ब्लागीवुड मे समीर जी के बारे मे ऐसी कौन सी बात है जो छुपी हुई है.
और हमने भी तय कर लिया कि समीर जी से कुछ अंतरंग बाते उनके मुंह से ही उगलवा कर रहेंगे. और इसी लिये उनका साक्षात्कार हर बार लेट होता गया.
कनाडा से उनके आने के बाद वो व्यस्त रहे पुत्र की शादी की तैयारियों मे. फ़िर दुनिया भर की तमाम व्यसतताओं के बीच हमको उतना समय नही मिला उनके साथ कि हमारे मतलब लायक साक्षात्कार हो पाता. जबलपुर के उनके पसंदीदा होटल सत्य अशोका मे हम दो बार उनके साथ बात चीत करने बैठे.
उसके बाद उनको समय मिला, उनके इंगलैंड प्रवास पर जाने के पहले. जब दो दिन के लिये होटल हयात रिजेंसी दिल्ली मे रुके थे. हमने वहीं पर इस साक्षात्कार को फ़ायनल किया.
आइये अब आपको हमारी उनसे हुई अंतरंग बातचीत से रुबरु करवाते हैं.
ताऊ : आप कहानी, कविता, व्यंग सभी कुछ लिखते हैं और आपके लेखन में एक परिपुर्णता दिखाई देती है. आप को इन सभी विधाओं के लिये एक जरुरी सोच या कहुं कि प्लोट कहां से मिलता है?
समीर जी : आँख हमेशा खुली रखने की् आदत सी रही है. जो दिखता है, अंकित हो जाता है. फिर कभी कहानी, कभी कविता और कभी व्यंग्य बनकर बिखर जाता है और कभी इस के भीतर ही सिमट कर किसी कोने में पड़ा रहता है. कितनी ही घटनाऐं बीती जो भुलाये नहीं भुलती. समय आने पर याद हो आता है.
ताऊ : सुना है आप राजनीती मे भी काफ़ी सक्रिय रहे हैं?
समीर जी : हां ताऊ, राजनिति में शुरु से सक्रिय रहा और देश के अपने समय के सभी दिग्गज कांग्रसी नेताओं से करीबी संपर्कों में रहा.
ताऊ : उस दौर की कोई अविस्मरणीय घटना?
समीर जी : (सोचते हुये..) हा एक मजेदार घटना याद आई. एक बार यूं हुआ कि विधान सभा में टिकिट वितरण हेतु वरिष्टों के साथ एक बैठक शहर में आयोजित थी. मेरे साथ दिल्ली से आये दो टिकिट बंटवारे के जिम्मेवार कांग्रेसी दिग्गज नेता और तीन चार प्रांतिय स्तर के नेता थे एवं कुछ शहर के वरिष्ट कांग्रेसी. बैठक राजा साहब की हवेली की मुख्य बैठक में आयोजित की गई थी. तब हवेली में कोई रहता नहीं था. बस, ऐसे विशेष आयोजनों के लिए खुलती थी वरना रोज बस साफ सफाई के लिए.
ताऊ : फ़िर क्या हुआ?
समीर जी : बस होना क्या था? ऐसे मे आप तो जानते ही हैं कि शहर के सारे नेता और कार्यकर्ता हवेली के बाहर ही जमा थे अपना अपना शक्ति प्रदर्शन करते हुये. मेरे साथ आये कार्यकर्ता भी हवेली के बाहर ही रुके थे.
ताऊ : हां ऐसे मे कार्यकर्ताओं को तो अंदर आने नही दिया गया होगा? आगे क्या हुआ?
समीर जी : बिल्कुल ठीक ताऊ. फ़िर बैठक शुरु हुई. घंटों देर रात तक चली और इस बीच उठकर मैं बैठक से लगे बाथरुम का इस्तेमाल करने चला गया. जैसे ही नल खोला, पूरा पानी कुर्ते पर. सारा कुर्ता पानी मे भीग गया.
ताऊ : अरे..रे ..फ़िर क्या हुआ?
समीर जी : फ़िर क्या होना था? हम वहीं बाथरुम में कुर्ता झुला झुला कर नार्मल करने और सुखाने की जुगत भिड़ा रहे थे. और सब कुछ नार्मल होने में जरा समय लग गया.
ताऊ : ओहो..फ़िर?
समीर जी : फ़िर जब बाथरुम से निकला तो बैठक में अंधेरा था और सारे दरवाजे बंद. सब जा चुके थे. मैने कुछ आवाजें लगाई मगर कोई हो तो सुने. न कोई दरवाजा खुले और न ही कोई सुनने वाला.
ताऊ : एक मिनट..एक मिनट. यानि सब आपको उस कमरे मे बंद करके चले गये? तो आप फ़ोन कर सकते थे?
समीर जी : ताऊ, उस जमाने में मोबाईल फोन तो होता नहीं था और बैठक का फोन निकलवाकर सामने के कमरे में लगवा दिया गया था ताकि बैठक में व्यवधान न हो - ये मेरा ही आईडिया था और उसकी कीमत अब मुझे चुकानी पड़ रही थी.
ताऊ : ये तो बहुत बुरा हुआ. फ़िर कब निकले वहां से?
समीर जी : रात भर बंद रहे भूखे प्यासे, सुबह दस बजे भगवान जमादार का रुप धर कर आये तो हम घर आये.
ताऊ : घरवाले भी रात को घर ना आने से परेशान रहे होंगे?
समीर जी : नही ताऊ परेशान तो नही हुये. पत्नी ने मान लिया था कि नेता गिरी करने भोपाल बाई रोड चले गये होंगे. साथी कार्यकर्ताओं को लगा कि हम कहीं निकल लिए हैं और वो सब बड़े नेताओं को स्टेशन पर विदा कर अपने अपने घर लौट गये थे. वैसे भी अगर आपसे बड़ा कोई दूसरा नेता मिल जाये तो उसी की संगत कर लेना राजनित का धर्म भी सिखाता है.
