बार पता नहीं उडा कर कहीं छूंमंतर न कर दें. इस कारण आपके हवाईजहाज का जवाब नहीं देते!!
पीटर : अरे..हीरु..लूक…. लूक…. हियर..दिस अंकल.. क्या बोलटा…अब तेरी दूध मलाई में ही खा जाऊंगा...????
हीरामन : हां यार पीरू ..तू तो ये भी गजब की ढूंढ लाया यार.. अरे यार ये तो मीत अंकल हैं…
तो आज के दूसरे विजेता हैं मीत अंकल
रुद्र भगवान शिव का नाम है... मीत
पीटर : हे..हे हीरू लूक देयर…वन..UFO वो टुम क्या बोलटा,,? उडनटश्टरी..इज कमिंग…..लूक…लूक..
हीरामन : अरे यार पीटर…डर मत..वो तो अपने समीर अंकल हैं…जब देखो तब उडनतश्तरी मे घूमते ही रहते हैं. मत डर यार….वो अंकल तो अपने जैसे जबलपुरिया ही हैं…और रामपुरिया भी हैं…
पीटर : हे..मैन…ये क्या बोलटा टुम? रामपुरिया तो ताऊ होटा ना? फ़िर उडनतश्तरी कहां से रामपुरिया होता?
हीरामन : चल अब अपने को और भी काम करना है…इस पर तो एक दिन हम पोस्ट ही लिख देंगे पूरी..
तो आज का तीसरा खिताब जाता है : UDAN TASHTARI अंकल को.
रामप्यारी, हवाई जहाज देख कर कोई डेटन, ओहायो जबाब दे दे तो हँसना मत...ऐसा हो सकता है..वहाँ भी एक से एक हवाई जहाज हैं. सब उड़न तश्तरी तो हैं नहीं कि जानते ही हों.. :) हा हा!!
रामप्यारी, एक अवतार तो ताऊ भी है..उसका नाम लिस्ट में नहीं रखा तेरी टीचर ने. :)
अब हीरामन और पीटर को इजाजत दिजिये अगले सप्ताह आपसे फ़िर मुलाकात होगी. |
ट्रेलर : - पढिये : श्री नीरज गोस्वामी से ताऊ की अंतरंग बातचीत
कुछ अंश ..श्री नीरज गोस्वामी से ताऊ की अंतरंग बातचीत के
ताऊ : हां तो नीरज जी, अब साक्षात्कार शुरु किया जाये?
नीरज जी : (मुस्कराते हुये..) ताऊ, "खुदा को हाज़िर-नज़र जान कर कहता हूँ की जो कहूँगा सच कहूँगा और सच के सिवा कुछ नहीं कहूँगा..."
ताऊ : तो फ़िर आपने नाटक खेलना बंद क्युं कर दिये?
नीरज जी : ताऊ ये सिलसिला आगे चलता लेकिन रोटी रोज़ी के चक्कर में जयपुर और नाटक छोड़ना पडा...और ये घटना बाद में अमिताभ बच्चन के जीवन का टर्निग पाईंट साबित हुई.
ताऊ : अब ये क्या कह रहे हैं, अमिताभ के जीवन का टर्निग पाईंट कैसे?
नीरज जी :.....?????? ताऊ : ऐसा कैसे हो सकता है? हर इंसान के साथ कुछ घटना तो घटती ही है.
नीरज जी : वो इसलिये कि ताऊ हम ना तो अमिताभ से कभी मिले और ना ही रेखा से इश्क हुआ ना कभी संसद में भाषण दिया...तो बताईये फ़िर अविस्मरणीय घटना का चांस कहां बचा?
… और भी बहुत कुछ धमाकेदार बातें…..पहली बार..खुद ..नीरज जी की जबानी… इंतजार की घडियां खत्म…..आते गुरुवार मिलिये हमारे चहेते मेहमान श्री नीरज गोस्वामी से |
अब ताऊ साप्ताहिक पत्रिका का यह अंक यहीं समाप्त करने की इजाजत चाहते हैं. अगले सप्ताह फ़िर आपसे मुलाकात होगी. संपादक मंडल के सभी सदस्यों की और से आपके सहयोग के लिये आभार.
