आंसू बिकते हैं
आंसू बिकते हैं...
एक नेताजी बोले
भैया मगर
जरा से आंसू
उधार दो अगर
तो देश की बदहाली पर
हम भी ऑंखें कर आये तर...
पथरीली आंखों से
बोला मगर
नेता हु्जूर
बडी देर कर दी
कुछ जल्दी आते अगर ...
सारा का सारा
आंसुओं का स्टाक तो
दस दिन पहले ही
दूसरी पार्टी वालो
को हम कर चुके है नज़र
नेता जी बोले
कुछ करो हेरफ़ेर
अच्छे दाम दूंगा
तुमको भाई मगर
मगर बोला
नेताजी
हम आंसूओं का व्यापार
करते हैं
कोई हेराफ़ेरी
या नेता गिरी नही करते
तुम्हारा कोई तीर अब
नहीं करेगा मुझ पर असर .....
(इस रचना के दुरूस्तीकरण के लिये सुश्री सीमा गुप्ता का हार्दिक आभार!)
आंसू बिकते हैं...
एक नेताजी बोले
भैया मगर
जरा से आंसू
उधार दो अगर
तो देश की बदहाली पर
हम भी ऑंखें कर आये तर...
पथरीली आंखों से
बोला मगर
नेता हु्जूर
बडी देर कर दी
कुछ जल्दी आते अगर ...
सारा का सारा
आंसुओं का स्टाक तो
दस दिन पहले ही
दूसरी पार्टी वालो
को हम कर चुके है नज़र
नेता जी बोले
कुछ करो हेरफ़ेर
अच्छे दाम दूंगा
तुमको भाई मगर
मगर बोला
नेताजी
हम आंसूओं का व्यापार
करते हैं
कोई हेराफ़ेरी
या नेता गिरी नही करते
तुम्हारा कोई तीर अब
नहीं करेगा मुझ पर असर .....
(इस रचना के दुरूस्तीकरण के लिये सुश्री सीमा गुप्ता का हार्दिक आभार!)
बहुत खूब।
ReplyDeleteखुशी के आँसू गम के आँसू आँसू है व्यापार।
घड़ियाली आँसू दिखलाकर चलती है सरकार।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
हेर-फेर के पलड़ों में नयनों का,
ReplyDeleteखारा जल तुलता है।
नेताओं के नयनों में तालाबों
जैसा जल घुलता है।
घणी राम-राम।
चुनावी माहौल की यादगार कविता !
ReplyDeleteहम आंसूओं का व्यापार
ReplyDeleteकरते हैं
कोई हेराफ़ेरी
या नेता गिरी नही करते
कितनी दमदार व भावनाप्रधान अभिव्यक्ति है !!
अद्भुत !!
हम आंसूओं का व्यापार
ReplyDeleteकरते हैं
कोई हेराफ़ेरी
या नेता गिरी नही
बहुत खूब..सुंदर रचना।
हम आंसूओं का व्यापार
ReplyDeleteकरते हैं
कोई हेराफ़ेरी
बहुत सटीक और सामयिक ताऊ.
आजकल आंसुओं की डिमांड काफ़ी है और वो भी घडियाली आंसुओं की.
बहुत सुंदर और सटीक कविता.
ReplyDeleteरामराम.
सही है ताऊ जी, नकली आंसू दिखाकर आजकल वोट जो लेने हैं जनता से.
ReplyDeleteआपने पहले नही बताया वर्ना हम भी थोडा स्टाक कर लेते तो मंदी के माहोल मे कुछ कमाई हो जाती.
वाह वाह ताऊ चाल्हे पाड दिये
ReplyDeleteकविता मे तो नेताओं के कपडे फ़ाड दिये.
सीमा जी का जवाब नहीं. चित्र भी क्या गजब का है. उसमें ही एक कविता है.
ReplyDeletechunavon में aansuyon के vyapar के madhyam से बहुत ही सही kataksh किया है.
ReplyDeleteअफ़सोस यह है कि भोली जनता इन घडियाली आंसुओं में बह जाते हैं.
badhayee.
आंसू बिकते हैं बोलो खरीदोगे????
ReplyDelete" बेहद ही सामयिक और सार्थक रचना "
regards
थोड़ी हेराफेरी कर दो प्लिज़., वरना हम पाँच साल यह नहीं कर पाएंगे....