ताऊ : हां ये तो बिल्कुल सही बात कही आपने. ये तो वाकई बडा ना भूलने लायक संस्मरण है.
समीर जी : और क्या ताऊ? उतनी बड़ी हवेली की दूसरी मंजिल के एक कोने वाले कमरे में बंद भूखे प्यासे सारी रात गुजारना, उफ्फ!! आज भी वो दिन याद आता है तो सिहर जाता हूँ.
ताऊ : चलिये आपसे हमको और हमारे पाठकों को पूरी हमदर्दी है. अब हमको वो वाला किस्सा सुनाईये जब आपको सिगरेट पीते हुये आपके पिताजी ने रंगे हाथ पकड लिया था.
समीर जी : अरे यार ताऊ, आप भी कहां कहां से ये किस्से खोद खोद कर निकाल लाते हो? आपको किसने बता दिया ये कांड?
ताऊ : भाई किसी ने भी बताया हो पर हमको तो आपके मुंह से ही सुनना है.
समीर जी : ताऊ, दर असल हुआ युं था कि उन दिनों नये नये कालेज में गये थे और छिप कर सिगरेट पीना शान समझते थे. एक बार माँ और पिता जी कहीं गये थे. रात लौटने में उनको देर हो जानी थी तो हमारे दोस्तों का जमावडा हमारे घर की छत पर ही हो गया.
ताऊ : हां बताते चलिये.
समीर जी : बस फ़िर क्या था. सिगरेट आई और खूब पी गई. एकाएक माचिस खत्म हो गई तो अपने अभिन्न दोस्त को नीचे किचन में माचिस लाने भेज दिया.
ताऊ : तो इसमे क्या खास बात हुई? वो माचिस ले आया होगा?
समीर जी : ताऊ पूरी बात तो सुनो. वो माचिस क्या खाक ले आया होगा. उसी समय बिजली चली गई और दोस्त बहुत देर तक नहीं लौटा. तो मैं सीढ़ी टटोलता उसे देखने अँधेरे में नीचे आने लगा. रास्ते में ही वो टकरा गया और मैने उससे कहा-क्यूँ बे, माचिस लाने में इतनी देर लगती है? मेरी सिगरेट कौन तुम्हारा बाप जलायेगा?
ताऊ : फ़िर क्या हुआ?
समीर जी : फ़िर वही हुआ जो नही होना चाहिये था. पीछे से आवाज आई, नहीं, उसका नहीं तुम्हारा बाप जलायेगा!!! एकाएक लाईट आ गई. ऊँगलियों के बीच में बिन जलाई सिगरेट लिए मैं..सामने मेरा दोस्त हाथ में माचिस लिए..और उसके पीछे सीढ़ी पर पिता जी. सोचिये, क्या हाल हुए होंगे!! बस, मैं ही जानता हूँ कि उस वक्त हमारी क्या स्थिति हुई - बताने योग्य तो कतई नहीं.
ताऊ : वाकई बुरा हुआ आपके साथ. पर हमे तो हंसी आरही है. फ़िर कुछ इनिशियल ऎडवांटेज (पिटाई) भी मिला क्या इस बात पर?
समीर जी : (हंसते हुये)…. नही हमारे पिताजी ने कभी इस तरह के एडवांटेज नही दिये.
ताऊ : आप ब्लागिंग मे कब आये?
समीर जी : मैं ब्लॉगिंग में २००६ मार्च में आया. तब मात्र १०० लोग लिखा करते थे हिन्दी ब्लॉग. खूब प्रोत्साहन मिला आपस में. बस, एक लगन सी लग गई, लोग जुड़ते गये, कारवाँ बनता गया और आज तो आप देख ही रहे हैं कितने लोग हैं जो अपनी अपनी बात अपने अनोखे अंदाज में कहे जा रहे हैं.
ताऊ : आगे आपको ब्लागिंग का भविष्य क्या दिखाई देता है?
समीर जी : आगे भी हिन्दी ब्लॉगिंग का उज्जवल भविष्य ही देखता हूँ और मुझे बहुत उम्मीदें हैं इससे.
ताऊ : आपका कविता संग्रह "बिखरे मोती" को क्या आप मानते हैं कि यह भी ब्लागिंग की देन है?
समीर जी : बिल्कुल ताऊ. आज जो मेरा कविता संग्रह 'बिखरे मोती' आप सबके सामने है वो इसी ब्लॉगिंग की देन है. और यह भी बतादूं कि आने वाला कथा एवं व्यंग्य संग्रह 'अगले जनम मुझे बेटवा न कीजो' और एक अन्य काव्य संग्रह जो प्रकाशन की तैयारी में है, यह सब हिन्दी ब्लॉगिंग करते ही, यहाँ से प्राप्त स्नेह और संबल से संभव हो पाया है.
ताऊ : ब्लागिंग युं तो आपका सबसे पसंदीदा शौक है. फ़िर भी इसकी कोई एक अच्छाई जो आप शिद्दत से महसूस करते हों, वह बता सकते हैं?
समीर जी : हा ताऊ, ये आपने अब इतनी देर बाद लाख टके का सवाल पूछा है. इसका एक इतना उजला पक्ष है जिससे कोई भी इन्कार नही कर सकता. इसी ब्लॉगिंग ने विश्व के लगभग सभी प्रमुख शहरों में अनेकानेक परिवारिक दोस्त दिये. आज तो आलम यह है कि कोई शहर अंजान सा लगता ही नहीं.
ताऊ : अनेक बार और अभी भी लोग कहते हैं कि उडनतश्तरी ही ताऊ हैं?
समीर जी : हां लोगों को शक हुआ कि मैं ही ताऊ हूँ. सोचता हूँ काश, मुझमें इतनी सक्षमताऐं होती और मैं इस स्तर का लिख पाता तो लोगों के शक को यकीन में बदल डालता.