संपादक मंडल :-मुख्य संपादक : ताऊ रामपुरिया
विशेष संपादक : अल्पना वर्मा
संपादक (प्रबंधन) : Seema Gupta
संपादक (तकनीकी) : आशीष खण्डेलवाल
संस्कृति संपादक : विनीता यशश्वी
सहायक संपादक : मिस. रामप्यारी, बीनू फ़िरंगी एवम हीरामन
मजेदार!! हीरु और पीरु की जोड़ी बढिया लगी।
ReplyDeletetaauujiijijijijiijijiji
ReplyDeleteबाद मे आता हू, क्यो कि समीरजी कि इन्द्रसभा मे जा रहा हू। वहॉ बधाई देने वालो कि लाईन कई किमी तक पहुच गई है। ताऊजी रुकना कही जाना मत आ रहा हू।:)
भाई ताऊ
ReplyDeleteयह पत्रिका तो अब पी डी एफ में निकलना चाहिए..ताकि लोग प्रिन्ट करके समय दे और निकाल कर पढ़ें..इतनी रोचक हो चली है यह पत्रिका और इतने प्रभाग और सब एक से बढ़ कर एक..कोई करे तो क्या करे..अब तुम ही बताओ.
आज आपकी वजह से मेरी ३०० वीं पोस्ट मे चार वांद लग गये, आभार आपका और उससे ज्यादा बिटिया रामप्यारी का.
ReplyDeleteताऊ जी
ReplyDeleteसर्वप्रथम तो राम राम ..सुबह सवेरे
मजेदार पत्रिका के कुछ पृष्ठ और बढाइये ना ..:))))
बहुत स्वाद आ रहा था.....
ज्ञान वर्धक लेखों का बहुत आभार .
देवीधुरा का बग्वाल मेला देखा है मैंने ..बहुत ही रौनकदार होता है . वैसे सोचा तो था पत्थरों से खेलने का पर बुजुर्गों ने रोक दिया ..हाहाहा ..नहीं -नहीं ताऊ जी मैं हिंसा के खिलाफ हूँ :)))
हीरू -पीरु का तो ज़वाब ही नहीं मैन :))
दिगम्बर जी की मुलाकात का इन्तेजार !!!
एक बार फिर से सुप्रभात !!
अब पत्रिका का सोमवार वाला अंक पूर्ण लगने लगा है...विविध सामग्री के चलते पढ़ने में, कागजी पत्रिकाओं की ही तरह, अच्छा समय लगता है. धन्यवाद.
ReplyDeleteताऊ आपका भी जवाब नही. ये हीरु और पीरु कहां से पकड लाये? ये तो बडी मजेदार बातें करते हैं.
ReplyDeleteसभी के आलेख जोरदार. सबको धन्यवाद और नीरज जी के परिचय का ईंतजार है.
वाह ,,बहुत मजेदार पत्रिका. रंग रुप भी निखर आया है.
ReplyDeleteलाजवाब अंक है जी. ये स्क्रोल कैसे करवाते हैं आप? हमे भी बताईये ना.
ReplyDeleteताऊ राम राम...
ReplyDeleteसप्ताहिक पत्रिका तो हर अंक के साथ निखरती जा रही है... बधाई...
ये तो एक ही जगह जानकारियों का भंडार होगया. हीरु और पीरु के तो क्या कहने? आज की पोस्ट के हीरो हैं हीरामन "हीरू" और पीटर "पीरु"..कमाल का आईडिया है.
ReplyDeleteलाजवाब पत्रिका. नीरज जी के साक्षात्कार का इंतजार रहेगा.
ReplyDeleteलगता है हीरु और पीरु की जोडी तो रामप्यारी की तरह ही धमाल करने वाली है. इनके लक्षण मुझे अभी से ठीक नही लग रहे हैं.
ReplyDeleteरामप्यारी की पलास्टिक सरजरी क्यों हो रही है? क्या उसकी तबियत ठीक नही है? कृपया मेडिकल बुलेटिन जारी करें. कहीं बीनू फ़रंगी की तरह रामप्यारी को भी बाहर का रास्ता तो नही दिखाया जा रहा है?