ReplyDeleteनेताजी
ReplyDeleteहम आंसूओं का व्यापार
करते हैं
कोई हेराफ़ेरी
या नेता गिरी नही करते
तुम्हारा कोई तीर अब
नहीं करेगा मुझ पर असर
waah kya kehne;):),neta se magar maharaj jyada iandar nikle,aasoon ke mamle mein bhi.shandar rachana,maza aa gaya.
आंसुओं का व्यापर और घडियाली आंसुओं के खरीदार , बहुत अच्छी और समय को देख कर कविता लिखी गयी है !!
ReplyDeleteवाह जी वाह.. हमारे नेताओं से तो मगर और घड़ियाल ही अच्छे.. जो करते हैं डंके की चोट पर तो करते हैं.. कटाक्ष को बहुत ही सुंदर तरीके से पेश किया आपने..
ReplyDeleteहम आंसूओं का व्यापार
ReplyDeleteकरते हैं
सत्य वचन !
ReplyDeleteसच्चाई ब्यां करती एक बेहतरीन कविता....बहुत बढिया...
ReplyDeleteEkdam sarthak...
ReplyDeleteप्रणाम ताऊ जी... राजनेताओं के आचरण को मंच पर कविता के माध्यम से लाने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। इन्होंने सत्य को बेचा, धर्म को बेचा और अब इन नकली आंसूओं का व्यापार करने में भी माहिर हो गये है। एक बात ओर ताऊ जी, इस देश में क्रांतियां हमेशा दबे पांव आई है। एक ऐसा वक्त आयेगा ... ऐसी क्रांति आयेगी जब हम इस बासठ साल पुराने भारतीय लोकतंत्र को मजबूती पर खडा देखेंगे लेकिन इसके लिए दूसरी आजादी के लिए लडने की तैयारी हमें ही करनी होगी।
ReplyDeleteजय हिंद
सही है...
ReplyDeleteवैसे भी नौकरी गई, तब आंसू बहे
चावल-दाल का दाम देखा, तब आंसू बहे
आन्स्सो तो सारे बह गए
नेता जी को कहाँ से देगा कोई?
कितना तीखा और तेज व्यंग है................अगर कोई नेता पढ़गे तो शर्म से डूब मरेगा..............
ReplyDeleteबहुत खूब
व्यंग्य में बडी ताकत होती है, यह इस कविता से प्रमाणित होता है। सुंदर कविता, हार्दिक बधाई आपको और सीमा जी को।
ReplyDelete----------
अभिनय के उस्ताद जानवर
लो भई, अब ऊँट का क्लोन
दमदार-
ReplyDeleteबहुत खूब-
यादगार-
सुंदर-
सटीक
-सही
-वाह वाह-
सीमा जी का जवाब नहीं.
-बहुत ही सही-
सार्थक -
बहुत अच्छी-
वाह जी वाह..
सत्य वचन-
बेहतरीन
tanks to सुश्री सीमा गुप्ताजी.आभार
गहरी चोट करती रचना। शानदार जानदार।
ReplyDeleteनेताओ के मुह पर तमाचा है यह...
ReplyDeleteसच में नेताओ की फितरत ऐसी ही तो है...
बहुत सुंदर कविता...
मीत
हमारा बेशकीमती सुझाव - मारो गोली आंसू को। ग्लिसरीन के आंसू काम में लीजिये।
ReplyDeleteघड़ियाल भी काम के गुरू हो सकते हैं। शिष्यत्व ग्रहण किया जाय उनका।
बहुत सही---व्यापार और नेतागिरी का अंतर सही गिनाया.
ReplyDeleteबढ़िया रचना.
भावनाप्रधान सुंदर सटीक रचना .
ReplyDeleteरामराम..
बहुत सटीक और ज़मीर पर चोट करती हुई.....
ReplyDelete.... लेकिन जिनका ज़मीर ही जिंदा नहीं उनका............ ?????
गर आंसू बिकते होते, तो हम कमर न तोड़ रहे होते.
ReplyDeleteइतने आंसुओं में तो हम करोड़पति बन चुके होते.
यही तो है नेताओँ की असली सुरत - बहुत अच्छी कही सीमा जी आपने -
ReplyDelete- लावण्या
सच काम में इमानदारी तो जरूरी ही है। नेता जी को आइना दिखा दिया।
ReplyDeleteक्या खूब ताऊ
ReplyDelete