ताऊ : खैर अभी तक तो खुलेआम कोई स्वीकार नही करता कि ताऊ कौन है? पर जब लोग आपको ताऊ कहते हैं तब कैसा महसूस करते हैं?
समीर जी : जब कोई ऐसा शक दर्शाता है तो उसके प्रति मेरे मन में एकाएक श्रृद्धा भाव उमड़ पड़ते हैं और मैं गदगद हो जाता हूँ - थोड़ा वजन भी इसी चक्कर में बढ़ जाता है. ताऊ का मुरीद हूँ - क्या क्या करेक्टर छांट कर लाता है. रामप्यारी का करेक्टर और खूँटे से का कॉन्सेप्ट मुझे सबसे प्रिय है.
ताऊ : आपने राजनिती कब छोडी?
समीर जी : जब १९९९ में भारत छोड़ा तो कई चीजें और पीछे छूट गईं - उनमें से राजनिती भी एक थी.
ताऊ : आपको राजनिती छोडने का अफ़्सोस नही होता? क्योंकि सुना है इस दलदल में जो एक बार धंस गया वो हमेशा के लिये धंस गया?
समीर जी : हा ताऊ. बात तो आपकी ठीक है. इससे बाहर निकले तो जाना कि कितने कींचड़ में फंसे थे और क्या क्या करते थे. बस तबसे, कुछ शांति प्रियता आदत का हिस्सा बन गई.
ताऊ : अक्सर ब्लागजगत मे भी सभी को लगता है कि आप विवादों से दूर ही रहते हैं? कहां तक सही है?
समीर जी : हा, ये बात सही है. मैं ब्लॉग पर भी विवादों और पचड़ों से दूर ही रहना पसंद करता हूँ. क्या रखा है इन सब में. गाँधी जी सही थे या गलत थे, जो भी थे, जैसे भी थे-अब नहीं हैं. कोई डंडा नहीं मारता कि आप उनके बताये मार्ग पर चलें या नाथूराम के - फिर क्यूँ बार बार इस पर विवाद. जब तक अति आवश्यक न हो जाये मैं ऐसे विषयों से यथासंभव दूरी रखना पसंद करता हूँ. और भी कई गम हैं गालिब इस जमाने में.
ताऊ : अक्सर लोग आपके नाम से शीर्षक रख कर पोस्ट लिख देते हैं. आपको कैसा लगता है?
समीर जी : हां, लोग अक्सर ही मेरा नाम शीर्षक में लिख कर आलेख लिख देते हैं. मुझे इसका कतई बुरा नहीं लगता. अरे ताऊ, इससे तो मुझे ही लोकप्रियता मिलती है न भई, मैं क्यूँ बुरा मानने लगा? यह तो लोगों का स्नेह है जो मुझ पर कुछ लिखते हैं. ( फ़िर हंसते हुये..) देखा नहीं क्या बेहतरीन स्केच और फोटो बनाई लोगों ने हमारी.?
ताऊ : आपके विचार से आप कौन से ब्लाग को सबसे अच्छा और कौन से ब्लाग को सबसे खराब का खिताब देना चाहेंगे?
समीर जी : आप भी ताऊ क्या प्रश्न लेकर बैठ गये? सबसे अच्छा और सबसे खराब ब्लॉग? आप तो पहले से ही जानते हो कि मैं कुछ गोल गोल सा ही जबाब दूँगा इसका.
ताऊ : आप के बारे मे अक्सर लोग कहते हैं कि आप…वाह वाह….बेहतरीन लिखा है…जैसी टिपणियां ही ज्यादा देते हैं? ऐसा क्यों?
समीर जी : नहीं ताऊ, मैं हर तरह का लेखन सहज भाव से पढ़ कर लेखक के जूते में अपने पांव रख कर देखता हूँ. हर लेखक को अपना लिखा प्रिय होता है, तो मुझे भी प्रिय लगता है. इसीलिए तो कहता हूँ, वाह!! क्या बेहतरीन लिखा है. ऐसा ही तो लगता है हर लेखक को अपना आलेख तैयार करके.
ताऊ : हमने सुना है कि आप अब भी पढते हैं और नये नये एक्जाम पास करते ही रहते हैं?
समीर जी : हां, आपकी ये सूचना भी सही है. असल मे हर वक्त कुछ नया करते रहने का जोश है. लगातार पढ़ाई करते रहने की आदत सी हो गई है. कभी कुछ कभी कुछ. साल में एक दो परिक्षाऐं न दूँ तो लगता है कि साल बेकार चला गया और कुछ किया ही नहीं.
ताऊ : अभी वर्तमान मे कौन सी पढाई चल रही है?
समीर जी : अभी भारत आने के पहले एक रिस्क मैनेजमेन्ट का कोर्स कम्पलीट किया और अब लौट कर कुछ नया करने का इरादा है. यह सब दफ्तर और घर के काम के साथ साथ चलता रहता है.
ताऊ : हमने ये भी सुना है कि आप कुछ तकनिकी लेखन भी करते हैं?
समीर जी : हां ताऊ, कुछ तकनिकी लेखन भी टेक्निकल पत्र पत्रिकाओं के लिए करता रहता हूँ जो कि ठीक ठाक कमाई भी दे देती हैं और लिखने से ज्ञानार्जन तो और होता ही है.
ताऊ : आप क्या पुरी तरह कनाडा मे बस जाना चाहते हैं?
समीर जी : नही नही, मैं तो पूरे प्रयास में लगा हूँ पिछले ढ़ेड बरस से कि किसी तरह कुछ ऐसा कार्य जमा लूँ कि साल में कम से कम आठ माह भारत में बीतें. ( फ़िर हंसते हुये कहते हैं…) इसी दिशा में कार्यरत हूँ बाकी तो जैसा इश्वर चाहेगा और पत्नी की आज्ञा होगी. दोनों ही सर्वोपरी हैं.