बहुत ही रोचक और मजेदार पत्रिका, सभी का योगदान रंग ला रहा है....अल्पना जी आशीष जी, विनीता जी हिरामन जी...का आभार , समीर जी को ३०० पोस्ट की उपलब्धि पर शुभकामनाये....
ReplyDeleteregards
अल्पना जी का पिलानी के बारे में, सीमा जी की प्रेरणादायक कहानी,आशीष जी द्वारा खुद का नाना वाला किस्सा, विनीता जी का देवीपुरा के उत्सव के बारे में, सब के सब अति ज्ञानवर्धक रहे. आभार.
ReplyDeleteकुछ भी कही पत्रिका है बहुत रोचक...
ReplyDeleteमीत
पत्रिका क्रमशः मजेदार होती जा रही है । रोज नये नये किरदार मिल रहे हैं । धन्यवाद । नीरज जी की बातचीत का इंतजार ।
ReplyDeleteनीरज जी के साक्षात्कार का इंतजार रहेगा.
ReplyDeleteताऊ जी, आपकी पत्रिका तो टानिक का काम करने लगी है.....अन्तरजाल पर आते ही पहला काम आपकी पत्रिका बांचने का होता है...ताकि दिन भर प्रफुल्लता बनी रहे.
ReplyDeleteताऊ इस बार तो यहाँ आये तूफ़ान शनिवार सारा दिन बिजली गुल कर दी ....और हम रामप्यारी को याद करते दिल थाम के बैठे रहे ....इस बिच समीर जी ने अपना तुक्का चला लिया ...रामप्यारी को गोद ले बिटिया बना लिया ....और ताऊ पहेली का सारा राज उगलवा खुद को विजेता बनवा लिया ....!!
ReplyDeleteखैर जब बन ही गए हैं तो बहुत - बहुत बधाई समीर जी ....रामप्यारी तेरी याद बड़ी आएगी ....बिटिया खाने पीने की तकलीफ हो तो सीधे चली आना .....!!
नीरज जी के साक्षात्कार का इन्तजार रहेगा ...!!
ताऊ इस बार तो यहाँ आये तूफ़ान शनिवार सारा दिन बिजली गुल कर दी ....और हम रामप्यारी को याद करते दिल थाम के बैठे रहे ....इस बिच समीर जी ने अपना तुक्का चला लिया ...रामप्यारी को गोद ले बिटिया बना लिया ....और ताऊ पहेली का सारा राज उगलवा खुद को विजेता बनवा लिया ....!!
ReplyDeleteखैर जब बन ही गए हैं तो बहुत - बहुत बधाई समीर जी ....रामप्यारी तेरी याद बड़ी आएगी ....बिटिया खाने पीने की तकलीफ हो तो सीधे चली आना .....!!
नीरज जी के साक्षात्कार का इन्तजार रहेगा ...!!
आशीष भाई ने तो ऐसा उलझाया कि सर पकड़ कर बैठे है वैसे सीमा जी की मोरल स्टोरी भी दमदार है..
ReplyDeleteनीरज जी एक जिंदादिल सख्शियत के मालिक है निश्चिंत ही उनसे मिलकर सबको बहुत मज़ा आने वाला है.. गुरूवार की एडवांस बुकिंग करवा ली है हमने तो..
अरे वाह, ये साप्ताहिक पत्रिका तो दिन दूनी रात चौगुनी प्रगति कर रही है। बधाई।
ReplyDeleteऔर हॉं, रामपुरिया जी, रिश्ते की परिभाषा मेरी ही रचना है। आश्चर्यचकित हूँ कि अब तक उसे आपका नाम याद है।
-जाकिर अली रजनीश
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SBAI / TSALIIM
रोचक जानकारी का पिटारा है यह पत्रिका............
ReplyDeleteलाजवाब और खूबसूरत जानकारी
अल्पनाजी वर्मा जी आपने पिलानी का परिचय कराया आपका आभार, हॉ आपने पिलानी का नाम कैसे पडा यह जानकारी पहले मुझे नही पता थी जानकारी के लिऐ धन्यवाद।
ReplyDelete.......
