रात समय तकरीबन आठ बजे ! सांयकाल को टहलते समय
अचानक चांद पर नजर पडी ! और ताऊ बस देखता ही रह गया !
हलके बादलों के बीच इतना सुन्दर चांद दिखाई दे रहा था कि उसकी
तसवीर उतारने की कोशीश की ! जैसी भी आई , उससे अच्छी
फ़ोटो एक मोबाइल कैमरे से क्या आयेगी !
वहीं एक दिवार पर बैठे बैठे चांद को देखते देखते पता नही
कब मन खो सा गया ! इतनी गहरी शान्ति अनुभव हुई कि बता
नही सकता ! अजीब मदहोशी पूरे आलम मे बिखरी हुई थी !
वहीं चांद को देखते देखते कुछ पल तो मन ठहरा फ़िर
चलायमान हो गया !
वहीं बैठे बैठे युं ही एक विचार पैदा हुआ ! कारण कुछ समझ
मे नही आया ! सपना भी नही था ! शायद कोरा विचार ही था !
शायद आप समझ पायें तो सोचा आपसे भी साझा करता चलुं !
एक जन्गल मे एक हाथी था ! हाथी बडा मस्त ! ना किसी के
लेने मे और ना किसी के देने मे ! गजराज अपने मे ही मस्त !
और इसी हाथी के आस पास एक मक्खी भी रहती थी ! और भी
रहती होंगी पर ताऊ को इसके अलावा किसी का पता नही !
और हाथी को तो इसका भी पता नही ! हाथी जहां जहां
भी जाता , मक्खी भी वहां वहां आनन्द लेती ! और हाथी को
इससे क्या फ़र्क पडना था ! हाथी अपनी मस्ती मे कभी पेड
उखाड देता, कभी नदी मे तैरता.. पानी उछाल देता ! मूड आ गया
तो किसी को उठा कर पटक देता ! अब आप जानते ही हैं कि हाथी
की ताकत का क्या अन्दाजा ? हाथी का रुप तो आप समझ लें
की परमात्मा जैसा ! कहीं तान्डव कही भुकम्प ! कही शान्ति !
और ये जो महारानी मक्खी थी , ये तो हाथी की पीठ पर ही रहती
थी ! और धीरे धीरे उसने भी अपने आपको हाथी के इन कामों मे
भागीदार समझना शुरु कर दिया ! मतलब वो समझने लग गई
की ये हाथी जो भी काम करता है ! उन सब कामों मे मैं भी
बराबर की हिस्सेदार हुं ! मतलब सब काम हाथी उसकी मदद
से ही करता है ! ले दे कर हाथी बिना मक्खी की मदद के कुछ
नही करता है !
एक दिन हाथी एक लकडी के पुल पर से गुजर रहा था ! और
आदतन मक्खी उसकी पीठ पर सवार थी ! हाथी को पुल पर से
गुजरते हुये कुछ अटपटा सा लगा ! और इसी अटपटे पन मे
हाथी ने दो चार बार पैर पटका और चुंकी पुल कमजोर था !
सो टुट गया ! और हाथी पुल पर से आगे की तरफ़ कूद गया !
और मक्खी उपर से चिल्लाई -- बेटा आखिर हमने पुल को
तोड ही लिया !
हाथी चौन्का और उडती हुई मक्खी को देख कर
बोला -- हां अम्मा ! तेरी मेहरवानी ! पर इतने दिन तू
कहां थी ?
मक्खी बोली-- तू जितने भी कार्य करता था उन सबमे मैं ही
तो तेरी मदद करती थी ! हमेशा सब कामों मे तेरी मदद मैं
करती आई हूं ! अब हाथी को बोलने के लिये बाकी ही
क्या बचा था ! हाथी अपनी धुन मे आगे बढ गया !
इस विचार का मतलब क्या है ? मुझे नही पता ! पर इतना पता
जरुर है कि ये हाथी ही परमात्मा है और ये मक्खी ही ताऊ है !
क्या वाकई ताऊ को ये भ्रम नही हो गया है ? हे परमात्मा रुपी
हाथी, इस मक्खी रुपी ताऊ की भूल को माफ़ कर !
और मेरे प्रणाम स्वीकार कर !
अचानक चांद पर नजर पडी ! और ताऊ बस देखता ही रह गया !
हलके बादलों के बीच इतना सुन्दर चांद दिखाई दे रहा था कि उसकी
तसवीर उतारने की कोशीश की ! जैसी भी आई , उससे अच्छी
फ़ोटो एक मोबाइल कैमरे से क्या आयेगी !
वहीं एक दिवार पर बैठे बैठे चांद को देखते देखते पता नही
कब मन खो सा गया ! इतनी गहरी शान्ति अनुभव हुई कि बता
नही सकता ! अजीब मदहोशी पूरे आलम मे बिखरी हुई थी !