ताऊ : अपने बारे में एक सरासर झूठ बोलिये - ऐसा झूठ जो हर कोई पकड़ ले?
समीर जी : ताऊ, मैं बहुत शर्मीला हूँ.
ताऊ : और अब अपने बारे एक एकदम सच बात बोलिए जो बहुत कम लोग जानते हैं?
समीर जी : मुझे एकांत में चुप बैठे रहना सबसे प्रिय लगता है.
ताऊ : भाभी जी यानि की श्रीमती समीरलाल क्या आपकी सभी रचनाएं पढती हैं? एक दम सच सच बोलियेगा. यह हमारे पाठकों का एक स्पेशियल सवाल है आपके लिये?
समीर जी : धर्म-पत्नी तो सिर्फ वो कविता या आलेख पढ़ती है जो दोस्तों की महफिल में चर्चित हो जाता है वरना हमारे भाग्य ऐसे कहाँ कि वो सारे आलेख पढ़े या हर रचना पर हमारी तरह वाह, वाह!! करे.
ताऊ : -सुना है जब आप जबलपुर में होते हैं तो खूब महफिलें और दावतें जमती है. कवियों की, ब्लॉगरों की, कव्वाली की, लोक गीतों की.
समीर जी : आप भी पधारें कभी हमारी दावत में - महफिल सजेगी तब एक नाम और जुड़ जायेगा कि ताऊओं की महफिल. :) बस, ऐसे ही सजती रहे - मान के चलता हूँ कि जिन्दगी जिंदादिली का नाम है.
ताऊ : ऐसा कोई काम जो आप जल्दी नहीं कर सकते?
समीर जी : हाँ ताऊ, मैं जल्दी किसी को दुखी नहीं कर सकता.
ताऊ : कोई आदत, जो आप बदलना चाहते हैं?
समीर जी : हाँ, चाहता हूँ कि मैं 'नो' बोलना सीखूँ. नेतागिरी छूटी मगर हर बात पर 'हाँ' कह देने की आदत नहीं गई. कई बार बहुत तकलीफ हो जाती है. सोचता हूँ किसी बात के लिए तो 'ना' करने की आदत डाल ही लूँ. सामने सामने मना ही नहीं कर पाता.
ताऊ : आज रात आप भारत से वापस जा रहे हैं, कैसा लग रहा है?
समीर जी : मैं तो हर बार वापस आने के लिए ही जाता हूँ भले ही कितने दिन लग जायें. दिल, दिमाग तो हर वक्त भारत में ही रहता है. वहाँ कनाडा में तो बस इस जुगत में रहते हैं कि कब भारत वापस जाने का मौका लगे और वापस हो लेते हैं. वादा है कि जल्दी ही आप सबके बीच वापस आऊँगा. यूँ तो ब्लॉग के माध्यम से हर वक्त सबके बीच होता ही हूँ और दूरियों का कोई अहसास नहीं होता मगर फिर भी, भारत तो भारत ही है.
अब एक प्रश्न का ताऊ आप जवाब दो मैने सुना है कि जो एक साल में तीन बार या उससे ज्यादा प्रथम आयेगा, उसके लिए कुछ लम्बे इनाम की व्यवस्था है? दो बार तो मैं जीत ही चुका हूँ इसलिए जरा जानने की इच्छा बढ़ गई है कि वो ईनाम क्या है-बताओगे क्या?
ताऊ : बस आप थोडा इंतजार किजिये. अभी तो सब कुछ गुप्त ही है. पर आप अभी से ताऊ से सवाल क्युं पूछ रहे हैं? अभी तो हमारे सवाल ही बहुत बाकी हैं? और ताऊ कभी आपके चक्कर में चढे तो आप भी इंटर्व्यु लेलेना ताऊ का.
समीर जी : ठीक है ताऊ. और पूछिये क्या बाकी रह गया? पर कभी ना कभी आप भी चक्कर मे तो चढोगे ही.
ताऊ : हमने सुना है कि आप ने प्रेम विवाह किया था? कुछ अपनी मिलन कथा के बारे मे बतायेंगे?
समीर जी : अब ताऊ, वैसे तो पुरातन कथायें सुनाने का ज्यादा शौक नहीं तो क्या अपनी और अपनी पत्नी की मिलन कथा सुनायें?
ताऊ : अजी समीर जी आप भाभीजी से क्युं डर रहे हैं? हम बैठे हैं ना यहां वो कुछ नही कहेंगी? आप तो बताईये बिंदास. आपके अंदाज में.
( और भाभी जी भी हमारी तरफ़ देख कर मुस्कराने लगी. तब तक चाय आगई थी और अब बातचीत मे भाभी जी भी शामिल हो गई थी. शामिल तो क्या, वो भी हमारी बाते मजे ले कर सुन रही थी)
समीर जी : बस, यह जान लिजिये कि अपने जमाने में हमने भी ५ साल से ज्यादा प्रेम झूले पर पैंगे भरी.
ताऊ : वाह ..फ़िर तो आराम से शादी हो गई होगी?
समीर जी : अजी आराम से कहां हुई? घर वालों का विरोध तो ऐसा कि जाने कित्ती बार टंकी पर चढे..कोई उतारने ही नही आया तो खुद ही उतर भी गये..
ताऊ : फ़िर आपकी विजय कैसे हुई?
समीर जी : अंत में विजयी घोषित किये गये. जिद्द सिर्फ यह थी कि भाग कर शादी नहीं करेंगे और करेंगे जरुर इन्हीं से.
ताऊ : यानि घरवालों को आपने भी बहुत इमोशनली ब्लेकमेल किया?
समीर जी : ताऊ, अगर इमोशनल ब्लेक मेल नही करते तो हमारे मनमाफ़िक काम नही होता.
ताऊ : आपके मनमाफ़िक यानि क्या?