आशीषजी खण्डेलवाल
यार! आपने तो रिस्तो (नाना) मे ऐसा उलझा दिया है खोपडि ने काम करना ही बन्द कर दिया है।
यह कितना अच्छा सयोग कल आपसे बाते की ओर आज आपको पढा। आपको अब तो ताऊको मनाना ही पडेगा मेरी कल कि बात से।
शुभकामानाऐ मानवीय भुलो कि जानकारी के लिऐ, एवम ईश्वरीय चमत्कार के रुप बताने के लिऐ।
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Seema Gupta जी शिक्षाप्रद बातो के लिऐ आभार।
-सुश्री विनीता यशश्वी "बगवाल मेला" कि जानकारी पढी. बहुत बहुत आभार।
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"मैं हूं हीरामन"जी!
तो भाई मै क्या करु ?
फोटु छापते हो हमारे गुरुजी का और धन्यवाद लेते हो हम नकारे शिष्यो का। ले लो भाई ले लो, आप भी बधाई ले लो, कभी ना कभी हमारी टिपणी भी तुम्हारे गले कि फॉस बने ऐसी कामना ताऊ से करता हू।
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श्री नीरजजी गोस्वामी जी की अन्तरग बाते पढने का इन्तजार है।
मिस. रामप्यारी, ताऊ के ससुराल से अभी तक आई नही क्या ? देख ध्यान रखना वहॉ ताऊ कि पोल पट्टी नही खोल देना। बात को समझा कर यार, ससुराल मे "जमाईराज" की हुकमत का सवाल है।
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हे प्रभु यह तेरापन्थ
और मुम्बई टाईगर
कि और से
मगल भावना।
बहुत ही रोचक रही पत्रिका ,राम -राम जी .
ReplyDeletebahut achhi jankarideti parika rahi,alpana,rakesh,seema,vinita ji aur tau ji ko bahut dhanyawad.,wojudwa pati,patniwali baat bahut rochak lagi,waah re duniya,aisa bhi hota hai.
ReplyDeleteनीरज जी के साक्षात्कार का इन्तजार लगा है बड़ी जम से. :)
ReplyDeleteपत्रिका का एक और बढ़िया अंक ! और एक अन्दर की बात है नीरज जी से बातचीत पता नहीं कैसे हमारे रीडर में आ गयी और हमने पढ़ लिया :-)
ReplyDeleteलाजवाब अंक. नीरज जी के साक्षात्कार का बेसब्री से इंतजार रहेगा.
ReplyDeleteताऊ जी ,
ReplyDeleteराम राम ,
क्या गजब ढा रहा है आपका सँपादक मँडल ..
वाह वाह ..
सभी जोरोँ से
नित नई सामग्री पेश करने मेँ जुटे हुए हैँ और
पाठकोँ को यह ताऊ -
पत्रिका पढकर आनँदम ~~
नीरज भी से बातचीत रोचक रहेगी उसका ट्रायल दीख रहा है :)
और समीर भाई की ३०० वीँ पोस्ट भी जम गई !
खूब भालो ..
स स्नेह,
- लावण्या
अल्पना वर्मा जी ने मेरे गांव का नाम भी गलत लिख दिया है ताऊ वैसे मेरे गांव को बिना मात्रा का गाव कहा जाता है । अल्पना वर्मा जी ने अच्छी जानकारी दी है ।
ReplyDelete@नरेश सिह राठौङ ..
ReplyDeleteअजी राठोड साब रामराम..नाराज क्युं होण लाग रे हो? गलती म्हारी थी, एडिटिंग मन्नै करी थी, आपने गल्ती की तर्फ़ ध्यान दिलवाया और हमनै तुरंत सुधार दी जी. इब देखो थारा गाम हमनै फ़िर तैं बिना मात्रा का कर दिया,:) इब बागड नही बगड कर दिया है.:)इब तो राजी? भाई गलती की तरफ़ ध्यान दिलाने के लिये बहुत धन्यवाद. घणा आभार आपका.
सीमा जी की प्रेरणादायक कहानी,आशीष जी द्वारा खुद का नाना वाला किस्सा, विनीता जी का देवीपुरा के उत्सव के बारे में, सब के सब ज्ञानवर्धक रहे.हीरु और पीरु की जोड़ी बढिया लगी.
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