वहीं चांद को देखते देखते कुछ पल तो मन ठहरा फ़िर
चलायमान हो गया !
वहीं बैठे बैठे युं ही एक विचार पैदा हुआ ! कारण कुछ समझ
मे नही आया ! सपना भी नही था ! शायद कोरा विचार ही था !
शायद आप समझ पायें तो सोचा आपसे भी साझा करता चलुं !
एक जन्गल मे एक हाथी था ! हाथी बडा मस्त ! ना किसी के
लेने मे और ना किसी के देने मे ! गजराज अपने मे ही मस्त !
और इसी हाथी के आस पास एक मक्खी भी रहती थी ! और भी
रहती होंगी पर ताऊ को इसके अलावा किसी का पता नही !
और हाथी को तो इसका भी पता नही ! हाथी जहां जहां
भी जाता , मक्खी भी वहां वहां आनन्द लेती ! और हाथी को
इससे क्या फ़र्क पडना था ! हाथी अपनी मस्ती मे कभी पेड
उखाड देता, कभी नदी मे तैरता.. पानी उछाल देता ! मूड आ गया
तो किसी को उठा कर पटक देता ! अब आप जानते ही हैं कि हाथी
की ताकत का क्या अन्दाजा ? हाथी का रुप तो आप समझ लें
की परमात्मा जैसा ! कहीं तान्डव कही भुकम्प ! कही शान्ति !
और ये जो महारानी मक्खी थी , ये तो हाथी की पीठ पर ही रहती
थी ! और धीरे धीरे उसने भी अपने आपको हाथी के इन कामों मे
भागीदार समझना शुरु कर दिया ! मतलब वो समझने लग गई
की ये हाथी जो भी काम करता है ! उन सब कामों मे मैं भी
बराबर की हिस्सेदार हुं ! मतलब सब काम हाथी उसकी मदद
से ही करता है ! ले दे कर हाथी बिना मक्खी की मदद के कुछ
नही करता है !
एक दिन हाथी एक लकडी के पुल पर से गुजर रहा था ! और
आदतन मक्खी उसकी पीठ पर सवार थी ! हाथी को पुल पर से
गुजरते हुये कुछ अटपटा सा लगा ! और इसी अटपटे पन मे
हाथी ने दो चार बार पैर पटका और चुंकी पुल कमजोर था !
सो टुट गया ! और हाथी पुल पर से आगे की तरफ़ कूद गया !
और मक्खी उपर से चिल्लाई -- बेटा आखिर हमने पुल को
तोड ही लिया !
हाथी चौन्का और उडती हुई मक्खी को देख कर
बोला -- हां अम्मा ! तेरी मेहरवानी ! पर इतने दिन तू
कहां थी ?
मक्खी बोली-- तू जितने भी कार्य करता था उन सबमे मैं ही
तो तेरी मदद करती थी ! हमेशा सब कामों मे तेरी मदद मैं
करती आई हूं ! अब हाथी को बोलने के लिये बाकी ही
क्या बचा था ! हाथी अपनी धुन मे आगे बढ गया !
इस विचार का मतलब क्या है ? मुझे नही पता ! पर इतना पता
जरुर है कि ये हाथी ही परमात्मा है और ये मक्खी ही ताऊ है !
क्या वाकई ताऊ को ये भ्रम नही हो गया है ? हे परमात्मा रुपी
हाथी, इस मक्खी रुपी ताऊ की भूल को माफ़ कर !
और मेरे प्रणाम स्वीकार कर !
.
ReplyDeleteताऊ तेरे भतीजे 100 साल जियें,
तू भले खेत रहे, लेकिन बात तो लाख टके की कह गया,
ले इसी बात पर एक टिप्पणी इंग्रेज़ी में..
' चवन्नी उछाल के ..
No doubt , it is a real nice symbolic Story.
Pagadi / Topi / Hats off to you !
हाथी ही परमात्मा है और ये मक्खी ही ताऊ है !
ReplyDeleteकितने सांकेतिक रूप से आपने बात
कहदी है ! इस कहानी को पहले
कहीं नही सूना ! आपकी जितनी
प्रशंशा की जाए वह कम है !
बहुत जबरदस्त बात कही आपने !
बहुत बढिया कहानी है।लेकिन यह बात ताऊ पर लागू नही होती, बल्कि सभी पर लागू होती है।हम सभी कभी ना कभी मक्खी बन जाते हैं।
ReplyDeleteरामपुरिया जी ! बहुत बेहतरीन रचना !
ReplyDeleteइस पोस्ट पर डाक्टर अमर कुमार जी
ReplyDeleteकी टिपन्नी के आगे हमारी टिपणी बहुत
बोनी होगी ! डा. साहब ने वो कह दिया
जिसकी हम सोच भी नही सकते !