समीर जी ": मतलब ये कि सारे घर वालों का शादी में आना भी जरुरी करार कर दिया था. ऐसी सेटिंग बैठाई कि दोनों तरफ से पूरे पूरे घर वाले सारे काम धाम छोड़ कर शादी में फूल बरसा रहे थे.
सब कुछ अपने मन की हुई.
ताऊ : यानि यहां राजनिती की शिक्षा काम आगई आपके? हमने सुना है कि आप काम मे भी बडे हार्ड वर्कर हैं. यानि जिसे कहें कि जिद्दीपन या जुनुन?
समीर जी : हां, जिद्दीपन काम में भी था दफ्तर के. हमारी खुद की सी.ए. की प्रेक्टिस थी. २५ की दोपहर शादी हुई. और वो राखी का दिन था ताऊ. शाम को रिशेप्शन और अगले दिन हम ४ घंटे के लिए ऑफिस पहुँच लिए थे. क्लाईंट्स ने भगाया तो घर आ गये वरना तो सेवा में हाजिर थे.
ताऊ : आपके राजनैतिक और व्यापारिक स्तर पर बहुत ही ऊंचे सम्पर्क हैं. क्या आपके बेटों को इसका फ़ायदा मिला?
समीर जी : राजनैतिक और व्यापारिक उच्च स्तरीय संपर्क होते हुए भी हमने कभी दोनों बेटों को इसका नाजायज फायदा नहीं उठाने दिया ताकि वो स्वतः जिन्दगी की जद्दो जहद सीखें. हां यह दीगर बात है कि अक्सर नाम के चलते वो यूँ ही फायदा पा जाते थे मगर प्रयास होता था कि कम से कम फायदा मिले.
ताऊ : हमने सुना है कि एक बार ऐसी ही किसी बात को लेकर भाभी जी आपसे काफ़ी नाराज हो गई थी? ( हमने मुस्करा कर भाभी जी की तरफ़ देखते हुये पूछा.)
समीर जी : हां एक बार तो ये (भाभीजी की तरफ़ मुस्करा कर इशारा करते हुये बोले) उनकी माता जी बहुत नाराज हो गई जब मैने दोनों बेटों को सेकेन्ड क्लास में अकेले ४ घंटे दूर इटारसी तक भेज दिया मगर वो एक यात्रा , आगे चल उन्हें जिन्दगी की कितनी यात्राओं में मददगार हुई यह दोनों आज तक याद करते हैं.
ताऊ : जी आप शायद ठीक कह रहे हैं. एक पिता होने के नाते कई बार दिल कडा करना पडता है. हमको एक पिता के रुप मे आपका अनुशाशन अच्छा लगा.
समीर जी : हां ताऊ, मेरी मान्यता है अगर उपलब्ध भी हो तो भी सिर्फ सोने के चम्मच से चावल खिलवा कर परवरिश नहीं करना चाहिये. जीवन का क्या भरोसा - कब बुरे दिन देखने पड जायें? हों. कम से कम उनसे जूझने की कला तो आना ही चाहिये अन्यथा तो आत्म हत्या के सिवाय क्या रास्ता बचेगा.
ताऊ : हमने सुना है कि भाभीजी भी बच्चों को पुरे अनुशाशन मे रखती थी?
समीर जी : हां ताऊ, दोनों बेटों को उनकी माँ का सिखाया पूरा अनुशासन, संस्कृति और परिवार से प्रेम मिला.
ताऊ : बच्चों की शिक्षा कहां हुई?
समीर जी : १२ वीं तक भारत में रख पूरी संस्कृति और परिवेष दिया फिर उन्हें आगे पढ़ाई के लिए कनाडा ले गये. अब दोनों अपनी अपनी जगह कमप्यूटर इंजिनियर की हैसियत से मस्त हैं. पूरे भारतीय हैं किन्तु किसी अमरीकन या कनैडियन से पीछे नहीं.
ताऊ : आप दोनो संतुष्ट हैं?
समीर जी : हां ताऊ, मैं और मेरी पत्नी अपनी उपलब्धियों पर पूर्णतः संतुष्ट हैं
.
ताऊ : अच्छा समीर जी, अगर आपको भारत का वितमंत्री बना दिया जाये तो आप क्या करना चाहेंगे?
समीर जी : सुना था अपने ही ज्यादती करते हैं तो ताऊ, आपने की तो क्या गलत किया. अरे, जब मात्र विचार के लिए पद दे रहे थे तो वित्त मंत्री क्यूँ-प्रधान मंत्री ही देते. खैर, मेहरबानी, जो इतना तो दिया.
ताऊ : देने को तो आपको प्रधानमंत्री का भी पद दिया जा सकता है क्योंकि आप राजनिती भी कर चुके हैं, पर हम आपकी वित के क्षेत्र मे उपलबधियों को देखते हुये आपको वितमंत्री बना रहे हैं.
समीर जी : अगर कभी ऐसा मौका आया तो मेरी पूरी एकाग्रता इस बात पर होगी कि किसी व्यापारी
लॉबी विशेष को लाभान्वित करने आमजन प्रताड़ित न हो. अगर कहीं किसी मद में फंडिंग करना है तो या तो न करो और पोस्टपोन कर दो या करो तो पूरी करो. अन्डर फाइनेन्सिंग की अवधारणा का मैं सख्त विरोधी हूँ और अधिकतर विफलता के लिए इसी को जिम्मेदार मानता हूँ.
ताऊ : आपसे संक्षेप में पूछूं तो आपकी जिंदगी का फ़लसफ़ा क्या है?
समीर जी : मैं जिन्दगी हर दिन पूरी जीता हूँ. न तो नॉनवेज से गुरेज, न पीने पिलाने से..बस, परहेज हैं तो किसी भी चीज की अति से. अच्छे होटलों में रुकना, अच्छा खाना, अच्छा पीना, लक्जरी जितनी औकातानुसार बन सके, अफोर्ड करना..और अपने परिचितों का दायरा दिन ब दिन विस्तारित करना- यही सब जिन्दगी जीने का फलसफा बनाये हूँ. अब तक तो सब बेहतरीन ही है...( हंसते हुये..) खुद को साधुवाद दे देता हूँ.
