शेरू महाराज के विज्ञापन के एवज मे एक भी गीदड नही आया बल्कि तीन आदमी वहां पहुंचे. उन तीनों से शेर ने पूछा कि एक भी गीदड क्यों नही आया?
उनमे से एक डाक्टर था और सबसे ज्यादा पढा लिखा और स्मार्ट सा था. उसने जवाब दिया : महाराज गीदडओं के पास आजकल काम बहुत ज्यादा है. आजकल शहर मे चुनाव चल रहे हैं सो उनको फ़ुरसत नही है. उनके लिये शहर मे ही बहुत बडे बडे पैकेज उपलब्ध हैं.
शेर सिंह जी नाराज होकर दहाडते हुये बोले - फ़िर तुम यहां क्यों आये हो?
वो बोला - हुजुर मेरे पास कोई काम नही है सो मैं गीदड की जगह आपका सेक्रेटरी बनने आया हूं.
शेर बोला - अरे हमने तो सुना है कि आदमी मे बडी अक्ल होती है? फ़िर तुम जंगल मे क्युं आये हो?
अब शेर ने अपने इंटर्व्यु कमेटी के सदस्यों से विचार विमर्श किया तो भालूराम और लोमडराम जी ने एक सुर से कहा कि – महाराज आप इन्हे तुरंत वापस भेज दिजिये. ये आदमी की जात है..इस पर विश्वास नही किया जा सकता.
इतने मे ही वो तीनों आदमी चिल्लाने लगे कि महाराज हमको शहर वापस मत भेजो हम गीदड के सारे काम करने मे माहिर हैं हमें मौका दिया जाना चाहिये.
इस पर चालाक लोमड जी ने कहा – ठीक है. पर एक बात का ध्यान रहे की अगर तुमने कोई लापरवाही दिखाई तो तुमको दंडित किया जायेगा.
और उन तीनो मनुष्यों मे डाक्टर जैसा जीव सबसे समझदार दिखाई दे रहा था उसको गीदड की ड्युटी सौप दी गई. उसने वनस्पति शाश्त्र मे Phd. कर रखी थी.
अब शेर ने उसको कहा कि अभी तुम आराम करो. कल दोपहर तक तुम जंगल मे घूम कर मेरे लिये शिकार तलाश करो. जिससे मेरे लंच का प्रबंध हो सके और बाकी काम लंच करने के बाद.
अगले दिन सूबह ही वो डाक्टर शिकार खोजने निकल पडा. शेर इंतजार करता रहा…दोपहर के दो…तीन..चार बज गये . पर वो नही आया. शेर भूखा मरता झल्लाता रहा…आखिर शाम को छ बजे के आसपास वो आदमी आया और बोला – महाराज चलिये आपके लिये बहुत शानदार भोजन मैने तलाश लिया है.
अब वो भूखे शेर को अपने साथ घुमाता घुमाता उबड खाबड रास्तो से एक हरे हरे मटर के खेत मे लेगया.
वहां पहुंच कर शेर बोला - अबे अब और कितनी दूर लेजायेगा भूखे प्यासे को? बता कहां है मेरा शिकार?
वो आदमी बोला : महाराज ये सामने देखिये क्या बेहतरीन और स्वादिष्ट मटर का खेत है? आप खाईये इसे और मीठे मीठे मटरों का आनन्द लिजिये. ये बहुत गुणकारी और सेहत मंद होते हैं.
इतना सुनते ही शेर का पारा सातवें आसमान पर पहुंच गया और शेर बोला – अबे उल्लू के पठ्ठे…तुझको किसने डाक्टर बना दिया? हैं..? अब शेर को ये घास फ़ूस खाना पडेगा?
वो आदमी बोला – महाराज मैं आदमी या ढोरों का डाक्टर नही हूं. अगर वो होता तो यहां क्यों आता? उनको तो एक बार नब्ज पकडने के ही हजार पंद्रह सौ मिल जाते हैं. मैने तो बाटनी मे डाक्टरी की है इसीलिये बेकारी में यहां चला आया.
जैसे जैसे वो बोलता गया वैसे वैसे भूखे शेर का गुस्सा बढता गया..अब शेर सिंह जी बोले – नामाकूल..साले आदमी की औलाद….तुझे शर्म नही आई…ये कहते हुये कि….मटर खालो? अबे मनहूस…सारे दिन भूखा मार दिया. तेरे को मालूम है - शेर घास फ़ूस नही खाता…शेर को गोश्त लगता है खाने में?