मैं ख़ुद तो नही लिखता ! और टिपणीया
भी कम ही करता हूँ ! मैं डा. साहब की
टिपन्नीया पढा करता हूँ ! आज डाक्टर साहब
ने आपको वो इनाम दे दिया जिसके लिए
लोग तरसा करते हैं !
मैं डाक्टर साहब को भी सलाम करता हूँ की
उन्होंने कितनी बारीक नजर से मर्म को देखा है !
और आपको भी मेरी साष्टांग धोक !
अति सुंदर और स्व का बोध कराती
ReplyDeleteरचना ! अनेक अनेक शुभकामनाएं !
ताऊ बात तो तेरी सही सै ! पर म्हारे ना जच री सै ! भई ताऊ तैं क्यूं मक्खी बणण लाग रया सै ? अर तू म्हारा ताऊ सै ! ताऊ ही बन्या रह ! यो मोड्डे फकीर की तरियां बणणै की जरूत ना सै ! और इब फट सै एक फड़कती कड़कती सी हरयाणवी पोस्ट लिख डाल !
ReplyDeleteताऊ तू अगर मोड्डा सोड्डा बण गया तै मैं तेरे सर पै लठ मार दूंगा ! इब तू म्हारा ताऊ बण गया तै ताऊ ही बन्या रह ! ठीक सै ना ? समझ मै आ गई अक समझाऊं ?
राम पुरिया ताउ,भाई इतनी बडी बात केसे समझा दी, इन्सान को उस की ओकात बता दी, लेकिन हम फ़िर भी हर जगह हाथी वाली मक्खी ही बन जाते हे, राम राम जी की
ReplyDeleteमक्खी की फ़िर भी कोई औकात हो सकती है ,
ReplyDeleteपर आदमी की हाथी के सामने कोई भी औकात
नही है | फ़िर भी हमारा अहम् कितना है ?
सांकेतिक है कहानी , पर बहुत कुछ कह जाती
है | बहुत सुंदर बन पडी है पूरी रचना ! आपको
बहुत बधाई एवं शुभकामनाएं !
ताउगिरी छोडकै इब के मोड्डागिरी शुरू करण का
ReplyDeleteविचार कर राख्या सै ? यो मोड्डागिरी आछी बात
ना सै ! ताई कित जागी और के करेगी ? सोच्या सै कभी ! और हम यो तेरे भतीजे घूम रे सै ये कित जांगे ? और के करैंगे ? आपण तो ताऊ और भतीजे ही आछे सै !
थम तो आपणी हरयाणवी चालु राखो ताऊ ! मरण दो अण मक्खी और हाथियाँ नै ! अपनी समझ मै नी आंदी ये बात !
तिवारी साहब का आपको प्रणाम | आपकी इस
ReplyDeleteपोस्ट पर इससे ज्यादा उपयुक्त शब्द हमारे पास
नही हैं | और आप इसी तरह लिखते रहें | यही
उम्मीद है | धन्यवाद |
बहुत अच्छे सपने आ रहे हैं आपको आजकल! चलिए आपके प्रसंगों से हमारा भी भला होता रहेगा. आपका ईमेल मिल जाता, थोड़ी बातचीत होती तो और अच्छा लगता.
ReplyDeletebahut achha vichar aaya hai tauji...
ReplyDeletejaldi se bhram se bahar aa jaana chahiye hum sabko...
bahut achha vichar aaya hai tauji...
ReplyDeletejaldi se bhram se bahar aa jaana chahiye hum sabko...
वाह ताऊ भोत चोखी कहाणी ल्याया इ बार भी थम तो.
ReplyDeleteपर ताऊ कद-कद थम लाइन स भटक क्यांट जाओ हो?
मेह तो कुछ और ही सोचकर आया था. पर अठे आकर तो मज़ा ही आग्या
बधाई ताऊ बधाई.
vakai bhut badhiya kahani. aesi kahani to pahali baar hi padi hai.
ReplyDeletebhut achhi kahani. bilkul alag si. jari rhe.
ReplyDeleteताऊ बड़ी सादगी से एक और बड़ी बात कह दी आपने ,मक्खी का भ्रम दूर हो गया और मेरा भी ...
ReplyDeleteशुक्र है डॉ साहेब ने पहला ही कमेन्ट दे दिया ....सारी कथा का सार कह दिया ....सो हम तो हाथ बांधे खड़े है जी....
ReplyDeletetauji ki kalam se ek aur gehri baat...badhiya symbolism
ReplyDeleteताऊ जी राम राम
ReplyDeleteपहली बार आपके ब्लाग पर आई हूं । पढकर बहुत अच्छा लगा।
रामपुरिया जी ! अच्छी रचना....
ReplyDeleteबहुत सार्थक बात कही है ताऊ,विराट परमात्मा के सामने मै मै कहने वाला हमारा "मै" मक्खी जितना भी नहीं है !
ReplyDelete