ताऊ : अच्छा समीर जी, अब हमको इजाजत दिजिये. आपकी फ़्लाईट तो रात की है और हमारी अभी शाम को ६ बजे है. सो हमको इजाजत दिजिये. आपकी यात्रा शुभ हो. पर ये रामप्यारी कहीं दिखाई नही दे रही है? कहां गई? देर हो रही है.
समीर जी : ताऊ, रामप्यारी तो कह के गई है कि वो तो चुनाव के बाद की जोडतोड बैठाने के लिये नागनाथों और सांपनाथों के विचार जानकर आयेगी. वो सुबह ही निकल गई थी. और आपको सीधे एयरपोर्ट पर ही मिलेगी.
हमने समीरजी और भाभी जी से विदा ली. उसके बाद समीर जी का इंगलैंड से ये एक मेसेज आया.
ताऊ आपको एक फोटो भेजता हूँ किसी को दिखाना मत - रामप्यारी को तो बिल्कुल भी नहीं दिखाना . कल ही यूके के एतिहासिक शहर मैनचेस्टर की यात्रा के दौरान की है..बीयर पी कर तो मजा ही आ गई:
जय हो ताऊ...
समीर लाल
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हालांकि समीरजी ने मेनचेस्टर के मजे लेने वाली फ़ोटो किसी को भी दिखाने से मना किया था पर हम अपने आपको रोक नही पाये . इसलिये उस फ़ोटो को मेल के साथ नही लगा कर हमने उपर लगा दिया है.
दुसरा मैसेज इंगलैंड से ही ये आया : -
ताऊ, कल सुबह तो मैं ब्रसल्स के लिए निकल जाऊँगा और परसों फ्लाईट में हूँगा कनाडा की राह पर..३ तारीख की दोपहर पहुँचूंगा.
समीर
और आज जब आप ये इंटर्व्यु पढ रहे होंगे, तब समीर जी अपनी कर्मस्थली कनाडा पहुंच चुके होंगे.
बहुत धन्यवाद और शुभकामनाएं समीर जी. आप जल्दी लौटे, हम सब आपका इंतजार कर रहे हैं.
और ये लो जी ईंटर्व्यु पढते पढते ही रामप्यारी के लिये उनका ये मेल आगया.
ताऊ
हमारे पास तीन चिड़िया हैं कनाडा में..नाम बोलू, मोलू और खुशाल हैं. रामप्यारी के दोस्त बन सकते हैं वो और हाँ, रामप्यारी की टॉफी भी वो नहीं छीनेंगे क्योंकि टॉफी खाते ही नहीं. :)
फोटो रामप्यारी को दिखा देना. :
तो दोस्तों ये थे समीर जी की जिंदगी के कुछ अनछूये पहलू. आशा है आपको पसंद आये होंगे?
अगले सप्ताह आपको एक और सख्शियत से रुबरु करवायेंगे तब तक अलविदा.
वाह वाह! समीर जी और ताऊ जी आपकी बातचीत तो बहुत पसंद आई। समीर जी की राजनीतिक सक्रियता की बात नई लगी। आप दोनों को इस बेहतरीन प्रस्तुति के लिये बधाई!
ReplyDeleteराम राम
दो मित्रों की बातें, घर परिवार की बातें, देश की बातें, परदेश की बातें,
ReplyDeleteकुछ अच्छे चित्र,
पिता-पुत्र का संस्मरण
और
ऐसे में चाय की चुस्कियाँ।
भाई समीर लाल जी का साक्षात्कार अच्छा लगा। एक बात तो लिखना भूल ही गया कि
इसमें ब्लागर्स के लिए प्रेरणा भी छिपी है।
बिंध गया तो मोती नही तो पत्थर।
ताऊ को घणी बधायी।
राम-राम।
दो मित्रों की बातें, घर परिवार की बातें, देश की बातें, परदेश की बातें,
ReplyDeleteकुछ अच्छे चित्र,
पिता-पुत्र का संस्मरण
और
ऐसे में चाय की चुस्कियाँ।
भाई समीर लाल जी का साक्षात्कार अच्छा लगा। एक बात तो लिखना भूल ही गया कि
इसमें ब्लागर्स के लिए प्रेरणा भी छिपी है।
बिंध गया तो मोती नही तो पत्थर।
ताऊ को घणी बधायी।
राम-राम।
समीर जी की जिंदगी के कुछ अनछूये पहलुओं से रूबरू कराने के लिए धन्यवाद .. बहुत अच्छा लगा उनके बारे में जानकर।
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर प्रस्तुति .
ReplyDeleteसुन्दर! शाकाहारी/साधुवादी परिचयनामा!
ReplyDeleteपीछे से आवाज आई, नहीं, उसका नहीं तुम्हारा बाप जलायेगा!!! वाह समीर जी वाह. आज पत लगा की आप तो शुरु से ही गुरु घंटाल हैं. अब यह परिचयनामा पढकर कोई शक नही रह जाता कि ताऊ कौन? फ़ैसला हो चुका है.
ReplyDeleteपीछे से आवाज आई, नहीं, उसका नहीं तुम्हारा बाप जलायेगा!!! वाह समीर जी वाह. आज पता लगा की आप तो शुरु से ही गुरु घंटाल हैं. अब यह परिचयनामा पढकर कोई शक नही रह जाता कि ताऊ कौन? फ़ैसला हो चुका है.
ReplyDeleteबहुत बढिया रही ये बातचीत. आनन्द आया दो ताऊओं के बीच की बातचीत में.