और उस शेर ने उस आदमी को इनिशियल एडवांटेज मे दो झापड रसीद किये और उसकी मूंडी पकड कर तोड दी और उसको खा गया……इसके बाद अगले आदमी को शेर सिंह जी की सेवा मे लगा दिया गया जो कि कम पढा लिखा था…यानि ग्रेज्युट था…..और इसके बाद नम्बर आया ताऊ का..जो कि बिल्कुल ही अंगूठा छाप था.
अब अगले भाग मे पढिये…बचे हुये इन दोनों के साथ क्या क्या हुआ? ताऊ कैसे फ़ंस गया…शेर सिंह जी ने ब्लागिंग मे क्या कमाल किया? किस किस ब्लागर के साथ क्या क्या किया? आपको भी अपना विवरण चाहिये तो शेर सिंह जी के पास अपना रजिस्ट्रेशन करवायें…..और भी बहुत कुछ पढिये अगले भागों मे……
इब खूंटे पै पढो :- अक्सर ताऊ शब्द ये एहसास देता है कि ये ताऊ नाम का प्राणी उम्र मे पुकारने वाले के पिताजी से भी बडा होना चाहिये. बात तो सही है कि हमारे यहां ताऊ पिताजी के बडॆ भाई को बोला जाता है. और बच्चों से ताऊ का रिश्ता दादा-बाबा (grandpa) जितना ही खुला होता है. एक सहज रिश्ता.. बच्चे अपने पिताजी से कभी नही खुलेंगे पर ताऊ से वो ज्यादा हिल मिल जाते हैं. यहां ताऊ नाम का ना तो कोई प्राणी है और ना कुछ और है. यहां ताऊ एक विचार मात्र है. असल मे यहां पर ताऊ वो होता है जो ताऊ पने के यानि उल्टे सीधे काम करता है. ताऊ एक एहसास का नाम है. आप इसमे अपनापन तलाशेंगे तो अपनापन मिलेगा. आप इसमे मुर्खता खोजेंगे तो वो भी मिलेगी. आप इसको जैसा महसूस करेंगे, ताऊ वैसा ही आपको लगेगा. कभी ताऊ आपको शातिर बदमाश लगेगा, कभी बिल्कुल भोला भाला और गांव का गंवार दिखाई देगा..जिसमे अक्ल नाम की कोई चीज नही होती. यानि ताऊ को आप अपने विचारों की प्रतिकृति पायेंगे, अगर आपने महसूस किया तो. और सुश्री रचना जी की पोस्ट में उनकी प्रतिटिपणि मे भी उन्होने इस बात को उठाया है. मैं कहना चाहुंगा की रचना जी इस हरियाणवी ताऊ के चरित्र की कोई उम्र नही है. इसको बालक से लेकर बुढ्ढे तक ताऊ ही बोलते हैं. इसकी उम्र खुद ताऊ को भी पता नही है. आप ताऊ को जिस भी रुप मे देखना चाहें, सिर्फ़ आपकी भावना है. आपने प्रतिटिपणी मे लिखा कि आज रामपुरिया जी भी आये ..अहोभाग्य इस ब्लाग के…बहुत बहुत धन्यवाद रचनाजी. ताऊ को आप जिस भी तरीके से याद करेंगी..ताऊ अपनी बेवकुफ़ियों के साथ हमेशा आस पास ही दिखेगा. हर छोटे बडॆ मे ताऊ बनने की प्रबल संभावना है. तो आईये आज खूंटे पर इस ताऊ की एक और मुर्खता / भोलेपन का मजा लिया जाये. अब आपको यह तो कोई बताने वाली बात नही है कि ताऊ ने सरे आम राज भाटियाजी के १५ लाख रुपये डकार लिये और ना भी नही करता और देता भी नही. समीर लाल जी भी इतने दिन भारत मे इसीलिये रुके कि किसी तरह उनके दोस्त भाटिया जी के रुपये ताऊ से वसूल करवा दिये जायें. और आज दोनों जर्मनी मे मिल ही रहे हैं. ताऊ सारी खबर रखता है. खैर ताऊ इस जलालत और रोज रोज के तगादे से परेशान हो गया. ताऊ ने अब मंदिर में जाकर भगवान से प्रार्थना शुरु करदी कि हे भगवान मेरी हालत बहुत खराब है । कृपा करके मेरी एक लाटरी लगा दो। आपकी बड़ी मेहरबानी होगी।'' मुझे एक बार ये भाटिया जी का कर्जा चुकता करना है. अब ताऊ को एक ही काम कि रोज मंदिर जाना और रोज भगवान से प्रार्थना करना.. अब रोज लाटरी का रिजल्ट टीवी पर सुनाया जाता . उसमे ताऊ का कहीं नाम निशान ही नही होता. ताऊ बहुत परेशान होगया. थोडे बहुत पैसे धेले जो जेब मे थे वो भी मंदिर मे प्रसाद बांटने मे खर्च होगये. फ़िर एक दिन गया मंदिर और शिवजी को पकड लिया और जोर से हिलाकर बोला – अरे शिवजी बाबा घणे दिन हो गये तू रोज भूल जाता है. पर आज तू ये लाटरी मेरे नाम ही निकलवा देना. तेरे लिये कौन सा बडा काम है? तेरा जरासा काम और मेरी तकलीफ़ दूर हो जायेगी. पर उस दिन भी ताऊ की लाटरी नही निकली. अब ताऊ को घणा छोह (गुस्सा) आगया और भोले बाबा की मुर्ती को हिलाकर बोला – देख ओ शिवजी बाबा..तेरे को साफ़ साफ़ बता रहा हू - अब मेरे पास आत्महत्या के अलावा और कोई रास्ता नहीं बचा है। अगर आज आपने मेरी लाटरी नहीं खोली तो मैं आत्महत्या कर लूंगा!'' और ये ताऊ हत्या का पाप आपको लगेगा. अब शिवजी बाबा ने आकाशवाणी की - अरे बावलीबूच ताऊ..इतने दिन से मुझे परेशान कर रहा है? अरे बेवकुफ़ मैं कैसे तेरे लाटरी खुलवाऊ? मुर्ख ताऊ ..पहले जाके लाटरी का टिकट तो खरीद. |
सूचना : कल गुरुवार सुबह ५:५५ AM पर परिचयनामा में श्री नितिन व्यास के साथ हमारी अंतरंग बातचीत पढना ना भुलियेगा.
"आजकल शहर मे चुनाव चल रहे हैं सो गीदड़ों को फ़ुरसत नही है."
ReplyDeleteताऊ जी।
कमाल है,
इस माहौल में इससे बढ़िया व्यंग्य दूसरा हो ही नही सकता।
बधाई।
ताऊ कभी हार नहीं सकता .
ReplyDeleteभले शेर भूखा मरे कभी न खाये घास।
ReplyDeleteनेता शेर समान है हम सब आज खबास।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
अभी सब गीदड़ चुनाव में लगे हैं। चुनाव के बाद सेक्रेटरी भी मिलेंगे और शिकार भी।
ReplyDeleteइनिशियल एडवांटेज मे दो झापड रसीद किये और उसकी मूंडी पकड कर तोड दी और उसको खा गया…
ReplyDeleteइब उसे खा ही जाना था तो भला इनीशियल अडवन्तेज देने की क्या आन पडी ? झुट्ठै बिचारा मारौ खाया और जन्वौ गवायाँ !
सत्य वचन !!
ReplyDeleteजैसा महसूस करोगे,
' ताऊ जी '
वैसे ही दीखेँगेँ हरेक को !
वे ऐसे ही हैँ ...
और सदा ऐसे ही रहेँ ..
अच्छा, शेर जी के पास
हमारा रजिस्ट्रेशन भी
करवा लीजियेगा
..राम राम !
अब शेर ने अपने इंटर्व्यु कमेटी के सदस्यों से विचार विमर्श किया तो भालूराम और लोमडराम जी ने एक सुर से कहा कि – महाराज आप इन्हे तुरंत वापस भेज दिजिये. ये आदमी की जात है..इस पर विश्वास नही किया जा सकता.
ReplyDeleteताऊ अज तो आपको नमन है. बहुत उंची बात कह दी मजाक मजाक मे.
अब शिवजी बाबा ने आकाशवाणी की - अरे बावलीबूच ताऊ..इतने दिन से मुझे परेशान कर रहा है?
ReplyDeleteअरे बेवकुफ़ मैं कैसे तेरे लाटरी खुलवाऊ? मुर्ख ताऊ ..पहले जाके लाटरी का टिकट तो खरीद.
हा....हा....हा. घणी जोरदार कही ताऊजी.
कल के अंक में परिचयनामा का इंतजार रहेगा.
ताऊ गजब का लिखा आज तो. और खूंटा तो बहुत ही कमाल का. शिवजी भी बेचारा क्या करे? ताऊ ने लाटरी की टिकट ही नही खरीदी.:)
ReplyDeleteखूंटा तो कमाल का गाडा है. और गिदड शेर की कहानी भी लाजवाब. वाह ताऊ वाह.