ReplyDeleteघर वालों का विरोध तो ऐसा कि जाने कित्ती बार टंकी पर चढे..कोई उतारने ही नही आया तो खुद ही उतर भी गये.. इस पूरे वार्तालाप मे बडा आनन्द आया. आखिर जबलपुरिया असर साफ़ दिखाई दे रहा है.:)
ReplyDeleteसवाल और जवाब एक से बढकर एक.
बहुत जीवंत साक्षात्कार. परिचय को इस कदर जीवंत बनाने में आप महारथी हैं.
ReplyDeleteएक लाजवाब और बेहतरीन परिचय. धन्यवाद.
ReplyDeleteअच्छा साक्षात्कार, आनंद बरसा!
ReplyDeleteकोई भी जलाये ,
ReplyDelete...ज़िगर मा बड़ी आग है....
मजेदार रही समीर गाथा -कई कई बंद कमरों में गुजरने की बाद यह काव्य ह्रदय प्रस्फुटित हुआ है !
ReplyDeleteऐसा भी लगा की बहुत कुछ अनपूंछा और अनकहा ही रह गया है ! समीर जी का व्यक्तित्व ही ऐसा ही है ! उनकी कवितायेँ पढ़ रहा हूँ -उनकी परले दर्जे की विद्वता असंदिग्ध है ! जल्दी ही उनके कविता संग्रह पर अपनी प्रतिक्रिया क्वचिदन्य्तोअपि पर दे सकूं इसी प्रयास में हूँ !
बेहद सनसनी खेज साक्षात्कार. मजा आया.
ReplyDeleteसमीर लाल जी के जीवन के विविध रुप लगते हैं जिनमे से कुछ यहां उभर कर आये हैं. बहुत सुंदर लगा यह परिचय और प्रस्तुतिकरण.
ReplyDeleteसमीर लाल जी के जीवन के विविध रुप लगते हैं जिनमे से कुछ यहां उभर कर आये हैं. बहुत सुंदर लगा यह परिचय और प्रस्तुतिकरण.
ReplyDeleteबेहद रोचक..और लाजवाब.
ReplyDeleteसमीर जी तो ब्लागिंग का ऐसा चेहरा है जिसकी बदौलत आज हिन्दी ब्लाॅग को जाना जा रहा है। उन पर लिखना एक अच्छा अनुभव होता हैं। बहुत पहले एक लेख मैंने भी लिखा था, और कुछ बार उनसे बात भी हुयी। वो एक लजवाब व्यक्तित्व के मालिक है। लेकिन आजकल बहुत गम्भीर लिख रहे हैं।
ReplyDeleteये तो बडा जीवंत इंटर्व्यु लग रहा है. बहुत बढिया.
ReplyDeleteलाजवाब साक्षत्कार.............समीर जी के बारे में बहुत कुछ पता चला..........उनको जानने के बाद उनकी रचनाएँ और अच्छी लगने लगीं।
ReplyDeleteसमीर जी तकनीकी रूप से भी उस्ताद हैं. कुछेक मर्तबा मैंने भी उनसे एक्सेल के फंडे सीखे थे.
ReplyDeleteइस परिचयनामा के सौजन्य से मैं उनसे अनुरोध करता हूं कि वे उड़न-तश्तरी पर एक तकनीकी खंड खोलें और नियमित तकनीकी (जो उनका डोमेन है, जैसे कि एक्सेल, वाणिज्य इत्यादि...) आलेख लिखकर हिन्दी ब्लॉगजगत् को समृद्ध करें.
मुझे उनकी हमेशा कुछ न कुछ पढ़ते रहनेवाली बात बड़ी अच्छी लगी। अच्छा साक्षात्कार।
ReplyDeleteलालजी के बारे में बहुत कुछ जानते है, मगर आज फिर से कुछ जाना...मस्त रही मुलाकात....लालजी को बहुत बहुत शुभकामनाएं....खूब व्यंग्य करे...मस्त रहे...रोचक किस्से थे...मजा आया.
ReplyDeleteसमीर जी से बातचीत अत्यन्य रोचक है, और कुछ अछूते पहलुओं पर रोशनी डालती है । धन्यवाद ।
ReplyDeleteअच्छा लगा कुछ अनछुये पहलूओ को जानकर्।खासकर काम करने की धुन या ज़िद,पर अपन तो ठहरे अलाल नम्बर वन जभी तो इतने लोगो के बाद नम्बर लग रहा है।
ReplyDeleteसमीर जी का साक्षात्कार पढकर तो आनन्द ही आ गया..... बहुत ही साधु प्रवृ्ति के जीव हैं..)
ReplyDeleteधन्यवाद......
समीर जी के बारे में बहुत कुछ जानने को मिला रोचक बात चीत और कई नयी बाते जानी उनके बारे में ..शुक्रिया
ReplyDeleteजैसे समीर जी हैं वैसा ही उनका इंटरव्यू है...बिंदास और दिलचस्प...शुक्रिया आपका...
ReplyDeleteनीरज
अभी अभी समीर जी की इमानदारी से लिखी रचना उनके ब्लॉग पर पढ़ी..............अब ये इंटरवू ................दोनों ही अलग अलग रूप................क्या कहने हैं समीर भाई के..............
ReplyDeleteछा गयी गुरु............चरण कहाँ हैं.............स्पर्श तो कर लूं
bahut hi achha interview raha sameer ji ka,maza aagaya,khas kar parwarik photo dekh ke,ishwar unke saare pariwaar par dua ka haath hamesha rakhe.amen.
ReplyDeleteवाह जी वाह ! मजा आ गया !
ReplyDeleteसमीर लाल जी का साक्षात्कार अच्छा लगा।
ReplyDeleteजिंदगी के कुछ अनछूये पहलुओं से रूबरू कराने के लिए धन्यावाद ।
बेहतरीन परिचय।धन्यवाद।
प्राइमरी का मास्टरफतेहपुर
समीर लाल जी का साक्षात्कार अच्छा लगा।
ReplyDeleteजिंदगी के कुछ अनछूये पहलुओं से रूबरू कराने के लिए धन्यावाद ।
बेहतरीन परिचय।धन्यवाद।
प्राइमरी का मास्टरफतेहपुर
Sameer ji ke baare mai itna kuchh jan ke bahut achha laga...