ReplyDeleteमेरा नाम जोकर का गाना याद आ गया, जानवर आदमी से ज्यादा वफ़ादार है।खूंटे पर जाकर लगा कि अपन भी बजरंगबली को बेवजह तंग कर रहे है,मांगने का सलिका भी आना चाहिये,हंसते-हंसाते ये सीखा दिया आपने।
ReplyDelete'महाराज गीदडओं के पास आजकल काम बहुत ज्यादा है. आजकल शहर मे चुनाव चल रहे हैं सो उनको फ़ुरसत नही है'-
ReplyDelete-खूब करारा व्यंग्य किया है!
-khuntey par--bahut mazedaar tha...
अब बिना ticket खरीदे aisee फरियाद और कौन कर सकता है!
आपको भी अपना विवरण चाहिये तो शेर सिंह जी के पास अपना रजिस्ट्रेशन करवायें…
ReplyDeleteबहुत शानदार कहानी ताऊजी. खूंटा भी जबर्दस्त, आप हमारा भी रजिस्ट्रेशन शेर सिंह जी के पास करवा दिजिये.
आपको भी अपना विवरण चाहिये तो शेर सिंह जी के पास अपना रजिस्ट्रेशन करवायें…
ReplyDeleteबहुत शानदार कहानी ताऊजी. खूंटा भी जबर्दस्त, आप हमारा भी रजिस्ट्रेशन शेर सिंह जी के पास करवा दिजिये.
बहुत जबरदस्त लिखा जी. गीदड जी तो अब चुनाव के बाद ही दर्शन देंगे.:)
ReplyDeleteशेर बोला – अबे उल्लू के पठ्ठे…तुझको किसने डाक्टर बना दिया? हैं..? अब शेर को ये घास फ़ूस खाना पडेगा?
ReplyDeleteलाजवाब ताऊ. खूंटा और पोस्ट दोनो बेहतरीन
आज तो मजे आगये ताऊ जी. लगे रहिये.
ReplyDeleteओह! बेचारे शिवजी बाबा..
ReplyDeleteऐसे भक्तों से तो अकेले ही भले.
खूँटे पर पढ़कर तो खूब आनन्द आता है ताऊ जी ।
ReplyDeleteअब जी चाचा तो पिताजी के छोटे भाई को कहा जाता है.. पर चाचा नेहरु हमारे पिताजी से छोटे तो नहीं थे.. ताऊ को तो हम प्रेम से ताऊ कहते है..
ReplyDeleteये तो गलत हुआ कोई तो आना चाहिए था...
ReplyDeleteपर लेख बहुत मजेदार है...
मीत
शेरू महाराज जम रहे हैं. और खूंटा तो जमा हुआ है ही. ताऊ कौन है पर कुछ प्रगति हुई क्या? हमने तो ताऊ को एक विचारधारा मानना चालु कर दिया था.
ReplyDelete!!!!!!!ताऊ अनन्त, ताऊ कथा अनन्ता!!!!!!
ReplyDeletemajedaar raha ye kissa bhi...
ReplyDeleteWah taau.. wah.. :)
ReplyDeletehamara registration pakka kijiye sher ji ki khidmat me.. :)
आगे की कथा का बेसब्री से इन्तिज़ार है.
ReplyDeleteha ha ha
ReplyDeletemazedar raha
"आजकल शहर मे चुनाव चल रहे हैं सो गीदड़ों को फ़ुरसत नही है."
ReplyDeleteताऊ जी बहुत करारा व्यंग्य है. आगे की कथा का इंतजार है.
जीवन को हलके फुल्के अंदाज में जीना तो कोई आप से सीखे.
ईब तो शेर गया काम से।
ReplyDeleteताउ जैसे सवा शेर से पाला पड़ने वाला है।
ताऊ नाम का जो फलसफा है, वह हममें छुपा हुआ एक बालक (शरारती या भोला), एक बुजुर्ग जो आपको अंधियारे में लाठी पकड के राह पर ला सके, एक विदुषक जो स्वयं पर हंस कर आपको हंसा सके, ताकि आप अपने दुख दर्द भूल कर स्वानंद प्राप्त कर सकें..कमाल है ताऊ कमाल है.Hats Off!!!
ReplyDeleteबहुत करारा व्यंग्य.. खूंटा तो और भी मजेदार रहा..
ReplyDeleteरै ताऊ राम राम और के हाल सै पडोसी का
ReplyDeleteताऊ मैं एक बात बोलना चाह रहा हूं कि गीदड को गीदड ही रहने दो
अच्छी लगी आपकी पोस्ट