ReplyDeleteबढि़या, एक सांस में पढ़ गया, कई गजग हंसी अभी आई और कई जगह........
ReplyDeleteसमीर लाल जी के जीवन के विविध रूपों से परिचय करवाने के लिए आपका शुक्रिया. धनी व्यक्तित्व के स्वामी हैं समीर जी.
ReplyDeleteवाह बहुत अच्छा साक्षात्कार रहा समीर जी का। काफी कुछ जानने को मिला उनके बारे में। इतना रुचिकर था कि एक बार में ही पढ़ गया। हवेली में रात भर बंद रहने और प्रेम कहानी वाले वाकये ने तो चार चांद लगा दिए। समीर जी को ढेर सारी शुभकामनाएं। यूं ही जारी रहे ये कारवां।
ReplyDeleteshuru se lekar ant atak aane me poore 20 minute lage, lekin kahi bhi aruchi nahi hui..Sameer Lal ji e vishay me bahut si bate janane ko mili unke anchhue pahaluo se ru-ba-ru karane ka shukriya
ReplyDeleteताऊ- आपने तो लालाजी कि सारी पोलपटी खोल दी। अच्छा था इन्टरव्यू। आभार।
ReplyDeleteसमीरलाल जी का साक्षात्कार पड़कर अच्छा लगा.
ReplyDeleteभगवान करे उनका चाहा धंधा जल्दी से जम जाए ताकि उनकी 8 महीने भारत में रहने की इच्छा शीघ्रातिशीघ्र पूर्ण हो.
tau, mujhe to yakeen tha is blogjagat mein ek ailyeean hai, udantashtaree, magar jo alian ke baare mein itnaa kuchh jaantaa hai wo khud kisi aliyeean se kam nahin hai.....
ReplyDeleteab tak padhee gayee sabhee poston mein se ek aur sarvkaalik.....
जितना बडा नाम उससे भी बडे उनके विचार परिचय पढकर बहुत अच्छा लगा ।
ReplyDeleteसमीर भाई के बारें में जानने की काफि उत्सुकता थी.. धन्यवाद ताऊ बहुत रोचक इंटरव्यु किया..
ReplyDeleteरोचक साक्षात्कार। सारी मजेदार बातें समीर जी के साथ ही क्यों होती हैं?
ReplyDeleteघुघूती बासूती.
समीर लाल जी का इंटरव्यू पढ़कर बहुत सी ऐसी चीजों का पता चला, जो हम उनसे व्यक्तिगत रूप से मिलकर भी नहीं जान सकते थे। ताऊजी औऱ समीर जी दोनों ब्लॉग जगत में महान है.. यह सिलसिला चलता रहे..आभार
ReplyDeletesameer gatha///sameerji ke blog par unhe padhh kar jitna jaanaa tha, ab aapke madhyam se bahut kuchh jaan liya//badhai aapko jyada kyuki aap hi he jo rachnadharmiyo ko unki sahi jagah par viraaz rahe ho....
ReplyDeletekabhi aapka bhi esa hi kuchh sakshatkaar lena chahunga//samay dijiyega/
बहुत ही रोचक और विस्तृत चित्रमय साक्षात्कार है.
ReplyDeleteशायद पहली बार समीर जी का इतना बढ़िया interview कहीं लिया गया है.
ताऊ जी और समीर जी को बधाई.
समीर लाल जी से साक्षात्कार मजेदार रहा ,जीवन की कई घटनाएँ कैसे अविस्मर्णीय हो जाती हैं :)
ReplyDeleteबिखरे मोती व अन्य प्रकाशन की समीरलाल जी को बहुत बधाई.
ताउजी आप भी बस कमाल हैं .....कहाँ -कहाँ से प्रश्न खोज लाते हैं ??बहुत ही उम्दा ,जीवंत परिचयनामा .
यह साक्षात्कार एक ईमानदार स्वीकारोक्ति है । पर, क्या सँयोग है ?
ReplyDeleteकई बिन्दुओं एवं घटनाक्रम पर तो ऎसा लगता घै, कि निट्ठल्ला उड़नतश्तरी को दोहरा रहा है, या उड़नतश्तरी निट्ठल्ले को .. !
अपने अपने से समीरलाल नज़र आते हैं !
साक्षात्कार समीर लाल जी का
ReplyDeleteपड़कर आनंद छा गया
और टंकी वाला किस्सा सुनकर तो
वाकई मज़ा आ गया
समीर भाई की जिंदादिली और साफगोई आपके साथ बातचीत में भी दिखी। जिंदगी जिंदादिली का नाम है- यही संदेश तो हम उनसे सिखते हैं। बहुत अच्छी प्रस्तुति।
ReplyDeleteगजब का सचित्र से लबरेज साक्षात्कार रहा है बधाई ताऊ जी दिल से ......एक फोटो में समीर जी जेंगो जैसे दिख रहे है हा हा हा
ReplyDeleteविस्तृत परिचय दे कर घणा पुण्य कमा रहे हैं आप ताऊजी।
ReplyDeleteपरिचयनामा तो बहुत बढिया लगा.. शब्द और भाषा की शैली ऐसी कि चित्र सजीव हो उठे... सरल और सहज भाव में लिया गया साक्षात्कार प्रभावशाली लगा.
ReplyDeleteसमीर जी के इन अन्छुये पहलुओं को जानना बड़ा रोचक रहा
ReplyDeleteशुक्रिया ताऊ
वाह बड़ा ही धारधार इंटरव्यू रहा.. सवालो की बौछार ऑर जवाबी प्रहार दोनों ही मज़ेदार रहे..
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